आज लगभग हर व्यक्ति अपनी किसी न किसी परेशानी से झूझ रहा है और उन से बाहर निकलने का एक ही हल दिखता है कि ध्यान धारण कर बेवजह की टेंशन से मुक्ति पा लें | यही कारण है कि आज के समय में बहुत लोग ध्यान या मैडिटेशन की और आकर्षित हो रहे हैं | कोशिश तो बहुत लोग करते हैं लकिन सफल कोई इका-दुक्का ही हो पाते हैं | असफलता का कारण किसी व्यक्ति विशेष में नहीं है बल्कि ध्यान की विधि में हैं | तंत्र की इस शाखा में इसी समस्या का हल दिया गया है |
तंत्र, आत्मा से शुरू होकर परमात्मा तक जाने का सीधा और सरल उपाय है | जितना सरल है उतना ही कठनाई भरा भी है लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह जैसे आप हैं वैसे का वैसा स्वीकार कर लेता है | यह आपको आपके धर्म या आस्था या विश्वास को छोड़ने को नहीं कहता | यहाँ तक कि आपके किसी भी भौतिकवादी कार्य को भी छोड़ने को नहीं कहता | यह आपके ज्ञान को सिर्फ इसलिए छोड़ने को कहता है ताकि आप जल्द से जल्द इस मार्ग पर आगे बढ़ सकें | ज्ञान है तो अहंकार अपने आप चला आता है जो किसी भी ऐसे मार्ग पर चलने में मुख्य बाधक है | लेकिन फिर भी यदि आप नहीं छोड़ सकते या नहीं छोड़ पा रहे हैं तब भी तंत्र सीखने में कोई बाधा नहीं है | हाँ, कुछ समय ज्यादा जरूर लगेगा लेकिन आप जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे सब कुछ अपने आप से छूटता चला जाएगा |
वह इंसान तंत्र जल्दी सीख सकता है जो प्रेमी है या अपने आप से या अपने शरीर से प्रेम करता है | प्रेम या प्रेमी के बारे में हम पहले भी कई बार बता चुके हैं | अपने आप या अपने शरीर से प्रेम करने का यह मतलब नहीं है कि हर समय अपने शरीर की लिपा-पोती करते रहो या नई से नई ड्रेस पहनते रहो या घंटो कसरत में बिता दो | इसमें कोई शक नहीं कि आज के जीवन में यह सब भी जरूरी है लेकिन जब आप शरीर से प्रेम करना अंदर से शुरू करेंगे तब आप उतना ही करेंगे जितने की जरूरत होगी | और कुछ समय बाद सब कुछ अंदर ही होगा, बाहर नाम मात्र ही रह जाएगा | अंदर का रूप खिल कर जब बाहर उजागर होगा तब आप और आपके आसपास वाले सब हैरान हो जायेंगे |
आध्यात्म और तंत्र में केवल एक ही फर्क है कि आध्यात्म आपको वैसे स्वीकार नहीं करता जैसे आप हो बल्कि वह आपको पहले बाहरी और आंतरिक शुद्धि करने को कहता है | जब आप वह कर लेते हैं तब वह आपको स्वीकार कर आगे का रास्ता दिखाता है जबकि तंत्र आपको कुछ भी छोड़ने को नहीं कहता और न आपकी शुद्धि करता है और न करने को कहता है | तंत्र आपको वैसे का वैसे ही स्वीकार कर लेता है |
दोस्तों, हमारे पास आपके बहुत प्रश्न आते हैं कि विज्ञान भैरव तंत्र क्या है हम ने पहले कभी इसका नाम नहीं सुना ? यह कब लिखा, किसने लिखा, इसमें भैरव और तंत्र दोनों क्यों शामिल हैं ? इस में 112 विधि ही क्यों बताई गई हैं | इस से कम या ज्यादा क्यों नहीं ? इतनी विधि बताने का क्या कारण है?
