पहला प्रश्न जो गाय-बगाय हर किसी के मन में उठता है कि आखिर मन है क्या ?
दोस्तों, मन, सोच का पुंज है यानि सोच का ढेर (bunch of thoughts) या आपके द्वारा किये गए कर्मों का ढेर है | सोचना, लिखना, पढ़ना, देखना, खाना और अन्य तरह के कर्म करना इत्यादि सब कर्म के क्षेत्र में आते हैं | आपने कोई काम किया, वह क्या काम था, आपने कैसे किया, वह काम करते हुए आपको कैसा लगा और उसका रिजल्ट क्या निकला इत्यादि सब आपके मन में कैद होता जाता है | आप जब एक ही तरह के काम करते जायेंगे या सुनते जायेंगे तो आपके विचार भी उसी तरह के होते चले जायेंगे और कुछ समय बाद वह विचार आपका मन बन जाएगा | शायद आप जानते होंगे कि हमारा शरीर हमेशा एक-सा चाहता है और हमारा मन हमेशा और हर रोज कुछ अलग करना चाहता है | जैसे कभी आपका मन रोटी खाने को करता है तो कभी परांठा तो कभी डोसा इत्यादि | ऐसा खाना खाने के बाद या जंक फ़ूड खाने के बाद पेट क्यों बिगड़ता है ? क्योंकि आपके पेट को एक-सा चाहिए और जैसे ही कुछ अलग या कुछ दिन लगातार चलता है तो उस बिमारी या दर्द के बहाने पेट आपको जताता है कि अभी तक जो भी चल रहा था उसमे क्यों बदलाव कर रहे हो |
हम जब मन का सही से प्रयोग नहीं करते हैं तब डर, नेगेटिव सोच, अशांति, शक और संशय यानि सस्पेंस की स्थिति बनती हैं | मनोविज्ञान में कहा जाता है कि जो दिखता है जरूरी नहीं कि वह हो ही और जो होता है जरूरी नहीं कि वह दिखे भी लेकिन जब हमारी सोच हम पर हावी हो जाती है तब हमें वही दिखता है जो हम यानि हमारी सोच या मन देखना चाहते हैं | इसलिए दोस्तों बार-बार यह कहा जाता है कि मन की न सुनें |
क्या आप जानते हैं कि हमारा मन एक ही तरह का काम या सोच ज्यादा दिन तक नहीं रख पाता है ?
दोस्तों, आपको सुन कर हैरानी होगी कि हमारे मन को रहस्य पसंद है और जैसे ही रहस्य खुल जाता है वैसे ही मन हमें दूसरी ओर मुड़ने को मजबूर करने लगता है | यही एक मात्र कारण है कि ब्रह्माण्ड और ईश्वर अनंत है | ब्रह्माण्ड का छोर मिल जाए या ईश्वर के साक्षात दर्शन हो जाएँ तो हम ईश्वर तक को देख कर दुबारा नहीं देखेंगे | इसीलिए ईश्वर के अनंत रूप हैं और इसी बारे में बुद्ध ने कहा था कि मैंने ईश्वर को देखा भी है और नहीं भी देखा है क्योंकि रोज एक नया रूप देखता हूँ | मैंने ईश्वर को देखा है इसलिए कहा देखा है और मैंने ईश्वर को देख ही लिया है यानि ईश्वर यही और इन ही रूप में हो सकता है इसलिए कहा, नहीं देखा है |
जब-जब रहस्य खत्म हो जाता है तब-तब मन, दूसरी ओर निकलने को मजबूर करता है जैसे आप एक ही किताब बार-बार ज्यादा दिन तक नहीं पढ़ पायेंगे और यही बात फिल्म या कपड़े या खाने-पीने पर भी लागू होती है | पहली बार बहुत अच्छा लगेगा और फिर धीरे-धीरे रूचि और जोश कम होने लगेगा और कुछ दिन के बाद आप उसके बारे सोचना तक पसंद नहीं करेंगे इत्यादि सब मन का खेल है |
आपने सुना होगा कि मन को रोको, मन को पकड़ो, मन को काबू करो | लेकिन असल में मन को न काबू किया जा सकता है और न रोका जा सकता है | मन को तो केवल दिशा दी जा सकती है |
मन से बंधे होने के कारण वह कैसा भी और किसी से भी रिश्ता या प्यार हो आज उस में खटास आ रही है क्योंकि मन नया चाहता है | मन को रहस्य पसंद है और अगर आपने मन के सहारे चलना है तो आपको बहुत सम्भल कर और मन के बारे में पूरी जानकारी के साथ चलना होगा वरना आपको आध्यात्म के हिसाब से अ-मन के सहारे यानि मन के बिना चलना होगा जोकि बहुत ही मुश्किल है | ख़ासकर समाज और परिवार में रहते हुए और काम-काज करते हुए |
