सत्-चित्त-आनंद

शान्ति पाने की चाहत रखने वाले के लिए योग करना आवश्यक हो जाता है | क्योंकि शांत मन से ही हम आनन्द और फिर परमानन्द की ओर बढ़ते हैं | जैसे शनिक आनन्द के लिए हमें सम्भोग का सहारा लेना पड़ता है वैसे ही हमें शान्ति के लिए योग का सहारा लेना पड़ता है | शांत मन में आनन्द खुद-ब-खुद चला आता है | क्योंकि वह पहले से ही हम में मौजूद होता है | ऐसा आनन्द हमें धीरे-धीरे परमानन्द की ओर ले जाता है | हम अपने आप में ही मस्त हो जाते हैं | हमें आनन्द के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं रह जाती है | ऐसा आनन्द से ओत-प्रोत व्यक्ति फिर चारों तरफ आनन्द ही आनन्द देखता और फैलाता है |

मन की शान्ति के लिए योग का सहारा लिया जा सकता है | शांत चित्त या मन के लिए ऋषि पतंजलि ने कई उपाय बताये हैं | उनके अनुसार जब विचारों का अदान-प्रदान बंद हो जाता है तब मन शान्ति की ओर अग्रसर हो जाता है | ऐसी स्थिति को ऋषि पतंजलि ने अ-मन कहा है | लेकिन व्यक्ति ऐसी स्थिति को पाने के लिए निकलता तो है लेकिन अ-मन की स्थिति हासिल करने से पहले ही या तो भटक जाता है या फिर छोड़ देता है | क्योंकि इसे योग द्वारा पाना थोड़ा कठिन है लेकिन असम्भव नहीं है | विचार इतने प्रबल होते है जैसे उफनती नदी | ऐसी उफनती नदी पर बाँध बनाना मुश्किल काम है | इसके लिए आपको लगातार कोशिश करनी होती है | तभी आप शन्ति और अ-मन की स्थिति तक पहुँच पाते हैं | आज के व्यस्त जीवन में लगातार ऐसे काम को करना जरा मुश्किल है | हजार में से कोई एक सफल हो पाता है | ऐसा सफल व्यक्ति शांत तो हो जाता है | लेकिन अ-मन की स्थिति मुश्किल ही प्राप्त कर पाता है क्योंकि हमारी आज की रोजमर्रा की जिन्दगी इसकी इजाजत ही नहीं देती है | फिर भी हमें कोशिश करते रहना चाहिए | वैसे शांत चित्त पा लेना भी कुछ कम नहीं है |

दोस्तों, एक और बहुत ही आसान तरीका है जिससे आप शान्ति और अ-मन बहुत आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | उस तरीके से आप धीरे-धीरे आनन्द की ओर बढ़ने लगते हैं और वह भी बिना किसी ख़ास मेहनत के | ऐसा एक उपाय नानक ने जपजी साहिब में बताया है | और वह उपाय है श्रवण यानि सुनिये और उसमें ध्यान मग्न हो जाइये |

जपजी साहिब – पौड़ी -1

सोचै सोचि न होवई जे सोची लाख वार || चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ||

भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पूरीआ भार || सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ||

किव सचिआरा होईऐ किव कुड़ेई तुटेई पालि || हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ||

अर्थात आपके सोचने से कुछ नहीं होने वाला है | चाहे आप लाख बार किसी बात को सोच लें | आप कितना भी चुप कर जायें | आपको आंतरिक शान्ति नहीं मिलने वाली है | चाहे आप कितनी भी ख़ुशी या प्रेम को कितना भी अपने अंदर समाने की कोशिश कर लें | भूखे की भूख शांत नहीं हो सकती है चाहे वह कितना भी दुनियाबी चीजों या सुखों को इकठ्ठा कर ले | आप कितनी भी तरकीबें लगा लें आप के साथ कुछ भी जाने वाला नहीं है | आप सच्चे या नेक या अच्छे कैसे हो सकते हैं | आप इस दुनियाबी मायाजाल को कैसे तोड़ सकते हैं | अब हल दिया है – कि नानक कहते हैं सबका एक ही हल है कि आप अपने को उसकी मर्जी पर छोड़ दें | जैसा वह रखे वैसे रहें |

जपजी साहिब पौड़ी -8

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ || सुणिऐ धरति धवल आकास || सुणिऐ दीप लोअ पाताल || सुणिऐ पोहि न सकै कालु || नानक भगता सदा विगासु || सुणिऐ दुःख पाप का नासु ||

अर्थात आप सिद्ध पुरुषों या गुरु की वाणी सुनें | आप धरती और आकाश की वाणी सुनें | आप समुंद्र और पताल की वाणी को सुनें | सुनने से आपको मृत्यु छू तक नहीं सकती है | नानक कहते हैं ऐसे भगत हमेशा परमानन्द में खोया रहता है | और उसके सारे दुखों और पापों का नाश हो जाता है |

इससे आगे की तीन पौड़ी में भी उन्होंने सुनने पर जोर दिया है कि सुनने, पढ़ने और गाने से आपका ध्यान बहुत आसानी से लग जाता है |

आइए अब समझते हैं कि नानक कहना या समझाना क्या चाहते हैं | इसे समझने के लिए हमें बाद की पौड़ी से शुरू करना होगा | नानक कहते हैं कि गुरु की वाणी या सिद्ध पुरुषों की वाणी सुनिए | उनकी वाणी का गुणगान करिए या दोहराइए | उन्होंने धरती, आकाश, समुंद्र और पाताल की वाणी सुनने को कहा है | उन्होंने कहा है कि जो इसे सुनने लग जाता है | ऐसे व्यक्ति के सारे दुखों और पापों का नाश हो जाता है | और ऐसा व्यक्ति परमानन्द को प्राप्त कर लेता है |

