कर्म-योग – 3
हम इस ब्रह्मांड का हिस्सा हैं
जहाँ चारों तरफ ग्रह ही ग्रह हैं |
तो क्या हम इस धरती पर
चलते-फिरते ग्रह हैं |
आइये जाने….
नमस्कार दोस्तों,
जो मित्रवर, पहली बार हमारी वेबसाइट पर आए हैं या पहली बार यह लेख पढ़ रहे हैं तो उन से मैं यही प्रार्थना करूँगा कि इस लेख को पढ़ने से पहले इस श्रृंखला के पिछले लेख अवश्य पढ़ें तभी आपको यह गहन विषय आसानी से न केवल समझ में आ जाएगा बल्कि आप इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी बेखौफ उतार पाएंगे | यही हमारा ध्येय और संकल्प है |
दोस्तों, हमारे जहन में बहुत से सवाल उभरते हैं कि कर्म फल असल में मिलता है ? अगर कर्म फल होता है तो फिर free-will क्या है ? माया-मोह क्या होता है ? किस्मत या होनी क्या होती है ? मन क्या होता है ? मन को कैसे कण्ट्रोल किया जा सकता है ? कुण्डलिनी शक्ति क्या है ? गुरु को कैसे चुना जा सकता है ? Einstein और Stephen Hawking की टाइम मशीन क्या असल में हो सकती है ? हम मरते ही क्यों हैं और मरने के बाद कहाँ चले जाते हैं ? Self-Realization या Who I Am जैसे प्रश्न क्या और क्यों उठते हैं ? यदि उठते हैं तो इनका हल क्या है ? तन्त्र-मन्त्र-यंत्र की क्या सचमुच ताकत होती है ? ये नजर लगना क्या होता है ? क्या सचमुच इसका कुछ भी असर होता है ? अगर होता है तो इसका इलाज क्या है ? क्या हम कर्म-योग से अपने अंदर बदलाव ला सकते हैं ? Personality Development क्या कर्म-योग से सम्भव है ? क्या हम positive हो सकते हैं ? ऐसे और भी बहुत से प्रश्नों का जवाब आपको हमारी इस श्रृखला में आगे आने वाले लेख में अवश्य मिलेगा |
खैर, आगे बढ़ते हैं और कर्म-योग यानि कर्म और कर्म-फल को विज्ञान के दृष्टिकोण से देखते हैं ताकि कर्म और कर्म-फल या कर्म-योग किताबी न रहे | इसे व्यवहारिक जामा पहनाते हैं ताकि यह आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में स्वयमेव ही उतर जाए |
दोस्तों, कर्म और कर्म-फल की जब भी बात आती है तो हमें वेद, पुराण, रामायण, महाभारत व गीता के साथ ही साथ अन्य हजारों श्लोक, घटनायें व कहानियाँ सुना दी जाती हैं | इतना सब सुनने के बाद हम अभी यह सोच ही रहे होते हैं कि इन सब का मैं क्या करूँ, मुझे तो आज के संदर्भ में बताओ और समझाओ | लेकिन हमारी बातों को अनसुना कर कुछ ऐसी नसीहतें दी जाती हैं जो लगभग अव्यवहारिक होती हैं | क्यों ! है न सही बात ?
