दोस्तों, हम ने पिछले भाग में यह बताया था कि कुछ लोगों में पाँच इन्द्रियाँ यानि दृष्टि, गंध, श्रवण, स्वाद और स्पर्श आदि एक आम इंसान से ज्यादा काम करती हैं जिस कि वजह से वह लोग आम इंसान से थोड़ा ऊपर उठ कर होते हैं लेकिन वह इस बात को जानते तक नहीं हैं | मैं आपका ध्यान एक लेख की तरफ लेकर जाना चाहता हूँ | यह लेख The New York Times में 15 मार्च, 1964 में छपा था | इसे आप Net पर ढूंड भी सकते हैं | बहुत आसानी से आपको मिल जाएगा | इस लेख को पढ़ कर आपको समझ में आ जायेगा कि हम पाँच इन्द्रियों को महत्व दे रहे हैं और क्यों हम ने इस तंत्र-योग की शुरुआत पाँच इन्द्रियों से की है |
जिस भी व्यक्ति विशेष में इन इन्द्रियों में से कोई एक इंद्री आम इंसान से यदि अधिक काम कर रही है तो इसका अर्थ है कि उसकी छठी इंद्री जिसे आप Sixth sense के नाम से भी जानते हैं वह कहीं न कहीं उस व्यक्ति विशेष में बिना जागृत किये हुए ही पैदाइश से जागृत अवस्था में होती है जिस कारण वह इंसान एक आम इंसान से थोड़ा अलग होता है | अनजाने में वह उस इंद्री और छठी इंद्री का प्रयोग रोजमर्रा की जिन्दगी में कर बहुत खुश होता रहता है | और यही उस व्यक्ति के पतन का कारण भी बनता है | एक समय में वह आम लोगों से अलग-थलग तक हो जाता है | इस तरह के व्यक्ति को समझ तक नहीं आता है कि समाज उसके साथ ऐसा क्यों कर रहा है |
जैसा कि हम ने पिछले भाग में बताया था कि ध्यान की यह विधि इन्ही लोगों के लिए है | अब हम बताते हैं कि कैसे इस तरह के लोग ध्यान की इस विधि का प्रयोग कर ध्यान-योग में सफलता पा सकते हैं |
ऐसे व्यक्ति ज्यादात्तर बहिर्मुखी यानि extrovert होते हैं क्योंकि इन में अपनी खासियत बताने की आदत होती है | ऐसे लोग समय के साथ negativity के शिकार होते जाते हैं और ज्यादात्तर अपनी खासियत का प्रयोग दूसरों की कमी निकालने में प्रयोग करने लगते हैं | ऐसी खासियत के लोग बहुत कम अंतर्मुखी यानि introvert होते हैं | और यदि होते हैं तो बहुत जल्दी-जल्दी डिप्रेशन का शिकार बनने लगते हैं | दोनों ही प्रकार के लोगों को यह समझ नहीं आता है कि उनके आस-पास के लोग हमेशा उनके खिलाफ क्यों खड़े हो जाते हैं |
खैर, ऐसे लोग इस सूत्र में बताई गई विधि का प्रयोग कर न केवल समाज के प्रिय बन सकते हैं बल्कि ध्यान के क्षेत्र में भी अन्य से जल्दी सफलता भी पा सकते हैं | ऐसे व्यक्ति अपनी छठी इंद्री को पैना कर समाज और ध्यान के क्षेत्र में ऊँचाई भी प्राप्त कर सकते हैं |
जो व्यक्ति बहिर्मुखी हों वह आँख खोल कर ध्यान करें और जो अंतर्मुखी हों वह आँख बंद कर ध्यान करें | जो आँख खोल कर करते हैं उन्हें दिवार पर एक इंच का बिंदु बना कर उस पर ध्यान केन्द्रित करना है या किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित कर वैसे ध्यान करना है जैसे त्राटक किया जाता है यानि पलक न झपके ऐसी कोशिश लगातार ध्यान के समय करनी है | जो आँख बंद कर ध्यान करेंगे उन्हें अपना ध्यान का केंद्र दोनों आँखों के बीच केन्द्रित करना है |
