आइए, अब हम व्यवहारिक बात करते हैं कि जब बीती जिन्दगी की याद आती है तब हम सिसक/रोने उठते/लगते हैं | वह बीती जिन्दगी या पल दस/बीस/तीस साल पहले के भी हो सकते हैं | और एक साल या एक महिना या एक दिन पहले के भी हो सकते हैं | याद आने पर हम क्यों रो उठते हैं ? ऐसा क्यों होता है ?
जिन्दगी यानि बीती जिन्दगी और जिस रफ्तार से चल रही है उससे आने वाली जिन्दगी का अंदाजा जब लगाया जाता है तब रोना आना स्वाभाविक है | हर किसी के कुछ सपने या लक्ष्य होते हैं | जब वह पूरे नहीं होते हैं या सपनों या लक्ष्यों को किसी के लिए या परिवार के लिए कुर्बान कर देना पड़ता है | किसी को प्यार में धोखा मिलता है | किसी की कद्र घर-परिवार वाले नहीं करते हैं | किसी को बार-बार मेहनत करने के बावजूद भी सफलता नहीं मिलती है | कोई शरीर या बिमारी से परेशान है तो कोई बच्चों या गुजरते समय से | कुछ इसलिए परेशान हैं कि वह जो करना चाहते हैं परिस्थिति उसके बिलकुल विपरीत हैं और वह चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं | कुछ इसलिए परेशान हैं कि समाज की तो छोड़ो यहाँ तो अपने ही साथ नहीं दे रहे हैं |
इन सब बातों में एक बात common है कि आप भूतकाल या भविष्य से परेशान हो रहे हैं | और जो कुछ भी हो रहा है वह आपके मुताबिक नहीं हो रहा है | लेकिन आप इसमें एक काल तो भूल ही गये हैं | वर्तमान काल | जो कुछ भी आज अभी इस वक्त हो रहा है उसे ही देखिये और सोचिये | बीता वक्त वापिस नहीं आ सकता और आगे आने वाले समय के बारे में निश्चित रूप से कोई कुछ नहीं कह सकता है | इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज फैली बिमारी से ही ले सकते हैं | अचानक आई इस बिमारी ने सब कुछ जहाँ-तहाँ रोक दिया है | किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो सकता है | आप अभी जो साँस ले रहे हैं | वह साँस पूरी होने तक वर्तमान है और अगली साँस भविष्य है | और किसे पता है कि किसकी अगली साँस आएगी कि नहीं | इसी प्रकार हर अगला कदम भविष्य है | हम सोचते हैं कि आज का दिन या रात वर्तमान है | जबकि हमें अगली साँस तक का पता नहीं है | आप भविष्य के बारे में योजना बनाते हैं उस पर आज से कार्य शुरू करते हैं | यह एक positive step है | ऐसा किया जा सकता है और करना भी चाहिए | लेकिन वह पूरा होगा कि नहीं यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं | अतः कर्म करें फल की अपेक्षा भविष्य पर छोड़ दें | और आज को जितना हो सके ख़ुशी-ख़ुशी बिताएं | उसे भविष्य की चिंता कर कृपया खराब न करें |
एक और कारण है रोने का और वह है ‘अहम’ | जब भी हमारे अहम को चोट लगती है तब हमारा अंतर्मन तड़फ उठता है | ऐसे में जब हम उचित जवाब नहीं दे पाते हैं तब मन अंदर ही अंदर कचोटता रहता है | लेकिन जब हम जवाब नहीं दे पाते हैं तब हमारा मन अंदर ही अंदर बगावत कर देता है | जब हम उचित जवाब नहीं दे पाते हैं तब हमारा मन हमें कई तरह के सुझाव या उपाय बताता है | और दो-तीन दिन में हम शांत हो जाते हैं लेकिन अंदर ही अंदर मौके की तलाश में रहते हैं | ऐसे में हमें रोना नहीं आता है बल्कि अपने पर गुस्सा आता है कि हमें मौका नहीं मिल रहा है | रोना केवल उसी दशा में आता है | जब हम जवाब नहीं दे पाते हैं और उम्मीद भी नहीं होती है कि कभी हम ऐसा कुछ कर पायेंगे | लेकिन बगावती मन हमें चैन नहीं लेने देता है | ऐसे में जब भी हम अकेले होते हैं | हमारा मन मौका देख कर हावी हो जाता है और हम सुबक उठते हैं |
दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि क्या हम में अहम होना ही नहीं चाहिए | आप बिलकुल ठीक सोच रहे हैं | हम में अहम बिलकुल भी नहीं होना चाहिए | असल ये अहम नहीं है | यह हमारे मन के द्वारा फैलाई एक भ्रान्ति है कि हमारी अपनी भी कोई इज्जत है | आपकी कोई इज्जत करता है तो ठीक, नहीं करता है तो ठीक | हमें अपने पर जब पूर्णतः विश्वास होता है | जब हम अपने आपको पूर्णतः जानते हैं कि हम जो कर रहे हैं वह बिलकुल ठीक है | तब हमें किसी के सर्टिफिकेट की क्या जरूरत है | हम ठीक हैं तो ठीक हैं | कोई माने या न माने | कोई इज्जत करे या न करे | लेकिन जब हम में आत्मविश्वास या confidence की कमी होती है तब हमें दूसरे का सहारा चाहिए होता है | तब हमें दूसरे के सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ती है | तब हमारा मन अहम पैदा करता है | और ऐसे में जैसे ही कोई हमारे अहम पर चोट करता है | हमारे काम या हमारी सोच को गलत बताता है | हम फूट पड़ते हैं |
दोस्तों, जब भी कोई नया अविष्कार हुआ या किसी ने नई खोज की तो क्या उसे दूसरों के सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ी | नहीं पड़ी | उस अविष्कारक या खोजी को पहले-पहल सबने दुत्कारा ही है | लेकिन उसके आत्मविश्वास को देख धीरे-धीरे सब को उसकी बात माननी पड़ी | माना कि रोजमर्रा की जिन्दगी नई खोज नहीं है लेकिन उससे कम भी नहीं है | क्योंकि आप रोज एक नई चुनौती का सामना करते हैं | और ऐसे में आपको अपने में विश्वास होना बहुत जरूरी है | आप अपने काम और अपने आप से खुश होना सीखिए | यहाँ कोई किसी को खुश नहीं कर सकता है | और आपको किसी और के सहारे की क्या जरूरत है | आपको अपने सहारे की जरूरत है | मन की सुनना छोड़िये और आत्मा की आवाज सुनिए | वही हमेशा आपके साथ थी और मरते दम तक साथ रहेगी |
एक और तरीके से इसे समझते हैं | जैसे किसी अपने के लिए आपके द्वारा किये गये काम को सराहा न जाना भी रोने का कारण बनता है | किसी पराये के लिए आपके द्वारा किया गया काम कभी भी रोने का कारण नहीं बनता है क्योंकि वहाँ आपको उम्मीद न के बराबर होती है | उस पराये का काम करके आपको आंतरिक ख़ुशी मिलती है | वह पराया व्यक्ति यदि आपको धन्यवाद देता है या आपकी तारीफ़ करता है तो आपकी ख़ुशी दोगुनी हो जाती है | और यदि वह नहीं भी करता है तो भी आप ख़ुशी का अनुभव करते हैं | लेकिन यह किसी अपने पर लागू नहीं होता है | आप कहेंगे कि पराये के लिए आप कभी-कभी करते हैं लेकिन अपनों के लिए तो आप रोज करते हैं फिर भी तारीफ का एक शब्द नहीं निकलता है | और उसकी बजाय किये गये काम में पचास नुक्स निकाल देते हैं | ऐसे में मन का दुखी होना जायज है | हमारी राय में यह दुःख भी नजायज है क्योंकि यहाँ भी आपको काम बिना किसी अपेक्षा के करना चाहिए | यहाँ भी आपको काम अपनी ख़ुशी के लिए ही करना चाहिए | और अगर काम करके भी आपको दुःख का अनुभव होता है तो ऐसे काम को न ही करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा | हमने पहले एक सिद्धांत का जिक्र किया था | याद करें वह सिद्धांत ‘Law of Motion’, यहाँ भी वह लागू होता है | आपको काम करके दुःख हुआ तो आगे भी दुःख ही वापिस आएगा | अतः काम करके आपको ख़ुशी मिलती है तो ठीक वरना सिरे से नकार दीजिये | क्योंकि आपको हर हालत में अपने आपको और अपनी सोच को positive रखना है ताकि आपका मन आप पर हावी न हो पाए |