विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 67
यह सूत्र हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ एक व्यवहारिक सूत्र है | यह हमें सिखाता है कि रोजमर्रा की जिन्दगी कैसे जीनी चाहिए | हम अपनी ज़िन्दगी में हमेशा दूसरों से सब कुछ चाहते हैं लेकिन फिर भी खुश नहीं रह पाते हैं | क्योंकि हम जानते या मानते हैं कि दूसरा हमें वह नहीं दे रहा है जो हम उससे चाहते हैं | लेकिन हम कभी यह नहीं सोच पाते कि हम सब कुछ दूसरों से क्यों माँगते हैं | शायद इसलिए कि हम यह मानते हैं कि दूसरे मुझ से जो चाहते हैं मैं वह सब उन्हें दे रहा या रही हूँ | यह सोचते हुए आप यह क्यों नहीं समझते कि हो सकता है कि जितना या जो वह आप से चाहते हैं वह आप पूरा नहीं दे पा रहे हों | जब यह प्रश्न आपके दिमाग में आता भी है या कोई दूसरा कहता है तो इसे आप सिरे से नकारते हुए कहते हैं कि वह असम्भव माँग रहा है या वह अपनी औकात से ज्यादा की माँग कर रहा है या उसने मेरे लिए इतना नहीं किया जितना वह मुझ से माँग रहा है | आप यह कहते हुए एक बार भी नहीं सोचते कि हो सकता है आपके बारे में वह दूसरा भी यही सोच रहा हो |
खैर, यह सूत्र हमें ध्यान और रोजमर्रा की ज़िन्दगी में खुश रहने का एक आसान तरीका बता रहा है | इस सूत्र के अनुसार हमें अपनी पाँच इन्द्रियों (नेत्र, नाक, जीभ, कान और त्वचा जिनसे हम देखते, सूँघते, बोलते, सुनते और छू कर महसूस करते हैं) को बंद कर ध्यान करना है|
इस सूत्र को दो तरीके से समझा जा सकता है |
पहला तरीका : आप शरीरिक योग में जब भ्रामरी योगाभ्यास करते हैं तब हाथ से जो मुद्रा बनाते हैं लगभग वही बनानी है यानि अंगूठे को कानों पर, तर्जनी को आंखों पर, मध्यमा को नाक पर, अनामिका और छोटी अंगुलियों को ऊपर और नीचे के होठों पर रख कर बंद करना है | समय-समय पर साँस लेने के लिए नाक पर रखी ऊँगली को उठाना है | यह करते हुए कोशिश यह करनी है कि आप सहज तरीके से जितनी ज्यादा देर साँस रोक सकते हैं उतनी ही देर साँस रोकनी है | ऐसा करते हुए जब ध्यान लग जाएगा तब आपको महसूस होगा कि कोई चींटी आपकी पीठ पर रेंग रही है या कोई अन्य तरह का अनुभव भी हो सकता है | यदि ऐसा कोई भी अनुभव होता है तब ज्यादात्तर आपका ध्यान भटक जाता है | इस सूत्र के अनुसार आपने ऐसा कुछ भी महसूस नहीं करना है | इस सूत्र के अनुसार आपकी आँख, कान, नाक और होंठ तो बंद हैं और केवल एक ही इंद्री यानि स्पर्श ही आपको भटका सकती है | बस आपको इस भटकन में नहीं फँसना है | यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो बहुत आसानी से आपकी कुण्डलिनी जागृत हो जायेगी और आप ध्यान की अग्रिम अवस्था में पहुँच जायेंगे |
यह सूत्र परोक्ष रूप से या indirectly हमें व्यवहारिक जीवन में भी प्रयोग करने को कहता है | हम रोजमर्रा की ज़िन्दगी में केवल इसलिए खुश नहीं रह पाते हैं कि हमें यह पाँच इन्द्रियाँ बहुत भटकाती रहती हैं | कभी कुछ बोल कर दुखी होते हैं तो कभी कुछ सुन या देख कर | मनोविज्ञान कहता है कि हम सूंघ से अपना स्वाद बनाते हैं | सूंघ से इच्छा करती है | हम किसी व्यंजन की सूंघ को याद कर स्वाद महसूस करते हैं और फिर मन हमें वह एक बार फिर खाने को कहता है | मनोविज्ञान के अनुसार यदि व्यंजन की कोई खुशबु या बदबू न हो तो हमारी स्वाद ग्रंथि कुछ भी महसूस नहीं करेंगी और हम उसे बेस्वादा कह छोड़ देंगे जबकि उस व्यंजन में वही स्वाद था बस खुशबु या बदबू नहीं थी | इसका एक उदाहरण है कि जब हमें जुकाम लगा होता है तब हमें किसी भी व्यंजन में स्वाद नहीं आता है |
कुल मिलकर हम कह सकते हैं कि इन इन्द्रियों का प्रयोग करते हुए कभी भी हम यह नहीं सोचते हैं कि यह सब हमारे शरीर का हिस्सा होते हुए भी कभी शरीर के अंदर की ओर नहीं मुड़ती या देखती हैं | हम इन का प्रयोग केवल और केवल बाहर की ओर ही करते हैं | यह सूत्र हमें इनका बाहर प्रयोग करने से रोक कर आंतरिक ख़ुशी और सुख या परमानन्द लेने को कह रहा है |
दूसरा तरीका : जो भी योगाभ्यास करते हैं वह शव आसन से भलीभांति परिचित होंगे | इस आसन में लेट कर, अपने हर अंग को ढीला छोड़ दिया जाता है | ऐसा महसूस किया जाता है जैसे आपका शरीर है ही नहीं और न ही उस शरीर का कोई अंग है | शरीर के जिस भी अंग में किसी भी तरह का तनाव है उसे हल्का झटका जाता है ताकि वह तनाव रहित हो और आप ऐसा महसूस करें की आपकी मृत्यु हो गई है और आपका शरीर अब आपका नहीं है | इस सूत्र के अनुसार इस अवस्था में पहुँच कर आपको अपनी सारी इन्द्रियों को भी बंद कर लेना है ताकि कुछ भी महसूस न हो चाहे वह आवाज हो या खुशबु हो या स्पर्श हो | इस अवस्था में आपको साँस बीच-बीच में रोकनी भी है | इससे आप बहुत जल्द ध्यानावस्था की ओर अग्रसर हो जायेंगे |