मैं बुरा नहीं सोचूँगा ?
मैं बुरा नहीं करूँगा ?
मैं बुरा नहीं बोलूँगा ?
मैं बुरा नहीं देखूँगा ?
मैं कभी ये नहीं खाऊंगा ?
मैं फिर कभी वहाँ नहीं जाऊँगा …. आदि..आदि…
दोस्तों, आपने भी कभी ऐसा बोला या सोचा होगा या किसी को करते तो जरूर देखा होगा | ऐसा करने वाला जितना ऐसा बोलता या सोचता है, उतना ही उस ओर खिंचा चला जाता है |
आपने कभी सोचा कि हम जिस काम को ‘न’ करने की सोचते हैं उतना ही उस काम को क्यों जाने-अनजाने करते चले जाते हैं ?
Law of Attraction कहता है कि आप जैसा सोचोगे वैसा ही आप attract करोगे | यहाँ हम “मैं बुरा नहीं करूँगा”, सोचने के बावजूद भी बुरे की ओर खींचे चले जा रहे हैं | इस नियम के अनुसार तो बुरे से दूर होना चाहिए था या अच्छा होना चाहिए था |
कर्म-योग कहता है कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे | कर्म-योग और Law of Attraction एक ही हैं, बस फर्क इतना है कि कर्म-योग को विदेशी लिफाफे में लपेट कर दिया गया है |
खैर, यहाँ “मैं बुरा नहीं करूँगा” सोचने के बावजूद भी फल में बुरा करने को दिल करता है या कर ही जाते हैं | कर्म-योग के अनुसार सोचना भी एक कर्म है और जब ‘बुरा नहीं करना’ सोच लिया तो फिर क्यों बुरा ही करने को दिल करता है या जाने-अनजाने में बुरा ही कर देते हैं ?
आज का आधुनिक मनोविज्ञान भी यह मानता है कि सोच एक कर्म है और उसका भी एक न्यूरॉन पैटर्न हमारे दिमाग में बन जाता है |
अब प्रश्न यह उठता है कि “मैं बुरा नहीं करूँगा” सोचने या कहने के बावजूद हम इस पर टिक क्यों नहीं पाते हैं | पहले से बने पैटर्न पर ही क्यों काम करते चले जाते हैं |
क्या कर्म-योग या Law of Attraction या मनोविज्ञान सब गलत हैं ?
जी नहीं, सब ठीक हैं और सबकी कही बात भी ठीक है |
इस लेख के शुरुआत में जो भी बातें बोली गई हैं, यदि आप उन पर ध्यान दें तो सब में ‘न’ या ‘नहीं’ शब्द आता है यानि आप वह काम नहीं करना चाहते हैं |
अब आप कर्म-योग या Law of Attraction के नियम को देखें तो दोनों ही कहते हैं कि जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा या वही कर्म को आप आकर्षित करते हो |
लेख की शुरुआत में कही गईं बातें अकर्म हैं यानि आप कह रहे हो कि आप कर्म करना ही नहीं चाहते | यदि आप ध्यान दें तो आप, यह कह रहे हैं या सोच रहे हैं कि मुझे वह काम नहीं करना है यानि वह सोच रहे हैं या कह रहे हैं जो आज भी कर्म नहीं था और भविष्य में भी कर्म नहीं होगा क्योंकि आप वह करना ही नहीं चाहते हैं तो फिर फल भी नहीं मिलेगा और आकर्षित भी नहीं होगा |
मनोविज्ञान की माने तो वह भी यही कहता है कि कर्म ही स्टोर होता है या उसका ही न्यूरॉन पैटर्न बनता है और यहाँ हम कर्म न करने की बात कर रहे हैं | इसमें कोई शक नहीं कि सोचना भी कर्म है लेकिन यदि आप कर्म के बारे में सोच रहे हैं तभी वह आपकी याद्शत में स्टोर होगा यानि बार-बार होने पर उसका एक नया न्यूरॉन पेटर्न बन जाएगा जोकि भविष्य में आपको याद आता रहता है |
कुल मिला कर यह बात सामने आती है कि “नहीं करना” या “अकर्म” या “काम का न होना” या “काम का न करना” दिमाग में स्टोर नहीं होता है और इसके बदले यह स्टोर हो जाता है
– आपने कहा या सोचा – “मैं सिगरेट नहीं पियूँगा” और स्टोर हो जाता है “मैं सिगरेट पियूँगा” |
यह आप हर “न” या “नहीं” वाली सोच या बोलने पर लागू कर देखेंगे तो पाएंगे कि सिर्फ यही कारण है कि आप न, न, करते जाते हैं और वह काम करते जाते हैं क्योंकि न तो स्टोर ही नहीं हो रही है |
अतः कोई भी काम या बात नहीं करना चाहते हैं तो उसे अकर्म बना कर मत कहें या सोचें बल्कि उसे न बोल कर जो करना चाहते हैं वह बोलें या सोचें :
मैं अच्छा सोचूँगा |
मैं अच्छा करूँगा |
मैं अच्छा बोलूँगा |
मैं अच्छा देखूँगा |
मैं एक को छोड़कर बाकि सब खाऊंगा |
मैं एक जगह छोड़कर बाकि सब जगह जाऊँगा …. आदि..आदि…
मनोविज्ञान के अनुसार यदि हम किसी बात, सोच या काम को ज्यादा दिन तक नहीं सोचते या करते हैं तो वह हमारी आदत या यादाश्त या न्यूरॉन पैटर्न में से निकल जाता है और उस बुरी सोच या काम से हमारा पीछा छूट जाता है |
आपको बचपन में जो आदतें या सोच या अच्छा लगता था वह अब नहीं लगता क्योंकि आप वह आदत या काम या सोच भूल चुके हैं क्योंकि आपने काफी समय से उसे याद नहीं किया है |
अतः जो कुछ भी सोचना या करना छोड़ना चाहते हैं तो उसे भूलने के लिए दूसरी सोच या काम को दोहरायें |