लेकिन हम आपको वह सब बताएँगे जो सही मायने में सही और व्यवहारिक है | हम वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता या अन्य का जिक्र तो करेंगे लेकिन उतना ही जितना जरूरी और आज के सन्दर्भ में प्रासंगिक है |
आइये शुरू करते हैं :
दोस्तों, जैसा कि हमने इस श्रृंखला के भाग – 1 में बताया था कि यदि ब्रह्माण्ड को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है वैसे ही हर ग्रह अपनी धुरी पर घूमने के ईलावा किसी-न-किसी और ग्रह के भी चक्कर लगा रहा जैसे पृथ्वी, सूर्य का चक्कर लगा रही है | और सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगा रहा है और आकाश गंगा ब्लैक होल का चक्कर लगाने के साथ ही साथ पूरी आकाश गंगा भी चल रही है |
आइये इस सब जानकारी को अपनी जिन्दगी में ढाल कर देखते हैं :
दोस्तों, धर्म-ग्रंथ या अध्यातम कहता है कि हमारा शरीर पाँच तत्व से बना है : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश | अगर हम विज्ञान की बात करें तो वह कहता है कि यह पूरा ब्रह्मांड परमाणु और ऊर्जा से बना है और हमारा 99 प्रतिशत शरीर इन्ही से बना है | अतः दोनों को जोड़ कर देखें तो अध्यात्म और विज्ञान लगभग एक ही बात कहते हैं | और ऐसा प्रतीत होता है कि इस धरती पर हर जीव एक ग्रह है |
अध्यात्म कहता है इस अनंत ब्रह्मांड का हम हिस्सा हैं और ये ब्रह्मांड हमारे अंदर भी बसता है जो बाहरी ब्रह्मांड से लगभग मिलता जुलता है | विज्ञान भी कहता हैं कि यह ब्रह्मांड अनंत है और इसमें चारों ओर फैले ग्रह भी अनंत हैं | हम सब इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं अतः हमारा भी इस ब्रह्माण्ड जैसा होना अनिवार्य हो जाता है | ब्रह्माण्ड में हर ग्रह की अपनी एक दशा और चाल है | चूँकि हमारा शरीर भी एक भौतिक वस्तु है | अतः हमारा शरीर भी ग्रह की तरह सब काम स्वयम कर रहा है | बस फर्क केवल एक ही है कि हमारे अंदर परमात्मा का अंश यानि आत्मा है | आत्मा होने के कारण ही यह शरीर रूपी ग्रह सजीव यानि जिंदा रहता है और हम इस शरीर से कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी रूप से कार्य यानि कर्म कर रहे हैं | जैसा कि गीता में कहा गया है कि हम कर्म करने को मजबूर हैं और इसे यदि विज्ञान की नजर से देखें तो भूख या प्यास लगने पर हम भोजन या पानी पीते हैं | जिससे हमें energy मिलती है और जैसे ही हमें energy मिलती है हम कर्म करने को मजबूर हो जाते हैं | हर ग्रह एक दिन ब्लैक होल में समा कर समाप्त हो जाते हैं या फिर आपस में एक दूसरे से टकरा जाते हैं | वैसे ही हमारे जीवन का भी अंत हो जाता है |
दोस्तों, इस ब्रह्माण्ड में होने वाली हर घटना को अपने, अपने परिवार, समाज, प्रदेश, देश से जोड़ कर देखिये | आपको महसूस होगा कि सब कुछ हमारे जीवन में भी होता है | फर्क केवल एक ही है और वह मैं पहले ही बता चुका हूँ कि हमारे अंदर परमात्मा का अंश यानि आत्मा है | अतः हम इस शरीर से कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी रूप से कार्य यानि कर्म कर रहे हैं |
विज्ञान कहता है कि सब ग्रह या आकाशगंगा एक शक्ति से बंधे हुए हैं और वह शक्ति जिसे विज्ञान energy कहता है | वह है गुरुत्वाकर्षण या gravitational force | इसी से पूरा ब्रह्माण्ड बंधा हुआ है और एक लय-ताल में चले जा रहा है | इसी लय-ताल से बंधे हुए ही वह आपस में टकरा भी जाते हैं और ब्लैक-होल में भी समा जाते हैं क्योंकि सब की चाल अलग-अलग है |
दोस्तों, जैसा कि हमने अभी बताया कि हम भी इस धरती पर एक ग्रह की भांति ही हैं अतः हम पर भी एक और ताकत अवश्य लग रही होगी जिसके कारण हम सब बंधे हुए हैं और शायद इसके बारे में हमारे धर्म ग्रन्थ लिखने वाले जानते थे | इस गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा का ही नाम उन्होंने माया दिया होगा | हम अपनी पूरी जिन्दगी मोह-माया यानि आकर्षण के चक्कर लगाते-लगाते गुजार देते हैं | तभी तो अध्यात्म बारम्बार कहता है कि तुम्हारा शरीर एक भौतिक वस्तु है और उसका इस मोह-माया से निकल पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है लेकिन क्योंकि तुम्हारे अंदर परमात्मा का अंश है और उसे जगाने या उसे साधने पर तुम मोह-माया के बंधन से मुक्त हो सकते हो | और मोह-माया से मुक्त इंसान आत्मा के जरिये ईश्वर तक संपर्क साध सकता है | हमारा कहना है कि ईश्वर तक पहुँचों या न पहुँचो लेकिन आत्मा को साध कर इस मोह-माया के जंजाल को कम तो कर ही सकते हो | कम शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं कि जब हम इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं तो मोह-माया यानि आकर्षण से पूरी तरह निकल पाना लगभग असम्भव है | ‘हाँ’ अगर प्रयास किया जाए तो नाम-मात्र ही इस मोह-माया में फसेंगे |
