श्वास विधि द्वारा ध्यान – 7

ईष्ट या प्रेमी की याद आने के समय ध्यान करें

विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 121

यह सूत्र उनके लिए है जो ईश्वरीय भक्ति में लीन रहते हैं | ऐसे भक्त उस समय ध्यान लगायें जब वह पूजा कर चुके हैं या मंदिर में हैं या अपने ईष्ट के सामने बैठे हैं |

यह सूत्र उनके लिए है जो प्रेम में डूबे हुए हैं | वह सांसारिक प्रेमी से प्रेम करते हैं या ब्रह्म से करते हैं, दोनों एक ही बात हैं | क्योंकि इस सूत्र के अनुसार प्रेम ही भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है | और जिसका प्रेम भक्ति में परिवर्तित हो जाता है, उसके ध्यान धरने पर ईश्वर स्वयम खिंचा चला आता है |

यहाँ एक बात जान लें कि हम उस प्रेम की बात कर रहे हैं जो सांसारिक होते हुए भी सांसारिक नहीं है | क्योंकि प्रेम का असली मतलब होता है इक तरफा प्रेम | ऐसे प्रेम में प्रेमी यह नहीं कहता या चाहता है कि जिससे वह प्रेम करता है वह भी उसे चाहे या वह भी उसे प्रेम करे | प्रेम उसने किया है और वह अपने प्रेमी को खुश देखना चाहता है | ऐसा प्रेम ही भक्ति का रूप लेता है | आपने प्रेम में कुछ चाह लिया तो फिर वह प्रेम नहीं है | प्रेम सिर्फ और सिर्फ देने और देने का नाम है क्योंकि जहाँ बदले में कुछ चाह लिया तो वह प्रेम कहाँ रहा | ऐसा प्रेम तो व्यापार कहलाता है क्योंकि व्यापार में ही हम बदले में कुछ चाहा जाता है |

विज्ञान भैरव तंत्र में साँस के आने और जाने या लेने और छोड़ने पर इतना ध्यान देने को क्यों कहा गया है ? साँस को इतना महत्व क्यों दिया गया है ?

यह तो आप सब जानते ही हैं कि हमारा जीवन साँस पर खड़ा है अतः हमे इस संसार में सबसे ज्यादा साँस को चाहना चाहिए लेकिन हैरानी की बात यह है कि हमारा कभी इस पर ध्यान ही नहीं जाता | हमारा ध्यान तब जाता है जब घुटन महसूस होती है या ‘करोना’ या अन्य तरह की बिमारी जकड़ लेती है या ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, आदि…आदि  | लेकिन वह भी कुछ समय के लिए | जैसे करोना बीमारी के बाद अब किस का ध्यान साँस की ओर  जा रहा है ?

यह आती-जाती साँस इस जीवन और ब्रह्माण्ड के रहस्य के बारे में हमें हर पल बताती कि तुम जितना मर्जी मुझे चाह लो फिर भी मुझे अपने अंदर रख नहीं पाओगे | तुम्हें मुझे छोड़ फिर से नई साँस लेनी ही होगी और यही इस जीवन का परम सत्य है |

यह सूत्र हमें यही सिखाता है कि जब आप पूजा-पाठ कर चुके हों या मन्दिर में बैठे हों या अपने प्रेमी के संग बिताये अच्छे पलों को याद कर रहे हों तब आप उस भक्ति या प्रेम के पल के साथ ही साथ साँस के आने और जाने पर ध्यान केन्द्रित करें | इस सूत्र का कहना है कि ऐसे पल में आप साँस पर ध्यान देते-देते बहुत जल्दी ध्यान में खो सकते हैं |

इस सूत्र के अनुसार जब हम असल में भक्तिभाव या प्रेमभाव में होते हैं तब हमें सिर्फ और सिर्फ ईष्ट या प्रेमी ही दिखता या उसकी याद | ऐसे वक्त में हम अपने आस-पास घट रही हर घटना से परे हो जाते हैं | इस सूत्र के अनुसार जब पूर्ण प्रेम-भाव या भक्ति-भाव में होते है तो एक तरफ हम जुड़े हुए हैं उस ईष्ट या प्रेमी से और दूसरी तरफ हम अपने आस-पास हो रही सांसारिक घटना से अनभिज्ञ हैं जो हमे detachment या अनासक्ति की ओर बिना चाहे भी ले जाती है | पूरी की पूरी आध्यात्मिक सोच ही इस बात पर टिकी है कि इस संसार से लगाव होते हुए भी अलगाव रखना है |

श्रीमद् भगवद्गीता के श्लोक 4.18 में भी लगभग यही कहा गया है कर्म में अकर्म देखने का तात्पर्य है कि कर्म करते हुए अथवा न करते हुए उससे निर्लिप्त रहना अर्थात् अपने लिये कोई भी प्रवृत्ति या निवृत्ति न करना। अमुक कर्म मैं करता हूँ, इस कर्म का अमुक फल मुझे मिले–ऐसा भाव रखकर कर्म करने से ही मनुष्य कर्मों से बँधता है |

विज्ञान भैरव तंत्र का यह सूत्र कितनी आसानी से हमें यह सिखा देता है जिसे समझने के लिए पूरा मानव जीवन भी कम पड़ जाता है लेकिन समझ नहीं आता है |

आप यदि ध्यान दें तो ऐसे पलों में साँस बहुत ही धीमी गति से चलती है और यही कारण है कि आप भक्ति या याद में खोते ही चले जाते हैं | यह सूत्र इसी पल को ध्यान के लिए उपयोग करने को कह रहा है |

ऐसे पल में आप आती जाती साँस को भी भक्ति या प्रेम भाव से लें | यदि आप ऐसा करेंगे तो आपकी साँस धीमी अति धीमी और आनन्दमयी हो जायेगी | ऐसे आनन्दमयी स्थिति में आपकी आँखें स्वयमेव ही बंद हो जायेंगी और आपको लगेगा कि आपका ईष्ट या प्रेमी आपके सामने ही खड़ा है | यहाँ एक बात ध्यान देने की है कि यदि ईष्ट या प्रेमी को सामने देख आपकी साँस उथली हो जाती है यानि लय-ताल टूट जाती है तो इसका मतलब है कि यह आपका भ्रम है | क्योंकि यदि आपकी लय-ताल और गहराई भक्ति पूर्ण है तो आपका ध्यान टूटेगा नहीं अर्थात साँस उथली नहीं होगी और यदि ऐसा होता है तो आप बहुत आसानी से ध्यानावस्था को प्राप्त कर लेंगे | ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेंगे जहाँ सब कुछ खो जाता है और अंततः आप परमानन्द में खो जाते हैं |

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