कर्म-योग – 1
कर्म या कर्म-योग पर मन में उठने वाले प्रश्न:
1.कर्म की परिभाषा क्या है ?
2.कर्म में क्या-क्या काम शामिल हैं ?
3.कर्म का धर्म और ईश्वर से क्या सम्बन्ध है ?
4.क्या सोच-विचार, भाव, प्रेम,
भक्ति, ध्यान भी कर्म क्षेत्र में आते हैं ?
5.कर्म और कर्म-फल का आपस में क्या सम्बन्ध है ?
6.बिना फल की इच्छा के कर्म कैसे हो सकता है ?
7.क्या सचमुच कर्म फल पीछा करते हैं ?
8.जब पिछले जन्म के कर्म फल इस जन्म में
भुगतने हैं तो फिर हमारे हाथ में क्या है ?
9.बुरा और अच्छा कर्म क्या है ?
10.क्या कर्म फल देख कर कर्म करना चाहिए ?
11.क्या कर्म फल को बदला जा सकता है ?
आपके पास भी यदि कोई प्रश्न है तो हमें अवश्य भेजें | हम हर प्रश्न का यथासम्भव उत्तर देने की कोशिश करेंगे |
दोस्तों, हम सदियों से कर्म योग (Karma Yoga) के बारे में सुनते आ रहे हैं | और मेरे हिसाब से आप सब कर्म यानि क्रिया यानि काम के बारे में काफी कुछ जानते और समझते हैं | हाँ, थोड़ा बहुत Confusion या समझ कम ज्यादा हो सकती है लेकिन कर्म क्या है Basics आपको पता हैं | लेकिन आज की युवा पीढ़ी कर्म या कर्म योग को नहीं मानती है और उनकी दलीलें सुन कर अब बढ़ती उम्र के लोग भी सोचने को मजबूर होने लगे हैं कि क्या सही में कर्म-योग सही है ?
दोस्तों, मैंने यह लेख लिखने से पहले कर्म-योग पर बने काफी लेख पढ़े | youtube पर काफी विडिओ भी देखे-व-सुने | मैंने यह सब सिर्फ इसलिए किया ताकि यह समझ सकूँ कि कर्म-योग समझाने या समझने में कहाँ गलती हो रही है | ये videos देख कर मुझे समझ आया कि maximum confusion, youtube videos ने ही फैलाया हुआ है | मैंने यूट्यूब पर popular motivational speakers तक को कर्म-योग की confused analysis करते हुए सुना है | Confusion create करने में महिला-पुरुष दोनों तरह के speaker शामिल हैं | ऐसा नहीं कि यूट्यूब सब वीडियोज़ ही गलत हैं | कुछ videos अच्छे भी मिले | लेकिन ये videos ज़्यादत्तर उन लोगों के हैं जिनका कोई नाम और पहचान नहीं है और शायद इसी कारण उनके सच बोलने, बताने और समझाने के बावजूद न तो उनके viewership है और न ही followers |
खैर, हर व्यक्ति की अपनी सोच और समझ है | जैसे वह समझेगा, वैसा ही तो समझाएगा | और वैसे भी जब आपके हजारों-लाखों फॉलोवर्स हो जाते हैं या आपका नाम हो जाता है तो आप हर क्षेत्र में कूदने की कोशिश करते हो | क्योंकि आप यह दिखाना चाहते हैं कि मुझे हर क्षेत्र की जानकारी है | हो भी सकती है लेकिन यहाँ बात ज्ञान की हो रही है न कि जानकारी की | अध्यात्म, ज्ञान का विषय है यह जानकारी का विषय नहीं है | दी गई शिक्षा या प्राप्त की गई शिक्षा का मनन करना होता है | मनन करने पर ही शिक्षा, ज्ञान बनती है | और यहाँ तो और भी गंभीर विषय था | अध्यात्म, गीता और कर्म-योग को जानने के लिए आपको ज्ञान से भी आगे जाना होगा | आपको वह जानना होगा जो लिखा नहीं गया है | अर्थात जिसके बारे में कहा तो गया है लेकिन जो भी कहा गया है वह वैसा ही है या उससे भी आगे वह है जो नहीं कहा गया है | यह आप आत्म-मंथन से ही प्राप्त कर पाते हैं |
खैर, छोड़िए अब… और भूल जाइये सब |
आइए इस बृहत ब्रह्मांड की यात्रा पर निकलते हैं और इस ब्रह्मांड अर्थात प्रकृति से कर्म क्या है, जाnने की कोशिश करते हैं |
