श्वास-कुम्भक विधि द्वारा ध्यान
विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 27
दोस्तों, आप तो जानते ही हैं कि हमारा जीवन साँस के सहारे चल रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी उम्र, साँस पर आधारित है | जिसकी जितनी साँस निर्धारित हैं वह केवल उतनी ही साँस ले सकता है, न एक कम और न एक ज्यादा |
ऋषि-मुनि को यह पता था तभी तो वह जितना चाहते थे उतना जीवित रहते थे और वह भी पूरी तरह से सही सलामत | यह हमारे विज्ञान का मानना है कि इस उम्र तक ये होगा और इस उम्र के बाद ये नहीं होगा इत्यादि | यह हमारे दिमाग में प्लांट कर दिया गया है कि शरीरिक बदलाव उम्र के साथ आते हैं | अतः वह उम्र आते ही बदलाव स्वतः ही होने लगते हैं लेकिन इसके बावजूद बहुत लोगों के साथ ऐसा नहीं भी होता है |
क्या आप जानते हैं कि जो जानवर धीमी या बहुत धीमी साँस लेते हैं उनकी उम्र लम्बी होती है जैसे कछुआ और जो साँस तेज लेते हैं जैसे कुत्ता, उसकी उम्र कम होती है | साँस धीमे व गहरी लेने से negativity, तनाव व गुस्से से मुक्ति मिलती है तथा एकाग्रता, इच्छा-शक्ति और positivity मिलती है | एक स्वस्थ इंसान रात को सोते समय ज्यादात्तर धीमी साँस लेता है | आप मैडिटेशन करते हुए जितना चाहे उतनी धीमी और गहरी साँस ले सकते हैं | यह आपके ध्यान लगाने में भी सहायक होगी और साथ ही साथ उम्र और तंदरुस्ती भी बढ़ेगी |
धीमी और गहरी साँस लेने से उम्र बढ़ती है और शरीरिक बदलाव भी देर से आते हैं या पूरी तरह से नहीं आते हैं | यही संदेश इस सूत्र के माध्यम से दिया गया है |
इस सूत्र के अनुसार जब हम धीरे-धीरे साँस लेते हैं तब मन शांत हो जाता है और हम अधिक शांति महसूस करते हैं | धीरे-धीरे प्रत्येक साँस का अंतराल बढ़ता जाता है | हमें साँस लेने और छोड़ने में अधिक समय लगता है तथा इसके साथ ही साथ दो साँसों के बीच का अंतराल भी बढ़ता जाता है | ऐसा होने पर अंततः कुंडलिनी जागृत हो जाती है जोकि जैसे-जैसे ऊपर उठती जाती है वैसे ही वैसे हमें परम शान्ति का एहसास होता है और हम अ-मन हो जाते हैं |
इस सूत्र में दी गई विधि के अनुसार पद्मासन या सुखासन में बैठ, आँखें बंद कर ध्यान आती-जाती साँसों पर केंद्रित करें | आम तौर पर एक स्वस्थ्य इंसान एक मिनट में 15 बार (एक चक्र) सांस लेता और छोड़ता है | इस विधिनुसार आपने यह क्रिया साँस बाहर छोड़ने के साथ शुरू करनी है | जब आप साँस बाहर छोड़ते हैं तब दस से पन्द्रह सेकंड के लिए कुम्भक लगाना है यानि साँस छोड़ने के बाद साँस दस से पन्द्रह सेकंड के बाद लेनी है और जब आप साँस लेंगे तो जैसे ही साँस हृदय चक्र यानि दोनों छाती का जहाँ मिलन होता है वहाँ पहुँचती है तब आपने एक बार फिर से कुम्भक लगाना है | जब आप इसमें दक्ष यानि expert हो जाते हैं तब लम्बी और गहरी साँस लेने की प्रक्रिया शुरू करनी है | जैसे-जैसे साँस गहरी होती जाती है वैसे-वैसे आप एक ऐसी स्थिति में प्रवेश करने लगते हैं जहाँ आपका मन शांत या गायब हो जाता है और आपका सम्बन्ध शरीर से बाहर की दुनिया से कट जाता है | यही स्थिति कुंडलनी को जागृत कर सहस्त्रार चक्र में पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है जोकि आपको शान्ति पथ से लेजाते हुए भैरव यानि शिव यानि ईश्वर से मिलाती है |
इस क्रिया को करते हुए ध्यान केवल यह देना है कि जबरदस्ती साँस न रोकें और न ही ज्यादा देर तक साँस रोकें | इस विधि के अनुसार साँस गहरी और लम्बी होने पर कुम्भक की अवधि स्वतः ही बढ़ेगी |
यहाँ एक बात और आपको बताना चाहेंगे कि आध्यात्म और तंत्र के अनुसार साँस लेने से पूरे शरीर में प्राण शक्ति यानि ऑक्सीजन का संचार होता है जोकि हमें स्वस्थ्य और परम सुख की ओर ले जाती है | लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है | आध्यात्म और तंत्र के अनुसार ऑक्सीजन के इलावा भी एक ऐसी शक्ति इस ब्रह्माण्ड में मौजूद है जिसे हम धीमी और गहरी साँस लेने पर ही ले पाते हैं और असल में वह प्राण शक्ति है जो हमें प्राण यानि जीवन यानि उम्र देती है | तंत्र के अनुसार जब हमारी मृत्यु होने वाली होती है तब लगभग छह महीने पहले हमारी प्राण शक्ति उलटी चलनी शुरू हो जाती है यानि अंदर से बाहर की ओर और जब पूरी प्राण शक्ति शरीर से बाहर निकल जाती है तब हमारी मृत्यु हो जाती है | यही कारण है कि ऋषि-मुनि तथा आध्यात्म या तंत्र में महारत हासिल किये व्यक्ति विशेष, अपनी मृत्यु से पाँच-छह महीने पहले ही बता दिया करते थे कि उनकी मृत्यु कब और किस समय होगी |