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व्यवहारिक आध्यात्म -2

दोस्तों, आपको लगभग हर घर में माँ-बाप यह कहते हुए मिल ही जायेंगे कि बेटा/बेटी इतने बड़े हो गये हो लेकिन तुम्हें अक्ल या तमीज बिलकुल नहीं आई | तुम लोग अपने बड़ों या बुजुर्गों का क्या सम्मान करोगे | तुमने तो अभी तक ये भी नहीं सीखा कि बड़ो से  बात कैसे की जाती है |

लगभग हर घर में ऐसा बोला तो जरूर जाता है लेकिन बोलते हुए या बोलने के बाद भी कोई माँ-बाप ये नहीं सोचता कि क्या हमने उन्हें कभी ये सिखाया या दिखाया है | जी नहीं, हम सिर्फ उन्हें डांटते हैं या फिर सिखाने के नाम पर राम, लक्ष्मण या वेद-पुराण या अड़ोसी-पड़ोसी के बच्चों की बात करते हैं या फिर उन्हें कोई कहानी सुना देते हैं | आज के बच्चे एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं | कोई बच्चा अगर आगे से बोल दें कि क्या आप दादा-दादी या बुआ का सम्मान करते हैं | पड़ोस के बुजुर्ग अंकल का ख्याल रखते हैं तो समझिये कि कुछ दिन के लिए घर में तुफान आ जायेगा | बच्चों का जीना हराम हो जाएगा | मेरे कहने का ये मतलब बिलकुल भी नहीं है कि माँ-बाप गलत हैं और न ये कहने का मतलब है कि बच्चे ठीक हैं | मैं तो सिर्फ आपका ध्यान इस ओर लाना चाहता हूँ कि न तो हम बच्चों को कोई नैतिक शिक्षा दे रहे हैं और न ही हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसा कुछ सिखाया जा रहा है | सीखाने के नाम पर दोनों ही जगह कथा-कहानी सुना दी जाती है | कुछ एक माँ-बाप अपने बच्चों को अध्यात्म पर प्रवचन सुनाने ले जाते हैं या फिर कोई धार्मिक ग्रन्थ पढ़ कर सुना देते हैं | लेकिन वो भी तो एक कहानी या कथा ही है | क्योंकि जब तक आप किसी बात पर अमल नहीं करते हैं तब तक वह कथा-कहानी ही है |

अब यहाँ ये प्रश्न उठता है कि आखिर हम अमल क्यों नहीं करते ?

क्योंकि हम मानते हैं कि अध्यात्म हमारे बस की बात नहीं | और आप सब ने कभी न कभी ये जरूर कहा या सुना होगा “यह कहा सुना तो जा सकता है लेकिन अमल….. न बाबा न, ये हमारे बस की बात नहीं है | और इससे भी बड़ी बात है कि हमारे पास समय कहाँ है | पैसा कमायें, रसूक बनायें, अच्छा घर, गाड़ी लें और उस पर बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी | इन सब से ही फुर्सत नहीं मिलती तो फिर इस ओर….., इसके लिए भी तो समय चाहिए | समय तो दिन में 24 घंटे ही हैं | नींद भी पूरी नहीं हो पाती है | एक या दो दिन की छुट्टी ऐसे फुर्र मार कर उड़ जाती है, पता ही नहीं लगता | पूजा-पाठ के लिए भी मुश्किल से ही समय निकल पाता है | और अध्यात्म….. न बाबा न…… ये अपुन के बस की बात नहीं” |

आपने कभी सोचा कि हमारी सोच ऐसी क्यों हो गई है ?

क्या ये समय का फेर है ?

नहीं दोस्तों, ये सोच आज या कुछ दिन, महीनों की नहीं है | ये सोच कई सौ वर्ष में बनी है | इस सोच के बनने का कारण आप या मैं नहीं हैं | इस सोच को बनाने वाले वो धर्म के ठेकेदार या कट्टरपंथी लोग थे जिन्हें उस समय ये लगा कि सब हिन्दू डर के कारण धर्म परिवर्तन न कर लें | ये वो लोग थे जिन्होंने अध्यात्म का गलत मतलब निकाला | इन्हीं लोगों ने मुगलों को इस धरती पर जुल्म करने दिया | वह खुद तो हाथ पर हाथ धरे ये बोलते रहे कि हम आर्यों की सन्तान हैं | हम पुरातन युग से चले आ रहे हैं और आगे भी रहेंगे | हमारा धर्म जुल्म के बदले जुल्म करना नहीं सिखाता है | हमें सहनशील होने की ताकत सीखनी चाहिए | हम उस युग की सन्तान है जो कि सहनशील थे और आहिंसा में विश्वास रखते थे | उन्होंने लोगों को बोला कि तुम पूजा-पाठ करो और ईश्वर पर विश्वास रखो सब ठीक ही होगा | और यह बात आज तक चली आ रही है | कभी किसी ने ये नहीं सोचा कि हमारा धर्म सहनशीलता और अहिंसा की बात तो करता है लेकिन वहीं तक, जहाँ तक सामने वाला समझ सकता है | हमारा धर्म सामने वाले को समझने और समझाने की पूरी कोशिश करने की बात कहता है | लेकिन जब कोई और विकल्प नहीं बचता हो तो फिर हथियार न उठाया जाए ये बात कभी नहीं कहता | यही कारण था कि पूरा मौका देने और समझाने के बाद श्री राम को युद्ध करना पड़ा | और श्री कृष्ण ने भी युद्ध भूमि में अर्जुन को गीता का पाठ सुना ये चेताया या कि अब जब युद्ध के इलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है तो अपना गांडीव उठाओ और युद्ध करो |

