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एकाग्रता- भाग 2

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आध्यात्म कहता है कि आप अपने मन को काबू नहीं सकते | मन चंचल है वह ऋषि-मुनियों के काबू नहीं आया तो आपके कहाँ काबू आएगा |

आध्यात्म का मतलब है कि परम सत्य | सत्य ही ईश्वर है | इस पर कौन प्रश्न उठा सकता है |

लेकिन यह कहा किस सन्दर्भ में गया है और इसे कहने का तात्पर्य क्या था यह जानना तो जरूरी हो जाता है | ऐसी बहुत-सी बातें हम आपको आगे बताएँगे जो किसी न किसी का नाम लेकर कही जाती हैं | और आप सब मान जाते हैं कि इतनी जगह से और इतने लोग कह रहे हैं तो अवश्य ही सत्य होगा |

खैर, आध्यात्म में ये बात कही गई है – यह बिलकुल सच है |

मन बहुत चंचल है और वह हमें किसी एक सोच पर टिकने ही नहीं देता | मन को काबू नहीं किया जा सकता | लेकिन यह ‘ध्यान’ के विषय में कहा जाता है | जिसे हम एकाग्रता से जोड़ लेते हैं | जबकि एकाग्रता और ध्यान में बहुत फर्क है | हम ने पिछले भाग में भी बताया था कि ‘ध्यान’ में ध्यान अभौतिक पर केन्द्रित करने को कहा जाता है और मन इसमें सबसे बड़ा बाधक होता है | मन को काबू नहीं कर सकते, उसे रोका नहीं जा सकता उसे केवल दिशा दिखाई जा सकती है उस अनन्त और शान्ति की ओर लेकर जाना होता है जहाँ वह हो कर भी नहीं होता और इसी स्थिति को आध्यात्म में शुन्यव्स्था या अ’मन’ कहा जाता है | ऐसी स्थिति में मन एक दर्पण की तरह हो जाता है | कोई उसके सामने आएगा तो तस्वीर दिखेगी वरना दर्पण, दर्पण हो कर भी नहीं है |

हम यहाँ भौतिक की बात कर रहे हैं और भौतिक जीवन में मन को काबू करना आसान है | क्योंकि आपको भटकते मन को किसी एक भौतिक वस्तु या कार्य पर लगाना है, जैसे अगर पढ़ रहे हैं तो ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर है | अगर खेल रहे हैं तो ध्यान केवल खेल पर है | ऐसा करने पर आपको मानसिक बल के साथ ही साथ शारीरिक बल भी मिलता है |

जो व्यक्ति ज्यादात्तर नकारात्मक स्थिति (सोच, समझ और काम में सिर्फ नेगेटिव ही देखना) में रहते हैं उनकी वक्त बीतने के साथ एकाग्रता की शक्ति कमजोर होती जाती है | जिस कारण वह किसी भी सोच या काम पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते | किसी भी सोच या काम पर ध्यान केन्द्रित करना और वहाँ से हटाना दिमागी ताकत की निशानी है | नकारात्मक सोच या काम वाले चूँकि अपनी दिमागी ताकत का बेवजह जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं इसीलिए वह किसी ख़ास सोच या काम में न तो ध्यान लगा पाते हैं और न ही हटा पाते हैं | ऐसे लोगों का मन बेलगाम घोड़े की तरह किसी भी दिशा में दौड़ता रहता है, जैसे कभी किसी पर प्यार आ गया और थोड़ी देर या दिन में उस व्यक्ति विशेष पर गुस्सा इस कद्र आ गया कि वह दुश्मन से भी बढ़ कर दिखने लगा | उस व्यक्ति की वही बातें जो कुछ समय पहले अच्छी लगती थी वही अब हद से ज्यादा बुरी लगने लगी | ऐसे व्यक्ति के साथ रहने वाला यह नहीं समझ पाता है कि उसे क्या अच्छा और क्या बुरा लगता है | एक समय पर जो अच्छा लगता वह कुछ समय बाद बुरा लगने लगता है और कई बार तो कुछ ही घंटों में ऐसा होने लग जाता है | जो व्यक्ति अपने मन पर काबू नहीं कर पाता है वह जिन्दगी में कभी सफल नहीं हो सकता है |

एकाग्रता का मूल मन्त्र : शरीर से प्राप्त उर्जा को एक समय में एक दिशा देना | आपकी जो भी और जितनी भी शरीरिक उर्जा है उसे ज्यादा से ज्यादा बचाना और फिर किसी एक दिशा की ओर मोड़ कर उस उर्जा से ज्यादा से ज्यादा फल हासिल करना यही एकाग्रता का मूल मन्त्र है | एकाग्रता से आप अपनी जिन्दगी में जो भी चाहेंगे वह हासिल कर सकते हैं | यह कोई किताबी बात नहीं है बल्कि सौ प्रतिशत सच है |

