श्वास विधि द्वारा ध्यान – 1

विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र -24

सूत्र – 24 हमें श्वास यानि साँस के प्रति सजग रहने को कहता है | हमारा जीवन श्वास पर टिका हुआ है यानि हमारे जीवन की धुरी साँस है | यह सूत्र बताता है कि साँस के आने और जाने पर ध्यान केन्द्रित करें |

बौद्ध धर्म में भी यह विधि वर्णित है | आप यह भी कह सकते हैं कि इस विधि को बौद्ध धर्म से लिया गया है | यह सम्भव भी हो सकता है क्योंकि बुद्ध से लगभग एक हजार साल बाद तंत्र-योग लिखा गया – ऐसा इतिहास बताता है | बौद्ध धर्म में इस विधि को अनापानसति योग कहा जाता है | यह भी कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने निर्वाण इसी विधि से पाया था | Mindfulness meditation में भी यह विधि बहुत प्रसिद्ध है |

यह विधि बहुत ही आसान है | आप इस विधि को अपना कर आसानी से ध्यानावस्था प्राप्त कर सकते हैं | इस विधि में आपको अपने साँस के आने और जाने अर्थात आप जब साँस अंदर खींचते है और बाहर छोड़ते हैं उस पर ध्यान टिकाना होता है | इस विधि  को अपनाते हुए इस बात का ख़ास ख्याल रखना होता है कि ध्यान, साँस पर टिकाने के दौरान साँस पर किसी तरह का कोई जोर न पड़े या वह अवरुद्ध न हो |

हमारा जीवन साँस पर टिका है | आपका ध्यान जब साँस पर होगा तब आप अपने वर्तमान में जी रहे हैं | साँस लेना मतलब प्राण लेना और साँस छोड़ना यानि जीव छोड़ना है | जब आप अपने श्वास पर ध्यान देना शुरू करते हैं तब आपकी साँस स्वयमेव ही लम्बी और गहरी होती चली जाती है | यह होना ही आपके ध्यान को बढ़ाता है और यही इस विधि की सफलता है |

आध्यात्म के अनुसार जब आप अपने वर्तमान में होते हैं तब आपका मन, मन नहीं रहता | तब आपका मन, अ-मन हो जाता है क्योंकि आपको हमेशा भूतकाल या भविष्यकाल ही परेशान करता है | वर्तमान में जो अभी इस वक्त घटित हो रहा है | उसे तो आप देख रहे हैं | जिसे आप देख रहे हैं उसकी अभी सोच बनी ही नहीं तो परेशानी का कोई कारण ही नहीं है | तभी तो आध्यात्म कहता है कि हमेशा वर्तमान में रहो |

इस सूत्र में आपको वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित करने को इसीलिए कहा जा रहा है ताकि आपको, आपके मन से छुटकारा मिल जाए |

सो ऽहम् (soham) मन्त्र आपने अवश्य सुना होगा | सोऽहम् का अर्थ होता है कि जो वह है वही मैं हूँ | यह बात ईश्वर के लिए कही जा रही है यानि जो ईश्वर है वही मैं हूँ या मैं वही हूँ जो ईश्वर है अर्थात मैं और ईश्वर एक हैं | मैं, मैं नहीं हूँ, ईश्वर ही है | मैं यानि मेरा अहम |

इस सूत्र की गहराई ये मन्त्र छुपा हुआ है | जब आपकी साँस गहरी होती चली जाती है तब आपके साँस अंदर खींचते हुए ‘अम’ की ध्वनि आती है और छोड़ते हुए ‘साह’ की | जब आपकी साँस लेने और छोड़ने की एक लयताल बन जाती है तब ‘सो ऽहम्’ का मन्त्र स्वयमेव उत्पन्न होने लगता है | ऐसा होना ही आपको पूर्ण बनाता है अर्थात आप ध्यानावस्था की गहराई की ओर बढ़ने लगते हैं |

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