आध्यात्म कहता है कि ऐसा सिर्फ ख्वाब में ही हो सकता है कि अच्छा रहे और बुरा खत्म हो जाए | सूर्य की रौशनी की जरूरत तभी पड़ती है जब रात और अँधेरा होता है | अगर हर समय सूर्य ही रहेगा तो सब कुछ खत्म हो जायेगा और अगर वह हो ही न तो भी लगभग सब खत्म हो जाएगा | आध्यात्म कहता है कि अच्छे का फल अच्छा मिलेगा और बुरे का फल बुरा मिलेगा | लेकिन इसे तार्किक रूप से पेश नहीं किया गया है |
तंत्र की मूल दृष्टि यह है कि पूरा ब्रह्माण्ड एक है | आज का विज्ञान कहता है कि हम सब 99.99 प्रतिशत atom से बने हैं और ब्रह्माण्ड भी ऐसा ही है | इसीलिए तंत्र कहता है कि हमारे शरीर और ब्रह्माण्ड में कोई फर्क नहीं है | हमारे और ईश्वर में कोई फर्क नहीं है | बुराई और अच्छाई में कोई फर्क नहीं है | तभी तो शिव को संहारक और सृजनकर्ता, महान तपस्वी और कामुकता का प्रतीक माना गया है | शिव ने ही अपनी शक्ति को पार्वती का रूप दिया है | इसीलिए तंत्र कहता है कि हर पुरुष में स्त्री और हर स्त्री में पुरुष का एक अंश विद्यमान होता है और यह बात आज का विज्ञान भी मानता है |
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि तंत्र की शुरुआत शिव-पार्वती संवाद से होती है इसीलिए तंत्र को आध्यात्म का ही हिस्सा माना गया है |
बीज से पौधा, पौधे से पेड़, पेड़ से फल और फिर फल से बीज बनता है ये आज का विज्ञान भी कहता है और आध्यात्म भी कहता है | सब कुछ वैसे ही हो रहा है जैसे हमारे ब्रह्माण्ड में हो रहा है | सब कुछ घूम कर वापिस आता है | जैसे रात के बाद दिन, गर्मी के बाद सर्दी | प्रकृति, ईश्वर के दूत का सबसे बड़ा उदाहरण है | जंगल इसी circular motion के सिद्धांत पर बढ़ते हैं जब तक कि हम उसे बर्बाद नहीं करते | अगर यह सब प्रकृति कर रही है तो इस धरती पर रहते हुए हम भी तो प्रकृति के अनुसार ही चलेंगे या चलना पड़ेगा | और अगर ये हो रहा है तो हमारी अच्छी सोच, अच्छे कर्म वापिस क्यों नहीं आएंगे और उनका फल अच्छा क्यों नहीं मिलेगा | इसी के मद्देनजर आध्यात्म में कहा गया है कि ईश्वर का अंश आत्मा रूप में हम सब में विद्यमान रहता है | इसका अर्थ है कि हम ईश्वर के अंश के साथ जन्म लेते हैं और वापिस वह अंश ईश्वर में जाकर मिल जाता है | ये भी तो circular motion है |
आध्यात्म के इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए तंत्र का जन्म हुआ | तंत्र आध्यात्मिक सिद्धांतों को ही आगे बढ़ाता है | यह पूरी तरह से ‘ध्यान’ पर टिका हुआ है | आध्यात्म में बहुत अन्य तरीके हैं जिनके द्वारा ध्यान लगाया जा सकता है लेकिन तन्त्र में सब कुछ केवल और केवल ध्यान पर टिका है | तंत्र में योग भी सिम्मलित है लेकिन एक अलग तरीके से पिरोया गया है | तभी तो तंत्र को तंत्र-योग कहा जाता है | बाकि ये बात और है कि आज तंत्र किसी ओर रूप में ही हमारे सामने है जबकि आज से तीन-चार सौ साल पहले ऐसा नहीं था |
आध्यात्म के बहुत से सिद्धांत ऐसे हैं जोकि हमें पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक स्तर पर शुद्ध होने को कहते हैं जबकि तंत्र में ऐसा कुछ नहीं कहा जाता है | तंत्र में कहा जाता है कि आप जैसे हैं वैसे ही तंत्र में प्रवेश कर सकते हैं | आपको न कुछ अपनाना है और न कुछ छोड़ना है क्योंकि यह पूर्ण रूप से आत्मिक स्तर पर शुरू होता है और उसी पर टिका रहता है | यह बात और है कि जब आप में परिवर्तन आत्मिक तौर पर आता है तो बहुत कुछ भौतिक तौर पर छूट जाता है लेकिन यह सब अंदर से शुरू हो बाहरी स्तर की ओर बढ़ता है जबकि आध्यात्म में बाहरी तौर से शुरू हो आंतरिक स्तर की ओर बढ़ता है | आज आध्यात्म जो भी और जिस भी रूप में आपके सामने है उस में बहुत कुछ तंत्र की ही देन है |
आज, आप तंत्र को बहुत ही घिनोने रूप में देख रहे हैं क्योंकि उसी रूप को फैलाया गया है | तंत्र का अलग रूप आज प्रचलित है – सेक्स-योग, भूत-प्रेत भागने वाला, मुंड-माला की पूजा-अर्चना आदि, आदि | यह सब क्यों और कैसे हुआ या किया गया कौन जाने | वैसे जानकार भी हमें हासिल क्या होगा ?????