इच्छा शक्ति, धैर्य एवं एकाग्रता से बनी सीड़ी किसी भी व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुँचा सकती है | यह तीनो आपस में इस तरह से जुड़े या मिले हुए हैं कि एक से साथ दो और दो के साथ तीसरा अपने आप ही आकर मिल जाता है | शुरुआत इच्छा शक्ति से होती है | जैसा हमने पिछले भाग में कहा था कि इच्छा शक्ति तो हम अपने साथ ले कर पैदा होते हैं | पैदा होते ही भूख को शांत करने के लिए रोना हमारा इच्छा शक्ति को दिखाने का पहला अवसर था | जवानी आते-आते हर इंसान के परिवार, समय और हैसियत के हिसाब से अलग-अलग लक्ष्य को पाने के लिए अलग-अलग इच्छा शक्ति हो सकती है |
जब आप लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मेहनत शुरू करते हैं, तब आप अपनी इच्छा शक्ति के हिसाब से मेहनत करते हैं | एक व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति है और वह जल्द से जल्द अपने लक्ष्य को पाना चाहता है | दूसरे की लक्ष्य को पाने की इच्छा शक्ति तो है लेकिन उसके लिए वह ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहता है | तीसरा व्यक्ति ऐसा भी हो सकता है जिसका लक्ष्य मेहनत करना है फिर उससे कोई भी लक्ष्य मिले उसे परवाह नहीं है |
मुश्किल लक्ष्य प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना जरूरी है और दृढ़ इच्छाशक्ति होने पर धैर्य और एकाग्रता स्वयमेव ही आकर शामिल हो जाते हैं |
सफलता मिलती रहे या सफलता के बारे में ज्यादा ध्यान न दिया तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहता है | लेकिन यदि असफलता हाथ लगे या लक्ष्य के बारे में न सोच कर सफलता पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो सबकुछ गड़बड़ हो जाता है या होने लगता है | सोच या विचार का गलत दिशा पकड़ते ही लक्ष्य अपने आप दूर से दूर होता चला जाता है | और जो व्यक्ति इस दौर से गुजर रह होता है उसे एहसास तक नहीं होता है कि वह गलती कर रहा है | उसके दिमाग में तो बार-बार यही कौंधता है कि मैं तो पहले से भी अच्छा कर रहा हूँ फिर भी असफलता क्यों हाथ लग रही है ?
दोस्तों, सब कुछ सही रहने या होने पर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ धैर्य और एकाग्रता अपने आप चले आते हैं | लेकिन….
दोस्तों, हमने पिछले भाग के अंत में एक प्रश्न लिखा था कि जब इच्छा शक्ति ही कम हो जाये या न के बराबर हो या गलत दिशा पकड़ ले तो क्या किया जाए…. ?
जब सब कुछ गड़बड़ हो रहा हो | जब लगातार असफलता हाथ लग रही हो | किसी भी ओर ख़ुशी या शांति या सुकून न हो | जब ध्यान, लक्ष्य की बजाय सफलता प्राप्ति पर ज्यादा हो | तब इच्छा शक्ति अपने आप कम होने लगती है और उसके कम होते ही सोच-समझ शक्ति में चाहते-न-चाहते हुए डर, शक, हीन भावना, क्रोध, आवेश, उत्तेजना, घृणा और झल्लाहट अपने आप घर करने लग जाते हैं | ऐसा होते ही धैर्य और एकाग्रता कोसों दूर हो जाते हैं |
ऐसे में अपने आप को एक बार फिर से शून्य से शुरू करना पड़ता है | और शुरुआत एकाग्रता से करनी होती है | एक बार फिर से एकाग्रता लानी मुश्किल तो जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है | एकाग्रता आते ही धैर्य और इच्छा शक्ति स्वयमेव ही जागृत हो जाती है |
