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उत्साह/जोश कैसे बढायें

दोस्तों, Enthusiasm यानि उत्साह या जोश विषय केवल शैक्षिक (educational) नहीं है यह दिल, दिमाग, आत्मा और रोजमर्रा की ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ शब्द है | अतः ऐसे विषय को केवल academic तौर से समझना और समझाना नहीं चाहिए | इसे व्यवहारिकता का रूप दे कर ही समझाना चाहिए | आज के समय में इस तरह के लगभग हर विषय को पढ़ाने के तरीके से पढ़ाया जा रहा है और शायद इसीलिए इतना जोर देने के बावजूद न कोई समझ पा रहा है और न ही अपनी निजी जिन्दगी में इसे प्रयोग कर पा रहा है |

दोस्तों, हमें सर्दी के मौसम में सर्दी और गर्मी के मौसम में गर्मी लगती है लेकिन बिना किसी साधन का प्रयोग किये सर्दी के मौसम में गर्मी और गर्मी के मौसम में सर्दी नहीं लग सकती | इसी तरह हमारा स्वाभाव, सोच, काम करने का ढंग लगभग सब जगह एक-सा ही होता है | थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे होना स्वाभाविक है | जो भी ऑफिस में काम करते हैं वह दिन का एक तिहाई भाग यानि आठ घंटे ऑफिस में बिताते हैं और बाकि के दो तिहाई यानि सोलह घंटे ऑफिस से बाहर यानि घर, परिवार या समाज के साथ बिताते हैं | दूकान या बिज़नेस करने वाले लगभग आधा समय काम और आधा समय ही घर, परिवार या समाज के साथ बिता पाते हैं | जोश की कमी दोनों को ही सताती है क्योंकि दोनों में ही अपनी-अपनी परेशानियाँ या मजबूरियाँ हैं | आप खुश और उत्साहवर्धक माहौल में समय बिता कर आयेंगे तो आपके ऑफिस या बिज़नेस या दुकान में बिताया समय अपने आप ही खुशनुमा हो जाएगा और ऐसे ही जब आप काम पर उत्साहवर्धक माहौल में समय बिता कर जायेंगे तो घर-परिवार और समाज में  खुशनुमा माहौल अपने आप ही बन जाएगा |

दोस्तों, विज्ञान के अनुसार पूरा ब्रह्माण्ड जिस में कि हमारा शरीर भी शामिल है वह matter यानि जिसे हम छू या स्पर्श कर सकते हैं और energy यानि उर्जा से बना है इसके इलावा कुछ अन्य तत्व हैं जिन्हें विज्ञान न खोज पाया है और न कोई नाम दे पाया है |

विज्ञान के अनुसार Atom यानि परमाणु और matter यानि पदार्थ की सबसे छोटी इकाई यानि unit है | विज्ञान के अनुसार Atom और Energy तब भी थे जब हम नहीं थे, आज भी हैं और जब हम नहीं होंगे यह तब भी होंगे और Atom व् Energy को न तो खत्म किया जा सकता और न ही बनाया जा सकता है सिर्फ रूप बदला जा सकता है |

गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि ईश्वर (मैं) तब भी था जब यह संसार नहीं था, आज भी हूँ और तब भी हूँगा जब यह संसार नहीं होगा | आत्मा को क्योंकि परमात्मा का अंश माना गया है इसीलिए इसे अनश्वर और अनंत कहा गया है | आत्मा न मरती है और न कोई मार सकता है सिर्फ शरीर बदलती है |

विज्ञान कहता है कि हमारा शरीर 99.009 प्रतिशत Atom से बना है  और बाकि बचा 0.991 प्रतिशत तत्व क्या हैं अभी तक खोजा नहीं जा सका है | विज्ञान के अनुसार Atom में हर समय हलचल होती रहती है शायद इसी को देख-सोच कर अध्यात्म ने कहा था कि हम कर्म करने के मजबूर हैं |

हमारे द्वारा किया गया हर छोटे से छोटा काम, कर्म की श्रेणी में आता है जैसे सोचना, समझना, देखना, सुनना, सूंघना और प्रेम करना भी कर्म है | शरीर कुछ कर्म स्वतः करता रहता है जैसे कि हमारा शरीर साँस लेता है दिल धड़कता है इत्यादि | यह सब स्वतः वैसे ही होता है जैसे ब्रह्माण्ड स्वतः कर रहा है |

यहाँ यह सब बताने का मतलब ये है कि हम भी इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं और हम पैदा होने के बाद से लेकर मरने तक कर्म करने को मजबूर हैं | अतः जब कर्म करना ही तो क्यों न उसे जोश से करें ताकि हर क्षेत्र में ऊंचाईयों को छू सकें |

आज लगभग हर व्यक्ति परेशान है इसीलिए वह हर काम कर तो रहा है लेकिन बेदिली से कर रहा है | क्यों ?