दोस्तों, आपको उपरोक्त लिखी बातें अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन इसमें बहुत गूढ़ बात कही गई है | यहाँ जैसा नानक ने कहा है वैसा नहीं है | वह बहुत गूढ़ बात कह रहे हैं | वह उस गुरुवाणी या गुणगान या आरती या पाठ की बात नहीं कर रहे हैं जैसा कि हम रोज करते हैं | सुबह-सुबह उठ कर मंदिर या गुरद्वारे में जा कर पाठ या गुरुवाणी सुनते हैं | वह उसकी बात भी नहीं कर रहे हैं जैसा हम रात को सोने से पहले पाठ करते या गुरुवाणी सुनते या जपते हैं | वह उसकी बात भी नहीं कर रहे हैं जो हम काम करते हुए टेप पर या मोबाइल पर चला कर सुनते या साथ-साथ बोलते या जपते जाते हैं | अगर वह यह कहना चाहते होते तो फिर आकाश या धरती या समुंद्र या पाताल की बात क्यों करते | और वह इस आकाश या धरती या समुंद या पाताल की भी बात नहीं कर रहे हैं | फिर वह क्या कहना चाहते हैं ?

वह कह रहे हैं कि हमारा सिर या दिमाग या मस्तिष्क एक आकाश है इसमें क्या चल रहा है | इसमें कौन से विचार चल रहे हैं पहले उसे सुनों | उस पर ध्यान केंद्रित करो | फिर धरती यानि अपने शरीर पर ध्यान केंद्रित करो | उसमें क्या चल रहा है उसकी ध्वनि सुनो | फिर समुंद्र यानि मॉस-मज्जा और रक्त पर ध्यान केंद्रित करो | उसकी ध्वनि सुनो | हमारे दिमाग में हर समय हजारों विचार पनपते और धूमिल होते रहते हैं उसको सुन कर ही आप शांत कर सकते हैं | शरीर में दिल है वह धड़क रहा है | शरीर में हर जगह नब्ज चल रही है | साँस आ रही और जा रही है | खून इतने वेग से चल रहा है उसका भी अपना शोर या आवाज होगी | इन सब पर ध्यान केंद्रित करो | इनकी आवाज सुनो | इनकी आवाज सुनते-सुनते आप ध्यान में खोते चले जाएंगे | और फिर आपका सामना पाताल यानि आत्मा से होगा | जहाँ कोई ध्वनि नहीं है | यहाँ वैसी ही शांति है जैसी आपको पर्वतीय क्षेत्र में जा कर महसूस होती है | आप किसी पहाड़ की चोटी पर खड़े हो यदि जोर से चिल्लाएं तो वह आवाज कुछ देर तक गूंजती रहती है | अतः नानक कहना चाहते हैं कि जब आपके अंदर ऐसी शांति होगी तब आप गुरुवाणी सुनिए या पाठ या जप करिए | ऐसे निर्विचार या अ-मन की स्थिति में किया पाठ या सुनी गुरुवाणी आपके अंदर काफी देर तक प्रतिध्वनीत होती रहेगी | आप जप या पाठ बंद भी कर देंगे लेकिन उसकी प्रतिध्वनि आपके अंदर गूंजती रहेगी जो आपको ऐसे परमानन्द की ओर ले जाएगी | जहाँ से आप हमेशा के लिए उसमें खो जाएंगे | तब आप कोई भी काम कर लो कोई भी विचार कर लो | आपके अंदर जाप स्वयमेव चलता ही रहेगा | जब ऐसा होगा तब आपको सब कुछ करने बावजूद दुनियाबी मायाजाल अपनी ओर नहीं खींच सकता | आप कीचड़ में होने के बावजूद कमल के फूल की तरह उससे ऊपर उठ कर खिल उठेंगे और इस दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाएंगे | लेकिन आप ऐसा कब कर पाएंगे ?

इसके बारे में पहले वाली पौड़ी में बताया गया है कि आप नाहक दुखी होते हैं | दुःख का कोई अंत नहीं है | आँख बंद कर लेने से या चुप हो जाने से कोई शांति नहीं मिलती है | आप लाख बार सोच लो या उस दुःख का हल निकाल लो या हजारों सुख सुविधाएं इकठ्ठी कर लो | कुछ नहीं होने वाला है | आप इस मायाजाल से नहीं निकल सकते | इस माया जाल से निकलने का एक मात्र हल है कि ईश्वर की मर्जी या रजा में अपनी मर्जी या रजा मिला दो | जो हो रहा है | जैसा हो रहा है | उसमें खुश रहो | दुःख आये तो दुखी हो लो | सुख आये तो सुखी हो लो | यह सोच कर की जैसी प्रभु की मर्जी | जब ऐसा आप कर पायेंगे तभी आप अंतर्मन में उतर सकते हैं | और जब आप अंतर्मन में उतरेंगे तब आपको गुरुवाणी या पाठ या जप सुनने/करने का फायदा होगा |

अंतर्मन में हर पल स्वयमेव चलने वाला जाप अपने आप ही हर सम्बन्ध को हमेशा के लिए ठीक कर देगा | क्योंकि अंतर्मन का आनन्द स्वयमेव ही बाहर निकल कर आपके आसपास के सब लोगों को सुख और शान्ति की ओर ले जाएगा | और वह भी बिना किसी प्रयास के |

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