ध्यान या मैडिटेशन से पहले या सोच के भटकाव को रोकने के लिए नीचे दी गई क्रिया जरूर करें |
दोस्तों, आप जानते ही हैं कि हमारा जीवन साँस पर टिका है और इसी कारण ही आध्यात्म और योग में साँस को महत्त्व दिया गया है | लेकिन क्या आप जानते हैं कि साँस ठीक न चलने पर हमें कई तरह की मानसिक और शरीरिक बीमारियाँ हो सकती हैं | शरीरिक और मानसिक बिमारी होने के और भी कई कारण होते हैं जिस में सबसे बड़ा कारण हमारा रहन-सहन और खाना है | इन्ही सब का उपाय ऋषि पतंजलि ने योग सूत्र में बताया है|
आध्यात्म और तंत्र कहता है कि जब आपका ध्यान साँस पर होगा तब आप अपने वर्तमान में जी रहे होते हैं | साँस लेना मतलब प्राण लेना और साँस छोड़ना यानि जीव छोड़ना है | जब आप अपने श्वास पर ध्यान देना शुरू करते हैं तब आपकी साँस स्वयमेव ही लम्बी और गहरी होती चली जाती है |
आध्यात्म के अनुसार जब आप अपने वर्तमान में होते हैं तब आपका मन, मन नहीं रहता | तब आपका मन, अ-मन हो जाता है क्योंकि आपको हमेशा भूतकाल या भविष्यकाल ही परेशान करता है | वर्तमान में जो अभी इस वक्त घटित हो रहा है | उसे तो आप देख रहे हैं | जिसे आप देख रहे हैं उसकी अभी सोच बनी ही नहीं तो परेशानी का कोई कारण ही नहीं है | तभी तो आध्यात्म कहता है कि हमेशा वर्तमान में रहो |
योग, आध्यात्म और तंत्र की मानें तो हमें साँस पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है |
साँस पर आपकी पकड़ बन जाने पर शरीर और मन दोनों आपके कब्जे में आ जाते हैं और मैडिटेशन के लिए इनका कब्जे में आना बहुत जरूरी है |
दोस्तों, आप रोजमर्रा की ज़िन्दगी में जो कुछ भी कर रहे हैं उस में से कुछ भी जोड़ने या उस से कुछ भी छोड़ने की जरूरत नहीं है | आप मैडिटेशन तभी शुरू करें जब आपके अंदर से आवाज आये | हमारे कहने भर से बिलकुल मत शुरू करिए या कहीं से सुन या पढ़ कर भी इस ओर आकर्षित न हों |
विज्ञान भैरव तंत्र में ध्यान की बहुत विधि बताई गई हैं | कुछ में आँख खोल कर ध्यान किया जाता है तो कुछ में आँख बंद कर किया जाता है | कुछ में साँस पर ध्यान दिया जाता है कुछ में नाभि पर….. आदि, आदि |
ध्यान की कोई भी विधि अपनाएँ लेकिन यदि ध्यान पार्क में पेड़ के नीचे या किसी फूल के पौधे के पास या घर या कमरे के भीतर लगाये जाने वाले पौधे के पास बैठ कर शुरू करेंगे तो आपको जल्द सफलता मिल सकती है |
आप में से जो भी ध्यान यानि मैडिटेशन पहले से करते आ रहे हैं, उन्हें जरूर अनुभव हुआ होगा कि आँख बंद कर ध्यान करने पर भी मन भटक सकता है लेकिन तभी जब आपकी आँखें हिलेंगी | आँखें स्थिर होते ही सोच रुक जाती है | शायद इसीलिए त्राटक क्रिया बनाई गई होगी | इस विधि में आँखें चलें या हिले न इसका ख़ास ख्याल रखा गया है | वह जानते थे कि जैसे ही आँखें हिलेंगी वैसे ही आपका मन भटकने लगेगा | विज्ञान तो यहाँ तक कहता है कि सोते हुए भी आपकी आँखें पूरी रात या आठ घंटे की नींद में से केवल एक या दो घंटे ही नहीं हिलती और यही वह समय होता है जब आप गहरी नींद में होते हैं | आपका सम्पर्क जब पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कट जाता है तब ही आप गहरी नींद में होते हैं और तब आप, अपने मन के साथ किसी आंतरिक यात्रा पर निकल जाते हैं जो जागने पर न आपको याद रहता है और न आपके मन को |
आपने क्रिकेट या फुटबाल या अन्य खेल तो देखे होंगे | आप जिस भी टीम को सपोर्ट करते हैं यदि वह जीत जाती है तो आपको ख़ुशी होती है और जब हार जाती है तब दुःख होता है | लेकिन ये हार-जीत का दुःख या सुख कुछ ही समय रहता है क्योंकि आप वह सब दर्शक बन कर देख रहे हो लेकिन जैसे ही आप उस टीम के सदस्य बन जाते हो तब आप ‘मैं’ बन जाते हो तब आप दर्शक नहीं रह जाते | मैं बनते ही जीत की ख़ुशी या हार का गम लम्बे समय तक रहता है |
दोस्तों, आप पहली बार मैडिटेशन करने जा रहे हैं या आपने अभी-अभी मैडिटेशन शुरू की है या आप मैडिटेशन पहले से करते आ रहे हैं लेकिन आपका ध्यान कभी लगता है कभी नहीं लगता है या आप मैडिटेशन करने के इच्छुक हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर आये हैं | यहाँ आपको मैडिटेशन से सम्बन्धित हर प्रश्न या समस्या का जवाब मिलेगा | यदि आपका कोई ख़ास प्रश्न है तो आप यहाँ कमेंट कर पूछ सकते हैं ?
