दोस्तों, हम बचपन से आनन्द का अनुभव करते आ रहे हैं लेकिन असल में आनन्द क्या होता है हमें आजतक समझ में नहीं आया है | आप कहेंगे कि अजीब बात है | हमें और आनन्द समझ में नहीं आया | ऐसा कैसे हो सकता है ?
आनन्द और परमानन्द में कोई ख़ास फर्क नहीं है | वह आनन्द जो लगातार होता रहे उसे ही परमानन्द कहते हैं | अब आप ही बताइए कि क्या आपकी जिन्दगी में ऐसा कोई आनन्द है जो आज भी वैसा ही आनन्द दे रहा है जैसा आपको बचपन या जवानी में देता था | जी नहीं, ऐसा कोई भी आनन्द नहीं है जो आपकी आजतक की जिन्दगी में लगातार चला आ रहा है |
बचपन में आप एक खिलोने से प्यार करते थे | उसमें आपको जो आनन्द की अनुभूति होती थी वह उस समय कोई और चीज नहीं दे सकती थी | लेकिन वही खिलौना जवानी तक पहुँचते-पहुँचते बेकार हो चुका था | वह खिलौना कब आपके स्टोर रूम में और वहाँ से कब कबाड़ी के पास पहुँच गया आपको आज याद तक नहीं होगा | लेकिन उस खिलोने पर आप बचपन में अपनी जान छिड़कते थे | जरा-सी देर भी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देते थे | उसे पा कर आपको जो आनन्द की अनुभूति होती थी वह अकल्पनीय थी | लेकिन आज नहीं है | ऐसे ही आपके जीवन में हजारों उदाहरण होंगे जो एक समय आनन्द देते थे लेकिन आज नहीं देते हैं | इसी से आप समझ सकते हैं कि आप जिसे आनन्द कहते हैं वह असल में कुछ पल या महीने या साल की ख़ुशी भर थी लेकिन आनन्द नहीं था |
दोस्तों, आप में से बहुत से लोग सिगरेट, शराब या अन्य व्यसनों के आदि होंगे अगर नहीं तो आप चाय, कॉफ़ी, अच्छे कपड़े, शान-शौकत के आदि तो अवश्य होंगे | यह सब आपने जब भी शुरू किया होगा तब आपको जिस आनन्द की प्राप्ति हुई होगी वह आज नहीं होती होगी | आज वह सब आप की आदत और मजबूरी बन कर रह गया है | आनन्द हो या न हो लेकिन आपको आदतन करना ही है | ऐसा ही कुछ आज हमारे सम्बन्धों में भी हो रहा है | प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी का शुरू-शुरू में मिलना, बातें करना आनन्द की अनुभूति देता है जो वक्त के साथ कम होता चला जाता है | और फिर यह एक सीमा पर आकर, न के बराबर रह जाता है | धीरे-धीरे वही प्रेमानंद, आदत या जरूरत भर बन कर रह जाता है | ऐसा बुरी आदतों में अक्सर होता है लेकिन सम्बन्धों में ऐसा होना खतरे की घंटी बजने के बराबर है |
सम्बन्ध में खटास आने का एक कारण आनन्द की उम्मीद लगाना भी है | हम दूसरे से या दूसरे के होने से ख़ुशी का अनुभव करते हैं | बचपन से हमें यही सिखाया जाता है | हमें कभी भी ये नहीं सिखाया गया है कि ख़ुशी, इंसान के अंदर होती है | बाहर से आपको, न कोई ख़ुशी दे सकता है और न दुःख | एक और बात हम बचपन से गलत समझते आ रहे हैं कि ख़ुशी ही आनन्द है | इसी कारण कब ख़ुशी, धोखे या दुःख में बदल जाती है | हमें पता ही नहीं चलता है |
एक आध्यात्मिक व्यक्ति, वैज्ञानिक, अविष्कारक, कलाकार, चित्रकार, कवि, लेखक, अपना पूरा जीवन अपनी ख़ुशी के लिए काम करता है | वह दूसरे पर भरोसा नहीं करता है | धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति की ख़ुशी आनन्द में बदलने लगती है | और जैसे-जैसे उसकी ख़ुशी आनन्द में बदलने लगती है वैसे-वैसे उसकी लग्न और कार्य क्षमता भी बढ़ने लगती है | वह काम करता जाता है और हर बार पहले से अच्छा करने की कोशिश में अपनी पूरी जिन्दगी लगा देता है | जैसे रवीन्द्रनाथ टैगोर से आखिरी समय पर उनके दोस्त ने पूछा कि आपको अपनी कौन-सी रचना सबसे अच्छी लगती है | वह मुस्कुरा कर बोले कि असल में मैं जो लिखना चाहता था वह लिख ही नहीं पाया | सोचिए कि अगर ऐसा हमारे सम्बन्धों में भी हो जाए तो क्या होगा | हम ऐसे सम्बन्धों के सहारे ही परमानन्द को प्राप्त कर लेंगे | और परमानन्द का अर्थ है ईश्वर की प्राप्ति |
