श्वास विधि द्वारा ध्यान – 2

विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र-25

 

 

सूत्र – 25 हमें श्वास यानि साँस अंदर लेते हुए उस स्थान पर ध्यान केन्द्रित करने को कहता है जहाँ से साँस पलट कर बाहर की ओर वापिस चलती है | इसी प्रकार बाहर जाती हुई साँस जिस स्थान से पलट कर वापिस अंदर की ओर मुड़ती है |

सूत्र-24 में आती और जाती साँस पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा गया है | इस सूत्र में कहा गया है कि जब आप अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तो आपकी साँस गहरी होती चली जाती है | ऐसी गहरी साँस अंदर खींचते हुए ‘अम’ और साँस छोड़ते हुए ‘साह’ की ध्वनि आपको सुनाई पड़ेगी और कुछ ही समय में जब आपकी साँस की एक लयताल बन जायेगी तब आती-जाती साँस से ‘सो ऽहम्’ का मन्त्र उत्पन्न होने लगेगा | बस आपको इस पूर्ण ध्वनि पर अपना ध्यान केन्द्रित कर ध्यानावस्था की गहराई में खो जाना है |

जबकि सूत्र-25 में हमें साँस पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय उस स्थान पर केन्द्रित करने को कहा जा रहा है जहाँ से अंदर आती साँस पलट कर बाहर की ओर रुख करती है और इसी प्रकार बाहर जाती साँस वापिस पलट कर वापिस अंदर की ओर रुख करती है | वह जगह या स्थान जहाँ हमारी साँस पलट कर उल्टा रुख कर रही है | इस सूत्र में शिव, शक्ति को यह समझाना चाह रहे हैं कि साँस पलटने से पहले यानि आती साँस जब जाती साँस बनती है तब दोनों के बीच शून्य की स्थिति होती है जिसे हम देख नहीं पाते, जिसे हम महसूस नहीं कर पाते हैं |

इस सूत्र के अनुसार हमारी साँस नीचे की ओर तब रुख करती जब हम साँस अंदर की ओर खींचते हैं और जब हम साँस छोड़ते हैं तो वह साँस ऊपर की ओर चलती है | यह सूत्र कहता है कि हम जब अपनी साँस पूरी अंदर खींच लेते हैं तब वह साँस पलटती है और बाहर की ओर चल पड़ती है | इसी प्रकार बाहर निकलने पर वह एक बार फिर से पलटती है और अंदर की ओर चल पड़ती है | हमारी साँस अंडाकार वृत्त के रूप में शरीर में चलती है | यह सूत्र हमें इस अंडाकार वृत्त के उपरी और निचले छोर पर ध्यान केन्द्रित करने को कहता है |

इस सूत्र के अनुसार जब हम एक साँस पूरी अंदर की ओर खींच लेते हैं तब वह साँस अंडाकार वृत्त के उस निचले कोने पर पहुँच जाती है जहाँ से वापिस ऊपर की ओर चलने का रुख करती है | यह सूत्र हमें उस जगह ध्यान केन्द्रित करने को कहता है जहाँ अंदर आई साँस पूरी हो चुकी है लेकिन अभी वापिसी की ओर मुड़ी नहीं है | सूत्र कहता है कि इन के बीच एक शून्य या रिक्त स्थान है जहाँ साँस नहीं है | यह जगह उस अंडाकार वृत्त का नीचे की ओर वह आखिरी हिस्सा है जहाँ से साँस वापिस ऊपर की ओर उठेगी | दोनों के बीच एक खालीपन है | उस खालीपन पर जब हम ध्यान केन्द्रित करते हैं तो वह खालीपन बढ़ता है | आप उस समय बिना साँस के हैं और जहाँ साँस नहीं यानि मृत्यु | यहाँ मृत्यु से अर्थ आपके मन की मृत्यु है | साँस नहीं यानि आप नहीं और जब आप नहीं तब आपका मन नहीं यानि पूर्ण ध्यानावस्था | ऐसा ही आप बाहर से अंदर जाती हुई साँस के साथ भी कर सकते हैं लेकिन यहाँ ध्यान रखने वाली बात केवल ये है कि आपने यह जबरदस्ती नहीं करना है | आप साँस के पलटने पर ध्यान दें लेकिन साँस को जल्दी या देर से स्वयम न चलायें | जब आप वह छोर पकड़ लेंगे जहाँ से साँस पलटती है तब धीरे-धीरे सब अपने आप घटित होगा |

अतः सुखासन में बैठे या लेटें और आँख बंद कर साँस के दोनों छोर पकड़ कर ध्यानावस्था में खो जाएँ |

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