जब उत्साह कम हो जाता है या रुक ही जाता है तब परेशानी शुरू होती है ?

उत्साह को कौन रोकता है और क्यों रोकता है ? आइये इसे समझते हैं |

गाड़ी, पेट्रोल यानि energy डालने पर चलती है उसी प्रकार हमारा शरीर भी energy यानि भोजन (भोजन, ऑक्सीजन, पानी) पर चलता है और हमारे कर्म को energy उत्साह/जोश/ख़ुशी से मिलती है |

यहाँ सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है |

हमारा मन, उत्साह को रोकता है | क्योंकि हम सोच या मन के सहारे चल रहे हैं और मन का काम सिर्फ भटकाना है | जब भटकाव ज्यादा हो जाता है तब जोश खत्म होने लगता है और हम चाहते न चाहते हुए डिप्रेशन की ओर बढ़ने लगते हैं | आइये मन क्या है इसके बारे में जानते हैं |

मन, सोच का पुंज है यानि सोच का ढेर (bunch of thoughts) है | आप जब एक ही तरह के काम करते जायेंगे या सुनते जायेंगे तो आपके विचार भी उसी तरह के होते चले जायेंगे और कुछ समय बाद वह विचार आपका मन बन जाएगा | शायद आप जानते होंगे कि हमारा शरीर हमेशा एक-सा चाहता है और हमारा मन हमेशा और हर रोज कुछ अलग करना चाहता है | जैसे कभी आपका मन रोटी खाने को करता है तो कभी परांठा तो कभी डोसा इत्यादि | ऐसा खाना खाने के बाद या जंक फ़ूड खाने के बाद पेट क्यों बिगड़ता है ? क्योंकि आपके पेट को एक-सा चाहिए और जैसे ही कुछ अलग या कुछ दिन लगातार चलता है तो उस बिमारी या दर्द के बहाने पेट आपको जताता है कि अभी तक जो भी चल रहा था उसमे क्यों बदलाव कर रहे हो | आप एक ही किताब बार-बार ज्यादा दिन तक नहीं पढ़ पायेंगे और यही बात फिल्म या कपड़े या खाने-पीने  पर भी लागू होती है | पहली बार बहुत अच्छा लगेगा और फिर धीरे-धीरे रूचि और जोश कम होने लगेगा और कुछ दिन के बाद आप उसके बारे सोचना तक पसंद नहीं करेंगे |

हम जब मन का सही से प्रयोग नहीं करते हैं तब डर, नेगेटिव सोच, अशांति, शक और संशय यानि सस्पेंस की स्थिति बनती हैं | मनोविज्ञान में कहा जाता है कि जो दिखता है जरूरी नहीं कि वह हो ही और जो होता है जरूरी नहीं कि वह दिखे भी लेकिन जब हमारी सोच हम पर हावी हो जाती है तब हमें वही दिखता है जो हम यानि हमारी सोच या मन देखना चाहते हैं | मनोविज्ञान के अनुसार moon illusion और ponzo illusion इसी के उदाहरण हैं | इसलिए दोस्तों मन कि न सुनें |

हमारा मन एक ही तरह का काम या सोच ज्यादा दिन तक क्यों नहीं रख पाता है ?

दोस्तों, आपको सुन कर हैरानी होगी कि हमारे मन को रहस्य पसंद है और जैसे ही रहस्य खुल जाता है वैसे ही मन हमें दूसरी ओर मुड़ने को मजबूर करने लगता है | यही एक मात्र कारण है कि ब्रह्माण्ड और ईश्वर अनंत है | ब्रह्माण्ड का छोर मिल जाए या ईश्वर के साक्षात दर्शन हो जाएँ तो हम ईश्वर तक को देख कर दुबारा नहीं देखेंगे | इसीलिए ईश्वर के अनंत रूप हैं और इसी बारे में बुद्ध ने कहा था कि मैंने ईश्वर को देखा भी है और नहीं भी देखा है क्योंकि रोज एक नया रूप देखता हूँ | मैंने ईश्वर को देखा है इसलिए कहा देखा है और मैंने ईश्वर को देख ही लिया है यानि ईश्वर यही और इन ही रूप में हो सकता है इसलिए कहा, नहीं देखा है |

आपने सुना होगा कि मन को रोको, मन को पकड़ो, मन को काबू करो | लेकिन असल में मन को न काबू किया जा सकता है और न रोका जा सकता है | मन को तो केवल दिशा दी जा सकती है |

