दोस्तों, प्रेम सोच-समझ कर नहीं किया जा सकता | प्रेम हो जाता है और वह किसी से भी हो सकता है | जरूरी नहीं कि प्रेम, प्रेमी और प्रेमिका के बीच ही हो | प्रेम माँ से, पिता से व अन्य से भी हो सकता है | लेकिन हम जिस प्रेम को जानते हैं वह केवल प्रेमी-प्रेमिका के बीच ही होता है | प्रेम सम्बन्ध में जब प्रेम अपने असली रूप में नहीं होता तब बचा-कुचा प्रेम भी धीरे-धीरे खोने लगता है और अन्य बातें प्रेम सम्बन्ध को और डुबाने में अपने आप ही शुरू हो जाती है | वह अन्य बातें क्या हैं आज हम उस पर कुछ बताना चाहते हैं |
प्रेम सम्बन्ध कई बार बेवजह के क्रोध के कारण भी खराब हो जाते हैं | लेकिन आपने कभी सोचा है कि हमें क्रोध या गुस्सा क्यों आता है ? नहीं आपने कभी नहीं सोचा होगा | आप तो हमेशा ये मानते हैं कि दूसरे की गलत बात या हरकत के कारण आपको गुस्सा आया | आपका अपने शरीर या सोच या गुस्से पर कण्ट्रोल है ? नहीं है | आपको नब्बे प्रतिशत मामलों में गुस्सा आता है तो आपको अफ़सोस नहीं होता है क्योंकि आप मानते हैं कि यह सब दूसरे के कारण हुआ है | केवल दस प्रतिशत मामलों में आपको लगता है कि आपने नाहक ही गुस्सा किया | असल में देखा जाए तो इस दस प्रतिशत में भी सात से आठ प्रतिशत मामलों में आप दूसरे के कारण ऊपरी सतह से माफ़ी मांगते है जबकि अंदरूनी तौर से आप यह मानते हैं कि कसूर दूसरे का ही था | सिर्फ दो से तीन प्रतिशत मामलों में आप अपने आपको को या गुस्से को दोष देते हैं | लेकिन आप इस बात से सहमत नहीं होंगे क्योंकि आप सब कुछ जानते हुए भी जानना नहीं चाहते हैं | फिर भी अगर आप सहमत नहीं है तो अगले कुछ दिन अपने गुस्से या क्रोध पर नियन्त्रण या कण्ट्रोल करके देखिये | और फिर रात को सोने से पहले उस बात पर जिस पर आपने क्रोध नहीं किया उसका कसूरवार आप किसे ठहराते हैं उसे खोजिये | आप पाएंगे कि आप हर बार दूसरे को ही कसूरवार ठहराएगें |
खैर, अब हम क्रोध का कारण ढूंढने की कोशिश करते हैं | आप सोचते हैं कि दूसरे के गलत व्यवहार के कारण आपको क्रोध आ गया जबकि आपकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी | आपकी यह सोच गलत है | असल में क्रोध कभी भी किसी एक बात के कारण नहीं आता है | बहुत सी सोच मिलकर इस पर काम करती हैं और उन सोच पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता है इसीलिए वह एक साथ मिल जाती हैं | जैसे आपने रास्ते में या सड़क पर लोगो को एक छोटी-सी गलती पर उलझते हुए देखा होगा | उन्हें देख कर आपको लगा होगा कि ये दोनों क्यों इस छोटी-सी बात पर लड़ रहे हैं | आप उन्हें पागल कह कर आगे निकल गए होंगे | जिस बात पर वह दोनों लड़ रहे होंगे जरूर छोटी-सी बात ही होगी लेकिन क्रोध उस छोटी-सी बात पर फूट गया होगा | जबकि उस क्रोध का असल कारण कुछ और ही होगा | हो सकता है कि उस लड़ने वाले व्यक्ति को मानसिक परेशानी पिछले कुछ दिन से घेरे हुए हो और वह उसका हल न खोज पा रहा हो | हो सकता है कि कुछ देर पहले ही वह किसी से खरी-खोटी सुन कर आया हो | हो सकता है कि उसका अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ हो और वह चाह कर भी उसे कुछ कह नहीं पाया हो | हो सकता है कि उसे पैसे की कोई परेशानी चल रही हो | उस व्यक्ति विशेष के गुस्से के कई ऐसे कारण होगें जिन पर उसका नियंत्रण नहीं होगा | लेकिन यहाँ वह बेख़ौफ़ अपना गुस्सा दिखा सकता था इसलिए कारण कोई भी होता उसने तो आज लड़ना ही था |
