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आइये मैडिटेशन सीखें -3

मैडिटेशन के बारे में वह बात जो पहले न सुनी होगी और न किसी ने बताई होगी |

मैडिटेशन करने का मतलब है कि आप वर्तमान में ही रहते हैं लेकिन आप ऐसा, शुरूआती दौर में नहीं कर पाते हैं | किसी के लिए यह शुरूआती दौर कुछ सप्ताह का होता है तो कुछ के लिए यह कुछ महीने का और कुछ इससे निकल ही नहीं पाते हैं |

आप जब मैडिटेशन करने बैठते हैं तब सबसे पहले आपको, आपका शरीर परेशान करता है | क्योंकि आपके शरीर को बिना सोच के बैठने या लेटने की आदत ही नहीं है या आपने अभी तक की जिन्दगी कभी ऐसा किया ही नहीं है | आपका शरीर हमेशा मन के सहारे ही काम करता आ रहा है, ऐसा आपको लगता है | आपने शरीर को उठाया या बिठाया या लेटाया आदि वह सब सोच यानि मन से ही शुरू हुआ | मन की बात मान, दिमाग ने शरीर को आदेश दिया कि यह करो या यह न करो | लेकिन मैडिटेशन के लिए बैठने पर आपको पहली बार पता लगता है कि शरीर बहुत बार मन या दिमाग दोनों की नहीं मानता है | जैसा कि चिकित्सा विज्ञान भी कहता है कि शरीर को कई बार action या  reaction जल्द देने के लिए वह आदेश दिमाग की बजाय रीढ़ कि हड्डी के आस-पास फैला नाड़ी तंत्र ही दे देता है | उदाहरण के तौर पर यदि आप गर्म तवे को छू लो तो हाथ पीछे हटाने का आदेश या रिएक्शन दिमाग नहीं बल्कि रीढ़ की हड्डी के आस-पास फैला तंत्र ही दे देता है | शायद यह बात हमारे पूर्वजों को मालूम थी इसीलिए उन्होंने रीढ़ की हड्डी को बहुत महत्व दिया और आज इसे ही आप कुण्डलिनी के नाम से जानते हो | कुल मिलाकर हम यहाँ आपको यह समझाना या बताना चाहते हैं कि बहुत बार शरीर आपकी या आपके दिमाग यानि मन की भी नहीं मानता है | जैसे मैडिटेशन के लिए आप बहुत सोच-समझने के बाद बैठते हैं और पूरी कोशिश करने बावजूद शरीर आपकी एक नहीं सुनता है और आपको आखिर शरीर की मान उठना ही पड़ता है | जैसे-जैसे शरीर अभ्यस्त होता जाता है, परेशान कम करता है | जब तक ऐसा न हो तब तक आपको कुछ हद तक शरीर से जबरदस्ती करनी ही होगी | लेकिन यह तभी सम्भव है जब आप शुरुआत में थोडा-बहुत शरीर की भी मानें |

आपको आज के समय में सोशल मिडिया में बहुत जगह यह सुझाव दिया जाएगा कि शरीर की मत सुनो लेकिन हमारा सुझाव है कि शुरूआती दौर में आपको शरीर जैसा कह रहा है वैसा करें यानि खुजली हो रही है तो खुजला लें | कोई भाग सुन्न हो गया है तो उसे झटक कर ठीक कर लें | कहीं दर्द हो रहा है तो सहला लें लेकिन परेशान हो कर उठें नहीं | बैठे रहें |

शरीर के बाद आपको, आपका मन परेशान करने लगता है | मन भी इसलिए परेशान करता है कि उसे वर्तमान में रहने की आदत नहीं है | उसका काम है आपको अतीत या भविष्य में भटकाना | जब तक आप भटकते रहते हैं तब तक मन और शरीर दोनों खुश रहते हैं |