दोस्तों, आप जानते ही होंगे कि पृथ्वी अपनी धुरी का एक चक्कर लगभग 24 घंटे में लगाती है और सूर्य या सौर मंडल का एक चक्कर लगभग 365 दिन में पूरा करती है | लेकिन क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 1670 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घूम रही है और सूर्य का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी की गति 1 लाख सात हजार किलोमीटर प्रति घंटे होती है |
सूर्य, पृथ्वी से 109 गुणा बढ़ा है और पृथ्वी, सूर्य के सामने एक छोटे से धब्बे के समान है | आप को जानकर और भी हैरानी होगी कि हमारी आकाश गंगा में ही सूर्य से 500 से 1400 गुणा बड़े सूर्य भी हैं |
दोस्तों, आप यह तो जानते ही होंगे कि सूर्य भी अपनी धुरी पर घूम रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि सूर्य अपनी धुरी पर घूमने के ईलावा आकाश गंगा का भी चक्कर लगा है और वह भी लगभग सात लाख बीस हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से | और आपको यह जानकर और भी हैरानी होगी कि इतनी तेज गति से चक्कर लगाने के बावजूद भी सूर्य एक चक्कर लगभग 23 करोड़ साल में पूरा कर पाता है | आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी आकाश गंगा कितनी विशाल होगी | हमारी आकाश गंगा से भी बड़ी आकाश गंगा हैं और छोटी-बड़ी अनगिनत आकाश गंगा हैं | आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी आकाश गंगा में ही लाखों-करोड़ों ग्रह है तो फिर सब आकाश गंगा में कितने ग्रह होंगे | शायद इतनी तो हमें गिनती भी नहीं आती है और इतना सब जानकार अनंत शब्द भी छोटा लगने लगता है |
आपने एक बात पर ध्यान दिया कि हमारे पूरे ब्रह्मांड में सब जगह हलचल है कहीं कुछ भी शांत नहीं है लेकिन फिर भी चारों ओर अंधेरा और चुप्पी है | कभी कभार हल्का सा शोर और कुछ चमक, बस फिर वही शांति | लेकिन इसके बावजूद पूरा ब्रह्मांड सक्रिय या चल्यमान है |
आप यदि ब्रह्माण्ड को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है वैसे ही हर ग्रह अपनी धुरी पर घूमने के ईलावा किसी-न-किसी और ग्रह के भी चक्कर लगा रहा जैसे पृथ्वी, सूर्य का चक्कर लगा रही है | और सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगा रहा है और आकाश गंगा ब्लैक होल का चक्कर लगाने के साथ ही साथ पूरी आकाश गंगा भी चल रही है |
दोस्तों, आपने अभी जो चित्र देखे उन सब में दो समानता आपने भी देखी होंगी | एक हम पहले भी बता चुके हैं कि पूरा ब्रह्माण्ड एक दूसरे के सहारे चल रहा है और अंततः एक दूसरे में या किसी और में समा जाता है | दूसरी समानता यह है कि सब कुछ स्वतः ही चल रहा है | और चूँकि हम भी इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं अतः यह दोनों ही समानता हम में भी पाई जाती हैं | पहली – हमारी पैदायाश दो लोगों के मिलन से होती है और फिर हम परिवार, धर्म, समाज, प्रदेश और देश से स्वतः ही जुड़ जाते हैं | दूसरी समानता यह है कि ब्रह्मांड की तरह अंदरूनी तौर पर हमारा शरीर भी सब कार्य स्वतः ही करता रहता है |
आप कोई वस्तु या चित्र या कुछ भी देखते हैं तो आपके मुँह से अनायास ही निकल जाता है कि यह किसने बनाया है | क्योंकि आप जानते और मानते हैं कि किसी के बनाए बिना कुछ भी बन नहीं सकता है | फिर आप इस ब्रह्माण्ड को देख कर कैसे भूल जाते हैं कि कोई इसका भी रचियता अवश्य होगा | जब रचियता है तो उसे चलाने वाला भी होगा या किसी ने उसे इस तरह से प्रोग्राम किया है कि वह स्वयं ही within limit चले और एक अवधि के बाद वह स्वयं ही समाप्त हो जाए | ऐसा हम इंसान भी तो करते हैं, जैसे हमने laser guided-missile, computerized robot जैसी कितनी ही वस्तुएं बनाई हैं जो स्वयं चल सकती हैं और यहाँ तक कि फैसला भी ले सकती हैं कि किस परिस्थिति में क्या करना है | यदि इंसान ऐसा कुछ कर सकता है तो फिर आप ब्रह्मांड में ईश्वर की भूमिका कैसे भूल जाते हैं |