मन से बंधे होने के कारण वह कैसा भी और  किसी से भी रिश्ता या प्यार हो आज उस में खटास आ रही है क्योंकि मन नया चाहता है | मन को रहस्य पसंद है और अगर आपने मन के सहारे चलना है तो आपको बहुत सम्भल कर और मन के बारे में पूरी जानकारी के साथ चलना होगा वरना आपको अध्यात्म के हिसाब से अ-मन के सहारे यानि मन के बिना चलना होगा जोकि बहुत ही मुश्किल है | ख़ासकर समाज और परिवार में रहते हुए और काम-काज करते हुए |

खैर, अब बात करते हैं कि मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मस्तिष्क में dopamine नामक nurotransmitter बनता है और मूल रूप से, यह न्यूरॉन्स के बीच एक रासायनिक संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है | मस्तिष्क से निकलने वाला यह रसायन यानि chemical है जो आपको अच्छा महसूस कराता है | डोपामाइन की सही मात्रा आपके शरीर और मस्तिष्क दोनों के लिए महत्वपूर्ण है |

डोपामाइन आपको खुशी, संतुष्टि, प्रेरणा या उत्साह महसूस करने के लिए जिम्मेदार है | जब आपको अच्छा लगता है कि आपने कुछ हासिल कर लिया है, तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके मस्तिष्क में डोपामाइन का स्राव हो रहा है या होने लगा है |

एल-टायरोसिन (डोपामाइन बनाने के लिए आवश्यक प्रोटीन) से भरपूर खाद्य पदार्थ सहित स्वस्थ आहार खाने से आप स्वाभाविक रूप से अपने डोपामाइन के स्तर को बढ़ा सकते हैं। इनमें बादाम, केला, बीफ, चिकन और अंडे शामिल हैं | हल्दी, विटामिन डी, मैग्नीशियम और ओमेगा -3 सप्लीमेंट्स भी डोपामाइन के स्तर को काफी हद तक बढ़ाते हैं | ऐसी गतिविधियाँ जो आपको अच्छा महसूस कराती हैं, वे भी डोपामाइन बढ़ाएँगी। इनमें व्यायाम करना, ध्यान लगाना, मालिश करना और पर्याप्त नींद लेना शामिल है। अपनी उपलब्धियों और अपने जीवन की सभी अच्छी चीजों के बारे में सोचने से भी मदद मिलती है |

क्या आप जानते हैं कि हम पूरी ज़िन्दगी दो गलती करते ही चले जाते हैं |

पहली गलती कि हम समझते हैं कि कोई हमें समझा सकता है | आपको कोई नहीं समझा सकता जब तक कि आप समझना न चाहें लेकिन  इसके बावजूद हम हर जगह समझने या सलाह लेने के लिए पहुँच जाते हैं | दूसरे की समझाई बात या सलाह हमारी सोच-समझ या कार्य प्रणाली से मेल खाती है तो हम समझ कर उसे अपना लेते हैं | लेकिन उतना ही अपनाते हैं जितना हम चाहते हैं | इसीलिए यह कहा जाता हैं कि जब आप किसी की बात समझते हैं तो वह आपकी हो जाती हैं क्योंकि आप समझते भी अपने हिसाब से हैं और उसे अपना कर काम भी आपने हिसाब से करते हैं | जब अपनाई गई बात का रिजल्ट positive होता है तो आप यह कहते हैं कि बात समझने या समझाने से कुछ नहीं होता है जब तक आप उस पर सही ढंग से काम नहीं करते हैं यानि उस में भी अपने अहम को संतुष्ट करना चाहते हैं | और यदि रिजल्ट negative आता है तो आप यही कहते हैं कि आपको पहले ही लग रहा था लेकिन फिर भी इज्जत रखते हुए उसे अपनाया | और जब समझाई गई बात बड़ा बदलाव चाहती है तो हम उसे सिरे से नकार देते हैं | यही मन और दिमाग की चाल हम समझ नहीं पाते हैं और फंस जाते हैं | इसका नतीजा यह होता है कि हम में बदलाव नहीं आ रहा है |  क्या आप जानते हैं कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है |

