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शेर की तरह जीना सीख लिया

दोस्तों, आपने youtube पर या discovery channel पर जंगल में स्वछंद घूमता शेर और आसमान में उड़ते पंछी तो अवश्य देखे होंगे | यदि आपने ध्यान दिया हो तो शेर भी जंगल में पूरी तरह से स्वछंद नहीं घूम सकता है | उनकी भी जंगल में आपस में सीमाएं बनी हुई हैं | एक शेर दूसरे शेर के क्षेत्र में ज्यादात्तर प्रवेश नहीं करता है | यदि करता है तो उसे इसका भुगतान भी भुगतना पड़ता है | यानि हमारे शरीरिक और मानसिक बल की भी एक सीमा है और हम यदि अपनी सीमा पहचान कर आगे बढ़ते हैं तो हमारी उड़ान असीमित हो जाती है |

आइये और इसी सोच पर आधारित ये कहानी पढ़िए :

रमेश पिछले तीन साल से competition के exam दे रहा था लेकिन सफलता अभी भी कोसों दूर थी | रमेश ने पिछले दो साल में जो भी गलतियाँ की थीं या उसे जो भी कमी दिखीं उन सब पर उसने इस साल काफी मेहनत की लेकिन परिणाम जस का तस ही रहा | इस साल भी वह पास तो नहीं हो पाया लेकिन marks पिछले साल की अपेक्षा कम आये थे | यह बात उसे बहुत खल रही थी | उसे बार-बार माता-पिता व दोस्त की बात याद आ रही थी | तीनो का यह कहना था कि उसमें लग्न और मेहनत की कोई कमी नहीं है बस उसे अपनी सोच और तरीके को बदलना होगा | उन्होंने तरीके भी बताये थे और भी बहुत कुछ समझाया था लेकिन उसने सब की बातों को दरकिनार करते हुए सीना ठोक कर कहा था कि पहले दो साल जो भी हो गया, वह हो गया लेकिन इस साल नहीं होगा |

रिजल्ट आये एक हफ्ता होने को था लेकिन वह चाह कर भी फ़ैसला नहीं कर पा रहा था कि आखिर इस साल क्या और कैसे किया जाए | इसी असमंजस की स्थिति में बिस्तर पर बैठा रमेश चाय पी रहा था कि अचानक उसे अपने दोस्त सुनिल की एक बात याद आ जाती है | वह जल्दी से फ़ोन उठा सुनिल से बात कर तैयार होने लगता है |

सुनिल, रामू काका के पास बैठते हुए बोला ‘काका, ये मेरा दोस्त रमेश है | पिछले कुछ दिन से काफी परेशान चल रहा था तो मैंने इसे बोला कि चल तुझे अपने काका से मिलवा कर लाता हूँ | वह हर किसी की परेशानी और उसका हल दोनों जानते हैं | यह सुन रामू काका रमेश को देख, हँसते हुए बोले ‘ऐसा कुछ ख़ास नहीं है बस कई बार तुक्का लग जाता है और ये लोग समझते हैं कि मैं कोई बहुत पहुँचा हुआ इंसान हूँ’ | सुनिल, रमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला ‘भाई तेरी जो भी समस्या है वह काका को जल्दी से और बेख़ौफ़ हो कर बता दे’ |

रमेश सकुचाते हुए बोला ‘काका मैं हर कोशिश करने के बावजूद पिछले तीन साल से एक competitive exam clear नहीं कर पा रहा हूँ | मैंने सब कुछ कर के देख लिया लेकिन जो मैं चाह रहा हूँ, वह हो नहीं पा रहा है | काका बताइए कि अब मुझे क्या करना चाहिए’ |

काका मुस्कुराते हुए बोले ‘बेटा, तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा जवाब है | तुम कह रहे हो कि जो मैं चाह रहा हूँ वैसा हो नहीं पा रहा है तो इसके दो मतलब निकलते हैं : पहला कि तुम जो चाह रहे हो या तो वह गलत है यानि तुम्हारी पहुँच से बाहर है या तुम सिर्फ चाह रहे हो लेकिन उसके लिए मेहनत नहीं कर पा रहे हो या फिर तुम्हें अपने बारे में ही नहीं पता कि तुम्हारी क्षमता क्या और कितनी है | दूसरा कि तुम अपनी असफलता के कारणों का सही ढंग से विशलेषण नहीं कर पा रहे हो | और जब तक कारणों का विशलेषण नहीं होगा तब तक हर बार वही रास्ता अपना कर मंजिल तक नहीं पहुँच सकते | इसके ईलावा एक और बात बताना चाहूँगा कि यदि तुम खुद विशलेषण नहीं कर पा रहे हो तो किसी और से करवा लो | अपने अंदर की आवाज नहीं सुन पा रहे हो तो फिर किसी और की सुनो’ |