मैडिटेशन के बारे में आगे कुछ बताने से पहले आइये जाने कि त्राटक क्या होता है ?
त्राटक करने की सही विधि है कि दीवार या किसी बोर्ड पर आधे या एक इंच का एक गोला बनायें और उससे कम से कम चार और ज्यादा से ज्यादा छेह फुट की दूरी पर बैठ कर उसे बिना पलक झपके सामान्य दृष्टि से देखना है | यहाँ तीन बातों का ध्यान रखना है | पहला – वह निशान जो आप बनायेंगे वह आपकी आँखों के बिलकुल सामने और एक ही स्तर पर होना चाहिए यानि न ज्यादा दायें या बायें और न ही ऊपर या नीचे | दूसरा – आपने उस निशान को घूरना नहीं है | एक सामान्य दृष्टि से देखना भर ही है | तीसरा – रोज जितना आप बिना किसी जबरदस्ती के कर पायें उससे थोड़ा-सा ज्यादा करें | धीरे-धीरे ही सफलता मिलेगी यानि आपको पलक झपकने पर कण्ट्रोल आ जायेगा |
ध्यान की विधि की बात इस भाग में नहीं करेंगे क्योंकि हर किसी के लिए विधि अलग होती है | हम यहाँ ध्यान कैसे करते हैं पहले उस पर बात करते हैं |
शुरुआत में आप मैडिटेशन करने के लिए किसी भी दिशा, समय, आसन और शरीरिक मुद्रा में कर सकते हैं | मुद्रा यानि पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन या वज्रासन में या कुर्सी पर बैठ कर या शवासन में भी कर सकते है जैसे आपको सुविधाजनक लगे | जितना ध्यान आप दिशा या समय या शरीरिक मुद्रा पर देंगे उतना ही ध्यान करने असफल होंगे | यह बात आप इसी बात से समझ सकते हैं कि जब आप ध्यान से पढ़ते या कोई अन्य काम करते हैं तब ध्यान पढ़ाई या काम पर होता है और वही ध्यान सफलता भी दिलाता है |
हम यहाँ आपको कोई मेडिकल एडवाइस नहीं दे रहे हैं | यदि आपको कोई मानसिक या शरीरिक बिमारी है तो आप डॉक्टर से सलाह लेकर दवाई जरूर लें | दवा के साथ हम यहाँ जो सलाह दे रहे हैं वह भी करेंगे तो आपको बिमारी में फायदा होगा और जल्द स्वस्थ्य हो जायेंगे |
मैडिटेशन शुरू करने से पहले यह विधि जरूर करें | इस विधि को करने से पहले त्राटक करें या वह विधि करते हुए त्राटक करें या फिर यह विधि करने के बाद ध्यान त्राटक के साथ शुरू करें और जब आपका ध्यान लगने लगे यानि सोच से आप विचलित न हों या सोच को दर्शक बन देखने में सफल हो जाएँ तब आप ध्यान किसी भी और विधि से कर सकते हैं |
अब साँस की वह विधि बताते हैं जिस से आपका अधिक सोच, गुस्सा, अनिद्रा और अन्य प्रकार की मानसिक बिमारी से पीछा भी छूट जायेगा और ध्यान लगने में सफलता भी प्राप्त होगी | यह साँस का रामबाण उपाय है | इस विधि को करने पर आप, अपने आपको बहुत हल्का महसूस करेंगे |
आप पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन या वज्रासन में या कुर्सी पर बैठ कर यानि जैसे आपको सुविधाजनक लगे वैसे पीढ़ को सीधी कर बैठे और धीमी गति से और लम्बी साँस दाई नाक से लें और बाई नाक से छोड़ें | हर बार दाई से साँस ले कर तीन या चार सेकंड रुकें और फिर साँस बाई से छोड़ें | साँस छोड़ने के बाद भी तीन से चार सेकंड का अंतराल अवश्य दें | यह क्रिया आप दिन में तीन से चार बार कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं | यदि ध्यान नहीं कर रहे हैं तो त्राटक करने की भी जरूरत नहीं है | कोशिश करें कि नाक पर हाथ रख बंद करने की भी जरूरत न पड़ें | कुछ दिन के अभ्यास से यह सम्भव हो जाता है | यह क्रिया एक बार में बीस बार ही करनी है यानि बीस बार दाई नाक से साँस लेना है बाईं नाक से छोड़ना है | और यह क्रिया दिन में केवल तीन से चार बार ही करनी है |
जब आप बिना नाक पर हाथ रखे साँस दायें से लेकर बायें से छोड़ने में सफल हो जायेंगे तब आपका शरीर और सोच आपके आदेश पर काम करने लगते हैं जोकि ध्यान के लिए सबसे उत्तम उपाय है | यह क्रिया करने के बाद आप ध्यान करेंगे तो शुरुआत से ध्यान लगने लगेगा | यह उपाय आपको सोच की बहती नदी पार करने में नाव का काम करेगा |
यह क्रिया करने के बाद जब आप ध्यान शुरू करें तब भी ध्यान, साँस के आने जाने पर ही लगाना है | शुरुआत में पाँच से दस मिन्ट ही करें | इससे आपका उत्साह बना रहेगा | समय कम हो या ज्यादा कोई फर्क नही पड़ता है |
अगले भाग में मैडिटेशन के वह फायदे बताएँगे जो शायद ही आपने कभी सुने होंगे |