विज्ञान भैरव तंत्र – सूत्र- 26
सूत्र – 24 हमें श्वास यानि साँस के प्रति सजग रहने को कहता है | यह सूत्र हमें साँस के आने और जाने पर ध्यान केन्द्रित करें |
सूत्र – 25 हमें श्वास यानि साँस अंदर लेते हुए उस स्थान पर ध्यान केन्द्रित करने को कहता है जहाँ से साँस पलट कर बाहर की ओर वापिस चलती है | इसी प्रकार बाहर जाती हुई साँस जिस स्थान से पलट कर वापिस अंदर की ओर मुड़ती है |
सूत्र -26 में सूत्र-24 और 25 का नाभि केंद्र पर मिलन है |
सूत्र -26 हमें साँस के प्रति सजग रहने को कहता है लेकिन उस समय जब आने और जाने वाली साँस एक हो गई है |
सूत्र 24 हमें साँस के प्रति सजग रहने को कहता है |
सूत्र 25 कहता है कि आने और जाने वाली साँस जहाँ से वापिसी की ओर मुड़ती है | हमें वहाँ ध्यान केन्द्रित करना है |
जबकि सूत्र 26 कहता है जब आप अपना ध्यान साँस के आने और जाने पर लगाते हैं तब आपकी साँस स्वयमेव ही लम्बी और गहरी होने लगती है | ऐसी साँस लेते हुए हमारी साँस धीरे-धीरे नाभि केंद्र की ओर बढ़ने लगती है | नाभि तक पहुँच गई साँस अभी वापिस नहीं हुई है | उस स्थान पर आने और जाने वाली साँस का मिलन होता है | हमें इस मिलन पर ध्यान केन्द्रित करना है |
जब हम स्थिर होते हैं तब हम ध्यानावस्था में बहुत आसानी से पहुँच सकते हैं | नाभि केंद्र पर दो श्वासों के बीच के अंतराल में हम पूरी तरह स्थिर होते हैं | इस मध्य अवस्था के प्रति जागरूक होने से सभी विचार गायब हो जाते हैं। क्योंकि इस समय हमारा शरीर पूरी तरह स्थिर होता है और सिर्फ इसी कारण से हमारा मन भी स्थिर हो जाता है | जब हमारा मन स्थिर हो जाता है, तब ध्यानावस्था प्राप्त हो जाती है | इसलिए दो श्वासों के बीच का केंद्र या अंतराल इतना खास है | लेकिन इस अवस्था को प्राप्त करने की कोशिश न करें और जानबूझकर साँस न रोकें | शरीर को सामान्य रूप से सांस लेने दें | आराम से बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें। अपना ध्यान सांसों पर केंद्रित करें और पूरा ध्यान दो सांसों के बीच के अंतराल पर लगाएं | कोशिश करें कि एक भी अंतराल यानि गैप न छूटे |
आप इस अभ्यास को जब करेंगे तो आप पाएंगे कि आपकी साँस स्वयमेव ही धीरे-धीरे, कोमलता से, बिना किसी प्रयास के लम्बी और गहरी हो रही है | अब आप प्रति मिनट कम बार सांस ले रहे हैं | जैसे-जैसे आप शांति के बारे में जागरूक होते जाते हैं, दो सांसों के बीच का अंतराल, मन और अधिक स्थिर होता जाता है | कम विचार उठेंगे और आप अधिक शांतिपूर्ण और आनंदित महसूस करने लगेंगे |
बच्चा, माँ के पेट में नाभि से साँस लेता है क्योंकि वह वहीं से इस संसार से जुड़ा होता है | पैदा होने के बाद भी वह साँस पेट से ही लेता है लेकिन जैसे-जैसे वह इस संसार में रमता जाता है वैसे-वैसे वह नाभि से साँस लेना भी भूलता जाता है | यह सूत्र हमें नाभि से साँस लेना याद दिलाता है और साथ ही साथ नाभि चक्र से ध्यानावस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है वह भी बताता है | आज के समय में हम परेशान, दुखी, और शरीरिक/मानसिक रूप से बीमार केवल इसलिए हैं कि हम अपने शरीर के केंद्र को भूल गये हैं | हम साँस बिना उस केंद्र को छूए हुए ले रहे हैं | नाभि स्थान, काम-केंद्र के पास है शायद इसी डर से समाज में छाती से साँस लेने की बात फैलाई गई होगी | जबकि यह सोच ही गलत है | नाभि केंद्र से साँस लेने पर काम-इच्छा व् स्खलन पर पकड़ बनती है जिस से ध्यानावस्था का मार्ग प्रशस्त होता है |
दोस्तों, यदि आपको अपनी या अपने शरीर की काबलियत या खासियत नहीं पता है या आप नहीं जानते कि ध्यान की कौन सी विधि आपके लिए है तो आपको सब विधियों को एक-एक कर कुछ दिन यानि एक से दो हफ्ते के लिए अपनाना होगा | जो विधि आपके लिए होगी वह विधि आपको आसान जान पड़ेगी तथा उस विधि के माध्यम से आप धीरे-धीरे ध्यान की दिशा की ओर अग्रसर हो जायेंगे |