विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 76
दर्श अर्थात दर्शन, दृष्टि, कृष्ण इत्यादि |
दोस्तों, आप बहुत खुशनसीब हैं कि आप देख सकते हैं |
क्या आप इस ईश्वरीय देन का प्रयोग सही तरीके से करते हैं या कर पाते हैं ?
हमारे शरीर की पाँच इन्द्रियों में से सबसे शक्तिशाली और प्रमुख इंद्री आँख है | सुन्दरता को निहारने और उस में खो जाने का जरिया सिर्फ और सिर्फ आँख ही है |
विज्ञान भैरव तंत्र में आँख यानि देखना यानि नजर को एहमियत सिर्फ इसलिए दी गई है कि इससे आप बहुत जल्द उस अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं जिस का अनुभव आपको है या नहीं लेकिन कोशिश करने पर सफलता पाई जा सकती है |
इस सूत्र में बताई गई विधि के अनुसार यदि आप दिन में मैडिटेशन करना चाहते हैं तो आपको ऐसी जगह या कमरे में बैठना है जहाँ पर सूर्य की रौशनी आपके सामने की दीवार पर पड़ रही हो | आप यह विधि कमरे में भी कर सकते हैं और बाहर बैठ कर भी कर सकते हैं, बस आपके सामने कोई दीवार हो या दीवार जैसा कुछ ओर जिस पर प्रकाश पड़ सकता हो |
यदि आप रात को या किसी बंद कमरे में बैठ कर मैडिटेशन करना चाहते हैं तो आपको अपने सामने की दिवार के पास एक दीपक जलाना है और फिर मैडिटेशन शुरू करनी है
आइये अब जानते हैं कि इस विधि के अनुसार मैडिटेशन कैसे करनी है
इस सूत्र में बताई गई विधि के अनुसार दिन या रात में जब भी आपको सुविधा हो आप मैडिटेशन कर सकते हैं | जैसा कि अभी आपको बताया है कि दिन में करते हैं तो सूर्य का प्रकाश उस दीवार पर पड़ना चाहिए जिस के सामने बैठ कर आप मैडिटेशन करना चाहते हैं | यदि आप रात को मैडिटेशन करना चाहते हैं तो जिस दीवार के सामने बैठ कर आप मैडिटेशन करना चाहते हैं उस दीवार के पास एक दीपक जलाना है जिस की उंचाई आपकी आपकी आँखों के लगभग सामने हो | यहाँ यह कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि आपको झुक कर या ऊपर की ओर नजर न करनी पड़े | वह दीपक लगभग आपकी आपकी आँखों के सामने हो ताकि आपको दायें या बाएं भी न देखना पड़े | दीपक जितना आपकी आँखों के सामने होगा उतना ही आपकी आँखें थकावट कम महसूस करेंगी यानि आप देर तक बैठ कर मैडिटेशन कर सकते हैं |
मैडिटेशन आप पद्मासन या वज्रासन या सुखासन में बैठ कर कर सकते हैं |
आपने सामने की दीवार पर पड़ रहे प्रकाश को निहारना है घूरना नहीं है, यदि आप दिन में मैडिटेशन कर रहे हैं | इसी प्रकार जब आप रात में मैडिटेशन करते हैं तो आपने दीपक की लौ को निहारना है, घूरना नहीं है |
यह ध्यान रहे कि प्रकाश को निहारते हुए आपकी साँस एक लयताल से ही चलनी चाहिए यानि न बहुत लम्बी या गहरी साँस लेनी है और न ही जल्दी-जल्दी लेनी है | यहाँ यह कहना का तात्पर्य केवल इंतना है कि आपकी साँस इस प्रकार चल रही हो कि आपका ध्यान साँस पर न जाए जैसे कि दिन भर काम करते हुए आपका ध्यान साँस पर कभी नहीं जाता है कि आप साँस भी ले रहे हैं या नहीं |
दोस्तों, आप यह तो जानते ही हैं कि सूर्य की रौशनी में कई रंग शामिल होते हैं | यही इस ध्यान विधि में कहा गया है |
