ध्यान विधि द्वारा तीसरी आँख खोलना भाग-3
विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 31
दोस्तों, हम ने पिछले भाग में बताया था कि हमारे माथे के बीचोबीच यानि दोनों भवों या भृकुटियों या eyebrow के बीच लगभग डेढ़ से दो अंगुल ऊपर तीसरी आँख होती है जोकि आज्ञा या अजना चक्र के इलावा शिव या दुर्गा की तीसरी आँख के नाम से प्रसिद्द है | यह विधि उसी चक्र या आँख को जगाने की विधि है |
ध्यान की बहुत विधि हैं | कुछ में आँख खोल कर ध्यान किया जाता है तो कुछ में आँख बंद कर किया जाता है | आँख बंद कर ध्यान करने का यह मतलब नहीं है कि आपका मन भटकेगा नहीं या आपकी आँखें स्थिर हो जायेंगी | शायद इसीलिए इस विधि में आँखें चलें या हिले न इसका ख़ास ख्याल रखा गया है | क्योंकि वह जानते थे कि जैसे ही आँखें हिलेंगी वैसे ही आपका मन भटकने लगेगा | विज्ञान तो यहाँ तक कहता है कि सोते हुए भी आपकी आँखें पूरी रात या आठ घंटे की नींद में से केवल एक या दो घंटे ही नहीं हिलती और यही वह समय होता है जब आप गहरी नींद में होते हैं | गहरी नींद का अर्थ है जब आपका सम्पर्क बाहर की दुनिया से कट जाता है और आपका मन आपको या आप यह भी कह सकते हो कि आपका शरीर या आप अपने मन के साथ किसी आंतरिक यात्रा पर निकल जाते हैं जो जागने पर न आपको याद रहता है और न आपके मन को | यह विधि आपको उसी जगह ले कर जाना चाहती है लेकिन फर्क केवल इतना है कि सोते हुए आप सुप्त अवस्था में यानि चेतन(जागृत अवस्था) से अवचेतन(सुप्त) अवस्था की ओर बढ़ते हैं जबकि इस ध्यान विधि में आप चेतन अवस्था में रहने के बावजूद बाहरी दुनिया से कट जाते हैं |
सूत्र -31 (पहला भाग) के अनुसार आँख बंद कर भौंहों के बीच से थोड़ी ऊपर (एक से डेढ़ अंगुल यानि माथे के बीच बिंदी या तिलक लगाने की जगह) ध्यान केंद्रित करें | आँख बंद हैं अतः तुम्हें केवल अंधेरा दिखाई देगा, लेकिन आपने भौंहों के बीच के बिंदु को पहचान कर वहाँ अपनी जागरूकता बनाए रखनी है |
आप यह विधि पद्मासन या सुखासन या कुर्सी पर बैठ कर या लेट कर, कर सकते हैं | लेकिन हमारे व्यक्तिगत अनुभव व् विचार के अनुसार कुर्सी पर बैठ कर समय ज्यादा लगता है या ध्यान केन्द्रित करने में मुश्किल होती है जबकि लेट कर यह विधि ठीक ढंग से हो नहीं पाती है | इसके बावजूद हम ने यह इसलिए लिखा/कहा है क्योंकि हर व्यक्ति का अनुभव और शरीरिक व् मानसिक बनावट/सुविधा अलग-अलग होती है | अतः जिस में आपको ठीक लगे वह करें |
यहाँ दो बातें और ध्यान रखने की हैं : पहली कि पद्मासन या सुखासन में पीठ सीधी कर बैठें | यहाँ पीठ सीधी करने को कहा जा रहा है न कि जोर दे कर पीठ सीधी करने को कहा जा रहा है अर्थात जैसे आपको सुविधाजनक लगे और जितना आप से हो पाये | ध्यान केवल इतना देना है कि शरीर पर जोर नहीं देना है |
दूसरी बात यहाँ ध्यान देने वाली यह है कि जिन्होंने यह पहले नहीं किया हुआ है, उनके लिए आँख बंद कर दोनों भवों के बीच ऊपर तिलक की जगह पर देख पाना बहुत मुश्किल होता है | अतः आप शुरुआत में आँख खोल कर कर सकते हैं और जब आप आसानी से करने लगें तब आँख बंद करिए |
