प्रेम शब्द सुनते ही दिमाग में सबसे पहले प्रेमी-प्रेमिका का चित्र आ जाता है | उसके बाद पति-पत्नी एवं नजदीकी रिश्तेदार व परिवार वाले और फिर दोस्त-यार और बहुत से ऐसे रिश्ते जिनका कोई नाम नहीं है | लेकिन जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव याद आते ही अनायास मुँह से निकल जाता है कि अब रिश्तों में वो प्रेम कहाँ रहा | अब तो रिश्ते बस निभाहे या ढोये जा रहे हैं | चाहे उन में जान बची है या नहीं | आज लगभग हर पारिवारिक या समाजिक रिश्ते का कमोबेश यही हाल है | हर रिश्ते में टूटन दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है |
प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी के रिश्तों में अहम और अनजान वहम के आने से इसमें भी दरार आने लगी है |
आज के सन्दर्भ में विवाह पद्धति में एक कमी है | आज के समय में पति और पत्नी दोनों आजीविका के लिए घर से बाहर निकलने को मजबूर हैं | समाज और परिवार को आगे ले जाने में पति-पत्नी दोनों का बराबर का हिस्सा है | तब ऐसी परिस्थिति में विवाह पद्धति में एक बदलाव लाना आवश्यक हो गया है ताकि विवाह उपरान्त दोनों के रिश्ते में किसी तरह का कोई विवाद न आये | पहले विवाह के लिए माता-पिता ही बच्चों के लिए वर-वधु चुनते थे | लेकिन आज पुरुष और महिला दोनों बौधिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर एक समान हो गये हैं | बराबर के हिस्सेदार हैं | ऐसे में यदि वह दोनों खुद अपने जीवन साथी का चुनाव करें या फिर उन्हें शादी से पहले इतना समय दिया जाए जिस में वह एक दूसरे को जान पाए तो आने वाले समाज में प्रेम फिर से उपजने लगेगा |
पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका दोनों एक दूसरे में हर खूबी और अच्छी आदत हो, ये तो चाहते हैं | लेकिन दोनों ये भी चाहते हैं कि वह आदत या खूबी सिर्फ एक दूसरे को ही दिखायें, किसी और के सामने नहीं | यह सब सिर्फ अपने अहम की रक्षा और सुरक्षा के लिए किया जाता है वरना इसका कोई और दूसरा कारण हो ही नहीं सकता | जैसे कि पत्नी या प्रेमिका, पति या प्रेमी से बार-बार पूछती है कि मैं कैसी लग रही हूँ | अर्थात वह यह मानती है कि वह सुन्दरता को पहचानने की क्षमता रखता है और अगर वह रखता है तो वह हर सुंदर स्त्री को निहार सकता है | लेकिन पति या प्रेमी को दूसरी औरत को निहारते देख, पत्नी या प्रेमिका भड़क उठती है | क्यों ? जब आपने खुद ही उसे इस काबिल समझा तो अब यदि वह इस काबलियत को कहीं और इस्तमाल कर रहा है तो आप भड़क क्यों रहे हो | अगर दोनों ने एक दूसरे को मान कर नहीं बल्कि एक दूसरे को पूरी तरह से जान कर प्रेम किया होता तो ऐसा बिलकुल भी नहीं होता | प्रेमिका या पत्नी समझ जाती कि वह सिर्फ देख भर रहा है उसका उसके प्रति भावना तो उत्पन्न हो सकती है लेकिन भाव नहीं हो सकता | क्योंकि वह अपने पति या प्रेमी को जानती है | ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो आप सब के जीवन में रोज होते होंगे |
दोस्तों, लेकिन ऐसा असल जिंदगी में हो नहीं रहा है | कारण शायद आप जानते हुए भी नहीं जान पा रहे हैं या फिर आप जानबूझ कर आँखें मूँदे बैठे हैं | खैर, आज आपको हम खुल कर बताते हैं कि क्या कारण है कि जब आप अपने आप को जानते हैं तब आप अपने प्रेमी और उसके मन को भी जानने लगते हैं | आज के समय यही तो नहीं हो रहा है | आपको दूसरे को जानने और समझने से पहले अपने आप को जानना और समझना जरूरी है | बाकि दूसरे रिश्तों की बात तो छोड़िए, प्रेमी-प्रेमिका और पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट का मुख्य कारण सिर्फ और सिर्फ यही है कि दोनों एक दूसरे को जानने का दावा करते हैं जबकि वह दोनों ही अपने आप को ही पूरी तरह से जान नहीं पाए हैं |
क्या आपका शरीर आपकी सुनता है ? क्या आपका मन आपकी सुनता है ? क्या आप जो करना चाहते हैं वह कर पाते हैं ?