दोस्तों, यदि आपके जीवन में असफलता नहीं है लेकिन धैर्य या एकाग्रता की कमी है या इच्छा शक्ति की कमी है या डर, शक, हीन भावना, क्रोध, आवेश, उतेजना, घृणा और झल्लाहट बिना कारण आ जाती है तो इस लेख में बताये गए तरीकों को प्रयोग करें | आपको अवश्य ही बदलाव महसूस होने लगेगा |
# आप एकाग्रता और धैर्य, ध्यान यानि meditation से भी प्राप्त कर सकते हैं | जैसा मैंने पहले भी कहा है कि आज के समय में ध्यान सिखाने के बड़ी से बड़ी दुकाने खुली हुई हैं | जो भी एक बार इन दुकानों में पैर रखता है फिर वह ऐसा फंसता है कि जहाँ न उसे राम मिलते हैं और न रहीम | यह गलत फैला हुआ है या फैलाया गया है कि ध्यान से आपको एकाग्रता और धैर्य की प्राप्ति होती है | जबकि होता उल्टा है | आपके पास एकाग्रता और धैर्य होगा तभी आप ध्यान सीख पायेंगे | आप सोच रहे होंगे कि मैं गलत कह रहा हूँ |
दोस्तों, एकाग्रता और धैर्य बाहरी यानि भौतिक वस्तु पर ही प्राप्त किया जा सकता है जबकि ध्यान यानि meditation शरीर के अंदर यानि अंदरूनी रूप से लगाया जाता है | आपके पास एकाग्रता और धैर्य है तभी आप कुछ देर ध्यानावस्था में बैठ पायेंगे | आपका मन भटकता रहेगा तो न आप एकाग्रता प्राप्त कर पायेंगे और न ही आप ध्यान लगाने में सफल हो सकते हैं |
# आप शरीरिक योग कर या जिम जा कर भी एकाग्रता और धैर्य प्राप्त कर सकते हैं | लेकिन मेरी राय में शरीरिक योग और ख़ास कर प्राणायाम के द्वारा काफी जल्दी एकाग्रता और धैर्य की प्राप्ति कर सकते हैं | नीचे दिए उपाय के साथ यदि आप प्राणायाम रोजाना करते हैं तो शर्तिया तीन से चार महीने में खोया हुआ धैर्य और एकाग्रता प्राप्त कर लेंगे | स्वास्थ्य शरीर के मालिक होने पर आप में खोया confidence आने पर इच्छा शक्ति स्वयमेव ही जागृत हो जाती है |
# इन सब बातों के इलावा आप में positivity होना बहुत जरूरी है और positivity के लिए आज के समय में बहुत भटकाया जाता है जबकि positivity बहुत आसानी से प्राप्त की जा सकती है |
जीवन में हर ओर सिर्फ और सिर्फ अच्छा ही अच्छा है | बस अच्छा देखने वाली नजर चाहिए | अच्छे काम को देख कर हम तारीफ के साथ ही साथ उस अच्छे काम को करने वाले को प्रोत्साहित भी करें | ऐसा करने पर हम अपने लिए भी जाने-अनजाने अच्छा कर लेते हैं क्योंकि ऐसा करते हुए हम स्वयं भी अंतर्मन से कुछ ऐसा करने की सोच को बल देते हैं | जो एक न एक दिन हमें भी कुछ अच्छा करने को मजबूर करती है | यही तो है कर्म फल | जैसा करोगे वैसा पाओगे |
अतः positive काम करने वालों के साथ जुड़े और ऐसा काम करने वालों को तो प्रोत्साहित करे ही लेकिन साथ ही साथ उनके साथ मिलकर कुछ खुद भी करें | ऐसा करने पर आपको जो ख़ुशी या सुख का अनुभव होगा वह आने वाले भविष्य में आपको अपनी जिन्दगी में भी दिखेगा |
# अब सबसे मुश्किल काम करना है | वैसे तो यह काम बहुत आसान है लेकिन मुश्किल से पूरा हो पाता है | आपको हर समय अपनी कमियों को सुधारने और बेहतर से बेहतर करने की कोशिश में लगना है | आप जितना अपने पर ध्यान देंगे उतना अपनी बेकार जाने वाली उर्जा को दिशा दिखा कर सही जगह लगाने में सक्षम हो पायेंगे | यह भी सफल होने का मन्त्र है | आप जीवन में जितना भी कर सकते हैं उस पर ध्यान दें | वह कितना कम या ज्यादा है इस पर ध्यान न दें |
कोई भी व्यक्ति कभी भी अपने आप को या अपने कर्मों या अपनी सोच या बर्ताव को नहीं देखता है | वह हमेशा अपने से बाहर ही देखता है | क्योंकि वह मानता है कि इस दुनिया में यदि कोई अच्छे कर्म या अच्छी सोच या अच्छा बर्ताव करने वाला व्यक्ति है तो वह केवल और केवल वही है | उसके इलावा बाकि सब में कुछ न कुछ कमी अवश्य है | एक वही है जिस में किसी तरह की कोई कमी नहीं है |
