Pranik Healing-2
आध्यात्म, तंत्र और योग-सूत्र व् अन्य में ‘प्राण’ शब्द का प्रयोग बहुत बार किया गया है | वह प्राण न तो श्वास है और न ही ऑक्सीजन है | श्वास के साथ बहुत से अणु यानि molecule एवं परमाणु यानि atom हमारे शरीर में वायु के साथ प्रवेश करते हैं | हम काफी अणु या परमाणु के बारे में जानते हैं जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन के साथ-साथ पानी, कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन और कई अन्य | लेकिन यह वही अणु एवं परमाणु हैं जो अभी तक विज्ञान ने खोजे हैं | विज्ञान के अनुसार ऐसे कुछ और अणु भी हैं या हो सकते हैं जिन के बारे में अभी विस्तार से नहीं पता है | इस से तो यही समझ में आता है कि शायद प्राण नामक अणु भी अभी तक विज्ञान नहीं खोज पाया है | जिस प्रकार वायु, ऑक्सीजन की वाहक है उसी प्रकार प्राण की भी वाहक है |
जनसधारण में प्राण, साँस यानि ऑक्सीजन या आत्मा के रूप में प्रचलित है | जबकि प्राण बिलकुल ही अलग उर्जा यानि energy है जो हमारे शरीर को जीवंत रखने के इलावा वह शक्ति प्रदान करती है जिस से दीर्घायु, रोगमुक्त एवं वह शक्ति मिलती जिससे बढ़ती उम्र के कारण आ रहे परिवर्तन काफी हद तक रुक जाते हैं | हमें दिव्य ज्ञान, शक्ति एवं दृष्टि की प्राप्ति होने के साथ ही साथ ईश्वर की नजदीकी भी प्राप्त हो जाती है |
आपने यदि किसी पहाड़ी क्षेत्र के बारे में सुना, पढ़ा या चित्र में देखा हो कि वहाँ की सुन्दरता देखने लायक है तो धीरे-धीरे आपकी सोच उस पढ़े, सुने और देखे के अनुसार बनने लगती है जो आपको उस क्षेत्र में जाने को प्रेरित करती है | ऐसे में आपको जब भी समय मिलता है तब आप बिना कुछ सोचे-समझे उस ओर निकल पड़ते हैं | वहाँ जाकर हो सकता है कि आपको वह जगह वैसी न लगे जैसी आपने सोची थी या आपकी सोच से कहीं ज्यादा सुंदर या रोमांचक तथा आत्मिक सुकून देने वाला लगे और ऐसा कभी न कभी लगभग हर इंसान के साथ होता है | जो भी जैसा भी हो लेकिन आप दिल से मानेंगे कि जैसा पढ़ा, सुना या चित्र में देखा था वैसे नहीं था या तो कम था या ज्यादा था |
यहाँ यह सब कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि धरती के किसी क्षेत्र विशेष की सुन्दरता, कुरूपता या किसी व्यक्ति विशेष को पूरी तरह से शब्दों या चित्र में पिरोया ही नहीं जा सकता | क्योंकि शब्द और चित्र की अपनी एक सीमा है और इसके इलावा शब्द या चित्र में पिरोते हुए देखने, कहने, लिखने व् चित्र बनाने वाले के अपने विचार कहीं न कहीं उसमें शामिल हो जाते हैं जो असलियत या सच्चाई को दूर कर देते हैं | यह सब आप धर्म-ग्रन्थ, आध्यात्म, तंत्र तथा योग के बारे में सोच कर देखिये | इनमें तो ईश्वर और उसकी लीला या संदेश को पिरोया जा रहा था | सोचिये कि इन को लिखते हुए शब्द कितने कम पड़े होंगे | अतः जो लिखा गया होगा वह जरूरी नहीं कि वही हो जैसा जान पड़ता है या केवल संकेतक ही हो | इसे समझने और इसके पीछे छुपे ज्ञान को जानने के लिए आत्म-सात कर आत्म-विश्लेष्ण करते हुए अपनाना बहुत जरूरी होता है जबकि आज जो लिखा गया उसे वैसे का वैसा गाया या सुनाया जा रहा है |
