यहाँ हर कोई एक-दूसरे को समझा रहा है
और
देखने से लगता है हर कोई समझ रहा है
लेकिन समझने के बाद
हर कोई जब अपना रास्ता पकड़ लेता है
तब समझ आता है कि सब बेकार गया
लेकिन क्यों ………..?
बचपन में सोच-समझ, शिक्षा-ज्ञान
सबका बस्ता खाली था
शायद इसीलिए जो सिखाया गया
वह हम बहुत जल्दी सीख गये
जवान होने पर वही बस्ता
भारी होने के साथ ही साथ
“मुझे पता है, मैं जानता हूँ”
और कुछ पूर्वाग्रह के कारण
कन्धों पर बेवजह बोझ बढ़ गया है
शायद इसीलिए समझ कर भी
हम समझना नहीं चाहते
कंधो का बोझ उतारना नहीं चाहते
अपने को हम बदलना नहीं चाहते