रमेश एक बार फिर से सकुचाते हुए बोला ‘काका मैंने सुना और पढ़ा है कि किसी की मत सुनो सिर्फ अपने मन की सुनों और जो रास्ता मैंने अपनाया उस पर चल कर बहुत लोग सफल भी हुए हैं लेकिन मैं नहीं हो पा रहा हूँ’ |

काका मुस्कुराते हुए बोले ‘बस बेटा मैं तुम्हारे मुँह से यही निकलवाना चाहता था | बेटा जी आपने बिलकुल सही सुना है | इसी से मिलती जुलती एक और कहावत है कि सब की सुनों लेकिन करो अपने मन की | बेटा, ये बातें वैसी नहीं होती जैसी बोली जाती हैं | इनमें एक मतलब छुपा होता है लेकिन आजकल हमारे ज्ञान का बस्ता इतना भारी हो गया है कि हम किसी बात को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं | बेटा, इस कहावत का मतलब हैं कि यदि हम सही से अपनी क्षमता का विशलेषण कर लक्ष्य चुन चुके हैं तो हमें किसी की नहीं सिर्फ अपने मन और लक्ष्य की सुननी चाहिए | लेकिन इस ‘किसी’ शब्द में माता-पिता या वह दोस्त जो तुम्हें वर्षों से जानता है शामिल नहीं होते हैं | इनकी हमें अवश्य सुननी चाहिए क्योंकि यही हैं जो आपके बाद आपको अच्छी तरह से जानते हैं |

तुम्हारे मामले में तुम तीन बार असफल हो चुके हो तो जरूर कहीं न कहीं कुछ कमी है जो तुम देख या सोच या विशलेषण नहीं कर पा रहे हो | ऐसे में आपको अवश्य ही अपनों की सुननी चाहिए और जब भी असफलता का विशलेषण करो तो अपनों के विशलेषण को खास अहमियत दो | क्योंकि तुम्हारा ध्यान केवल अपने लक्ष्य पर है और तुम्हारे अपने उस समय तुम्हे, तुम्हारे लक्ष्य, तुम्हारी जूझन और काबलियत सब को देख रहे हैं | इसीलिए तुम्हारे बाद उन से अच्छा सुझाव कोई और दे ही नहीं सकता | आखिरी बात ये कि अंतिम फैसला हमेशा तुम्हारा अपना होना चाहिए | मुझे लगता है तुम्हे सब समझ आ गया होगा’ कह कर काका उठते हुए बोले ‘मुझे अभी कहीं जाना है अतः जब भी अगली बार आओ तो अपने फैसले के साथ आना तब और सही तरीके से बात कर पायेंगे’ |

काका की बात सुन सुनिल और रमेश उन्हें नमस्कार कर, उठ कर बाहर की ओर चल देते हैं |

2 thoughts on “शेर की तरह जीना सीख लिया”

  1. शम्भूप्रताप सिंह सिसोदिया

    मेरे में उत्साह नही है काम करने का या कोई भी कार्य करने का एक बार उत्साह आता है फिर वो उत्साह कम पड़ जाता है ऐसा कियु होता हैं

    1. दोस्त, जैसा कि हमने इस लेख में भी लिखा है कि उत्साह की कमी किसी में नहीं होती बस उसे जगाने भर की जरूरत होती है | अतः आप यह मत सोचिये कि आप किसी से कम हैं | आपने खुद ही लिखा है कि आप में एक बार उत्साह आता है तो इसका मतलब है कि आप शुरू करने की सोचते हैं या शुरू करते हैं लेकिन फिर आपको भूतकाल परेशान करने लगता है कि पहले भी मैंने किया था लेकिन पूरा नहीं कर पाया | बस यही कारण है जो आपके उत्साह को कम कर देता है |
      यदि आप पिछली सोच को ढाल बना कर प्रयोग करेंगे कि पिछली बार नहीं कर पाया तो फिर क्या हुआ आज नया दिन और नई शुरुआत है | इस बार मैं कर के ही रहूँगा और दोस्त आप कर लेंगे | सौ प्रतिशत आप कर लेंगे क्योंकि आप कर सकते हैं |

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