एकाग्रता भंग या एकाग्रता न होने के कारण : जो भी व्यक्ति नकारात्मक सोच रखता है या जो व्यक्ति हर काम या बात में नकारात्मकता ही देखता है या जिस की नजर गलत पर ही जाती है या जो शक्की है या जो किसी पर विश्वास नहीं करता है या जो अपनी उर्जा को बेफिजूल के कामों में लगाता है या जो व्यक्ति अपने को व्यस्त रखने के लिए बिना किसी ख़ास उद्देश्य के कोई काम करता है या वह, वह काम करता है जो कोई और भी कर सकता है | ऐसा व्यक्ति चाह कर भी एकाग्रता प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि वह अपनी उर्जा को नकारात्मक सोच या काम या बेफिजूल के काम में पहले ही नष्ट कर लेता है |

इसके इलावा भी बहुत लोग बहुत प्रकार से अपनी उर्जा को नष्ट करते हैं और उन्हें पता भी नहीं होता कि वह अपनी उर्जा को नष्ट कर रहे हैं जिसके कारण उन्हें एकाग्रता लाने में कोशिश करने के बाद भी सफलता नहीं प्राप्त होती है | जैसे तेजी से पलक झपकना, एक जगह नजर न टिका पाना, बार-बार बेवजह इधर-उधर झांकते रहना, हाथ या पैर हिलाते रहना, होंठ हिलाते रहना, किसी भी अंग को बार-बार दबाते रहना, तीन से चार मिनट भी एक मुद्रा में बैठ या खड़े न हो पाना, कोई भी बात करते हुए या सुनते हुए कोई अन्य बात याद आ जाना…. आदि, आदि ऐसे बहुत उदाहरण हैं |

उपरोक्त कारणों के कारण ऐसा व्यक्ति ध्यान से सुनने या बोलने या याद करने वाली बात बोल, सुन या कर नहीं पाता | एक काम को छोड़ कर दूसरा काम शुरू कर देता है या कई काम एक साथ शुरू कर देने के कारण कोई भी काम निपटा नहीं पाता |

ऐसे व्यक्ति जल्द ही खुश या दुखी हो जाते हैं | उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता है | नाराज बहुत जल्दी हो जाते हैं | उन्हें कभी भी किसी बात पर शक हो जाता है और जो बात या काम शक करने वाला होता है वह बिना ध्यान दिए कर जाते हैं | वह ऐसा इसलिए कर पाते हैं क्योंकि उनकी उर्जा बेलगाम घोड़े की तरह कभी भी किसी भी दिशा में मुड़ जाती है |

हाँ, ऐसे व्यक्तियों में एक खासियत अवश्य होती है कि वह बेफिजूल के काम काफी तन्मयता और एकाग्रता से कर लेते हैं और जब कोई उन्हें टोकता है तो वह यही दुहाई देते हैं कि देखों मैं यह काम तो काफी एकाग्रता से कर रहा था | उन्हें अपनी नकारात्मकता नहीं दिखती है या वह चाह कर भी देख नहीं पाते हैं | इसी कारण वह इस जंजाल से निकल नहीं पाते लेकिन फिर भी अपने को नहीं कोसते बल्कि समाज, हलात या वक्त को ही दोषी ठहराते हैं |

खैर, दोस्तों हम ने पिछले भाग में आपको खोई हुई एकाग्रता पाने के तरीके बताये थे उन्हीं में से दो तरीके -पहला योग और दूसरा उर्जा कैसे बचायें पर विस्तार से बताते हैं :-

दोस्तों, जैसा हम ने पहले भी कहा है कि एकाग्रता और आध्यात्मिक ‘ध्यान’ में बहुत फर्क है |

सफलता पाने के लिए, पॉजिटिव होने के लिए, मन या सोच या कर्म पर काबू पाने के लिए एकाग्रता पाना बहुत जरूरी है | जैसा हम ने पिछले भाग में भी कहा था कि आप योगिक व्यायाम द्वारा भी एकाग्रता पा सकते हैं | शारीरिक योग आपके शरीर को स्वस्थ्य और आपकी साँस को सामान्य करने में काफी योगदान करता है और खासकर प्राणायाम | आज के समय में हम साँस भी ढंग से नहीं ले पा रहे हैं | कारण बहुत हैं लेकिन हमारा ध्यान इस ओर कभी गया ही नहीं कि यही असफलता या नकारात्मकता का बड़ा कारण है | सामान्य ढंग से साँस ने लेने के कारण हमारा मन और शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है, जैसे नकारात्मक सोच वाले, जल्द गुस्सा आ जाने वाले, जल्द नाराज हो जाने वाले व्यक्ति की साँस हमेशा असामान्य होगी | जब आप तनाव में होते हैं तब भी आपकी साँस सामान्य नहीं होती है | अतः आप साँस पर काबू पाकर भी अपनी उर्जा को बचाते हैं जो आपको एकाग्र होने में सहायता प्रदान करती है |