ब्रह्मांड का हिस्सा हम और हमारा शरीर भी है | इसी बात पर अनायास ही श्री कृष्ण की याद आ जाती है | बचपन में माँ यशोदा को भ्रम हुआ कि लल्ला ने मिट्टी उठा कर खा ली है तो वह श्री कृष्ण को डांटते हुए मुँह खोलने को कहती हैं | माँ के बहुत कहने पर श्री कृष्ण मुँह खोल देते हैं | माँ यशोदा श्री कृष्ण के मुँह में ब्रह्माण्ड को देख हैरान-परेशान हो जाती है |
यहाँ यह श्री कृष्ण को ईश्वर दिखाना या बताना नहीं था | यहाँ श्री कृष्ण जो बचपन से ही ब्रह्मज्ञानी थे, मुँह खोल यह बताना चाह रहे थे कि हम पृथ्वी पर रहते हुए ब्रह्माण्ड का हिस्सा स्वयम ही बन जाते हैं | अतः हमारे शरीर में भी पूरा ब्रह्माण्ड बसता है |
दोस्तों, प्रकृति या ब्रह्मांड या स्वयं का शरीर देख कर समझ आता है कि हम जो कुछ भी स्वतः या रोजमर्रा की जिन्दगी में करते हैं वह सब कर्म के क्षेत्र में आता है | कर्म छोटा हो या बड़ा क्या फर्क पड़ता है | कर्म तो कर्म ही होता है | आप इस संसार में पहली साँस से जीवन यात्रा शुरू करते हैं और मरते दम तक उसी साँस के सहारे चलते रहते हैं | बचपन में आप के हाथ बहुत मुश्किल से कोई चीज पकड़ पाते थे लेकिन आज आप बड़े से बड़ा काम इन हाथों से कर लेते हैं | बचपन में एक कदम भी चल पाना आपके लिए मुश्किल होता था लेकिन आज आपको अपने पैरो की याद तक नहीं आती है | आप इन्हें कर्म मानने से कैसे इनकार कर पायेंगे ?
सूर्य उर्जा देना बंद कर दे, धरती घूमना बंद कर दे, ब्रह्माण्ड में फैला गुरुत्वाकर्षण अचानक बंद हो जाए और इससे भी बड़ी बात कि अचानक साँस ही बंद हो जाए तो क्या हम जीवित रह पायेंगे | अतः स्वतः चलने वाला कर्म या किया जाने या होने वाले कर्म पर ही पूरा कर्म-योग टिका है | लेकिन आप को बहुत जाने-पहचाने और विख्यात लोगों के विडियो youtube पर मिल जायेंगे जो यह कहते हैं कि साँस लेना कर्म नहीं है | आप जब किसी उद्देश्य से साँस लेते हैं जैसे आप प्राणायाम करते हैं तो ही यह कर्म है वरना नहीं है | बाकि तो साँस लेने को कर्म ही नहीं मानते |
खैर, आइए यह देखते हैं कि गीता में कर्म के बारे में क्या कहा गया है |
कर्म-योग का वर्णन गीता के तीसरे अध्याय में स्पष्ट रूप से मिलता है | बाकि अध्यायों में भी याद-कदा कर्म-योग के बारे में कहा गया है |
गीता के अध्याय 3 के शलोक 5 में कर्म की एक तरह से परिभाषा दी गई है कि कोई भी जीव या प्राणी क्षण भर के लिए भी अकर्मा नहीं रह सकता है | सभी जीव या प्राणी अपने प्राकृतिक गुणों द्वारा कर्म करने को बाध्य है |
गीता के अध्याय 3 के शलोक 4 में कर्म फल से मुक्ति पाने का साधन भी कर्म बताया गया और ज्ञान पाने के लिए भी कर्म को उचित बताया गया है | इसके अनुसार – न तो कोई केवल कर्म से विमुख रहकर कमर्फल से मुक्ति पा सकता है और न केवल शारीरिक संन्यास लेकर ज्ञान में सिद्धावस्था प्राप्त कर सकता है |
अतः कुल मिलाकर यह बात समझ आती है कि इस संसार में जन्म लेना भी कर्म है और पहली साँस के साथ शुरू हुई कर्म यात्रा आखिरी साँस तक जारी रहने वाली है | इस यात्रा में आपका हर काम, कर्म में शामिल है जैसे – साँस लेना, देखना, बोलना, सुनना, भोजन करना, शौच करना, सोना, पढ़ना, लिखना, सोचना, समझना आदि सब कार्य कर्म के क्षेत्र में आते हैं |
