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प्रेम प्यार और सम्बन्ध – 4

दोस्तों, प्रेम एक शब्द ही नहीं है | प्रेम आसमान की तरह अनंत है | हम ही इस अनंत को रिश्ते के बंधन या अपने झूठे अहम में बाँधना चाहते हैं | इस बाँधने के चक्कर में ही हमें चोट पहुँचती है | जैसे हम नदी के बहाव को रोक नहीं सकते हैं वैसे ही हम प्रेम के प्रवाह को भी रोक नहीं सकते | जैसे ही यह प्रवाह रुकता है वैसे ही कोई न कोई समस्या आन खड़ी होती है | और जैसे ही समस्या सामने आती है हम प्रेम या प्रेमी को कोसने लगते हैं | जबकि हमें समस्या को कोसना चाहिए | हमें अपनी सोच को कोसना चाहिए | लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं | क्योंकि हमारे स्वाभाव में यह बात घर कर चुकी है कि हम कभी गलत हो ही नहीं सकते | गलत होगा तो कोई दूसरा ही होगा | चाहे फिर वह कारण हो या व्यक्ति |

प्रेम का प्रवाह जब रुक जाता है तब क्या होता है ? इस विषय पर हम अगले भाग में विश्लेष्ण करेंगे | इससे पहले हम अनंत प्रेम को समझने की कोशिश करते हैं | इसके बाद ही आप प्रेम प्रवाह को सही ढ़ंग से समझ पाएंगे |

इस जगत में हमारे चारो तरफ प्रेम ही प्रेम बह रहा है | आसमान की तरह इस धरती पर प्रेम अनंत और अनगनित रूप से फैला हुआ है | लेकिन हम प्रेम को प्रेमी या रिश्ते से ही जोड़ कर देखते हैं | क्योंकि हम हर जगह हर विषय में प्रेम को कैद करने के जुगाड़ में लगे हुए हैं | हम प्रेम को प्रेम भाव से देखते ही नहीं है |

इस जगत में, इस पूरे ब्रह्माण्ड में चारों तरफ सिर्फ प्रेम ही प्रेम है | लेकिन हम इतने अंधे हो चुके हो, इतना बोझ कंधे पर लादे घूम रहे हो कि हम को चारों तरफ बिखरा प्रेम दिख ही नहीं रहा है | ईश्वर यानि प्रकृति में फैला प्रेम आपको दिख रहा है | नहीं आपको नहीं दिख रहा है | आप फूल के पौधे में भी कांटे देख रहे हो | आप अच्छे में भी बुरा देखने के इतने आदि हो चुके हो कि आपकी नजर अच्छे को देख ही नहीं पाती है |

भगवान की मूर्ति या पूजास्थल क्यों बनाये गये थे ? कभी सोचा आपने ? भगवान की मूर्ति इसलिए बनाई गई ताकि आप उससे सम्बन्ध बना सके | क्योंकि बनाने वाला यह समझ चुका था कि आप सिर्फ उसी से संवाद या सम्बन्ध स्थापित कर पाते हो जिन्हें आप सामने देखते हो | आप आंतरिक प्रेम भूल चुके हो यही संदेश देने के लिए यह शुरू किया गया होगा | लेकिन आप तो उसे ही अपना सब कुछ मान कर हर रोज पूजास्थल पहुँच जाते हो | जैसे वह यानि ईश्वर सिर्फ वहीं हो सकता है कहीं और नहीं | इस पागलपन ने ही हमारे अंदर एक नकारात्मक भाव पैदा कर दिया है | हम ईश्वर को अब प्रकृति या इंसान या जानवर में नहीं सिर्फ और सिर्फ पूजास्थल की मूर्ति में ही देखने लगे हैं | और फिर हम सब बार-बार कहते हैं कि कलयुग आ गया है | इसी कारण प्रेम अब प्रेम नहीं व्यापार होता जा रहा है | यह व्यापार शुरू किसने किया ? हम सब दोषी हैं लेकिन दोष हम कलयुग पर डाल अपने को निष्पाप और निष्कलंक साबित करने का झूठा प्रयास करते हैं और करते चले आ रहे हैं |

हम ने जैसे ईश्वर को मूर्ति, पूजास्थल और धर्मिक ग्रंथों में कैद कर दिया है वैसे ही हम ने प्रेम के साथ भी किया है | अपनी माँ, बहन और बेटी की हम इज्जत करते हैं लेकिन दूसरे की माँ, बहन, बेटी की इज्जत उतारने की हर दम कोशिश में लगे रहते हैं | अपनी पत्नी या प्रेमिका की इज्जत करें या न करें लेकिन दूसरे की इज्जत उतारने को उतावले रहते हैं | किसी अपने का एक्सीडेंट हो जाए तो हम समाज को दोष देते हैं लेकिन हम खुद कितना किसी का साथ देते हैं | हम ये क्यों भूल जाते हैं कि हम से समाज है | समाज से हम नहीं हैं | इन्ही सब कारणों से आज हर कोशिश के बावजूद समाज ऊपर नहीं उठ पा रहा है | बाहर से कोई कुछ नहीं कर सकता हैं | हमें खुद ही अपने आपको उठाना है | प्रेम को कैद नहीं करना है | प्रेम बहती नदी है | उसे बहने देना है |

