विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 41
नाद का अर्थ – शब्द, ध्वनि या आवाज है और नाद के दो रूप हैं – आहत और अनाहत |
अनाहत नाद या अनहद का अर्थ है ईश्वरीय संगीत या वह ध्वनि/संगीत जो बिना किसी को आहत पहुँचाये लगातार बह रही हो | ईश्वरीय संगीत पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही ध्वनियों में से कोई एक है जिसे ध्यानमग्न या समाधिवस्था को प्राप्त कर लेने वाला ही सुन सकता है | अनाहत नाद का दूसरा रूप है कि ऐसी ध्वनि या संगीत जो प्राकृतिक और लगातार बहता या चलता रहता है जिसे कि हम ने सूत्र -38 एवम सूत्र 39 के माध्यम से बताया है |
आहत नाद का अर्थ है कि ऐसा संगीत या ध्वनि जो किसी को आहत पहुँचाने के बाद प्राप्त होती है जैसे कि वीणा, सितार, तानपुरा, गिटार, वॉयलिन, बाँसुरी, तबला इत्यादि |
संगीतमय तार वाले वाद्ययंत्रों को तंत्री कहा जाता है और इस सूत्र में इसी प्रकार के वाद्ययंत्रों की बात की जा रही है | इस प्रकार के यंत्रो में ज्यादात्तर तार का प्रयोग किया जाता है, जिस पर जोर लगाने या उन्हें झकझोरने से संगीत उत्पन्न होता है | हम यहाँ बाँसुरी या इस प्रकार के अन्य यंत्रो को भी शामिल कर रहे हैं जबकि यह ऐसे वाद्ययंत्रों में शामिल नहीं होते हैं | हमारा मानना है कि इस में भी जोर लगाने पर ही संगीत उत्पन्न होता है और उतना ही दिल मोहने वाला होता है जैसे कि अन्य तार वाले वाद्ययंत्र होते हैं | बाँसुरी की मनमोहक तान या संगीत हमें श्री कृष्ण की याद दिलाता है जो इसी वाद्ययंत्र से सबका मन मोह लेते थे |
उपरोक्त यंत्रों में यदि थाप वाले यंत्र शामिल करेंगे तो ऐसा संगीत सुन आप मस्त हो कर झूमने लगेंगे और हो सकता है कि आपका मन नाचने को करे | आप मस्त हो कर नाच सकते हैं और नाचने के बाद थकावट होगी तो आपका मन आराम करने को करेगा और फिर नींद आपको अपने आगोश में ले लेगी या आप सुनते-सुनते सो भी सकते हैं | असल में ऐसा संगीत आपके मन में पहुँचता है जो शरीर को विवश करता है कि वह झूमे या नाचे और फिर उसी धुन में आपको नींद अपने आगोश में ले लेती है |
इस सूत्र के अनुसार उपरोक्त वाद्ययंत्र से उत्पन्न लगातार बहते संगीत (जैसे कल-कल करती बहती हुई नदी) को सुनते हुए इस संगीत पर ध्यान केन्द्रित करना है | ऐसा संगीत आपके मन के पार चला जाता है | क्योंकि ऐसा संगीत मन के रास्ते से होता हुआ मन के पार जाता है इसलिए आप बैठ या खड़े हो कर झूम भी सकते हैं लेकिन ऐसी धुन सुन आप नाचते नहीं हैं | झूमते हुए या ध्यान लगाते हुए आप इस धुन में कहीं खो जाते हैं लेकिन सोते नहीं हैं |
यह सूत्र आपको इस संगीत को सुनते हुए उसमें खोने अर्थात ध्यान लगाने को कहता है | जब यह संगीत सुनते हुए आप ध्यान लगाते हैं तो आप उस सुनी जा रही धुन से आगे का संगीत या धुन को सुनने में समर्थ हो जाते हैं जोकि उस बज रहे संगीत से भी अधिक मधुर है | ऐसा संगीत समाप्त होने के बाद भी आपके अंदर बजता रहता है जो आपको ध्यानावस्था में गहनता लाने में मददगार होता है |
विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्र 41 में बताई गई विधि आज के समय में आसानी से प्रयोग में लाई जा सकती है | आप उपरोक्त बताये गये वाद्ययंत्र के संगीत को net से download कर सकते हैं | उसे आप earphone के जरिये सुनें | ऐसी धुन पाँच से दस मिन्ट की हो तो ज्यादा अच्छा रहेगा | आपको यह धुन सुनते हुए आँख बंद कर ध्यान में बैठना है | इस धुन की vibe को अंदर बसाने की कोशिश करनी है | इस बजती धुन पर ध्यान लगाने से आप उस धुन की ओर बढ़ते हैं जो इस धुन का मध्य है जहाँ इस धुन से अलग कुछ है | इस धुन की vibration आपके अंदर जब संगीत समाप्त होने के बाद भी बजती रहती है या आप ऐसा महसूस करते हैं कि संगीत अभी भी बज रहा है तब आप धीरे-धीरे ध्यान में गहनता की ओर बढ़ने लगते हैं |