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तंत्र और तांत्रिक ????

आज लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी परेशानी से झूझ रहा है | रहन-सहन का ढंग, पश्चिमी सभ्यता का आकर्षण, प्रदूषित वातावरण, हर रोज आती नई से नई बिमारी और बेलगाम बढ़ती जनसंख्या जैसे अनेको कारण हैं जो हर इंसान को अंदर ही अंदर खोखला करते जा रहे हैं | यही वजह है कि आज भारत में लगभग पचास प्रतिशत लोग किसी न किसी बिमारी की दवाई ले रहे हैं |

धर्म के ठेकेदार या आध्यात्म या योग से सम्बन्धित काफी लोगों ने इसी का फायदा उठाया है और भ्रम फैला कर पिछले लगभग तीस-पैंतीस साल में अपनी-अपनी दुकानों का धंधा खूब चमकाया है और यह साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है |

इस बढ़ती टेंशन का ईलाज आज के चिकित्सा विज्ञान के पास है लेकिन हम भारतीय सबसे अलग हैं | हम ईलाज से ज्यादा अन्धविश्वास पर विश्वास करते हैं | इसमें कुछ भागीदारी आज के डॉक्टर्स की भी है | सारे नहीं लेकिन कुछ एक डॉक्टर्स भी इसका फायदा उठा रहे हैं जिसके कारण लोग अन्धविश्वास की ओर बढ़ रहे हैं और इस में काफी हाथ उपरोक्त फैले जाल का भी है |

इन सब के बीच एक अच्छी बात भी हो रही है कि लोगों का विश्वास एक बार फिर से प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बढ़ रहा है और साथ ही साथ आज की युवा पीढ़ी भी धर्म, योग और ध्यान की तरफ आकर्षित हो रही है |

दोस्तों, आज के समय में बहुत लोग ध्यान सिखा रहे हैं और बहुत लोग ध्यान सीख रहे हैं लेकिन कितने असल में सीख पा रहे हैं इसका कोई भी डाटा उपलब्ध नहीं है | हाँ, सिखाने वालों का डाटा जरूर उपलब्ध है | ध्यान सीखने वाले यदि बीस या तीस प्रतिशत लोग भी असल में सीख गए होते तो हमें एक परिवर्तन का दौर आम जिन्दगी में जरूर दिखता लेकिन अफ़सोस की ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है |

इन्हीं जूझते लोगों के हमारे पास बहुत प्रश्न आते हैं कि ध्यान कई साल से कर रहे हैं लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं या ध्यान तो लगता है लेकिन अब anxiety या BP या depression होने लगा है या बहुत पुरानी-पुरानी सोच जकड़ रही हैं या अपने आप से या अपनी सोच से डर लगने लगा है | ऐसे बहुत प्रश्न आते हैं जो यह बताते हैं कि कहीं कुछ है जो नहीं हो पा रहा है |

आज का एक प्रश्न हम ले रहे हैं जो बहुत लोग पूछते हैं कि तंत्र क्या है ? हम ने तंत्र के बारे में बहुत कुछ गलत सुना हुआ है | क्या आप भी तांत्रिक हो और भूत-प्रेत में विश्वास करते हो आदि, आदि ? बहुत प्रश्न हैं…. कोशिश करेंगे कि हम उन सब प्रश्नों का जवाब अवश्य दें जिस से आप लोग जूझ रहे हैं |

दोस्तों, तंत्र का वशीकरण या भूत-प्रेत भगाने या अपने वश में कर उसे गलत प्रयोग में लाने से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है यह तंत्र का गलत प्रचार व् प्रसार है या यूँ कहें कि इस ब्रह्म विद्या को जादू या टोने-टोटके का नाम दे, बदनाम करने की साजिश है |

दोस्तों, ‘तंत्र’ या ‘तांत्रिक’ शब्द सुन, डरने की जरूरत है भी और नहीं भी |

तंत्र के नाम पर जादूगिरी दिखाने वाले तांत्रिक से डरने की जरूरत तो नहीं है, हाँ, सावधान जरूर रहने की आवश्यकता है | क्योंकि ऐसे लोगों का उद्देश्य केवल पैसा कमाना होता है | आप ऐसे ही तंत्र या तांत्रिक को जानते हैं या आज के समय में प्रसिद्द हैं और हर गली-मोहल्ले में इनका पोस्टर लगा मिल जाएगा या वह खुद ही सड़क पर जादूगिरी दिखाते मिल जायेंगे | आजकल सावधान रहने की और भी ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि ऐसे लोग सोशल-मिडिया पर काफी छाए हुए हैं |

