यह गलत प्रचलित है कि
इंसान को भावनात्मक होना चाहिए
असल में भावना ही भटकाती है
जबकि
भावना नहीं भाव होना चाहिए
भाव हमेशा समभाव रहता है
प्रेम की भावना नहीं
भाव होना चाहिए
भाव ऊँचे स्तर का होता है
वह छोटे-मोटे झटके से
टूट कर बिखरता नहीं है
जबकि
भावना कभी-भी कहीं-भी
किसी भी बात पर
आहत हो जाती है