आइये आगे बढ़ते हैं :
आपको हमने पहले भी बताया था कि धरती अपनी धुरी पर चक्कर लगाने के इलावा सूर्य का चक्कर भी लगा रही है और क्योंकि सूर्य आकाश-गंगा का चक्कर लगा रहा है अतः धरती भी आकाश-गंगा का चक्कर लगा रही है | धरती अपनी धुरी पर एक चक्कर चौबीस घंटे में पूरा करती है और इस कारण हर चौबीस घंटे बाद फिर से दिन निकल आता है | वह सूर्य का चक्कर लगाते हुए आगे बढ़ रही है इसीलिए हर महीने वही तारीख आती है जो पिछले महीने थी | और जब वह सूर्य का एक चक्कर लगा लेती है तो फिर वही महीने आते हैं लेकिन साल आगे बढ़ जाता है और आप एक साल बड़े हो जाते हैं | इस पूरे ब्रह्माण्ड को देखें तो वह गोल-गोल घूम रहा है यानि जहाँ से पहले निकले थे वही वापिस तो आ जाते हैं लेकिन समय बदलने के कारण हमारी उम्र और जगह बदल जाती है | दोस्तों, इन सब के चक्कर लगाने की वजह से ही आपके जीवन में मिन्ट-घंटे, दिन-रात, तारीख, महिना और मौसम बार-बार आते हैं | इस बात पर आपको कोई शक-शुभा नहीं होता | लेकिन जब ये कहा जाता है कि आपके द्वारा किये कर्म का फल भी वापिस आएगा तो इस पर आपको शक क्यों हो जाता है ?
दोस्तों, हम इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं जहाँ सब घूम कर वापिस आ रहा है तो फिर कर्म का फल भी तो घूम कर वापिस आना निश्चित हो जाता है | ‘हाँ’ कब, कहाँ, कैसे, कितना और कैसा फल वापिस आएगा इसे हम आगे आने वाले लेख में विस्तार से बतायेंगे | अभी तो कर्म-फल आना निश्चित है या नहीं इस पर ही बात करेंगे |
आपने बचपन में बहुत मुश्किल से बोलना और चलना सीखा था और जिसके फलस्वरूप आज बहुत आसानी से बोल और चल पा रहे हैं | बचपन में आपने पढना, लिखना और भाषा सीखी और उस किये कर्म के फलस्वरुप आज आप पढ़-लिख लेते हैं | जब आपको बचपन में किये कर्म का पूरी जिन्दगी फल मिल रहा है तो आपको कोई शक नहीं होता | लेकिन इसके इलावा अन्य किये कर्मों के फल पर ही शक क्यों होता है | वह भी तो मिलेंगे और हर हालत में मिलेंगे |
असल में आपको शक तब होता है जब आपकी इच्छानुसार या मेहनत करने के बावजूद फल नहीं मिलता है या जब आप दूसरों को देखते हो कि उन्हें बिना मेहनत के फल मिल रहा है या कम मेहनत में भरपूर फल मिल रहा है | असल में आप अपने आस-पास देख कर ज्यादा प्रभावित होते हैं |
दोस्तों, अध्यात्म के अनुसार आपको कर्म का फल मिलता है और इससे विज्ञान भी सहमत है |
अगर हम न्यूटन के LAWS OF MOTION को कर्म योग के हिसाब से देखें तो वो इस प्रकार है :
पहला सिद्धांत : शरीर तब तक एक जगह बिना किसी कर्म के रहता है जब तक कि उस पर किसी बाहरी ताकत का प्रयोग नहीं होता है अर्थात जब तक हमें खाने या पीने से उर्जा नहीं मिलती तब तक हम कर्म करने के काबिल नहीं हो पाते हैं | इसी नियम का दूसरा हिस्सा है कि जब शरीर हरकत में आता है तो वह तब तक हरकत में रहता है जब तक कि उसे किसी बाहरी ताकत से रोक न जाए | और यहाँ बाहरी ताकत माया है | हम माया-मोह के चक्कर में फंस कर बहुत से काम करते हैं और बहुत से काम नहीं करते हैं | खैर, Newton के Law of Motion का तीसरा सिद्धांत कहता है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया या हर कर्म का फल होता है क्योंकि आप भौतिक शरीर से भौतिक कार्य कर रहे हैं | मशीन में तेल डालना या अपने शरीर को चलाने के लिए साँस लेना या खाना खाना या पानी पीना सब एक ही बराबर है |
अतः अब हम प्रमाणिक तौर पर कह सकते हैं कि हर कर्म का फल मिलना निश्चित है |
हमने शुरू में कुछ प्रश्न बोले थे वह इस प्रकार हैं :
क्या कर्म फल असल में मिलता है ? अगर कर्म फल होता है तो फिर free-will क्या है ? माया-मोह क्या होता है ? किस्मत या होनी क्या होती है ?
