ध्यान विधि द्वारा स्वपन और मृत्यु का सच जाने भाग-1
विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 55
हम में से बहुत लोग अपना जीवन सही मायनो में जी नहीं पाते क्योंकि जब वह समझते हैं या कुछ जीने का सोचते हैं तब एक दिन अचानक कोई लम्बी बिमारी या फिर मृत्यु सामने आ खड़ी होती है | ये सब लोग उन्ही लोगों की तरह ही हैं जो ठीक या गलत रास्ता अपना कर पैसों का अम्बार लगा तो लेते हैं लेकिन उसे एन्जॉय नहीं कर पाते | ऐसे पैसे या जीवन का क्या फायदा जब उसे सही ढंग से जी ही नहीं पाए |
आप जानते हैं कि एक समस्या दूसरी समस्या को जन्म देती है और यही कारण है कि आप किसी भी समस्या का हल जल्द से जल्द निकालना चाहते हैं ताकि किसी दूसरी समस्या में न फंसे | लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समस्या का हल ही दूसरी समस्या को जन्म देता है और फिर आप इस चक्रव्यूह में फंसते चले जाते हैं जिस में समस्या का हल और फिर हल के बाद की समस्या और फिर उसका हल…. |
जब तक यह जीवन है तब तक समस्या रहेंगी और जब तक आप उनके साथ जीना नहीं सीख लोगे तब तक दुखी रहोगे | अतः जिस समस्या का हल कर सकते हो करो जिसका नहीं कर सकते उसे छोड़ दो, हो सकता है कुछ समय बाद वह समस्या ही आपको हल दिखे |
दोस्तों, यह भी एक समस्या ही है कि कुछ लोग यह समझते हैं कि हमें वो ख़ुशी नहीं दे रहा है या जो ख़ुशी या अपनापन पहले था अब नहीं है या कोई हमें खुश देख कर खुश नहीं है आदि…आदि |
दोस्तों, आप कब समझेंगे कि हमारी खुशी किसी बाहरी चीज पर निर्भर नहीं करती है |
आपने यह भी सुना होगा कि हमारी खुशी या आनंद मन पर निर्भर करता है। असल में तो इंसान मन से भी कभी पूरी तरह से खुश नहीं हो सकता | हाँ, मन के बिना हर कोई केवल आनंदित हो सकता है लेकिन दुखी कभी नहीं हो सकता | मन की गतिविधि जितनी कम होगी, इंसान उतना ही अधिक आनंदित महसूस करेगा और जब मन पूरी तरह से गायब हो जाता है तब पूरी तरह से जागरूक और हर्षित महसूस करता है |
यही कारण है कि आध्यात्म ने मन को इतनी एहमियत दी गई है | जीवन की हर समस्या और हल का कारण और कारक मन है | हर दुःख और सुख का कारण और कारक मन है | जब हम मन से मुक्त हो जाते हैं तब हमें पता लगता है कि ख़ुशी और आनन्द क्या है और कहाँ है | वह मुक्ति, कुछ क्षण की क्यों न हो लेकिन वह हमें संदेश दे जाती है कि हमें आगे क्या और कैसे करना है |
आपने ‘Who Am I’ या ‘मैं कौन हूँ’ या ‘self realization’ या ‘आत्म साक्षत्कार’ या आत्म बोध इत्यादि के बारे में अवश्य सुना होगा | दोस्तों, आपको जानकार हैरानी होगी कि यह विदेशी वाक्य हैं यह आध्यात्म या आध्यात्मिक सोच द्वारा जनित नहीं हैं |
हम तो सदियों से जानते हैं कि हम कौन हैं और आत्म बोध कैसे होता है | हमारा आध्यात्म और आध्यात्मिक सोच पूरी की पूरी इस बात पर टिकी है कि हम जानते हैं कि मैं कौन हूँ | आध्यात्म तो हमें इससे भी आगे जाने को कहता है कि ध्यान विधि द्वारा ‘मैं’ बन कर मत देखो बल्कि दर्शक बन कर देखो | क्योंकि जब तक मैं है तब तक मन है और तभी तक हर समस्या और परेशानी है | जैसे ही मैं खत्म हुई यानि मन हटा सब कुछ नया हो जाता है और हम एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाते हैं |
आपने क्रिकेट या फुटबाल या अन्य खेल तो देखे होंगे | आप जिस भी टीम को सपोर्ट करते हैं यदि वह जीत जाती है तो आपको ख़ुशी होती है और जब हार जाती है तब दुःख होता है | लेकिन ये हार-जीत का दुःख या सुख कुछ ही समय रहता है क्योंकि आप वह सब दर्शक बन कर देख रहे हो लेकिन जैसे ही आप उस टीम के सदस्य बन जाते हो तब आप ‘मैं’ बन जाते हो तब आप दर्शक नहीं रह जाते | मैं बनते ही जीत की ख़ुशी या हार का गम लम्बे समय तक रहता है |
दोस्तों यह सूत्र हमें यही सिखाता है कि आप टीम का सदस्य बन कर भी दर्शक की तरह खेल सकते हो | क्योंकि जब आप में ‘मैं’ नहीं रहेगी तब आप सब कुछ बदलने की कोशिश कर सकते हो और जैसे ही ‘मैं’ आई वैसे ही सब कुछ आपको बदल देगा | जैसे बहुत से लोग दर्शक होने के बावजूद टीम के सदस्य की भांति व्यवहार करते हैं |
दोस्तों, ध्यान की यह विधि सूत्र 31 की तरह ही शुरू होती है लेकिन कुछ फर्क के साथ | सूत्र 31 में आपको ध्यान दोनों भवों या eyebrow के कुछ ऊपर तिलक की जगह केन्द्रित करना था | इस सूत्र यानि सूत्र – 55 की शुरुआत में ध्यान आज्ञा चक्र या तीसरी आँख पर लगाने से शुरू होता है लेकिन इसके बाद यह विधि बदल जाती है | सूत्र 31 में आपको ध्यान तीसरी आँख पर केन्द्रित कर आगे बढ़ना है और साँस पर शुरूआती समय में देना होता है जबकि इस विधि में आपको साँस पर भी ध्यान देना है |
सूत्र-55 में दी गई विधि अनुसार आपको सीधे सिद्धासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान अपनी दोनों भवों यानि eyebrow से कुछ ऊपर तिलक की जगह पर लगा कर आपनी साँस पर ध्यान देना है | यह इस सूत्र का पहला भाग है | इस विधि में आप अनाहत या हृदय या हार्ट चक्र पर भी ध्यान लगा साँस पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं और आप विशुद्ध चक्र यानि थ्रोट चक्र के द्वारा भी कर सकते हैं |