ऐसा इसलिए हो रहा है कि हम आज सुनने में कम और बोलने में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं | दूसरा कारण सोशल मीडिया है जहाँ हर कोई ज्ञान बाँट रहा है | तीसरा कारण हमने अपने निजी ज्ञान का बस्ता बहुत भारी है | यदि आपको कोई बात आपकी सोच, समझ, क्षमता यानि capability और आपकी परिस्थिति को ध्यान में रख कर निजी तौर से समझाई जा रही है तो आपको वह बात आँख बंद कर अपनानी यानि उस पर कार्य करना है और यदि आम तरीके से समझाई जा रही है तो यह सब आपको अपनी सोच, समझ, क्षमता और परिस्थिति का पूर्ण विशलेषण कर अपनानी होगी जोकि हम ज्यादात्तर नहीं कर रहे हैं इसीलिए परेशान हैं |

दूसरी जरूरी बात यह है कि ख़ुशी/उत्साह और प्रेम हमें कोई नहीं दे सकता | इसके लिए हमें खुद ही प्रयास करना होता है और हम सारी जिन्दगी बिना किसी कारण के भटकते रहते हैं कि फलाना हमें प्रेम नहीं करता या उसके साथ हम खुश नहीं हैं आदि,आदि | ख़ुशी/उत्साह और प्रेम हम सब के अंदर पहले से विद्यमान है जैसा कि अभी थोड़ी देर पहले मैंने बताया था कि dopamine स्त्राव की ग्रन्थि पहले से ही शरीर में है आपने बस उसे जगाना है | आइये अब ख़ुशी और उत्साह को प्राप्त करने और बनाये रखने के लिए अभी तक बताई सब बातों का घोल बना कर दैनिक जीवन में कैसे लागू करें वह जानते हैं