इस विधि के अगले भाग में यह कहा गया है कि कुछ देर प्रकाश निहारने के बाद आपने प्रकाश में शामिल रंगों को देखने की कोशिश करनी है और यही कोशिश दीपक की लौ को देखते हुए भी कोशिश करनी है यानि आपको ऐसी कोशिश करनी है का मतलब है कि आपने सोच कर निहारना है और कुछ ही समय में आपको प्रकाश में शामिल अलग-अलग रंग दिखने लगेंगे |
जब ऐसा दिखने लगे तो फिर आपको यह देखने की कोशिश करनी है कि अब वह अलग-अलग रंग उस प्रकाश में मिल कर एक हो गए हैं |
ऐसा आपको असल में दिख भी सकता है और नहीं भी | यदि नहीं दिखता है तो आपने कुछ देर आँख बंद कर सोचना है कि मुझे दिख रहा है | जब आप पूरी तरह से आश्वस्त हो जाते हैं कि आँख खोलने पर आपको अलग-अलग रंग दिखेंगे तब आँख खोल लीजिये | आप हैरान रह जायेंगे कि आपको हर रंग अलग-अलग दिखने लगेगा |
कुछ दिन अभ्यस्त होने की कोशिश करनी है | जब ऐसा असल में होने लगे तब आपने यह कोशिश करनी है कि वह हर रंग उस प्रकाश में वापिस खोता जा रहा है | जिस दिन ऐसा होने लगेगा उस दिन से आप आँख खुली होने के बावजूद ध्यान में खोने लगेंगे |
आध्यात्म पहले से कहता आ रहा है कि हम पाँच इन्द्रियों द्वारा काम कर तो सकते हैं लेकिन केवल तभी जब हमें ऐसा करने का आदेश या प्रेरणा मिलती है | विज्ञान पहले यह नहीं मानता था लेकिन अब मानने लगा है | आपने भी कई लोगों को खुली आँख से सोते हुए देखा होगा या आप किसी गहरी नींद में सोते हुए व्यक्ति की पलक हटा कर देखियेगा कि उस व्यक्ति की आँख में प्रकाश जाने के बाद भी वह देख नहीं पाता है या वह जागता नहीं है | ऐसे व्यक्ति की आँख है, उसकी देखने की शक्ति है, आँख खुली होने पर वह प्रकाश देख उठ सकता है, इसके बावजूद वह नहीं उठता है | क्यों?
आध्यात्म कहता है कि प्राणिक शक्ति या आत्मिक शक्ति या अतिचेतन अवस्था ही हमारी इन्द्रियों को संचालित करती है | इसी सोच को अब विज्ञान super consciousness कहता है |
यह सूत्र हमें कई बातें एक साथ बता रहा है |
पहली बात की हम सोचते या मानते हैं कि आँख और देखने शक्ति है तो देखा जा सकता है जबकि असल में जब तक आपकी अतिचेतन शक्ति जागृत नहीं होगी तब तक आप सब कुछ होने के बावजूद देख नहीं सकते | ये बात अलग है कि पैदा होने से लेकर मृत्यु तक हम में यह शक्ति विद्यमान होती है और वह भी जागृत अवस्था में | शायद इसीलिए हम उस अवस्था के प्रति संवेदनशील नहीं होते | यह सूत्र हमे उसी ओर देखने, सोचने और ध्यान देने को कह रहा है | यह सूत्र हमें बताने की कोशिश कर रहा है कि सब कुछ होने के बावजूद एक शक्ति है जो सब कुछ संचालित करती है | यदि उसे साध लिया जाए तो सब कुछ सम्भव है |
दूसरी बात यह सूत्र यह बताना चाहता है कि सोच की शक्ति बहुत तीव्र होती है वह कुछ भी दिखा सकती है | सोच से आप असम्भव को सम्भव और सम्भव को असम्भव बना सकते हैं | सब कुछ की शुरुआत सबसे पहले सोच से शुरू होती है अतः उसे सही तरह से प्रयोग करें |
तीसरी और अहम बात कि प्रकाश की तरह जीवन के हर रंग यानि पहलू में कई रंग शामिल होते हैं बस देखने का नजरिया बदलने की जरूरत है |