खैर, मेरे कहने का मतलब केवल इतना था कि हमें अध्यात्म का अर्थ गलत बताया गया और ज्यादात्तर लोग इसी गलत मतलब को सही समझ आज भी चले जा रहे हैं | मूर्ति-पूजा और पूजा-पाठ जिस ने और जब भी शुरू किया होगा उसकी सोच केवल ये होगी कि हम मूर्ति में ईश्वर को सक्षात देख जल्दी उससे सम्पर्क साध सकेंगे | पूजा और पाठ से हम में प्रेम और भक्ति भाव जागेगा और सम्पर्क साधना और भी आसान हो जाएगा | लेकिन सैंकड़ो वर्ष बाद आज ये सब करना मशीनी हो गया है | पूजा-पाठ करते हुए भी लगभग हम सबका ध्यान घर-परिवार और भौतिक वस्तुओं पर ही लगा रहता है | ऐसे में आप ही बताइए कि सम्पर्क कौन साध रहा है या कैसे होगा उस ईश्वर से सम्पर्क | पूजा-स्थल में जाकर लगभग हर कोई ये बोलता है कि कितनी भव्य जगह है मूर्ति तो ऐसी है जैसे अभी बोल उठेगी | ऐसा बोलते हुए कभी आपने सोचा कि आप किस की भव्यता और सुन्दरता की बात कर रहे हो | उस ईश्वर की जिस ने हमें बनाया | क्या हमारी इतनी ऊकात है कि हम उसकी भव्यता देख सकें या उसे सुंदर बोल सकें | आज तक जिन्हें भी ईश्वर की लौ लगी क्या वह कुछ उस ईश्वर के बारे में बोल पाये | भगवान् बुद्ध से किसी ने पूछा कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तो वह मुस्कुराते हुए बोले कि मुझे मालूम नहीं, शायद ‘हाँ’ भी और शायद ‘न’ भी | उस भक्त के जाने के बाद बुद्ध से उनके शिष्य ने पूछा कि भगवन आपने ये कैसा उत्तर दिया | तो यह सुन बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले कि ईश्वर अनंत है | उसे देखो तो और देखने की इच्छा होती है और हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है तो तुम खुद ही बताओ कि ये सब देखने के बाद मैं कैसे कह सकता हूँ कि मैंने देखा और कैसे कह सकता हूँ कि मैंने नहीं देखा है | वह अनंत है और अनंत का छोर अभी मैंने पाया नहीं है | ऐसे में जो भी अनुभव हुआ वही कह रहा हूँ |

अब यहाँ ये प्रश्न उठ खड़ा होता है कि आखिर ईश्वर अनंत क्यों है और क्यों कोई दूसरा छोर नहीं है | दोस्तों, हम आगे आने वाले लेख में विस्तार से इस पर चर्चा करेंगे | अभी के लिए इतना ही कहना चाहता हूँ कि अगर ईश्वर अनंत है तो इसका मतलब साफ़ है कि दूसरा छोर होगा ही नहीं | इसीलिए भगवान् बुद्ध ने ऐसा कहा | क्योंकि वह जानते थे कि दूसरा छोर नहीं है या होगा और यह बात उनका शिष्य समझ नहीं पायेगा कि कुछ ऐसा भी हो सकता है जिसका दूसरा छोर न हो | अतः उन्होंने ये बात कही कि मैंने दूसरा छोर अभी नहीं पाया या देखा है | उनकी कही ये बात और हमारे वेद-पुराणों में कही बात आज का आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि ये ब्रह्माण्ड इतना विशाल और बड़ा है कि उन्हें अभी तक इसका दूसरा छोर नहीं मिला है |

दोस्तों, अब बात करते हैं कि हम हर जगह ईश्वर को ही कर्ता क्यों कहते हैं | इसका जवाब तो आप ही दे सकते हैं कि आज आपको जो कुछ भी दिखता है तो आप कह उठते हैं कि इसे किसने बनाया है | ऐसा कैसे हो सकता है कि इसे बनाने वाला कोई नहीं है | कहीं से तो शुरुआत हुई होगी | कुछ तो होगा जहाँ से बीज या वस्तु पहले-पहल आई होगी | तो दोस्तों यही बात तो इस ब्रह्माण्ड को बनाने वाले पर भी लागू होती है | कोई तो है जो सब देख रहा है | कोई तो है जिस ने पहले-पहल ये सब बनाया होगा |

दोस्तों, अगर आप आज के आधुनिक विज्ञान को मानते हैं तो वह विज्ञान ये कहता है कि हर बड़े से बड़े ग्रह की कुछ सीमा अवधि होती और उस अवधि के समाप्त होते ही उसमें विस्फोट होता है फिर कई ग्रहों का निर्माण होता है | कुछ निष्क्रिय हो जाते हैं और कुछ क्रिया में रहते हैं | लेकिन इन सब को कौन तय करता है इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है | उनके पास इसका भी कोई जवाब नहीं है कि इतना बड़ा निर्माण क्यों और कैसे हुआ और क्यों और कैसे सब कुछ घूम रहा है | सब कुछ स्थिर क्यों नहीं है |

दोस्तों, इन्हीं सब का जवाब सिर्फ और सिर्फ अध्यात्म के पास है | अध्यात्म ही सब का जवाब देता है और दे सकता है लेकिन हमारे देश की विडम्बना देखिये कि हम ज्ञान से दिन-प्रतिदिन दूर से अति दूर होते जा रहे हैं | क्योंकि हम अध्यात्म को अपना नहीं रहे हैं | हम इस ज्ञान को व्यवहारिकता में नहीं ला पा रहे हैं | बस इसी को अपनाने का बहुत छोटा-सा कदम हम उठाने की कोशिश कर रहे हैं और आप सबका यदि साथ मिलेगा तो हम अवश्य सफल होंगे | धन्यवाद |

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