आप त्राटक योग यानि आँखों को एक बिंदु पर स्थिर कर भी उर्जा बचा सकते हैं या यूँ कहें कि एकाग्र हो सकते हैं |

आध्यात्म और योग यह पहले से ही कहता आ रहा है कि साँस पर काबू पा कर ही आप शरीर, दिमाग और मन पर काबू पा सकते हैं | अतः आप इसे हल्के में न लें | शरीरिक योग ख़ास कर प्राणायाम करें जिस से आपका अपनी साँस पर कण्ट्रोल हो सके | लेकिन हो क्या रहा है : योग को छोड़ कर लोग जिम जाने लगे हैं, पार्क में चलने या दौड़ने लगे हैं | बहुत से लोग एकाग्रता को ध्यान समझ मैडिटेशन शिविर में जा कर ध्यान सीख रहे हैं | बहुत से लोग कुण्डलिनी जागरण करवाना चाह रहे हैं | बहुत लोग संत-समागम या रोज सुबह सवेरे पूजा-स्थल या घर में पाठ-पूजा करने में जुटे हैं |

दोस्तों, आप उपरोक्त तरीके से भी एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं लेकिन यह असम्भव के बाद ही सम्भव हो पायेगा यानि जहाँ आप एक किलोमीटर की छोटी-सी यात्रा साधारण चाल से चल कर पूरी कर सकते हैं वहाँ आप सौ किलोमीटर का चक्कर लगा रहे हैं और वह भी दुर्गम पहाड़ियों से भरा रास्ता | बाकि आपको फैसला करना है कि आप क्या करना चाहते हैं |

यहाँ एक और बात भी बताना चाहेंगे कि मैडिटेशन से आप एकाग्रता नहीं पा सकते और बिना एकाग्रता के मैडिटेशन पर बैठना या करना बेमाने है | आप सिर्फ अपना समय खराब कर रहे हैं | जबकि एकाग्रता से आप बहुत जल्दी मैडिटेशन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं |

दोस्तों, आप एकाग्रता के जरिये कुछ भी पा सकते हैं | यहाँ कुछ भी का मतलब है कुछ भी, लेकिन इस पाने के लिए आपको एकाग्रता को चर्म सीमा तक ले कर जाना होगा | केवल तभी यह सम्भव हो पायेगा | बहुत से लोग ऐसा कर भी पाते हैं और बहुत से लोग एकाग्रता होने के बावजूद कुछ भी बड़ा जिन्दगी में पाने से असफल ही रहते हैं | क्योंकि वह हर छोटी से छोटी बात पर एकाग्र हो कामना करते हैं कि वह बात पूरी जाए | ऐसा करते हुए वह यह नहीं जानते कि वह अपनी उर्जा का गलत प्रयोग कर रहे हैं | वह बात पूरी होने पर वह बहुत खुश होते हैं कि हम ने ऐसा या वैसा चाहा और पूरा कर लिया | लेकिन दोस्तों, आपने जाने-अनजाने अपनी शरीरिक, मानसिक या आत्मिक उर्जा को बेकार कर दिया | यही छोटी, छोटी बातों में बेकार की उर्जा को यदि बचा कर रखते तो आप किसी बड़े काम पर भी लगा सकते थे और एक बड़े सफल इन्सान बन कर उभरते | आज के दौर में ज्यादात्तर लोग ऐसे ही अपनी उर्जा को बेकार कर रहे हैं जैसे : फलाने व्यक्ति या दोस्त का आज फोन आ जाए, मुझे देर हो गई है लेकिन बस या गाड़ी मिल जाए, घर पर पहुँचने पर कोई भी घरवाला मेरे से सवाल न पूछे, ऑफिस में आज बॉस भी देर से आये, वह लड़की आज भी मुझे रास्ते या बस या ट्रेन में मिल जाये, प्रशन पत्र में ये सवाल आये या न आये आदि, आदि ऐसे हजारों छोटी-छोटी बातों पर उर्जा बेकार की जा रही है जोकि यदि संजो कर सही दिशा की ओर लगाईं जाती तो सफलता बहुत आसानी से हाथ लग सकती थी |

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