मन एक ऐसा विषय है जिसके बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है | अतः आईये यह जानते हैं कि इसे कैसे दिशा दी जा सकती है, ताकि मन हमारा इस्तेमाल न कर सके और हम मन का जब चाहें इस्तेमाल करें और जब न चाहें तब उसे दिशा दें दूसरी ओर मोड़ दें | हम यहाँ, यह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मन, न तो चुप रह सकता है और न ही रुक सकता है | वह बहती नदी के समान है | उस पर बाँध बना उसके बहाव का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन अगर रोकने की कोशिश की तो उसका वेग सब कुछ बहा कर ले जाएगा |
खैर, आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा कि हम जब भी किसी ख़ास सोच में डूबे होते हैं और वह भी खुली आँख होने पर तब हमारे सामने क्या हो रहा है वह खुली आँख होने के बावजूद भी दिखता नहीं है और जब आँख बंद होती है तब हमारे आस-पास क्या हो रहा है हमें कुछ भी एहसास तक नहीं होता है | क्योंकि चेतन मन हमें पाँच इन्द्रियों द्वारा आस-पास हो रही हर बात से हर पल अवगत कराता रहता है | लेकिन जब हम अवचेतन मन के शिकंजे में फंस जाते हैं तब चेतन मन की बिलकुल भी नहीं चलती और हमारी पाँचों इन्द्रियों के काम करने के बावजूद हम शून्य होते हैं |
अगर आप ध्यान दें तो यह भी एक ध्यानावस्था ही है जिसमें इन्द्रियाँ होने और काम करने के बावजूद शून्य हो जाती हैं और हमारा सम्पर्क बाहर की दुनिया से कट जाता है | लेकिन हम क्योंकि अवचेतन मन के काबू में होते हैं इसलिए हमें इस स्थिति का कोई लाभ नहीं मिलता और जो मिलता है वह बहुत ही ज्यादा विकट और बुरा होता है |
यह स्थिति ध्यान करने वालों को बहुत मेहनत और मशक्कत के बाद मिलती है जिस में लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी समय बहुत आसानी से पहुँच जाता है | अतः हमारा मानना या कहना है कि क्यों न इस स्थिति का फायदा उठाया जाए और ध्यानावस्था में वहाँ पहुँचा जाए जहाँ से आगे सफर बिना किसी रूकावट के बढ़े |
जब आप आँखें खुली होते हुए गहरी सोच में होते हैं तब आपको आपके सामने कुछ भी हो रहा हो वह नहीं दिखता जबकि आप देख रहे होते हैं | ऐसा केवल तभी होता है जब आपको किसी की याद सता रही हो या किसी की बात बहुत बुरी लगी हो या फिर आप किसी रोमांस या रोमांच के पल को याद कर रहे होते हैं | कवि, लेखक, वैज्ञानिक या खोज में डूबे लोगों का ऐसी स्थिति से आमना-सामना लगभग रोज ही होता है |
आईये इस स्थिति का फायदा उठाते हैं | जब आप खुली आँख होने के बावजूद गहरी सोच में हों तब उससे बाहर निकलने का बहुत ही आसान तरीका है कि आपके सामने जो कुछ भी है उस में से किसी एक छोटी चीज को देखना शुरू करिए जैसे त्राटक में देखते हैं जैसे यदि आप कंप्यूटर पर के सामने बैठे हैं तो स्क्रीन के किसी एक कोने पर ध्यान टिका दीजिये या आप लेटे हुए हैं तो छत पर लगे पंखें के बीचो-बीच ध्यान टिका दीजिये | यदि आपके सामने दीवार है तो उस पर कुछ भी टंगा है तो उसे पर ध्यान टिका दीजिये | कहने का तात्पर्य यह है कि जो कुछ भी सामने है उस में जो भी छोटा है और चमकीला नहीं है उस पर ध्यान टिकाना है | पलक रोकने की कोशिश करनी है जैसे त्राटक में करते हैं लेकिन ज्यादा जोर रोकने पर नहीं बल्कि देखने पर लगाना है |
आपका ध्यान उसी पल लग जाएगा और सोच से पीछा छूट जायेगा | एक-दो बार कर के अवश्य देखियेगा |
ऐसे ही यदि आप आँख बंद कर सोच रहे हैं तो दोनों आँख की पुतलियों को ऊपर भवों की ओर कर दें (जैसा तीसरी आँख की पोस्ट में बताया गया है) आपका उसी पल ध्यान लग जाएगा और सोच से पीछा छूट जाएगा |
यह सब करने के पीछे का सूत्र केवल यह है कि आप जो भी कर रहे होते हैं मन, उससे अलग करने को कहता है और यही हम मन को करने को कह रहे हैं यानि उसे दूसरी ओर मोड़ या दिशा दे रहे हैं | ऐसा ही आप तब भी कर सकते हैं जब आप खुली आँख या बंद आँख से मैडिटेशन कर रहे हैं और ध्यान लगने की बजाय कोई याद या सोच परेशान कर रही है तो कुछ समय के लिए उसमें खो जाएँ जिस में मन खोने को कह रहा है और फिर अचानक वही करें जो अभी पहले खुली और बंद आँख के लिए बताया गया है | अवश्य ध्यान लगेगा |