दोस्तों, ‘तंत्र’ या ‘तंत्र-योग’ शब्द सुन, डरने की जरूरत नहीं है |
आप जिस तंत्र या तांत्रिक को जानते हैं या आज के समय में प्रसिद्द है और हर गली-मोहल्ले में मिल जाएगा या उसका पोस्टर लगा मिल जाएगा वह असल में तंत्र का कभी हिस्सा ही नहीं था |
तंत्र का वशीकरण या भूत-प्रेत भगाने या अपने वश में कर उसे गलत प्रयोग में लाने से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है यह तंत्र का गलत प्रचार व् प्रसार है या यूँ कहें कि इस ब्रह्म विद्या को जादू या टोने-टोटके का नाम दे, बदनाम करने की साजिश है |
दोस्तों, आपने तंत्र के बारे में जो कुछ भी सुना या पढ़ा है या आज जो भी प्रचलित है पहले उसी की बात कर लेते हैं ताकि आपकी जिज्ञासा भी शांत हो जाये और तंत्र पर विश्वास भी हो जाये |
तंत्र कश्मीरी शैववाद का एक हिस्सा है | इतिहास खोजने पर ज्ञात होता है कि तंत्र दूसरी शताब्दी यानि 200 ईस्वी से तेरवीं शताब्दी यानि 1300 ईस्वी तक खूब फला-फूला लेकिन प्रसिद्द नहीं हो पाया | जिस प्रकार बौद्ध धर्म के साथ हुआ कि वह विश्व प्रसिद्द तो हो गया लेकिन भारत में जन्मा होने के बावजूद भारत में प्रसिद्द नहीं हो पाया | लगभग यही सब तंत्र के साथ भी हुआ |
बौद्ध धर्म ने ईश्वर के होने और मूर्ति पूजा को मान्यता नहीं दी और शायद यही एक मुख्य कारण रहा जिस कारण भारत में फल-फूल नहीं पाया | जबकि बुद्ध का यह मतलब नहीं था | उनका कहना था कि ईश्वर हर इंसान के अंदर विद्यमान है उसे बाहर पूजने का कोई औचित्य नहीं है | बुद्ध का कहना था कि क्योंकि अंततः आपको अंदर ही खोजने जाना पड़ता है तो फिर अभी क्यों नहीं |
बौद्ध धर्म, ईसा से पाँच सौ वर्ष पहले आया था और तंत्र की शुरुआत दूसरी शताब्दी से हुई थी (ऐसा उस समय के साहित्य से ज्ञात होता है) इसीलिए तंत्र में वेद, पूराण, आध्यात्म व् बौद्ध धर्म की झलक मिलती है | तंत्र भी शरीर से बाहर की सोच को आगे नहीं बढ़ाता है शायद इसीलिए यह आगे नहीं बढ़ पाया | इतिहास गवाह है कि तंत्र की लगभग बीस से ज्यादा शाखाएं थी जोकि उस समय के लोगों द्वारा विरोध करने के कारण आज तीन-चार ही बची हैं | इसके लुप्त होने के कई कारण जान पड़ते हैं लेकिन मुख्य कारण यह था कि शंकराचार्य व् ब्राह्मण जाति ने इसका घोर विरोध किया | सब का विरोध करने का कारण समझ में आता है कि वह नहीं चाहते थे कि कोई भी मूर्ति पूजा और कर्म-काण्ड से बाहर आ पाये लेकिन शंकराचार्य ने क्यों विरोध किया समझ नहीं आया |
हिन्दू और बौद्ध धर्म उस जमाने में कश्मीर में अपनी चर्म सीमा पर था | कहा तो यह भी जाता है बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार, विकास और फैलाव कश्मीर के रास्ते ही हुआ था | बौद्ध धर्म और कश्मीरी शैववाद दोनों का उस काल में वर्चस्व था | उस समय कश्मीर को ईश्वर की गोद कहा जाता था | यह इस बात से साबित होता है कि उस समय (दूसरी शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक) के महान धार्मिक व्यक्ति अपने जीवन काल में एक बार कश्मीर जरूर आये थे |
कश्मीर में इस्लामीकरण 13वीं शताब्दी के दौरान शुरू हुआ, 14वीं और 15वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर पूरी तरह से मुस्लिम शासन के मातहत हो गया और यही कश्मीर में कश्मीर शैववाद व् तंत्र के अंतिम पतन का कारण बना |
दोस्तों, हम यहाँ एक बात और स्पष्ट रूप से बताना चाहते हैं कि तंत्र का एक रूप जो आज कल काम-तंत्र या सेक्सुअल (sexual) या सेंसुअल (sensual) तंत्र बहुत प्रसिद्द है | यह विदेशों से होते हुए भारत में भी प्रवेश कर चुका है | इन्टरनेट इस तरह के तंत्र से भरा पड़ा है |
दोस्तों, इस तरह का तंत्र, तंत्र योग का हिस्सा नहीं है बल्कि तंत्र की एक शाखा है लेकिन आज के समय में प्रसिद्द इस तंत्र में काम-सूत्र पिरो दिया गया है और असली तंत्र को दरकिनार कर दिया गया है | इस तंत्र में काम-क्रिया करते हुए या उससे पहले या उसके बाद के अनुभव को अनुभव करते हुए ‘ध्यान’ की कई विधियाँ बताई गई हैं | अर्थात यह भी ईश्वर को पाने की एक क्रिया है – ऐसा इस तंत्र में बताया गया है | तंत्र की यह शाखा काम से शुरू हो इसके आखिरी सीमा को लांघती हुई काम से ऊपर उठ जाती है | लेकिन आज इस शाखा को काम सुख कैसे ज्यादा से ज्यादा पाया जा सकता है ऐसा बता कर प्रसिद्द किया जा रहा है |
तंत्र की एक शाखा : ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में ‘ध्यान’ करने के बहुत ही आसान तरीके बताये गए हैं | हम इसी पर आधरित तंत्र को आध्यात्म और मनोविज्ञान यानि Psychology में पिरो कर आपके सामने पेश करेंगे | इसी पर आधारित एक पुस्तक आपके समक्ष पेश करूँगा जिस में यह सब और भी विस्तार से बताया जायेगा |