ध्यान या मैडिटेशन कौन कर सकता है और कौन नहीं कर सकता है ?
जैसा हम ने पिछले भाग में बताया था कि मैडिटेशन के दौरान आप वर्तमान समय में होते हैं | जो अभी इस वक्त घटित हो रहा है वही देखते हैं | जैसे दर्पण यानि mirror के सामने आने पर चेहरा या अन्य दिखता है | कुछ न होने पर दर्पण हो कर भी उस में कुछ नहीं होता | इस स्थिति को ऋषि पतंजलि ने अ-मन कहा है यानि मन होकर भी मन नहीं होता है | ध्यान में मन को दर्पण बनाने की कोशिश की जाती है | जब जैसी परिस्थिति आती है वैसा ही आपका मन आपको बताता या दिखाता है | जब उसके सामने कुछ नहीं होता तब आपका मन शून्य हो जाता है |
इसे आप एक उदाहरण द्वारा भी समझ सकते हैं कि मान लीजिये किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कही कोई बात सुन या कोई घटना देख आपको गुस्सा आ जाता है या बुरा लगता है | तब आप चाह कर भी अपने आपको कई बार रोक नहीं पाते हैं और बरस पड़ते हैं लेकिन बहुत बार चाह कर भी गुस्सा निकाल नहीं पाते हैं | इन दोनों ही परिस्थितियों में अब वह व्यक्ति जब भी आपके सामने आएगा तब आपका मन आपको पिछली बात या घटना की याद दिला देगा या कोई मिलती जुलती बात सुन या घटना देख, आप बिना सोचे-समझे गुस्से से भर उठेंगे | क्योंकि वह बात या घटना आपके मन में घर बना लेती है इसीलिए आप न चाहते हुए भी बहुत बार गुस्सा कर जाते हैं या बुरा मान जाते हैं | यह बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है | ऐसी बातें या घटनाएँ उस व्यक्ति के जाने के बाद भी आपको याद आती रहती है या वह घटना होने के बाद भी आपको परेशान करती रहती है | आप सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उसने आपको ऐसा क्यों और किस लिए कहा या आपके साथ या सामने ऐसा क्यों हुआ | इस में आपकी क्या गलती थी | जब आप यह सब सोचते हैं तब अंत में आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वह इंसान गलत है, उसकी सोच गलत है जबकि आपकी कोई गलती नहीं थी | इस निष्कर्ष पर पहुँचते ही आप गुस्से और negativity से भर उठते हैं |
आपके मन में ऐसी बातें क्यों घर कर जाती हैं ? आइये जानें ….
यह सब आपके साथ इसलिए हो रहा है क्योंकि आपका दिमाग या मन या सोच, कोर्स कि किताबें या फार्मूला या लेसन या प्रश्न-उत्तर याद कर कर के मशीन बन गया है | इसके इलावा बार-बार आपको कहा जाता है कि इस काम या क्रिया को अपनी आदत बना लो | आपको पढ़ाई की किताब की तरह या आदतानुसार किसी की कही बात याद रह जाती है या देखा याद रह जाता है
आपके जीवन में ऐसी लाखों बातें या घटनाएँ आपके मन में चाहते न चाहते हुए घुसती चली जाती हैं | आपको इसके बारे में एक प्रतिशत भी एहसास नहीं होता कि आपके मन में इतना कचरा भरा हुआ है |
मन क्या है ?