दोस्तों, हमारे जीवन में एक सम्भोग ही है जहाँ हमें शनिक आनन्द की प्राप्ति होती है बाकि सब जगह या चीजों में हमें सिर्फ और सिर्फ ख़ुशी महसूस होती है | सम्भोग में जो हमें शनिक आनन्द की प्राप्ति होती है वह ईश्वर का हमें संदेश है कि आनन्द और ख़ुशी में अंतर समझो | आनन्द में आप सब कुछ भूल जाते हैं | आपकी आँखें बंद हो जाती हैं | इसी आनन्द की प्राप्ति के लिए मानव जाति बार-बार सम्भोग के लिए इच्छुक दिखती है | ऐसा इच्छुक व्यक्ति यह नहीं समझता कि शनिक आनन्द से कुछ नहीं होने वाला है | और वह आनन्द भी क्या आनन्द जो किसी दूसरे पर आधारित हो | यदि यह सुख या आनन्द हमें हर समय मिले तब न तो हम दूसरे पर आधारित रहेंगे और न ही हमारे सम्बन्ध कभी खराब होंगे | योग के द्वारा हम यह आनन्द लगातार पा सकते हैं | ऐसा आनन्द जब मिलना शुरू होता है तब उसके रुकने का सवाल ही नहीं पैदा होता है | लेकिन हम उस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं | हम उस शनिक आनन्द की प्राप्ति के लिए दीवाने हुए चले जा रहे हैं | इस दीवानेपन की वजह से ही हमारे न सिर्फ पति-पत्नी के सम्बन्ध बल्कि उसके कारण पारिवारिक और समाजिक सम्बन्ध भी खराब होते जा रहे हैं | अगर हम इस शनिक आनन्द को अपनी जिन्दगी से निकाल दें तो फिर न तो कोई अपराध होगा और न ही कोई बलत्कार होगा | न पति-पत्नी के सम्बन्ध खराब होंगे और उसके कारण न पारिवारिक या समाजिक सम्बन्ध खराब होंगे | योग से शान्ति और शान्ति से आनन्द और लगातार होते आनन्द से हम परमानन्द को प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे |
दोस्तों, मैंने यह प्रश्न इसलिए उठाया है ताकि आप लोग ये समझ सकें कि हमें क्यों बार-बार सम्भोग करने की इच्छा होती है | सम्भोग एक प्राकृतिक क्रिया है | यह कोई इंसान की खुद की बनाई क्रिया नहीं है | और प्रकृति जो कुछ भी करती है उसके पीछे कोई न कोई बड़ा कारण छुपा होता है | इस प्राकृतिक क्रिया के पीछे दो कारण छुपे हैं | पहला कारण तो हम सब को पता है कि यह क्रिया वंश को आगे बढ़ाने के लिए है | जैसा कि जानवर इस क्रिया का प्रयोग केवल गर्भधारण के लिए करते हैं | लेकिन हम इंसान इस क्रिया के पीछे छुपे दूसरे कारण को समझने की बजाय इस क्रिया में ही डूबते जा रहे हैं | एक पागलपन की हद तक | इसी कारण परिवार, समाज में टूटन तक आने लगी है | इस क्रिया में भी हम सिर्फ अपना ही सुख या आनन्द को देखते हैं | दूसरे पक्ष को बस खिलोने की तरह इस्तमाल करते हैं | और यही हमारे समाज को नीचे की ओर धकेल रहा है | अब और भी टूटन आने लगी है क्योंकि स्त्री पक्ष भी अपने सुख और आनन्द के प्रति जागरूक हो गई है | पश्चिम देश इससे बाहर निकलने लगे हैं और हम डूबने लगे हैं | हम जानते हुए भी जानना नहीं चाहते हैं कि सुख या आनन्द के पीछे दूसरा कारण क्या है |
दोस्तों, इस क्रिया के अंत में मिलने वाला आनन्द प्रकृति ने हम इंसानों को केवल इसलिए दिया है ताकि हम ये समझ सकें कि परमानन्द के लगभग एक हजारवें हिस्से का आनन्द जब इतना सुखदाई और अद्भुत होता है तो परमानन्द का सुख कैसा होगा | इस क्रिया में मिलने वाला सुख और आनन्द तो केवल विज्ञापन मात्र है |
दोस्तों, मेरे कहने का ये मतलब कतई नहीं है कि आप अपने पारिवारिक सम्बन्ध यानि पति-पत्नी के सम्बन्धों में सम्भोग को निकाल फेंको | मेरा इतना कहना है कि इसमें उस शनिक आनन्द को गहराई से महसूस करो | सम्भोग के बाद ध्यान पर बैठें और उस आनन्द को एक बार फिर से ध्यान में महसूस करने की कोशिश करें | आप उस आनन्द को फैलाव दे सकते हैं | ये आपके मन या दिमाग की परिकल्पना भर अवश्य होगी | लेकिन आप इस परिकल्पना में भी ख़ुशी महसूस कर सकते हैं | यह महसूस करना आपको सम्भोग करने की होड़ से दूर ले जाएगी | आप अब भी सम्भोग करेंगे लेकिन उसके लिए पागलपन नहीं करेंगे | एक समाजिक और परिवारिक इंसान होते हुए अब आप शरीरिक सम्बन्ध बनायेंगे दूसरे की ख़ुशी के लिए, दूसरे को आत्म सम्मान देने के लिए और ऐसा करते हुए आपको उस क्षण मात्र के आनन्द में आपको जो आत्मिक आनन्द की प्राप्ति होगी वो आपको न चाहते हुए भी प्रेम मार्ग की ओर ले जायेगी | क्योंकि प्रेम मार्ग ही सबसे आसान और सरल तरीका है मन से नीचे उतर कर उस संगीत के स्रोत तक पहुँचने का जहाँ सब कुछ अपने आप बदल जाता है |