विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 37
दर्श अर्थात दर्शन, दृष्टि, कृष्ण इत्यादि |
पाँच इन्द्रियों में से एक आँख भी है जिससे हम देखते हैं | आज के समय में हम अपनी आँख पर बहुत भरोसा करने लगे हैं | हम बाकि इन्द्रियों का प्रयोग करना लगभग भूल चुके हैं और शायद तभी हम बद से बद्दतर स्थिति में पहुँचते जा रहे हैं | हमें जो दिखता है हम उसी पर विश्वास कर लेते हैं | हम देख कर ही सब समझ जाते हैं | देखने के इलावा भी बहुत कुछ है जिसे मिला कर हमें किसी नतीजे पर पहुँचना चाहिए | हर बार देखना या दिखना ही सब कुछ नहीं होता | माना कि जो दिखता है वही बिकता है लेकिन हम इसे अपनी निजी जिन्दगी में भी प्रयोग करने लगे हैं | शायद, इसी कारण आज हमारे रिश्ते लगभग टूटने के कागार पर पहुँच चुके हैं |
जब भी आप किसी अमीर या फ़िल्मी या राजनीतिक या किसी अन्य क्षेत्र में मशहूर हस्ती को देखते हैं तो आप यही सोचते हैं कि वह व्यक्ति कितना खुशनसीब है कि उसने वह कामयाबी पा ली जिसकी वह चाह रखता था | जबकि उसकी इस कामयाबी की कहानी यदि आप उस व्यक्ति से पूछेंगे तो वह यही कहेगा कि जो उसने चाहा या जो कामयाबी उसे मिलनी चाहिए थी वह उसे अभी नहीं मिली है | दूसरों की नजर में कामयाब इंसान अपनी नजर में ज्यादात्तर कामयाब नहीं होता | यह ठीक वैसे ही है जैसे दूसरों की नजर में हँसता-खेलता और जिन्दगी के हर सुख की मौज लेता इंसान जरूरी नहीं है कि अपनी नजर में वैसा ही हँस-खेल और मौज मस्ती कर रहा हो | इसके बावजूद भी हम अपनी नजर पर ही भरोसा करते हैं |
ऐसा हमारे साथ क्यों हो रहा है या ऐसा हम क्यों कर रहे हैं ?
क्योंकि हम ने कभी इन आँखों का प्रयोग अपने लिए नहीं किया है यानि हम ने कभी अपने को नहीं देखा है या कभी अपने अंदर झाँक कर नहीं देखा है |
यह सूत्र तथा आगे के तीन सूत्र हमें यही सिखाने की कोशिश कर रहे हैं |
यदि हम अपने आप को देखने लगें या अपने अंदर झांकना शुरू कर दें तो हमें पता लगेगा कि गर्भ में आने से लेकर मृत्यु उपरांत तक हमारा निरंतर विकास होता रहता है | असल में मृत्यु भी एक नए जीवन का विकास है | इसके बावजूद ज्यादात्तर यह मानते हैं कि विकास एक उम्र तक ही होता है उसके बाद नहीं | हम यह क्यों भूल जाते हैं कि ब्रमांड निरंतर चल रहा है और विकसित हो रहा है और हम इस ब्रमांड का एक हिस्सा हैं | अतः हमें विकसित होना या चलना, उम्र या सोच या काम पर नहीं रोकना चाहिए | हमें यह मानना ही होगा कि हम या हमारा शरीर अंतिम अवस्था नहीं है बल्कि यह शरीर, प्रकृति द्वारा बनाया एक रास्ता है जिस पर चलते हुए हर मानव अपने पद चिन्ह छोड़ता जाता है और जिस के सहारे या जिस से सबक ले, नए आने वाले मानव अपना जीवन सुचारू रूप से चला पाने में समर्थ हो पाते हैं | अतः यह मान लीजिये और जान लीजिये कि उम्र कोई बंधन नहीं है और हमें हर परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते जाना है |
इस सूत्र में बताई गई विधि के अनुसार सुबह दिन निकलने से पहले या रात के समय, पद्मासन या वज्रासन या सुखासन में आँख बंद कर कुछ देर बैठे और फिर अपने दोनों हाथ की अँगुलीयों से अपनी दोनों आँख को इतना ही दबाएँ ताकि दर्द महसूस न हो | कुछ देर दबाने के बाद हाथ हटा लें | ऐसा करने से आपको आँखें बंद होने पर भी रौशनी या प्रकाश का एक बिंदु दिखाई देगा | कुछ एक को यह प्रकाश बिंदु, आँख या तिलक या सहस्त्रार चक्र की जगह के इलावा अनाहत चक्र पर भी दिख सकता है |
इस सूत्र के अनुसार आपको इस प्रकाश बिंदु पर अपना ध्यान केन्द्रित करना है | ध्यान केन्द्रित करते हुए आपको ज्यादा जोर से बिंदु को नहीं देखना है यानि घूरना नहीं है तथा साँस भी सामान्य गति से चलनी चाहिए | जैसे ही आपका ध्यान इस प्रकाश बिंदु पर केन्द्रित हो जाएगा वैसे ही आपकी सोच गायब हो जायेगी |
इस सूत्र में बताई गई विधि से यदि आप ध्यान करते हैं तो कुछ दिन में वह प्रकाश बिंदु आपके पूरे शरीर में फैलने लगेगा और आप ध्यान की गहराई में उतरते चले जायेंगे | यह सूत्र आपकी सोच और नजर को अंदर की ओर मोड़ता है जिससे कुछ समय के बाद ही आपका अपने आपको और अन्य को देखने का नजरिया अपने आप ही बदल जाएगा | यही इस सूत्र और तंत्र की खासियत है कि आपको अपने अंदर बदलाव लाना नहीं पड़ता, वह तंत्र को अपनाते ही अपने आप आने लगता है |