आप अपने आप पर यह प्रयोग करके देखिये | आप पत्नी या बच्चे या ऑफिस में कभी भी गुस्सा दिखाते हैं या आपको अचानक क्रोध आ जाता है और झगड़ पड़ते हैं तो आप उसके कुछ देर बाद उस गुस्सा आने वाली बात को टटोल कर देखिएगा | आप पायेंगे कि वह बात इतने गुस्सा दिखाने वाली नहीं थी क्योंकि वह कई बार पहले भी ऐसी हरकत कर चुका था | और हर बार आपने अपनी सोच पर नियंत्रण कर लिया था लेकिन इस बार आप नहीं कर पाए या जरूर कोई और कारण होगा | लेकिन वह बात जिस पर आपको गुस्सा आया वह इतना गुस्सा दिखाने वाली नहीं थी | यह लगभग पचास से साठ प्रतिशत मामलों में अवश्य होगा |
दोस्तों, बहुत बार आप गुस्सा करने के बाद माफ़ी मांग लेते हो | आप कहते हो कि आपने नाहक ही छोटी-सी बात पर गुस्सा किया जबकि आप अंदरूनी रूप से पूरी तरह आश्स्वस्त होते हो कि आपने जो कुछ भी किया वह बिलकुल ठीक था | ऐसा कर आप क्रोध के कुँए में अंदर ही अंदर धंसते जा रहे हो और माफ़ी माँगने के कारण आपका मन आपको धिकारने भी लगता है | लेकिन इन सब के बावजूद आप सम्बन्ध बचाने की खातिर हर बार क्रोध कर माफ़ी माँगते हो | आप क्या सोचते हो कि ऐसा कर आप सम्बन्ध बचा लोगे | जी नहीं ऐसा कतई नहीं होगा | सम्बन्ध बचे तो रहेंगे लेकिन धीरे-धीरे वह खोखले होते जाएंगे | ऐसे सम्बन्ध होने या न होने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा |
आपने बहुत लोग देखे होंगे जो आपके पूरा बोलने या वाक्य पूरा होने से पहले ही अपनी राय बना लेते हैं कि आप क्या बोलना चाहते हैं | ऋषि पतंजलि ने योग-सूत्र के सूत्र 9 में ऐसे ही लोगों का वर्णन किया है | उन्होंने कहा है कि कुछ लोगों की ऐसी वृत्ति यानि स्वाभाव या सोच या मन की दशा होती है जो एक शब्द सुन कर ही विकल्प यानि अंदाजा लगा लेते हैं कि दूसरा क्या कहना चाहता है | वह पूरी बात सुन ही नहीं पाते हैं और आपकी बात का अर्थ निकाल लेते हैं | यह एक प्रकार का मानसिक विकार है | ऐसे व्यक्ति संयम नहीं रख पाते हैं | वह या तो पूरी बात सुनते नहीं हैं या बात सुन कर उसका मनन –मंथन नहीं कर पाते हैं और पहले ही अंदाजा लगा कर बोल पड़ते हैं | ऐसा ही कुछ क्रोध करते हुए भी होता है | क्रोध करने वाला व्यक्ति या तो पूरी बात सुनता नहीं है या पहले ही निष्कर्ष पर पहुँच जाता है | संयम रखने वाला व्यक्ति किसी भी कही, सुनी या देखी गई बात की तह तक पहुँच कर यानि मनन-मंथन कर कुछ बोलता है | ऐसे व्यक्ति को क्रोध नहीं आता है | आप यह अच्छी तरह से समझ लीजिये कि क्रोध करने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता है और क्रोध को आप रोक नहीं सकते, न ही उसे दबा सकते हैं | जितना दबाने या टालने की कोशिश करेंगे उतना ही उसका वेग बढ़ता जाएगा | और पहले से ज्यादा घातक होगा | आप संयम से मनन-मंथन की आदत से ही क्रोध को कण्ट्रोल कर सकते हैं |
दोस्तों, आप समझ ही गये होंगे कि क्रोध से प्रेम और सम्बन्ध बेवजह खराब हो जाते हैं अतः संयम और मनन-मंथन की आदत डालिए | इसी से आप क्रोध को रोक भी सकते हैं और सम्बन्धों को मजबूत भी कर सकते हैं |