एक बात और स्पष्ट करना चाहूँगा कि यहाँ हमने जिन्हें कर्म कहा है केवल उन्हें ही कर्म न समझें | जैसा मैंने पहले भी कहा है कि आपके जीवन का हर छोटा-बड़ा कार्य कर्म है | आप सोचते हैं तो वह भी कर्म है और आप दिन या रात में सोते हैं तो वह भी कर्म है और सोते हुए स्वप्न लेते हैं तो वह भी कर्म है |
दोस्तों, हम यहाँ अभी सिर्फ कर्म की बात कर रहे हैं | यहाँ हम अभी कर्म-फल या बुरा या अच्छा कर्म इसकी कोई बात नहीं कर रहे हैं | आपको जब कर्म समझ में आ जायेगा तब कर्म-फल समझना और समझाना बहुत आसान हो जाएगा | Youtube व विभिन्न स्तर या जगह पर लिखे गए लेखों में से ज़्यादत्तर में अच्छे व बुरे कर्म-फल को कर्म से जोड़ कर पेश किया गया है | इससे कर्म-योग समझ आने की बजाय उलझा हुआ लगता है और इतने सब के बावजूद अगर कोई समझना चाहे तो confusion और बढ़ जाता है | जब यह कहा जाता है कि हमेशा अच्छा कर्म करें | कभी न तो बुरा सोचें और न बुरा कर्म करें | चूंकि हर कर्म का फल होता है और अगर इस जन्म में फल नहीं मिला तो फिर अगले जन्म में भुगतना पड़ेगा | बस यह सुनते ही हर इंसान इस कर्म-योग से अपनी दूरी बना लेता है |
खैर, आइये अब विज्ञान की नजर से कर्म को समझते हैं |
विज्ञान के अनुसार इस पूरे ब्रह्माण्ड का कारक atom है | विज्ञान कहता है कि इस ब्रह्माण्ड में atom तब भी था जब ब्रह्माण्ड नहीं था | आज भी है और जब ब्रह्माण्ड नहीं होगा तब भी atom होगा | ब्रह्माण्ड में हम जो कुछ भी देखते हैं वह सब atom से बना है | हमारी पृथ्वी और यहाँ तक कि हम भी atom से बने हैं | विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर का लगभग 99 प्रतिशत हिस्सा हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणुओं से बना है | हमारे पास जीवन के लिए आवश्यक अन्य तत्वों की मात्रा बहुत कम है |
According to Newton’s third law of motion – every action has an equal and opposite reaction. इसका यह मतलब भी तो हो सकता है क्योंकि हम atom के बने है और atom में हर पल हलचल होती रहती है और opposite reaction के कारण हम कर्म करने को मजबूर हैं | अर्थात अगर हम विज्ञान की बात को सच माने तो वह atom जिसे कभी किसी ने नहीं देखा है वह भी कर्म कर रहा है | अब उसके कारण सब ग्रह और हम कर्म कर रहे हैं या सब कुछ हो रहा है इसलिए atom में हलचल है यह एक शोध का विषय है |
खैर, विज्ञान की अभी तक की गई सोच को अगर सही माने तो फिर अध्यात्मिक सोच हमें ज्यादा आगे लगती है | विज्ञान के अनुसार इस पूरे ब्रह्माण्ड का कारक atom है और हम भी atom के बने हैं | शायद इसी कारण हमारे पूर्वजों ने कहीं और कुछ नहीं खोजा | उन्होंने जो कुछ भी खोजा वह अपने शरीर के अंदर ही खोजा | तभी तो अध्यात्म शब्द बना | अध्यात्म दो शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ होता है ऐसा ज्ञान जो आत्मा और ब्रह्म का विवेचन करे या आत्मा और ब्रह्म के विषय में चिन्तन-मनन करना | सीधे और स्पष्ट रूप से कहें तो ऐसा ज्ञान जो हमें आत्मा से मिलाता है और फिर हम आगे बढ़ते हुए ईश्वर की प्राप्ति कर सकते है | इसे और भी सरल ढ़ंग से कहें तो अध्यात्म ऐसा ज्ञान या विज्ञान जो हमें आत्मा के जरिये ईश्वर को खोजना या पाना सिखाता है | विज्ञान की अभी तक की खोज भी तो एक ऐसे particle पर आकर रुक गई है जिसे उन्होंने God Particle का नाम दिया है |
दोस्तों, मुझे उम्मीद है कि आपको कर्म की परिभाषा और कर्म का क्षेत्र समझ आ गया होगा | अगले भाग में हम कर्म और कर्म फल के बिषय में बतायेंगे | धन्यवाद |