नहीं ! आपका शरीर आप की नहीं सुनता और न ही आप का मन आप की सुनता है | जब ये दोनों आप की नहीं सुनते तो इसका मतलब है कि आप का अपने ऊपर नियंत्रण नहीं है और आप अपने शरीर और मन को पूरी तरह से नहीं जानते हैं | जब आप अपने आपको ही नहीं जानते तो फिर कैसे आप दूसरे को जानने का दावा ठोकते हैं | जब आप खुद चाहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं तो फिर दूसरे की हरकतों या कार्य को देख कर कैसे अंदाजा लगा लेते हैं कि वह वही कर रहा है जो वो चाहता है | देखना और सुनना हमेशा सही नहीं होता है | लेकिन आप देखने और सुनने में ही ज्यादा विश्वास करते हैं | आप जब दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखते है तो आपको वह वैसा ही दिखता है जैसे आप हैं | लेकिन यदि उस प्रतिबिम्ब को उसकी नजर से देखें तो वह उल्टा होता है | आपका दायाँ उस प्रतिबिम्ब का बायाँ होगा | अर्थात नजर से देखा उल्टा भी हो सकता है | लेकिन आपका मन इसे मानने को तैयार ही नहीं होगा क्योंकि आपने बिना जाने प्रेम किया है | और बिना जाने प्रेम हो ही नहीं सकता | वह प्रेम एक भावना मात्र है जो कभी भी टूट कर बिखर सकती है | जब भी ऐसी टूटन होगी फिर आपका मन आपको जीने नहीं देगा | वह हर समय आपको इस टूटन की याद दिलाता रहेगा | कुछ समय बाद आपकी वह भावना भी खत्म हो जायेगी और सिर्फ मशीनी रूप से प्रेम का ढोंग करेंगे | जिसका कोई अस्तित्व नहीं होगा | आज ज्यादात्तर ऐसा ही हो रहा है |
हमें यह बात एक बार फिर समझनी होगी कि प्रेम दो आत्माओं का मिलन है न की दो शरीर का | पिछले कुछ दशकों से हम शरीर को ज्यादा अहमीयत देने लगे हैं | शायद मूर्ति पूजा और पूजा के ढ़ेरों आडम्बर कर हम और हमारा मन भी जड़ हो गया है | हम मूर्ति या पूजास्थान या ग्रन्थों में ईश्वर को खोजने लगे हैं वैसे ही हम दूसरे के शरीर में भी खोज रहे हैं | हमने मूर्ति या पूजास्थान या ग्रंथों में ईश्वर को कैद कर दिया है | वैसे ही हम प्रेम को भी प्रेमी में कैद कर रहे हैं |
आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि एक व्यक्ति जब धर्म स्थान में जाता है तो वह वहाँ ईश्वर की मौजूदगी महसूस कर बहुत ही विनम्र हो जाता है | वह वहाँ सफाई भी करता है | सबके सामने माथा भी टेकता है | वह वहाँ आये लोगों के जूते भी साफ़ करता है | आप यह सब देख कर कर सोचते हैं कि ऐसा करने वाला वह व्यक्ति कितना धार्मिक और सद्कर्म करने वाला है | जबकि ऐसा नहीं है | वह व्यक्ति अंदर से जैसा है वैसा ही रहेगा | बाहर आकर वह फिर से वही चोगा ओढ़ लेगा जैसा वह था | ऐसे लोगों को देख-देख कर आपकी सोच जड़ होती जा रही है | आप सोचते हैं कि सब ऐसे ही होते हैं | आप ऐसा क्यों सोचते हैं क्योंकि आप अपने प्रेमी या प्रेयसी को जानते नहीं हैं | अगर आप उसे पूरी तरह से जानते होते तो शक की कोई सम्भावना ही नहीं होती | और अगर आपके जानने के बावजूद वह गलत साबित होता है तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता | वह भी तो कर्म बंधन से जुड़ा हुआ है | जैसा कर्म करेगा Law of Motion के हिसाब से उसके पास भी घूम कर वही वापिस आएगा जैसा वह कर रहा है | लेकिन आप अपना आज क्यों खराब कर रहे हैं | समय को क्यों नहीं करने देते हैं | आप समय या ईश्वर पर क्यों नहीं छोड़ देते हैं | आप नहीं छोड़ सकते क्योंकि आप ईश्वर और समय को जानते नहीं हैं | इन्हें भी आप अपने प्रेमी की तरह सिर्फ मानते हैं