Pranik-Healing – 1
आध्यात्म, तंत्र और ऋषि पतंजली के द्वारा रचित योग-सूत्र में ‘प्राण’ शब्द का प्रयोग बहुत बार किया गया है | योग-सूत्र की व्याख्या करते हुए ज्यादात्तर व्याख्याकार ने यह माना है कि योग-सूत्र में प्रयुक्त शब्द प्राण, वास्तव में श्वास नहीं है | यह उस ऊर्जा का नाम है जो ब्रह्मांड में है | ब्रह्माण्ड में आप जो कुछ भी देखते हैं जिस में जीवन है या जो कुछ भी चलता या कार्य करता है, वह इस प्राण के कारण ही सम्भव है यानि ब्रह्माण्ड में दिखने वाली कुल ऊर्जा के योग को प्राण कहा गया है | जबकि जनसधारण में प्राण, साँस या आत्मा के रूप में प्रचलित है |
तंत्र में भी प्राण को श्वास नहीं माना है | तंत्र के अनुसार श्वास लेने पर प्राण यानि एक प्रकार का अणु जोकि हमारे श्वास यानि आक्सीजन के साथ शरीर के अंदर प्रवेश करता है | यही प्राण हमारे श्वास छोड़ने पर बाहर भी आते हैं | प्राण एक प्रकार की उर्जा यानि energy है जिसे आप कई नामों से जानते हैं जैसे Qi, Ki, Chi, Bioplasm Life force या फिर मन या प्राण-शक्ति या कुण्डलिनी-शक्ति, आदि और भी बहुत नाम हैं | जब हम योग या मैडिटेशन करते हैं तब प्राण शक्ति ज्यादा अंदर आती है और नाम मात्र ही बाहर निकलती है जिसकी वजह से शरीरिक योग और मैडिटेशन करने वाले स्वस्थ और दीर्घ आयु होते हैं | शरीरिक योग के मुकाबले मैडिटेशन करने वाले ज्यादा स्वस्थ होते हैं बशर्ते कि वह एकाग्रता प्राप्त कर लेने में सफलता हासिल कर लेते हैं |
आज का विज्ञान भी अब मानता है कि धरती के वातावरण में कई अणु यानि molecule ऐसे हैं जिन पर अभी खोज चल रही है | विज्ञान का यह भी मानना है ब्रह्माण्ड में भी कुछ अणु ऐसे है जिनके बारे में अभी विस्तार से पता नहीं है | विज्ञान यह भी कहता है कि एक अणु ऐसा खोजा गया है जिस के बारे में यह माना जा रहा है कि वह ब्रह्माण्ड का जन्मदाता हो सकता है | अभी खोज और विश्लेषण जारी है |
आप यह कह सकते हैं कि आध्यात्म, तंत्र और योग ने वह प्राण यानि अणु सदियों पहले खोज लिया था जिससे हमारा शरीर सुचारू रूप से चल सकता है और जब तक वह अणु हमारे शरीर में प्रचूर मात्रा में हैं तब तक न तो हम बीमार हो सकते हैं और न ही मर सकते हैं | यह विज्ञान भी मानता है कि हमारे शरीर में स्वयम का एक तंत्र है जो खुद-ब-खुद शरीर को स्वस्थ्य और ताकतवर बनाता रहता है, इसका एक ज्वलंत उदाहरण neuroplasticity है |
तंत्र का यह भी मानना है कि जब आप मैडिटेशन की अग्रिम अवस्था यानि समाधि से पहले की अवस्था में पहुँच जाते हैं तब आप अपनी मृत्यु तक को जान जाते हैं और अगला जन्म कब, कहाँ होगा वह समाधि अवस्था प्राप्त करने पर ही जान पाते हैं | आपके प्राण जब अंदर आने की अपेक्षा दोगुना बाहर जाने लगते हैं तब वह मृत्यु का संकेत है | इसी प्रकार बिमारी का भी संकेत पहले ही मिल सकता है | जब प्राण अंदर आने की अपेक्षा बाहर ज्यादा जाने लगते हैं तब आपको बिमारी जकड़ लेती है |
क्या आप किसी योगी से मिले हैं ? वह योगी जरूरी नहीं कि वेशभूषा से साधू ही दिखता हो | आज के समय में साधू और योगी के भेष में ज्यादात्तर नकली ही होते हैं | अलसी योगी हमेशा साधारण ही होगा जरूरी नहीं है | ऐसे व्यक्ति के पास जाते ही अजीब-सी सिहरन महसूस होती है | चेहरे पर चमक और आँखें ज्यादात्तर स्थिर दिखती हैं यानि पलक कम से कम झपकता है | ऐसा ही अनुभव आपको तीर्थस्थल पर भी होता है लेकिन ऐसा क्यों होता है ?
योगी के पास या तीर्थ-स्थल पर प्राण-शक्ति ज्यादा होती है तथा वह प्राण-शक्ति जब आपको मिलती है तब आप अलग अनुभव करने के ईलावा आनन्दित और पूर्ण महसूस करते हैं | आपने यह भी महसूस किया होगा कि वह आनन्द और पूर्णता कुछ दिन में गायब हो जाती है | इससे बिलकुल उल्ट तब होता है जब आप अस्पताल या किसी बहुत बीमार व्यक्ति से मिलने जाते हैं | यह सब कुछ प्राण-शक्ति के कारण होता है | एक जगह आपको आपके अंदर की प्राणशक्ति से ज्यादा प्राणशक्ति प्राप्त होती है और दूसरी जगह आपके अंदर की प्राणशक्ति खिंचती है क्योंकि बीमार के पास कम होती है |
प्राणशक्ति प्राप्त कर आप उसे अपने शरीर के बीमार अंग में भेज कर उसे स्वस्थ कर सकते हैं और यदि आप प्राणशक्ति प्राप्त करने, उसे दिशा देने में माहिर हो जाते हैं तो आप किसी दूसरे को भी स्वस्थ कर सकते हैं | जैसे कि आध्यात्मिक उपचार, कुडालिनी जागरण, साइकिक हीलिंग तथा रेकी में किया जाता है |