खैर, प्राण-शक्ति के द्वारा कोई भी अपने शरीर का उपचार यानि healing कर सकता है और चाहे तो किसी अन्य की भी कर सकता है | अपनी healing करने तक तो सब ठीक है क्योंकि यदि आप में प्राण-शक्ति कम है तो healing या तो होगी नहीं या कम होगी लेकिन वह प्राण-शक्ति आपके शरीर में ही रहेगी लेकिन यदि आप किसी अन्य की healing करते हैं तो वह प्राण-शक्ति आपके शरीर से बाहर निकलती है | कम होने पर दूसरे की healing न के बराबर होगी या नहीं होगी और यदि आप अपनी प्राण-शक्ति बढ़ाये बिना किसी दूसरे की healing करते हैं तो आप में धीरे-धीरे प्राण-शक्ति की कमी होने लगेगी जो आपकी सेहत और जीवन के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा | मैंने ऐसे बहुत लोगों को स्वयं से झूझते हुए देखा है जो एक समय रेकी के द्वारा उपचार करते थे |
आइये, अब जानते हैं कि कैसे आप आसानी से अपनी प्राण-शक्ति बढ़ा सकते हैं :
आपको रोजाना शरीरिक व्यायाम के इलावा योगाभ्यास भी करना होगा | कम से कम बीस-से-तीस मिन्ट | शरीरिक व्यायाम वैसे भी योगाभ्यास से पहले करना जरूरी होता है ताकि आपका शरीर गर्म हो जाए | योगाभ्यास में ख़ास कर प्राणायाम करना बहुत आवश्यक है | इससे आप में बिना किसी प्रयास के प्राण का संचार होना शुरू हो जाता है | प्राणायाम के बाद भ्रामरी और फिर मैडिटेशन | प्राणायाम और भ्रामरी के विडियो आपको YouTube पर बहुतायत में मिल जायेंगे |
यदि आपने पहले कभी भ्रामरी योगाभ्यास नहीं किया है तो कम से कम बीस से पचीस दिन कर इसमें निपूर्ण हो जाईये | आप सोच रहे होंगे कि भ्रामरी में निपूर्ण होने वाली क्या बात है ? जी, भ्रामरी से ही आगे का सफर शुरू होता है | भ्रामरी करते हुए आपने अपना ध्यान ज्यादा से ज्यादा vibration पर लगाना है | भ्रामरी में निपूर्ण होने पर आप उस vibration को अपने शरीर में घुमाने की कोशिश करें | कुछ दिन में आप उस vibration को शरीर के हर अंग में घुमाने में निपूर्ण हो सकते हैं | यही vibration आगे काम आएगी |
प्राणायाम और भ्रामरी के बाद मैडिटेशन अवश्य करें | मैडिटेशन कम से कम तीन मिन्ट तो अवश्य ही करनी चाहिए | मैडिटेशन करने से आपका शरीर उस प्राण-शक्ति को absorb यानि आत्मसात करने में सक्षम हो जाता है | इस वेबसाइट पर आपको हम मैडिटेशन की विभन्न विधियाँ बता रहे हैं | आप एक-एक कर हर विधि दो या तीन दिन करें | जिस भी विधि से आपको एकाग्रता प्राप्त हो जाती है बस वहीं रुक जाएँ और रोजाना उस विधि का ही प्रयोग करें | मैडिटेशन के लिए सुबह ज्यादा समय नहीं निकाल पाते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन कम से कम तीन मिन्ट तो अवश्य करें | आपको दिन या रात में जब भी सुविधा हो उस समय मैडिटेशन एक बार फिर से करें | जब आपको लगे कि आप निपूर्ण हो गये हैं तब आप दिन या रात में जब भी मैडिटेशन करते हैं उस समय भ्रामरी की उस vibration को तीसरी आँख पर महसूस करें और फिर उस vibration को पूरे शरीर में बिना आवाज के घुमायें | ऐसा करने से आप में एकाग्रता भी बढ़ेगी और आप बिना आवाज किये प्राण-शक्ति को घुमाने में भी सफल हो जायेंगे |
आपके शरीर में कहीं भी कोई भी परेशानी या बिमारी है या किसी अंग अच्छा करना चाहते तो आप आँख बंद कर vibration को महसूस करें और उस vibration को उस अंग पर ले जाएँ | ज्यादा जोर लगाने की कोशिश नहीं करनी है जो सहजता से हो पाए उतना ही करें | आप पहले अपने शरीर को स्वस्थ करें | ऐसा करने पर आपके अंदर आत्मविश्वास जागेगा जो आपको किसी अन्य की healing करते समय काम आएगा |
मैडिटेशन करते हुए आप गहरी व् लम्बी साँस लेते हैं और ध्यान दीजियेगा कि साँस अंदर ज्यादा और बाहर कम आती है जो प्राणायाम से प्राप्त प्राण-शक्ति को कई गुणा और बढ़ाती है | अतः किसी अन्य की healing करने के लिए आपको रोजाना मैडिटेशन अवश्य करनी है |