मन क्या है हम ने पिछले भाग में बताया था | आज उस से आगे चलते हैं |

विज्ञान, आध्यातम, तंत्र और योग के अनुसार मन के चार प्रकार होते हैं : चेतन मन, अवचेतन मन, अचेतन मन और अति चेतन मन यानि conscious mind, sub conscious mind, unconscious mind and super conscious mind |

अब सब से जरूरी बात जो आपको किसी ने नहीं बताई होगी कि मन यानि अवचेतन मन जहाँ बचपन से लेकर आज तक के सब खट्टे-मीठे अनुभव, दृश्य, घटना और सोच स्टोर होते रहते हैं | मैडिटेशन करते हुए आपका सामना सबसे पहले इसी अवचेतन मन से होता है | अवचेतन मन में पहले से स्टोर अनुभव जिन्हें आपने या वक्त ने दबा दिया था | मैडिटेशन पर बैठते ही आपका सामना उन भूली-बिसरी यादों से होता है जिन्हें आप वक्त के साथ भुला चुके होते हैं | आपको पुरानी से पुरानी बातें याद आने लगती हैं जिन्हें आप दरकिनार कर चुके होते हैं | यदि आप कुछ कहीं रख कर भूल जाते हैं तो वह भी आपको याद आ जाता है | आप यह सब देख कर पहले से कहीं ज्यादा विचलित हो उठते हैं | जब आप इसका हल सोशल मिडिया में ढूंढने निकलते हैं या अपने किसी गुरु तो नहीं कह सकते, शिक्षक से पूछते हैं तब ज्यादात्तर आपको यह सुझाव दिया जाता है कि सोच आये तो आने दो | कुछ देर बाद फिर ध्यान लगाओ | फिर सोच जकड़ेगी, फिर कोशिश करो | लेकिन नब्बे प्रतिशत लोग, अवचेतन मन की तेज बहती, सोच की नदी को पार नहीं कर पाते हैं | इसीलिए हम ने यह कहा कि जो शरीरिक या मानसिक बिमारी या अधिक सोच या डर या गुस्से या बुरे अनुभव या डिप्रेशन या एंग्जायटी आदि से झूझ रहे हैं वह सीधे तौर पर मैडिटेशन शुरू न करें |

मैडिटेशन में हमें अवचेतन मन के पार जाना होता है लेकिन बिना उपाय किये आप इस जलते लावे के पार नहीं जा सकते | आप आज कोशिश कर के अवचेतन मन में दबी सोच को फिर से दबा देंगे लेकिन अगले दिन वह सोच फिर से आपको और भी ज्यादा वेग से जकड़ लेगी | सोच कभी न खत्म होने वाली नदी की तरह है जैसे हम ने पिछले भाग में बताया था कि सोच का पर्वत दिन-ब-दिन उम्र के साथ ऊँचे से ऊँचा होता चला जाता है और जब भी आप दबाने की कोशिश करेंगे तब वहाँ से वह बर्फ का तूफ़ान बन नीचे की ओर बहेगा या फिर पानी की नदी का रूप ले आपको बहा ले जाएगा | लेकिन आप कितनी भी कोशिश कर लो वह बहाव कभी खत्म नहीं होने वाला है | मानसिक रूप से यदि आप कमजोर हैं या आप ज्यादा ही भावुक हैं या आपकी सोच नकारात्मक है या कभी आपको धोखा मिला है या आपको सोच अधिक आती है या आप छोटी-छोटी बात पर नाराज हो जाते हैं तो आप चाह कर भी इस से बाहर नहीं निकल पायेंगे | और जब तक इससे बाहर नहीं निकलेंगे तब तक आपका ध्यान नहीं लगेगा |

अगले भाग में आपको रामबाण उपाय बतायेंगे और साथ ही साथ मैडिटेशन के अन्य फायदे भी बतायेंगे जिन के परिणाम यानि रिजल्ट देख आप स्वयम रोज मैडिटेशन करने के लिए प्रेरित होंगे |

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