यहाँ तक यह विधि एक आम ध्यान विधि की तरह है |
ऐसे व्यक्तियों में इन पाँच इन्द्रियों यानि senses की संवेदनशीलता बहुत ज्यादा होने के कारण अनजाने में उनका शरीर या मन इस इंद्री का प्रयोग करता है | आध्यात्म और मनोविज्ञान दोनों ही कहते हैं कि जब हम अपनी शरीरिक उर्जा का प्रयोग जरूरत से ज्यादा करते हैं तब हम वह हासिल नहीं कर पाते हैं जो भी हमें जीवन में चाहिए होता है | अतः हमें इस विधि में कहा जा रहा है कि हमें शरीर से बाहर जाती इस उर्जा को बहने से रोकना होगा | यह तभी रुक सकती है जब हम इसे उस सीमा तक ले जाएँ जहाँ इसका बहाव बाहर न होकर स्वयम ही अंदर की ओर मुड़ जाए | जब इसका बहाव अंदर की मुड़ेगा तब इस इंद्री का हमारी छठी इंद्री से सम्बन्ध टूट जाएगा | तब यह दोनों मिलकर हमें ध्यान की उस अवस्था की ओर अपने आप ही ले जायेंगे जहाँ एक आम इंसान बहुत कोशिश के बाद भी नहीं पहुँच पाता है |
आप यह सोचते हैं कि आप केवल इस इंद्री का प्रयोग कर रहे हैं जबकि इस इंद्री द्वारा महसूस किया गया सारा डाटा आपकी यादाश्त में स्टोर हो रहा है | असल में आपकी यह इंद्री आपके लिए ज्यादा घातक नहीं है बल्कि वो स्टोर हुआ डाटा आपके लिए खतरनाक है | जब आप इस इंद्री का प्रयोग अपनी इच्छा से करेंगे तब इसका डाटा स्टोर नहीं होगा और असल में तब आप एक आम इंसान से अलग होंगे |
आप आँख खोल कर ध्यान कर रहे हैं तब यदि आपकी दृष्टि की इंद्री संवेदनशील है तो आपको सामने देखते हुए दिन भर में आपने जो भी देखा वह सब याद करना | कुछ समय या दिन इसे प्रयोग करना है और फिर कुछ दिन पहले कुछ ख़ास देखा था वह याद कर देखना है और फिर महीने पहले और फिर कुछ साल पहले | ऐसा करते हुए धीरे-धीरे आपका स्टोर हुआ डाटा खत्म होने लगेगा और जो सामने देख रहे हैं वह ही दिखेगा | कुछ समय या दिन के बाद वह सामने वाला भी दिखना बंद हो जाएगा |
आप एकाग्रता और लग्न से इस विधि का प्रयोग करते हैं तो कुछ दिन यानि पाँच-छह दिन के प्रयोग के बाद ही आप महसूस करेंगे कि आपकी यह इंद्री जितनी पहले संवेदनशील थी अब नहीं रही | यहीं से आपकी ध्यान में गहराई आनी शुरू होगी | यह प्रयोग बाकि इन्द्रियों पर भी किया जा सकता है | एक बात यहाँ और ध्यान देने वाली है कि ध्यान का समय एक मिन्ट से एक घंटा कुछ भी हो सकता है लेकिन आपको जबरदस्ती नहीं बैठना है और इंद्री पर जोर नहीं देना है | एक बात याद रखिये कि समय कोई मायने नहीं रखता है | मायने सिर्फ इतना रखता है कि आपका शरीर जितना भी इजाजत देता है उसे कुछ ज्यादा आपको बैठना है |
असल में इस विधि का मुख्य ध्येय ये है कि आपकी उर्जा जो इस इंद्री पर लग रही थी वह रुक जाए और वह तभी रुक सकती है जब आप रोजाना अपनी इच्छा से करें | यह सब मन का खेल है | मन को जब कहा जाए कि इस इंद्री का प्रयोग करना है तब वह कुछ दिन तो करेगा लेकिन धीरे-धीरे मन गायब होना शुरू हो जाएगा | इस विधि को करते हुए भी कुछ ऐसा ही होगा | मन गायब होते ही आपका आपके मन पर कण्ट्रोल होना शुरू हो जाएगा | धन्यवाद |