इंद्री विधि द्वारा ‘ध्यान’ साधना – 1

इंद्री विधि द्वारा ‘ध्यान’ साधना – 1

दोस्तों, आइये ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में दिए गये सूत्र-32 से शुरुआत करते हैं |

आप सोच रहे होंगे कि सूत्र-32 से ही क्यों ?

दोस्तों, हम आपको विज्ञान भैरव तंत्र, पढ़ाने, समझाने या इसके बारे में बताने की कोशिश नहीं कर रहे हैं | यह सब तो आप इन्टरनेट पर खोज कर भी कर सकते हैं | हम ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में छिपे अनूठे ध्यान तंत्र को व्यवहारिक रूप देकर समझाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि आप Meditation यानि ध्यान को आसानी से अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी एक हिस्सा बना पायें | आप बताई जाने वाली विभिन्न विधियों के अनुसार ध्यान करें | जिस भी विधि से आपको ध्यान धरने में सफलता मिलती है वही विधि अपना लें | यदि आपको अपने बारे में पता है यानि आप अपनी क्षमता या अक्षमता का विशलेषण कर सकते हैं तो आपको स्वयम ही समझ में आ जायेगा कि कौन सी विधि आपके लिए है तब आपको सब विधियों को करने की जरूरत नहीं है | आप सब को ज्यादा मेहनत न करनी पड़े इसीलिए हम इन विधियों को बहुत ही सरल भाषा और पूर्ण रूप से व्यवहारिक ढंग से समझायेंगे |

आप जानते ही हैं कि हर बिमारी की एक दवाई नहीं हो सकती या एक दवाई हर व्यक्ति का ईलाज नहीं कर सकती | हर व्यक्ति की अलग-अलग शरीरिक संरचना होती है और उसके अनुसार ही बिमारी का असर होता है | जैसे एक ही बिमारी का असर अलग-अलग व्यक्ति पर अलग होता है वैसे ही एक तरह की दवा पर भी होता है | यही बात ‘ध्यान’ की विधि पर भी लागू होता है | इस समस्या का हल कई सौ साल पहले बताया गया था लेकिन वक्त और हालात और कुछ विशेष कारणों के कारण यह प्रसिद्द नहीं हो पाया या इसे व्यवहारिक रूप से बताया नहीं गया | काफी लोगों ने इस पर लिखा है लेकिन वह किताबों में ही कैद हो कर रह गया | शायद आज से बीस-तीस साल पहले ऐसी सुविधाएँ नहीं थी |

खैर, आइये आगे बढ़ते हुए सूत्र-32 के अर्थ से शुरुआत करते हैं |

ऊपर दिए गये सूत्र का अर्थ है कि मोर की पूंछ के पंख पर पाँच रंग के गोल चक्र होते हैं | हमें इन चक्र पर ध्यान साधना है | यह चक्र शून्य के प्रतीक हैं | इन पर ध्यान साधते हुए जब चक्र खो जाएँ और शून्य रह जाए तब वह शून्य हमारे हृदय में प्रवेश कर जाएगा |

दोस्तों, ध्यान की इस विधि में यह कहा जा रहा है कि हमें उन पाँच प्रकार के रंग के गोलों को तब तक देखते रहना है जब तक वह सब मिलकर एक न हो जाएँ | एक ही रंग का गोला बनने के बाद कुछ समय बाद वह गोल आकृति भी खो जायेगी तब समझिये कि अब आपका मन नहीं रह गया है क्योंकि आपका मन ही तो रंग और आकृति पहचानता है | जब मन नहीं रहा तो इसका ये मतलब है कि अब मन हमारे नियंत्रण में हो गया है | जब चाहे मन का प्रयोग करें और जब न चाहें तो सब कुछ भूल जाएँ |

आइये अब इसे व्यहारिक दृष्टि से समझते हैं | यहाँ मोर के पंखों में पाँच रंग के गोल आकृति से अभिप्राय है हमारी पाँच इन्द्रियां – दृष्टि, गंध, श्रवण, स्वाद और स्पर्श |

दोस्तों, हम ने इस सूत्र से शुरुआत इसीलिए की है क्योंकि आप इन पाँच इन्द्रियों से भलीभांति परिचित हैं | इस विधि के माध्यम से वह लोग बहुत आसानी से ध्यान की गहराई छू सकते हैं जिन में यह इन्द्रियां एक आम इंसान से कुछ ज्यादा काम करती हैं |

आपने अपने आस-पास या आप खुद भी हो सकते हैं जिन में यह इन्द्रियां या इन में से कोई एक इंद्री आम इंसान से कुछ ज्यादा या बहुत ज्यादा ही काम करती है | जैसे मैं ऐसे बहुत लोगों को जानता हूँ जिन में दृष्टि की इंद्री काफी ज्यादा काम करती है | ऐसा इंसान एक बार किसी जगह से निकल जाए तो वह, वह सब कुछ देख कर जाने-अनजाने में अपने दिमाग में स्टोर कर लेता है जो कोई आम इंसान नहीं कर पाता है | ऐसा नहीं है कि वह इंसान कोई खास ध्यान दे तभी ऐसा कर पाता है बल्कि यह उसकी आम आदत में शामिल होता है | यदि ऐसे इंसान से आपकी कोई ख़ास जान-पहचान नहीं है तो भी वह दूसरी बार मिलने पर आपको पहचान जाएगा और पूछने पर आपको बता देगा कि वह आपको कब और कहाँ मिला और उस दिन आपने क्या पहना था इत्यादि |

ऐसे ही यदि किसी व्यक्ति की गंध यानि सूंघने या श्रवण यानि सुनने की शक्ति आम इंसान से ज्यादा जागृत है तो ऐसा इंसान 400 से 500 मीटर दूर से आ रही गंध को सूंघ कर बता सकता है कि वह किस तरह की गंध है | यदि खाने की गंध है तो क्या बन रहा है और उस में क्या-क्या मसाला पड़ा है | ऐसे ही सुनने वाला आम इंसान से 100 से 500 मीटर दूर से आ रही आवाज को सुन पाता है और बता भी सकता है कि वह आवाज किस की है और कितनी दूर से आ रही है |

अभी जैसा बताया है वह कम या ज्यादा हो सकता है लेकिन जिस भी इंसान में यह ताकत या खासियत या शक्ति, एक आम इंसान से ज्यादा होती है वह उपरोक्त विधि के माध्यम से बहुत आसानी से ध्यान की गहराई में उतर सकता है |

अगले भाग में हम आपको ऐसे इंसान कैसे इस विधि का प्रयोग करें यह विस्तार से बतायेंगे | धन्यवाद |

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