सूत्र -31 (दूसरा भाग) जब आप तिलक या बिंदी की जगह यानि तीसरी आँख की जगह पर अपना ध्यान केन्द्रित करने में सफल हो जाते हैं तो आप में प्राणशक्ति का संचार होने लगेगा और कुछ ही क्षण बाद आप महसूस करेंगे कि आपकी साँस रुक गई है | यह इस स्थान पर ध्यान केन्द्रित करने पर स्वमेव हो जाता है | ऐसा होने के कुछ ही क्षण बाद साँस स्वयम ही चलने लगेगी लेकिन आपके विचार शून्य हो जायेंगे | धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए आप तीसरी आँख को जगा पाने सफल हो जायेंगे |
आपने इस विधि का अभ्यास करते हुए किसी भी क्षण जोर नहीं लगाना है और न ही कोई जबरदस्ती करनी है | जितना धीरे-धीरे और स्वयं होगा उतना ही उसका प्रभाव हमेशा साथ रहने वाला है और जोर जबरदस्ती करने पर कुछ समय के लिए अवश्य लगेगा कि सफलता मिल रही है लेकिन असल में वह मन का वहम होगा | जोर जबरदस्ती करने पर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं |
तिलक के स्थान पर ध्यान केन्द्रित करने में भी जबरदस्ती नहीं करनी है | आप बिना आँख हिलाए या पलक हिलाए यदि नहीं कर पाते हैं तो आप पहले त्राटक का अभ्यास करें और वह भी बिना जोर जबरदस्ती के | जब आप चार से पाँच मिनट बिना पलक झपके त्राटक करने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तब आप यह विधि शुरू करें |
इस विधि में ख़ास बात यही है कि आपका ध्यान तिलक के स्थान पर केन्द्रित होते ही आप में प्राण शक्ति का संचार होने लगता है और स्वयमेव ही कुछ समय के लिए साँस रुक जाती है | यह ध्यान केन्द्रित होने का प्रभाव है और साँस रुकने का मतलब है कि मन यानि विचारों का रुक जाना | यह आपने स्वयम नहीं करना है | स्वयम करने का मतलब कुम्भक योग, जिस में साँस को रोका जाता है | इस विधि में ध्यान केन्द्रित होते ही यह अपने आप हो जाएगा | अतः यह ध्यान में रखें कि न तो आपने ध्यान लगाने में जोर लगाना है और न ही स्वयम साँस रोकना है |
इस विधि के द्वारा ध्यान करने पर जब आपका ध्यान केन्द्रित हो जायेगा तब साँस कुछ क्षण के लिए रुकने के बाद फिर से बहुत ही धीमी गति से चलने लगेगी | जब साँस फिर से चलने लगेगी इसके बावजूद आपका ध्यान केन्द्रित ही रहता है तब आपकी यात्रा शुरू होगी |
इस यात्रा का पहला पड़ाव तब आता है जब आपका मन या उसमें आने वाले विचार या आस-पास सुनाई देने वाली आवाज या दिखने वाला प्रकाश को आप ऐसे देखेंगे या सुनेंगे या महसूस करेंगे जैसे आप कोई और हैं और यह सब आपके सामने घटित हो रहा है यानि जब आप दर्शक बन जायेंगे तब से आगे तीसरी आँख खुलने का पड़ाव आता है | इस पड़ाव में हर किसी का अनुभव निजी होता है |
कुल मिला कर इस विधि को करते हुए जब आप दर्शक बन जाते हैं तब कुछ समय बाद सब कुछ रुक जाता है | असल में वह रुकता नहीं है बल्कि वह तीसरी आँख की शक्ति में परिवर्तित हो जाता है |