मन को आप एक बहुत ही बड़ा या असीमित स्टोर रूम मान सकते हैं या एवरेस्ट की तरह बर्फ का पहाड़ मान सकते हैं | वैसे मन को बर्फ का पहाड़ मानना उचित जान पड़ता है | जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे आपके जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव, दृश्य, बातें और सोच, आसमान से गिरती बर्फ की तरफ आपके मन के पहाड़ को ऊँचें से ऊँचा करती चली जाती हैं | आप में जब भी सोच या गुस्से का वेग या तूफ़ान आता है तब वह बर्फ पिघल कर सुनामी का रूप ले या बर्फीले तूफ़ान का रूप ले आपको या आपके कारण आपके आसपास के लोगों को परेशान करती है | जब ऐसी बर्फ लगातार पर्वत को ऊँचा घंटों या दिनों में करना शुरू कर देती है तब आपको शरीरिक और मानसिक बिमारी/परेशानी घेरने लगती हैं | ऐसे इंसान को ही anxiety, depression या अन्य प्रकार की मानसिक या शरीरिक बिमारी आ घेरती है या इन्हें ही गुस्सा या सोच अधिक आती है | नींद कम आती है या सपने बहुत आते हैं | negativity बढ़ती जाती है | हमेशा कमी पर नजर जाती है या कमी ढूंडते हैं क्योंकि सोच, वर्तमान की सच्चाई को मानने को तैयार नहीं होने देती है |
ऐसा इंसान जब सोशल मिडिया में कोई ईलाज ढूंढने निकलता है तब उसे ज्यादात्तर ऐसे ऑडियो, विडियो या सलाहकार या वक्ता मिलते हैं जो यह सलाह देते हैं कि आप शरीरिक व्यायाम या योग करें इससे आपकी शरीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की परेशानी ठीक हो जायेंगी | वह ऐसी सलाह देते हुए यह नहीं सोचते कि जब ऐसे इंसान मानसिक परेशानी से जूझ रहे होते हैं तब ज्यादात्तर वह लोग शरीरिक योग भी पूरी शिद्दत से नहीं कर पाते हैं |
जब ऐसे लोग कुछ महीने योग करने के बाद भी अपनी मानसिक स्थिति से बाहर नहीं निकल पाते हैं तब आज के समय के सोशल मीडिया द्वारा यह बताया या समझाया जाता है कि अपने मन को रोकने या मानसिक परेशानी से छुटकारा पाने का सबसे आसान तरीका मैडिटेशन है | यह भी कहा जाता है कि मैडिटेशन में बैठें और मन में जो भी विचार आ रहे हैं उन्हें कुछ देर आने दें और फिर उस ओर से अपना ध्यान हटा ले और शून्य में ध्यान लगा लें | कुछ देर बाद फिर से विचार आने लगेंगे और फिर कुछ देर उन में खो जाएँ और फिर उस से बाहर निकलने का प्रयत्न करें | कुछ दिन के बाद अनावश्यक विचार का वेग कम होने लगेगा और फिर धीरे-धीरे विचार आने बंद हो जायेंगे | बस उस दिन से आपके ध्यान की यात्रा शुरू हो जायेगी |
दोस्तों, मन के पर्वत से बहता पानी यानि सोच का बहाव जितना रोकने की कोशिश करोगे उतना बहाव तेज हो जाएगा और यह कभी कम नहीं होगा | हमें कम होने का इन्तजार नहीं करना है | हमें सोच और पिछली आदतों और सोच की तेज बहती नदी के पार जाना है | इसीलिए हम बार-बार कहते हैं कि depression, anxiety, overthinking और अनिद्रा से परेशान लोगों की परेशानी मैडिटेशन से और बढ़ जायेगी | अतः मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति सीधे तौर से मैडिटेशन शुरू न करें | ऐसे लोग कृपया कुछ दिन पहले साँस के व्यायाम करें | उसके बाद त्राटक करें और फिर साँस और त्राटक दोनों करने बाद ही ध्यान शुरू करें |
वह इंसान जो वर्तमान में रहते हैं | जिन्हें कोई मानसिक बिमारी या शरीरिक बिमारी नहीं है | आम सोच रखते हैं | गुस्सा कम या नहीं आता है | साँस सामान्य रूप से लेते हैं | जिम या योग करते हैं | केवल वह ही मैडिटेशन सीधे तौर पर शुरू कर सकते हैं | योग और साँस के व्यायाम साथ करेंगे तो फायदा होगा |
आपका ध्यान जब साँस पर होगा तब आप अपने वर्तमान में जी रहे हैं | साँस लेना मतलब प्राण लेना और साँस छोड़ना यानि जीव छोड़ना है | जब आप अपने श्वास पर ध्यान देना शुरू करते हैं तब आपकी साँस स्वयमेव ही लम्बी और गहरी होती चली जाती है | यह होना ही आपके ध्यान को बढ़ाता है | आप साँस हमेशा वर्तमान में लेते हैं और जब आप अपने वर्तमान में होते हैं तब आपका मन, मन नहीं रहता | तब आपका मन, अ-मन हो जाता है क्योंकि आपको हमेशा भूतकाल या भविष्यकाल ही परेशान करता है | वर्तमान में जो अभी इस वक्त घटित हो रहा है | उसे तो आप देख रहे हैं | जिसे आप देख रहे हैं उसकी अभी सोच बनी ही नहीं तो परेशानी का कोई कारण ही नहीं है | तभी तो आध्यात्म कहता है कि हमेशा वर्तमान में रहो |
जैसा हम ने अभी कहा कि depression, anxiety, overthinking और अनिद्रा से परेशान लोगों की परेशानी मैडिटेशन से और बढ़ जायेगी | क्यों ? यह अगले भाग में बताएँगे | वह बतायेंगे जो शायद आपने पहले कभी सुना नहीं होगा या किसी ने बताया नहीं होगा |