हम सब कहते हैं कि अब सच्चा प्रेम देखने को भी नहीं मिलता है | यह बात पूर्णतः गलत है | प्रेम आज भी हर जगह हर क्षण जिन्दा है और हमारे सामने है लेकिन हम देख नहीं पा रहे हैं | पैसे से या फिर पद या प्रतिष्ठा से या फिर अहम से प्रेम भी एक तरह का प्रेम ही है | पैसे से प्रेम करने वाले को पैसे के इलावा कुछ और नहीं दिखता है | वह सब कुछ खोता चला जाता है फिर चाहे वह दोस्त हों या फिर नजदीकी रिश्ते हों और यहाँ तक की खुद की सोच हो या फिर सेहत हो लेकिन उसका पैसे से प्रेम बढ़ता ही जाता है | यही सब पद या प्रतिष्ठा या अहम से प्रेम करने वालों के साथ भी होता है | यह सब प्रेम के विकृत रूप अवश्य हैं लेकिन इनमें सच्चे प्रेमी वाले ही गुण विद्यमान हैं | अब आप ही बताइए कि सच्चा प्रेम जिन्दा है कि नहीं ?

वास्को-डी-गामा, पिछले तीन सौ साल के अविष्कारक, खोज करने वाले वैज्ञानिक या क्षोधकर्ता, इन सब में सच्चे प्रेमी का रूप या गुण विद्यमान था या हैं |

आइये अब सच्चे प्रेमीयों से उपरोक्त प्रेमियों का विश्लेष्ण करते हैं |

प्रेम आप कर नहीं सकते हैं | प्रेम हो जाता है | प्रेम होने पर वह दिन-ब-दिन बढ़ता ही जाता है | प्रेम के बारे में एक और ख़ास बात ये है कि प्रेम हमेशा इकतरफा होता है | दूसरा करे या न करे प्रेमी को फर्क नहीं पड़ता है | ऐसा प्रेमी न सिर्फ अपने प्रिय या प्रेयसी को ही नहीं पूरे जगत को प्रेम बांटता है | क्यों होता है ऐसा ? क्योंकि प्रेम हमेशा से हमारे अंदर विद्यमान था या है | जब उसके प्रेम को दिशा मिली तो फूट उठा प्रेम का स्रोत्र | इसके उदाहरण हैं बुद्ध, मीरा, नानक जिन्हें ईश्वर से प्रेम हुआ और फिर वह निकल पड़े प्रेम बाटने |

यदि आप सही जगह कुआँ खोदने चलोगे तो आप गहराई में उतरते ही जाते हो और फिर आपका धरती में छुपे जल स्रोत्र से मिलन होता है | कुछ ही समय में उस जल स्रोत से पूरा कुआँ भर जाता है | ऐसा कुआँ हमेशा पानी से लबालब भरा रहता है और जितना भी जल आप बाँट दो और पानी आ जाता है | ऐसा ही कुछ प्रेम में भी होता है | आप प्रेम की गहराई और गहराई में उतरते ही जाते हो और फिर आपका सामना अपने ही अंदर छुपे प्रेम के जल स्रोत से होता है | प्रेम से लबालब भरे आप फिर जितना भी प्रेम बाँट दो प्रेम का स्रोत्र कभी कम नहीं होता है | ऐसा प्रेमी खुद खो जाता है लेकिन उसका प्रेम सदा-सदा के लिए इस धरती पर अमर हो जाता है |

पैसा, पद, प्रतिष्ठा और अहम से प्रेम करने वाले प्रेमी तो हैं लेकिन उनका प्रेम विकृत प्रेम है | वह भी प्रेमी की तरह अपना सब कुछ खो देते हैं लेकिन उनके अंदर से कोई स्रोत नहीं निकलता है क्योंकि वह पैसे या पद या प्रतिष्ठा को अपने तक ही सीमित या कैद करना चाहते हैं या करते हैं | ऐसा प्रेम जिस से स्रोत न निकले या वह दूसरों के लिए न हो अपने तक ही सीमित हो तो ऐसा प्रेम विकृत प्रेम ही कहलाता है | हाँ, ऐसे प्रेमी में प्रेम करने के सारे गुण अवश्य होते हैं बस उसे दिशा देने की आवश्यकता है | अगर ऐसे विकृत प्रेमी को सही दिशा मिल जाए तो वह समाज में क्रांति ला सकता है लेकिन ऐसा प्रेमी हमेशा आखिरी साँस लेते हुए ही जागता है | ऐसे प्रेमी का आखिरी संदेश यही होता है कि मैंने बहुत गलत किया | इस अंधी दौड़ में मैंने अपना सब कुछ खो दिया और जो पाया आज इस आखिरी समय में उसकी कोई कीमत नहीं है |

वास्को-डी-गामा को नए देश-प्रदेश खोजने से प्रेम था | उसने भी बहुत कुछ खोया लेकिन वह आने वाली पीढ़ीयों को जो दे कर गया वह किसी स्रोत से कम नहीं था | ऐसे ही अविष्कारक या क्षोध कर्ता भी नई खोज या अविष्कार से प्रेम करते हुए ऐसे डूबते हैं कि उनका सब कुछ खो जाता है लेकिन उनका अविष्कार या खोज भी प्रेम का एक स्रोत ही है | वे भी प्रेमी ही हैं और उन्हें भी असीम प्रेम है | वह भी प्रेम यानि अपनी खोज में ऐसे ही दिवाने हो जाते हैं जैसे कि प्रेमी होता है |

उपरोक्त उदाहरण से आप समझ ही गये होंगे कि प्रेम आज भी जिन्दा है बस रूप अलग-अलग हैं | दोस्तों अपने प्रेम को सही दिशा दें और इस डूबते समाज को ऊपर उठाएं |

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