तंत्र का मन्त्र से सम्बन्ध जरूर है लेकिन वह इसका मुख्य अंग नहीं है | लेकिन आज आपको फिल्मों में या असल जिन्दगी में ऐसे तांत्रिक मुंड माला लिए या कपाल की पूजा करते या जोर-जोर से मन्त्रोच्चार करते मिल सकते हैं |

मन्त्र एक अलग शाखा है | इस शाखा में भी ध्यान या तंत्र शामिल हो सकता है लेकिन इस शाखा में ध्यान या तंत्र मुख्य अंग नहीं है |

आज के समय में तंत्र या तांत्रिक में – तंत्र, मन्त्र, ध्यान केवल नाम मात्र है बाकि सब केवल जादूगिरी, वशीकरण विद्या और सेक्स शामिल हो गये हैं या कर दिए गये हैं या आप कह सकते हैं इन सबका घोल शामिल है |

आइये तंत्र का इतिहास जाने – यह जान कर आपकी तंत्र के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी और साथ ही साथ विशवास भी |

इतिहास में ऐसा वर्णन मिलता है कि तंत्र की शुरुआत बुद्ध के समय हुई जिसे आज हम बौद्धिक तंत्र के नाम से जानते हैं | कहीं-कहीं यह भी वर्णन मिलता है कि बुद्ध ने स्वयम तंत्र की शिक्षा दी थी | बौद्ध धर्म, ईसा से पाँच सौ वर्ष पहले आया था और तब बुद्ध, बौद्ध धर्म और तंत्र दोनों ही भारत में प्रसिद्द न हो पाये | बुद्ध ने भारतवर्ष में जन्म लिया और यहीं निर्वाण प्राप्त किया लेकिन वह यहाँ प्रसिद्द नहीं हुए और आस-पास के देशों में हो गये | इसके पीछे कई कारण रहे और उन में से मुख्य कारण था कि बुद्ध ने ईश्वर का बाहरी स्वरुप मानने से इनकार किया लेकिन प्रचलित यह हुआ कि बुद्ध ईश्वर या भगवान को नहीं मानते हैं | वह उसके होने को अस्वीकार कर रहे हैं जिस पर भारतवर्ष का उस समय का धर्म खड़ा था | बाकि आप समझदार हैं कि फिर क्या हुआ होगा….????

शायद यही कारण रहा होगा कि बुद्ध और बौद्ध तंत्र भारत से उस समय करीब-करीब लुप्त से हो गये थे जबकि भारत के आस-पास के देशों में  पैर जमते जा रहे थे |

भारत में एक बार फिर से तंत्र की शुरुआत दूसरी शताब्दी से हुई थी (ऐसा उस समय के इतिहास से ज्ञात होता है) इसीलिए तंत्र में वेद, पूराण, आध्यात्म व् बौद्ध धर्म की झलक मिलती है | तंत्र भी शरीर से बाहर की सोच को आगे नहीं बढ़ाता है शायद इसीलिए यह आगे नहीं बढ़ पाया | इतिहास गवाह है कि तंत्र की लगभग बीस से ज्यादा शाखाएं थी जोकि उस समय के लोगों द्वारा विरोध करने के कारण आज तीन-चार ही बची हैं | इसके लुप्त होने के कई कारण जान पड़ते हैं लेकिन मुख्य कारण यह था कि शंकराचार्य व् ब्राह्मण जाति ने इसका घोर विरोध किया | सब का विरोध करने का कारण समझ में आता है कि वह नहीं चाहते थे कि कोई भी मूर्ति पूजा और कर्म-काण्ड से बाहर आ पाये लेकिन शंकराचार्य ने क्यों विरोध किया समझ नहीं आया |

हिन्दू और बौद्ध धर्म उस जमाने में आज के कश्मीर में अपनी चर्म सीमा पर था | कहा तो यह भी जाता है बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार, विकास और फैलाव कश्मीर के रास्ते ही हुआ था | बौद्ध धर्म और कश्मीरी शैववाद(शिव) दोनों का उस काल में वर्चस्व था | उस समय कश्मीर को ईश्वर की गोद कहा जाता था | यह इस बात से साबित होता है कि उस समय (दूसरी शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक) के महान धार्मिक व्यक्ति अपने जीवन काल में एक बार कश्मीर जरूर आये थे |

कश्मीर में इस्लामीकरण 13वीं शताब्दी के दौरान शुरू हुआ, 14वीं और 15वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर पूरी तरह से मुस्लिम शासन के मातहत हो गया और यही कश्मीर में कश्मीर शैववाद व् तंत्र के अंतिम पतन का कारण बना |

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