विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 39
विज्ञान कहता है कि यह ब्रह्माण्ड जिस में सौरमंडल और शरीर शामिल है, Atom यानि परमाणु और Energy यानि उर्जा से बना है | विज्ञान के अनुसार atom और energy तब भी थे जब हम नहीं थे, आज भी हैं और जब हम नहीं होंगे तब भी यह दोनों होंगे | शायद हमारे पूर्वज यह जानते थे तभी इसका जिक्र गीता में श्रीकृष्ण ने किया था |
खैर, विज्ञान यह भी कहता है कि atom में हर पल हलचल होती रहती है और यह हलचल बिना ध्वनि या आवाज के हो ही नहीं सकती | शायद यही सोच सदियों पहले आध्यात्म की भी थी | आध्यात्म के अनुसार ब्रह्माण्ड शांत भी है और वहाँ हलचल भी है | वहाँ विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ गूंजती है | मैडिटेशन के गहरे तल में उतरने वाला उन गूंजती आवाजों में से ईश्वरीय ध्वनि ढूंढ लेता है | आध्यात्म ने इसी ईश्वरीय संगीत को अनाहतनाद कहा है | अनाहतनाद का एक रूप आपने सूत्र-38 में जाना है आईये इसके दूसरे रूप को समझते हैं |
विज्ञान आध्यात्म की उपरोक्त बात पर हँसता था क्योंकि उनका कहना था :
“Space is an almost perfect vacuum, full of cosmic voids and there isn’t sound in space. This is because sound travels through the vibration of particles, and space is a vacuum. On Earth, sound mainly travels to your ears by way of vibrating air molecules, but in near-empty regions of space there are no (or very, very few) particles to vibrate – so no sound.”
अब यही विज्ञान कहता है कि ब्रह्माण्ड में आवाज भी है और एक प्रकार का संगीत भी है | आप NASA की वेबसाइट पर जा कर ब्रह्माण्ड में गूंजती आवाजो को सुन सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि यह कैसे सम्भव हो पाया है |
अतः विज्ञान द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान को हर बार सिरे से नकार देना गलत है और आज के आध्यात्मिक सोच रखने वाले महानुभावों द्वारा विज्ञान की उपलब्धियों को नकारना भी गलत है |
दोनों अपनी-अपनी जगह ठीक हैं | जिस ने जहाँ तक खोजा, वहाँ तक की बात करता है | अतः दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए |
आईये अब जानते हैं कि यह सूत्र किस ब्रह्मांडीय ध्वनि की बात कर रहा है |
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र -39 के अनुसार आप तीनो प्रणव का उच्चारण एक साथ भी कर सकते हैं और किसी एक का भी कर सकते हैं | इस विधि के अनुसार आपको प्रणव उच्चारण बहुत धीमी गति से करते हुए अंतिम भाग पर ध्यान लगाना शुरू करते हुए जब यह समाप्त होता है तब आपको उस शून्य पर पूर्ण ध्यान लगाना है |
आईये इसे विस्तार से समझते हैं |
ब्रह्मांडीय ध्वनि से ही संगीत की उत्पत्ति हुई और प्रणव भी इसी संगीत का एक हिस्सा है जिसे तंत्र में भी जगह दी गई है | प्रणव का अर्थ होता है ब्रह्मांडीय ध्वनि जिसे हम आध्यात्म और तंत्र में ईश्वरीय ध्वनि या संगीत या आवाज कहते हैं | प्रणव तीन प्रकार के होते हैं : पहला – वैदिक प्रणव – जिस में ‘ॐ’ शब्द का उच्चारण आता है, दूसरा – शिव प्रणव – ‘ह्म’ या ‘हं’ या ‘हम’ शब्द का उच्चारण आता है जोकि ‘सोऽहं’ या ‘सोऽहम’ का आखिरी भाग है और तीसरा – माया प्रणव है – ‘हरिम’ या ‘ह्रीं’ जोकि तंत्र की एक अलग शाखा जिस में तांत्रिक मन्त्र दिए हुए हैं उस में काफी प्रयोग किया जाता है |
सूत्र – 39 के अनुसार आप ‘ॐ हं ह्रीं’ तीनो का प्रयोग भी कर सकते है और किसी एक का प्रयोग भी कर सकते हैं | ध्यान केवल यह रखना है कि उच्चारण के अंतिम भाग में कम्पन यानि vibration ज्यादा होना चाहिए या लम्बा होना चाहिए और उसके बाद जब समाप्त होता है तो उस कम्पन को महसूस करते हुए ध्यान में खोना है |
समझने में थोड़ा मुश्किल लगता है लेकिन बहुत ही आसान है | इसे इस प्रकार से समझें :
‘ॐ’ शब्द के तीन भाग होते हैं – ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ | इस सूत्र में बताई गई विधि के अनुसार आपने इसके सही उच्चारण पर ज्यादा ध्यान नहीं देना है बल्कि आपने ॐ बोलते हुए जब यह समाप्ति की ओर होता है तो म बंद मुंह से बोला जाता है जैसा कि भ्रामरी योग में बोला जाता है | ऐसा करने पर आपके शरीर के हर cell और atom में कम्पन होता है जोकि ध्यान के ईलावा शरीरिक सेहत और positivity के लिए बहुत आवश्यक है |
जब ध्यान लगने लगे तब उच्चारण बंद कर उसी शून्य में खो जाना है |
कुल मिला कर इस सूत्र में बताई गई विधि का सार है कि आप किसी शांत जगह पर या पार्क या बंद कमरे में पद्मासन या सुखासन में आँख बंद कर बैठे और ‘ॐ’ का उच्चारण बहुत ही धीमी गति से लेकिन तेज आवाज से शुरू करें | धीरे-धीरे आवाज कम करते जाएँ | जब यह बहुत ही धीमे हो जाए यानि इतनी धीमी कि केवल आपको ही सुनाई दे तब आपको औउम के आखिरी भाग यानि ‘म’ के कम्पन पर ध्यान देते हुए दूसरी बार बोलने से पहले यानि दूसरी साँस लेने से पहले के समय में जो शून्यकाल है उसमें कम्पन महसूस करते हुए ध्यान लगाने की कोशिश करनी है | दूसरी बार उच्चारण करने के लिए साँस लेनी पड़ती है | अतः पहली खत्म हुई साँस और अगली शुरू हुई साँस के बीच की अवधि में जो अंतराल है उसे ही शून्यकाल कहा जाता है | इस शून्यकाल में पहले ओउम का उच्चारण खत्म हो चुका होता है और दूसरे उच्चारण के लिए आप साँस ले रहे होते हैं | ऐसे शून्यकाल में ही आपको पहले ओउम के आखिरी अक्षर ‘म’ को बंद मुँह से गले में बोलना होता है जैसा आप शरीरिक योग में भ्रामरी योग करते हुए करते हैं | वही vibration या कम्पन के सहारे आपको ध्यान में खोना है | वह दूसरी साँस लेने के बीच के अंतराल यानि शून्यकाल में भी जब महसूस होने लगे तो उच्चारण बंद कर उस कम्पन पर ध्यान केन्द्रित करते हुए आगे बढ़ें |