जो भी व्यक्ति दिमागी या मानसिक एकाग्रता पाना चाहता है तो उसे पूरा ध्यान अपने ऊपर केन्द्रित करना होगा | क्योंकि एकाग्रता पाने पर ही आपको ज्ञात होता है कि आप कैसे अपनी उर्जा को बेकार करहे हैं | उर्जा को सही तरीके से इस्तेमाल न करने के कारण ही नकारात्मकता जन्म लेती है और फिर बाकि बची उर्जा भी गलत दिशा पकड़ लेती है | यहाँ एक बात गौर करने वाली है कि आपको अपने ऊपर इस तरह ध्यान नहीं देना है जैसा आप अभी तक अपने पर देते आये हैं | बल्कि इस तरह ध्यान देना है जैसे आप किसी ओर को देख रहे हैं | बहुत से लोग शायद ऐसा कर नही पायेंगे | जो कर पायेंगे वह भी पूरी तरह से निष्पक्ष रूप से स्वयम का मूल्याँकन नहीं कर पायेंगे | अतः ऐसा न कर पाने की स्थिति में आप अपने आसपास ऐसे कुछ लोग चुनिये जिन्हें आप जानते और मानते हैं कि वह आज बहुत ही कामयाब हैं | कुछ ऐसे लोग चुनिये जो बहुत ही शांत स्वाभाव के हैं तथा कुछ ऐसे चुनिए जो काफी समय से संघर्ष करने के बावजूद भी सफलता नहीं पा सके हैं | कुछ अशांत, गुस्सेवाले और नकारात्मक सोच वाले लोग चुनिये | अब आपको उन पर ध्यान केन्द्रित करना है कि वह कैसे बात करते हैं, बात करते हुए उनके कौन से अंग हिलते हैं या वह हिलाते हैं | वह अपनी दिनचर्या में ज्यादात्तर दिन व् रात कैसे बिताते हैं | उनका व्यवहार कैसा है वह कैसे चलते, बोलते व कपड़े पहनते हैं | ऐसे लोगों पर आपको कम से कम दो से तीन महीने ध्यान देना होगा | ऐसे लोगों से आप जब भी मिलें तो घर आने पर या जैसे भी आपको सुविधा मिले, एक जगह जरूर लिखें कि आपने आज उनके बारे में ख़ास अच्छा या बुरा देखा | लिखते हुए आप यह भी लिखें कि यदि आप उस जगह होते तो क्या करते | ऐसा लिखते-पढ़ते आप को समझ में आएगा कि कैसे असफल या गुस्सा करने वाले या बुराई करने या बुरा करने वाले या अशांत या नकारात्मक सोच या केवल नकारात्मक देखने वाले लोग अपने हाथ, पैर, सिर, मुँह या ज्यादा खा कर या ज्यादा बोल कर या किसी और अन्य तरह से अपनी उर्जा को बेकार करते हैं और सफल, सही, सकारात्मक लोग किस तरह अपनी उर्जा का उपयोग सही जगह लगाते हैं | यह करते-करते आप स्वयमेव ही सही दिशा पकड़ लेंगे |
हर इंसान के पास कुछ न कुछ एक अलग ही खासियत होती है जैसे किसी की यादाश्त बहुत अच्छी होती है | कोई दूर से सूंघ कर पहचान जाता है कि कहाँ क्या बन रहा है यह वहाँ कौन है | कुछ नज़र भर देख लेने से सब कुछ पहचान जाते हैं | कुछ दूर से आवाज पहचान जाते हैं | कुछ दौड़ अच्छा लेते हैं…. ऐसी बहुत-सी ख़ास बातें हर किसी में कोई न कोई होती हैं | मैं यहाँ उन खासियत की बात कर रहा हूँ जो पैदायशी मिलती हैं | और ऐसी खासियतों का लगभग हर इंसान गलत इस्तेमाल ही करता है | और जो सही दिशा देता है वह बहुत ही जल्दी एक कामयाब इंसान बन जाता है | ऐसे ही इंसान को हम लोग कहते हैं कि वह बहुत अच्छी किस्मत लिखवा कर आया है जिस क्षेत्र में हाथ डालता है वहीं कामयाबी मिल जाती है | दोस्तों अगर आप भी अपनी खासियत को सही दिशा देंगे तो यह आपके साथ भी हो सकता है |