तीसरी आँख सक्रिय करें-भाग -2

ध्यान विधि द्वारा तीसरी आँख खोलना भाग-2

विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 31

तीसरी आँख यानि आज्ञा चक्र विधि अपनाने से पहले कुछ बातें जानना जरूरी हैं |

दोस्तों, आपने कभी न कभी यह अनुभव जरूर किया होगा कि आपने कुछ सोचा और वह तुरंत ही पूरा हो गया | आपने सोचा कि मुझे पैसों की जरूरत कहीं से कोई मुझे कुछ पैसे दे दे और कुछ समय बाद आपको पैसे मिल गए या आपने सोचा कि बहुत दिन हो गये हैं मेरे दोस्त से मेरी बात ही नहीं हुई | क्या ही अच्छा हो कि मेरा दोस्त आज आ जाए और तभी आपके घर की घंटी बज उठती है | जब आप उठ कर दरवाज़ा खोलते हैं तो पाते हैं  कि जिस दोस्त को आपने अभी याद किया था, आपका वह दोस्त सामने खड़ा था | आपने ऐसे बहुत से लोग देखे होंगे या उनके बारे में सुना होगा कि वह किसी के बारे में कुछ भी बुरा बोल दें तो वह पूरा हो जाता है | आपने यह भी सुना होगा कि कभी किसी की बद-दुआ न लो | वह मरने तक पीछा करती है |

आपने कभी सोचा कि ऐसा कैसे हो जाता है ?

दोस्तों, आप अपने बारे में या किसी के बारे में कभी, कुछ भी अच्छा सोचते हो और वह पूरा हो जाता है | बहुत अच्छी बात है लेकिन यदि बुरा सोचते हैं और वह पूरा हो जाता है यह बहुत बुरी बात है | यह बुरा सोचने की बात कब आपकी आदत में शामिल हो जाती है आपको इसका एहसास तक नहीं हो पाता | अगर विज्ञान की माने तो हमारा पूरा ब्रह्माण्ड atom और energy से बना है | यहाँ तक की हमारा शरीर भी | यदि आपने atom के बारे में पढ़ा हो तो विज्ञान के अनुसार atom के बाहरी भाग में negatively charged electron और मध्य में positively charged proton के साथ बिना किसी चार्ज के neutrons होते हैं | शायद यही वजह है कि हम negative से जल्दी प्रभावित होते हैं या हमें जल्द ही negative आदत पकड़ लेती है |

अतः इस विधि को अपनाते हुए या करते हुए negativity से दूर रहें | अच्छा सोचा गया पूरा हो या न हो लेकिन बुरा सोचा गया पूरा होने की बहुत सम्भावना है | अतः बुरा न कभी अपना सोचें और न कभी किसी का बुरा सोचें | एक बार आप इस ओर निकल पड़े तो कब बहाव में बहने लगोगे आपको पता ही नहीं लगेगा |

दोस्तों, यह कहा जाता है कि दिल से कही गई बात अवश्य पूरी होती है | यह धारणा गलत फैली हुई है | असल में वह सोच जो दिल से उठती तो है लेकिन वह हावी हो कब तीसरी आँख तक पहुँच असलियत में परिवर्तित हो जाती है आम इंसान को पता ही नहीं लगता | और जरूरी नहीं कि हर दिल से सोची बात तीसरी आँख तक पहुँचे या हर बद-दुआ तीसरी आँख तक पहुँचे | यह आपके हाथ में नहीं होता और ख़ास कर उसके हाथ में बिलकुल नहीं होता जिसे इस तीसरी आँख का पता नहीं होता या उसने कभी इसे जगाया न हो |

आप जब यह क्रिया करते हैं तो आपकी कौन-सी सोच तीसरी आँख तक पहुँच असलियत बन जायेगी आपका उस पर कोई कण्ट्रोल नहीं होता | लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हो ही नहीं सकता या होगा ही नहीं | जब आप इस क्रिया में माहिर हो जाओगे तो आपको अपनी सोच पर कण्ट्रोल आ जाएगा | असल में तो सोच पर कण्ट्रोल कोई कर ही नहीं सकता | यहाँ सोच पर कण्ट्रोल करना वैसा न समझे जैसा आपको बताया गया है | यहाँ सोच पर कण्ट्रोल का मतलब है कि आप उसे कण्ट्रोल कर तीसरी आँख की तरफ बहने से रोक सकते हैं लेकिन यह काफी अभ्यास के बाद सम्भव हो पाता है | अतः तब तक आपको कभी किसी के बारे में या अपने बारे में बुरा न बोलना और न सोचना है |

 दोस्तों, इसके इलावा कुछ बातें और एक बार दोहराना चाहता हूँ जो मैंने एक पिछले लेख में कही थी :-  

तंत्र, ध्यान, योग, आध्यात्म हो या फिर साधारण पूजा-पाठ हो इन सब से जुड़ने के लिए आपका ध्येय(goal/objective) क्या है आपको पूरी तरह से साफ़ होना जरूरी है |

दोस्तों, आप रोजमर्रा की ज़िन्दगी में जो कुछ भी कर रहे हैं उस में से कुछ भी छोड़िये या जोड़िये नहीं | यह आप तभी करें जब आपके अंदर से आवाज आये | हमारे कहने भर से बिलकुल मत करिए |

ध्यान करने से पहले शरीरिक व्यायाम और योग अवश्य करें | स्वस्थ्य शरीर के साथ ही आप ध्यानावस्था में आसानी से सफलता प्राप्त कर सकते हैं | एक बात और ध्यान रखने वाली है कि ध्यान यानि मैडिटेशन का समय कभी भी हो सकता है और अवधि कम से कम पाँच  मिनट |

इस विधि को शुरू करने से पहले या मैडिटेशन के क्षेत्र में उतरने से पहले त्राटक में निपूर्ण या अभ्यस्त होना जरूरी है | त्राटक करने की सही विधि है कि दीवार या किसी बोर्ड पर आधे या एक इंच का एक गोला बनायें और उससे कम से कम चार और ज्यादा से ज्यादा छेह फुट की दूरी पर बैठ कर उसे बिना पलक झपके सामान्य दृष्टि से देखना है | यहाँ तीन बातों का ध्यान रखना है | पहला – वह निशान जो आप बनायेंगे वह आपकी आँखों के बिलकुल सामने और एक ही स्तर पर होना चाहिए यानि न ज्यादा दायें या बायें और न ही ऊपर या नीचे | दूसरा –  आपने उस निशान को घूरना नहीं है | एक सामान्य दृष्टि से देखना भर ही है | तीसरा – रोज जितना आप बिना किसी जबरदस्ती के कर पायें उतना ही करना है | धीरे-धीरे ही सफलता मिलेगी यानि आपको पलक पर कण्ट्रोल आ पायेगा | जब आप बिना पलक झपके चार से पाँच मिनट तक कर लेंगे तब यह विधि शुरू करें तो अच्छा रहेगा |

योग या ध्यान पार्क में पेड़ के नीचे या किसी फूल के पौधे के पास या घर या कमरे के भीतर लगाये जाने वाले पौधे के पास बैठ कर करें |

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