दोस्तों, इस धरती पर हर इंसान की शक्ल-सूरत, कद-काठी एक जैसी नहीं होती उसी तरह हर इंसान की शरीरिक और मानसिक ख़ासियत यानि विशेषता भी एक जैसी नहीं होती |
विज्ञान कहता है कि इंसान की खासियत उसके जींस, वातावरण, परवरिश आदि पर निर्भर करती है | आध्यात्म कहता है कि इंसान की खासियत उसके पूर्व जन्म के कर्म-फल और संस्कार पर निर्भर करता है |
दोस्तों, यदि हम दोनों का घोल तैयार करें या दोनों की माने तो एक बात उभर कर सामने आती है कि इंसानी खासियत हम में पैदायशी होती है और ज्यादात्तर हम उस खासियत को या तो जानते नहीं हैं या फिर उसका सही इस्तेमाल नहीं करते हैं | छोटी-मोटी खासियत तो हर इंसान में होती है लेकिन हम यहाँ उन ख़ासियतों की बात कर रहे हैं जो कुछ इंसानों में एक आम इंसान से बहुत ज्यादा होती हैं |
हमारे शरीर में पाँच इन्द्रियां ( नेत्र, नाक, जीभ, कान और त्वचा है | जिन के माध्यम से हम देख, सूंघ, स्वाद और बोल, सुन, स्पर्श करने सक्षम हो पाते हैं और जिन्हें आध्यात्म में दृष्टि, गंध, श्रवण, स्वाद, स्पर्श आदि कहते हैं) होती हैं जिनके सहारे हम अपना जीवन सुचारू रूप से चला पाते हैं | आप स्वयम ही अंदाजा लगा सकते हैं कि तीन मुख्य इंद्रीयों (दृष्टि यानि देखना, श्रवण यानि सुनना और जीभ जिस से बोल और स्वाद ले सकते हैं) के बिना जीवन कैसा हो सकता है | बाकि की दो इंद्री भी हमारे जीवन में कम महत्व नहीं रखती हैं |
दोस्तों, कुछ लोगों में इन पाँच इन्द्रियों में से कोई एक या अधिक इंद्री एक आम इंसान से कहीं अधिक सक्रिय होती हैं जैसे कुछ लोगों की देखने की शक्ति इतनी अधिक सक्रिय होती है कि वह एक बार कुछ भी देख लें तो वह उनके मन या दिमाग में सदा के लिए अंकित हो जाता है | वह दस-बीस-तीस साल बाद भी दुबारा देखने पर याद कर पूरे विस्तार से बता सकते हैं कि पहले उन्होंने कब और कहाँ देखा था | इसी प्रकार कुछ लोगों की सुनने की इंद्री इतनी अधिक सक्रिय होती है कि वह बहुत दूर से कुछ भी सुन कर बता सकते हैं | ऐसे लोग यदि भीड़ या शोर में भी किसी ख़ास बात को सुनना चाहें तो बहुत आसानी से सुन सकते हैं इत्यादि | ऐसे ही कुछ लोगों में सूंघ, बोलने या स्वाद या स्पर्श की इंद्री बहुत अधिक सक्रिय होती है |
जिस भी व्यक्ति विशेष में इन इन्द्रियों में से कोई एक इंद्री आम इंसान से यदि अधिक काम कर रही है तो इसका अर्थ है कि उसकी छठी इंद्री जिसे आप Sixth sense के नाम से भी जानते हैं वह कहीं न कहीं उस व्यक्ति विशेष में बिना जागृत किये हुए ही पैदाइश से जागृत अवस्था में होती है जिस कारण वह इंसान एक आम इंसान से थोड़ा अलग होता है | अनजाने में वह उस इंद्री और छठी इंद्री का प्रयोग रोजमर्रा की जिन्दगी में कर बहुत खुश होता रहता है | और यही उस व्यक्ति के पतन का कारण भी बनता है | एक समय में वह आम लोगों से अलग-थलग तक हो जाता है | इस तरह के व्यक्ति को समझ तक नहीं आता है कि समाज उसके साथ ऐसा क्यों कर रहा है |
दोस्तों, आपने नदी में से किसी नहर को निकलते अवश्य देखा होगा | यदि वह नहर खेत या शहर से बहुत दूर से होकर निकल रही है तो हमें उस नहर के होने या न होने का कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि शहर और खेत उस के होने के बावजूद भी सूखे, प्यासे ही रहेंगे | यदि उस नहर के बहाव को खेत या शहर के बीच या पास से निकाल दिया जाए तो खेत भी सूखे से बच जायेंगे और शहर में रहने वाले भी पानी का प्रयोग कर पायेंगे | ठीक इसी प्रकार हम अपनी अधिक सक्रिय इंद्री को छठी इंद्री के साथ जोड़ कर जीवन सफल बना सकते हैं |
आप एकाग्रता और लग्न से ध्यान विधि का प्रयोग कर कुछ दिन में ही अपनी संवेदनशील इंद्री के बहाव को बाहर की ओर बहने से रोक पाने में सक्षम हो जायेंगे और जैसे ही यह होगा वैसे ही आपकी छठी इंद्री सक्रिय हो जायेगी और आपके ध्यान में गहराई आनी शुरू हो जायेगी |
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