तंत्र-आध्यात्म-मनोविज्ञान – 3

तंत्र अपने आप में एक पूर्ण योग है इसके बावजूद यह प्रचलित नहीं हुआ | बुद्ध ने भारतवर्ष में जन्म लिया और उन्होंने यहीं निर्वाण प्राप्त किया लेकिन वह यहाँ प्रसिद्द नहीं हुए और हमारे आस-पास के देशों में हो गये | इसके पीछे कई कारण रहे लेकिन उन कारणों में नहीं जाना चाहते | बुद्ध ने ईश्वर का बाहरी स्वरुप मानने से इनकार किया लेकिन प्रचलित यह हुआ कि बुद्ध ईश्वर या भगवान को नहीं मानते हैं | वह उसके होने को अस्वीकार कर रहे हैं जिस पर भारतवर्ष का उस समय का धर्म खड़ा था | बाकि आप समझदार हैं कि फिर क्या हुआ होगा….????

तंत्र योग है और इससे भी बढ़ कर पूरे का पूरा विज्ञान है | आप इसे किसी धर्म से जोड़ कर न देखे तभी ठीक रहेगा जैसे आज हम योग या विज्ञान को धर्म से नहीं जोड़ते वैसे ही इसे भी नहीं जोड़ना चाहिए |

दोस्तों, जैसा कि हमने पहले भी कहा कि तंत्र में बौद्ध तंत्र व् सोच, आध्यात्मिक सोच और ध्यान को बहुत ही अच्छे ढंग से पिरोया गया है | विज्ञान भैरव तंत्र की शुरुआत भैरव (शिव) और भैरवी (शक्ति या पार्वती) के संवाद से शुरू होती है | इस में शिव, माँ पार्वती को तंत्र के बारे में बता रहे हैं और माँ शक्ति, शिव से बहुत ही रोचक और आम जन-मानुष की तरह प्रश्न पूछ रही हैं |

इस तंत्र में लगभग 112 तरह की विधियाँ बताई गई हैं जिस में ध्यान के इलावा साँस, सोच, शरीर, स्वपन आदि काफी तरीके बताये गये हैं जिन के जरिये ध्यान लगाया जा सकता है और यह किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं हैं बल्कि हर कोई इन विधियों के द्वारा ध्यान लगा सकता है | जो जिस विधि के जरिये ध्यान लगा पाता है, समझिये कि वह विधि उसके लिए है | यह बात सच भी लगती है क्योंकि एक दवाई सब रोगों के लिए नहीं हो सकती या एक ही दवाई से सब रोग ठीक नहीं हो सकते या एक दवाई सब प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि हर व्यक्ति की मानसिक, शरीरिक, रहन-सहन, देश, काल, वातावरण और परिस्थिति अलग-अलग हैं | इस के बावजूद सब को लगभग ध्यान की एक ही तरह विधि बताई जा रही है जिस कारण हर व्यक्ति इसे कर नहीं पा रहा है या सफल नहीं हो पा रहा है |

आज लगभग हर व्यक्ति अपनी किसी न किसी परेशानी से झूझ रहा है और उन से बाहर निकलने का एक ही हल दिखता है कि ध्यान धारण कर बेवजह की टेंशन से मुक्ति पा लें | यही कारण है कि आज के समय में बहुत लोग ध्यान या मैडिटेशन की और आकर्षित हो रहे हैं | कोशिश तो बहुत लोग करते हैं लकिन सफल कोई इका-दुक्का ही हो पाते हैं | असफलता का कारण किसी व्यक्ति विशेष में नहीं है बल्कि ध्यान की विधि में हैं | तंत्र की इस शाखा में इसी समस्या का हल दिया गया है |

धर्म-कर्म, खान-पान, धन या पद छोड़ना आसान है इसीलिए तंत्र भौतिकवाद को छोड़ने को नहीं कहता | अहंकार या ज्ञान छोड़ना बहुत मुश्किल है इसलिए तंत्र इन्हें छोड़ने को कहता है | तंत्र सीखने के लिए आपको फिर से एक बच्चे की तरह मासूम बनना होगा |

तंत्र आत्मा से शुरू होकर परमात्मा तक जाने का सीधा और सरल उपाय है | जितना सरल है उतना ही कठनाई भरा भी है लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह जैसे आप हैं वैसे का वैसा स्वीकार कर लेता है | यह आपको आपके धर्म या आस्था या विश्वास को छोड़ने को नहीं कहता | यहाँ तक कि आपके किसी भी भौतिकवादी कार्य को भी छोड़ने को नहीं कहता | यह आपके ज्ञान को सिर्फ इसलिए छोड़ने को कहता है ताकि आप जल्द से जल्द इस मार्ग पर आगे बढ़ सकें | ज्ञान है तो अहंकार अपने आप चला आता है जो किसी भी ऐसे मार्ग पर चलने में मुख्य बाधक है | लेकिन फिर भी यदि आप नहीं छोड़ सकते या नहीं छोड़ पा रहे हैं तब भी तंत्र सीखने में कोई बाधा नहीं है | हाँ, कुछ समय ज्यादा जरूर लगेगा लेकिन आप जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे सब कुछ अपने आप से छूटता चला जाएगा |

वह इंसान तंत्र जल्दी सीख सकता है जो अपने आप से या अपने शरीर से प्रेम करता है | अपने आप या अपने शरीर से प्रेम करने का यह मतलब नहीं है कि हर समय अपने शरीर की लिपा-पोती करते रहो या नई से नई ड्रेस पहनते रहो या घंटो कसरत में बिता दो | इसमें कोई शक नहीं कि आज के जीवन में यह सब भी जरूरी है लेकिन जब आप शरीर से प्रेम करना अंदर से शुरू करेंगे तब आप उतना ही करेंगे जितने की जरूरत होगी | और कुछ समय बाद सब कुछ अंदर ही होगा, बाहर नाम मात्र ही रह जाएगा | अंदर का रूप खिल कर जब बाहर उजागर होगा तब आप और आपके आसपास वाले सब हैरान हो जायेंगे |

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