  1. योगाभ्यास अवश्य करें और ख़ास कर प्राणायाम | आप जिम में भी जाकर व्यायाम कर सकते हैं | जिम में किये गए व्यायाम और प्रोटीन खाने से आपका बाहरी शरीर आकर्षक लग सकता हैं लेकिन योगाभ्यास करने से आपका अंदरूनी शरीर स्वास्थ्य होगा | आप अपने साँस पर कण्ट्रोल पाने में सक्षम हो जाते हैं | जब आपको क्रोध आता है, जब आप में कोई negative thought आती है या जब आप मन की सुनते हैं तब आपकी साँस असामान्य हो जाती है | इसी साँस पर कण्ट्रोल आ जाने पर आपको क्रोध शनिक ही आएगा, negative thought नाम-मात्र कि रह जायेंगी | आप मन से ज्यादा आत्मा की आवाज सुन पाने की ओर अग्रसर हो जायेंगे | अतः योगाभ्यास को रोजमर्रा की ज़िन्दगी में अवश्य शामिल करें |
  2. मैडिटेशन अवश्य करें लेकिन रोजाना एक ही समय, दिशा या आसन पर न करें |
  3. भोजन में वह सब पौष्टिक आहार जरूर शामिल करें जैसा अभी बताया गया है |
  4. जीवन में दोस्त जरूर बनायें लेकिन वह संख्या ज्यादा न हो और अगर है तो असल में वह दोस्ती नहीं टाइम-पास है | जीवन दोस्त होना बहुत जरूरी है | आपका दोस्त ऐसा हो जिससे बात कर, मिल कर, कह-सुन कर आपको अपने अदर एक सुकून या ख़ुशी मिले चाहे वह दे रहा है या नहीं | मैं एक अच्छे दोस्त को माँ-बाप के बराबर का मानता हूँ | दोस्त वह होता है जो आपकी बात बिना कहे भी समझ जाता है या वह बात जो आप कहना चाहते थे लेकिन कह नहीं पाये वह बात भी समझ जाये वही असली दोस्त होता है | दोस्त का दर्जा हर रिश्ते से ज्यादा अहमियत इसलिए रखता है क्योंकि इस रिश्ते में दिन, महीने, साल बात न हो तो भी जब मिलते हैं तो कोई गीला-शिकवा नहीं होता | बस होता है तो प्रेम, वह भी ऐसा प्रेम जिसमें असल में प्रेम होता है यानि ऐसा प्रेम जो बदले में कुछ नहीं मांगता |
  5. आप घर-परिवार-समाज-नौकरी के ईलावा एक या दो शौक यानि hobby जरूर जिन्दा रखें | जीवन में कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें करने में आपकी रूचि होती है और उन्हें करते हुए आपको ख़ुशी का अनुभव होता है | बहुत बार ऐसा होता कि वक्त और हालात साथ नहीं देते और रोजमर्रा की जिन्दगी में ऐसे शौक कहीं खो जाते हैं | अगर आपके ऐसे कोई शौक नहीं हैं तो आप अपने अंदर खोजें कि आपको किस-किस काम को करने से ख़ुशी मिलती है वह अवश्य करें | जैसे किसी को लिखने का तो किसी को पढ़ने का तो किसी को ड्राइंग करने का शौक होता है | किसी को गाने या संगीत का शौक होता है आदि-आदि | करोना-काल से हमें यह सबक अवश्य सीखना चाहिए कि ऐसा शौक होने पर हमें कभी अकेलापन और मायूसी महसूस नहीं होती और ऐसी विपरीत परिस्थितियों में positivity बनी रहती है |
  6. शौक के ईलावा कुछ ऐसे छोटे-छोटे काम अवश्य करें जिन से न केवल आपको ख़ुशी मिले बल्कि आपको देख दूसरे भी प्रेरित हों | आप कभी किसी भूखे को खाना खिलाइए, किसी बेसहारा को सहारा दीजिये, किसी अनपढ़ को पढ़ने के लिए प्रेरित करें | सड़क या गली में कूड़ा न डालें, कूड़ा हमेशा कूड़े दान में ही डालें | अपने आस-पास के पार्क में कभीकभार कोई न कोई पौधा अवश्य लगायें | लेन ड्राइविंग करें, ज़ेबरा क्रासिंग से पहले गाड़ी रोकिये, रेड लाइट जम्प मत करिए, गाड़ी सही जगह और सही तरीके से पार्क करें | बोलें कम और सुनने में ज्यादा ध्यान दें इत्यादि | यह छोटी-छोटी बातें आपको छोटी-छोटी ख़ुशी हर रोज देंगी जो आपके उत्साह और जोश को कायम रखने के काम आएँगी |
  7.  अपना व्यवहार हमेशा बच्चों जैसा ही रखें | बचपन में आप हर छोटी से छोटी बात पर खुश हो जाते थे | बचपन में आपने बहुत कुछ सीखा क्योंकि आप पर आपकी शिक्षा और ज्ञान का बोझ नहीं था | बचपन में आपको अगर किसी की कोई बात बुरी लगती थी तो आप बहुत जल्द रूठ जाते थे लेकिन अगले ही पल वह भूल भी जाते थे | ऐसा व्यवहार करने से आपको ख़ुशी मिलेगी | आप ऐसा करते हुए यह भी महसूस करेंगे कि अन्य लोग कैसे अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में बेवजह उर्जा बेकार करते है जिसके कारण उनका उत्साह और ख़ुशी दिन-प्रतिदिन कम होती चली जाती है |
  8. मन को रहस्य पसंद है अतः कोई न कोई रहस्यमय काम गाय-बगाय करते रहें  और उन्हें कैमरे में अवश्य कैद करें | आप हमेशा अपनी जिन्दगी में कोई भी छोटा-मोटा ऐसा काम अवश्य करें जिस से न सिर्फ आपको ख़ुशी मिले बल्कि आपके आस-पास भी ख़ुशी और उत्साह का माहौल बने | जैसे ऑफिस में महीने में एक-आध बार पार्टी या ऑफिस में किसी कार्यक्रम में लीक से हट कर हिस्सा लेना | दोस्त या प्रेमी या प्रेमिका या पारिवारिक सदस्य या पत्नी को सरप्राइज गिफ्ट या पार्टी या ऐसा कुछ अलग अवश्य करें | आप बाहर घूमने जाते हैं या किसी को गिफ्ट देतें हैं या कोई पार्टी करते हैं तो वह ख़ुशी के पल कैमरे में अवश्य कैद करें | ऐसी फोटो जब भी समय मिले या जब भी आपको अपना जोश कम लगे तो उन बीते ख़ुशी के पल को अवश्य देखें और याद करें | यह आपके अंदर एक बार फिर से ख़ुशी और जोश भर देंगे |
  9. आखिरी – अभी कुछ देर पहले मैंने यह कहा था कि व्यायाम या मैडिटेशन रोजाना या regular या एक ही समय पर न करें | क्योंकि मनोविज्ञान यह कहता है कि जब आप किसी काम को regular या समय के पाबन्द होकर या एक ही समय पर करते हैं तो आपकी सोच में वह जुड़ जाता है और जब वह जुड़ जाता है तो फिर उसमें वह उत्साह या जोश या concentration खत्म होने लगती है और आप मशीनी तौर से करने लगते हैं क्योंकि आपके मस्तिष्क में उसी तरह के neurons के pattern बनने लगते हैं जो आपको मशीनी तौर पर करने को मजबूर करते हैं जैसे आप चलते या बोलते हैं | Meditation या ध्यान या योगाभ्यास मशीनी तौर से नहीं करना है | यह जब तक आत्मिक या दिल से नहीं किया जाता है तब तक उसका वह असर जो चाहिए, नहीं मिलता है |
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