ऐसे बहुत प्रश्न आते हैं ? कोशिश करेंगे कि आपकी जिज्ञासा शांत हो |
ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान भैरव तंत्र के रचियता गुरु क्युर्वती थे जिन्होंने इसे 7-9 शताब्दी के बीच लिखा था | यह वर्तमान में 1918 में पहली बार प्रकाशित हुआ था तब इसके बारे में पहली बार लोगों को पता लगा | इससे पहले यह लुप्त ही माना जा रहा था |
विज्ञान भैरव तंत्र दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथों में से एक है | यह दुनिया का अकेला ऐसा ग्रन्थ है जिस में ईश्वर को पाने के बहुत ही सरल तरीके बताये गए हैं | यह धर्म, जाति, लिंग, स्थिति की परवाह किए बिना आपके जीवन को फिर से आनंदमय बना देगा | अतः इसे धर्म के चश्मे से न देखें |
विज्ञान भैरव तंत्र को विज्ञान भैरव के नाम से भी जाना जाता है | यहाँ भैरव का अर्थ है शिव यानि ईश्वर | विज्ञान भैरव का अर्थ है – ईश्वर का ज्ञान या ईश्वरीय चेतना का ज्ञान | विज्ञान भैरव तंत्र में बताई गई विधि द्वारा कोई भी जन-सधारण मनुष्य ईश्वर से जुड़ सकता है | यह ग्रन्थ शिव-पार्वती के संवाद से शुरू होता है | इस में माँ शक्ति जोकि शिव की ही शक्ति हैं – शिव से वह प्रश्न पूछती है जो एक आत्मज्ञान चाहने वाला व्यक्ति पूछता है |
कश्मीर शैव धर्म, कश्मीरी शैव अद्वैतवाद है | अधिकांश धर्म द्वैतवादी हैं | द्वैत यानि दो यानि इंसान और ईश्वर अलग हैं यानि दो हैं | द्वैतवाद हमें बताता या सिखाता है कि इंसान, ईश्वर से अलग है और उसके जीवन के अंत में उसका न्याय ईश्वर द्वारा किया जाता है | कश्मीरी शैव अद्वैतवाद के दर्शन में, हम ईश्वर से अलग नहीं हैं, एक ही है, केवल ईश्वर ही है | ईश्वर के अलावा कोई वास्तविकता नहीं है | कश्मीर शैववाद, बताता है कि ईश्वर के साथ मिलन दो का मिलन नहीं है क्योंकि दोनों एक ही हैं | जब मन शांत होता है तब हमारा अहंकार गायब हो जाता है और हमारे भीतर ईश्वर की असल या वास्तविक स्थिति प्रकट होती है | यही कारण है कि कश्मीर शैववाद कहता है कि मुक्ति और कुछ नहीं बल्कि हमारे वास्तविक यानि ईश्वरीय स्वरूप का उदभव यानि emergence है |
बहुत लोग यह प्रशन उठाते हैं कि क्या विज्ञान भैरव तंत्र, तंत्र है या योग है | असल में इस में दोनों शामिल हैं | शुरूआती दौर में योग, तंत्र का हिस्सा था लेकिन बाद में तंत्र में कई अन्य तरह के अनुष्ठान और प्रथाएं जुड़ जाने से यह योग से अलग होता चला गया | जैसा हम ने पहले भी कहा है कि आज यह गलत धारणा फैली हुई है कि तंत्र सिर्फ सेक्स के बारे में है | तंत्र मुख्यतः आत्मज्ञान के बारे में है | इस ग्रन्थ में दी गई 112 विधि में से केवल 3 विधि ऐसी हैं जिस में सेक्स को आत्मज्ञान के साधन के रूप में उपयोग किया गया है |
आपके काफी प्रश्न सीधे तौर यही होते हैं कि विज्ञान भैरव तंत्र में 112 विधि ही क्यों दी गई हैं 113 या उससे अधिक क्यों नहीं ? आपके मन में ऐसा प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि विधि की संख्या 112 ही क्यों रखी गई हैं ?
यदि आप इन बताई गई विधियों पर ध्यान देंगे तो पायेंगे कि यह 112 विधि नहीं हैं बल्कि काफी कम हैं क्योंकि ज्यादात्तर में आपसी अंतर न के बराबर है जबकि असल में यह अंतर बहुत बड़ा है जोकि आपको केवल तभी दिखेगा जब आपको ध्यान की समझ आ जाएगी |
विज्ञान भैरव तंत्र में बताई गई 112 विधि उनके लिए हैं जो शरीर के रास्ते ध्यानावस्था पाना चाहते हैं | जो प्रेमी हैं यानि ईश्वरीय प्रेम राधा या मीरा की तरह करते हैं या प्रकृति प्रेमी हैं या अपने आप से प्रेम करते हैं, उनके लिए प्रेम ही ध्यानावस्था का मार्ग है |
विज्ञान भैरव तंत्र में साँस, सोच, शरीर, स्वपन, शरीरिक सुख, गुस्सा, कुडालिनी आदि द्वारा ध्यान की विभिन्न तरह की विधियाँ बताई गई हैं | इस में बताई गई विधियाँ किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं हैं बल्कि कोई भी ध्यान का इच्छुक व्यक्ति इन विधियों के द्वारा ध्यान लगा सकता है | जो जिस विधि के जरिये ध्यान लगा पाता है, समझिये कि वह विधि उसके लिए है | यह बात सच भी लगती है क्योंकि एक दवाई सब रोगों के लिए नहीं हो सकती या एक ही दवाई से सब रोग ठीक नहीं हो सकते या एक दवाई सब प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि हर व्यक्ति की मानसिक, शरीरिक, रहन-सहन, देश, काल, वातावरण और परिस्थिति अलग-अलग हैं |
विज्ञान भैरव तंत्र में 112 विधि बताई गई हैं | आपको जो भी विधि ठीक जान पड़ती है उसे कम से कम पन्द्रह से पच्चीस दिन अवश्य करें | यदि यह विधि आपके लिए है तो आप ध्यान में आगे बढ़ जायेंगे और यदि ऐसा नहीं होता तो आपको दूसरी विधि को अपनाना होगा |