दोस्तों, संक्षेप में कर्म फल और मोह-माया क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं, यह तो आपको समझ आ ही गया होगा | अब हम इन के साथ ही साथ बाकि सब के बारे में विस्तार से बताते हैं |
भाषण, गूढ़ तरीके, बड़ी और ऊँची व्याख्या तो बहुत सुन चुके | पाठ और so called भक्ति भी बहुत कर चुके | लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ | एक कहावत तो आप लोगों ने सुनी ही होगी कि भूखे पेट भजन नहीं होता | आज हम अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में जूझ रहे हैं | हमारी राय में जब तक रोजमर्रा की जिन्दगी में शान्ति और विश्वास नहीं लायेंगे तब तक अध्यात्मिक बातें दूर की कोड़ी ही साबित होंगी | और असल में हो भी रही हैं | इतना पूजा-पाठ, संत-समागम और धार्मिक अनुष्ठान वगैरा होने के बावजूद व्यवहारिक तौर पर रोजमर्रा की जिन्दगी में वह सब दिख नहीं रहा है जो असल में दिखना चाहिए | अतः हमें कुछ अलग नजरिया रखना या अपनाना ही होगा |
आइये प्रश्नों का हल खोजते हैं :
दोस्तों, यदि हम आसमान में एक तीर छोड़ें तो वह तीर कुछ समय बाद नीचे धरती पर आ गिरता है क्योंकि धरती में गुरुत्वाकर्षण शक्ति है | गुरुत्वाकर्षण की बात सबसे पहले Galileo ने कही थी उसके बाद Newton और फिर Einstein ने उस में बहुत कुछ जोड़ा और जो कुछ जोड़ा उसने भौतिकी में एक तरह से क्रांति ही ला दी थी |
आज का विज्ञान कहता है कि यदि आपने आसमान में तीर छोड़ा तो वह तभी ऊपर की ओर जा सकता है जब उस में गुरुत्वाकर्षण शक्ति से ज्यादा शक्ति लगी हुई हो | और अगर ज्यादा शक्ति लगी है तो फिर वह तीर वापिस धरती पर आ ही नहीं सकता है | इसके इलावा एक और कि यदि आप किसी ऊँचाई से एक पंख और लोहे की एक भारी गेंद नीचे धरती पर एक ही समय में गिराएँ तो लोहे की गेंद और पंख दोनों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक सा लगेगा | अतः दोनों एक ही समय में धरती पर गिरेंगी | लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है |
इस बारे में विज्ञान कहता है कि धरती का एक अपना वातावरण है जिसमें बहुत से कण यानि particles रहते हैं और जब एक तीर या गेंद आसमान में फेंकी जाती है तब उस पर दो तरफ से खिंचावट आती है | वातावरण में फैले कण उस तीर या गेंद से घर्षण यानि friction करते हैं जिससे उसकी ऊपर जाने की स्पीड धीरे-धीरे कम होने लगती है और एक समय आता है जब उस तीर या गेंद की ऊपर जाने की स्पीड जीरो हो जाती है तब गुरुत्वाकर्षण शक्ति उसे वापिस धरती पर खींच लेती है | इसी तरह ही एक पंख और लोहे की गेंद के साथ भी होता है | अर्थात यदि पृथ्वी पर फैला वातावरण न हो तो तीर या गेंद वापिस नहीं आएगा और पंख और लोहे की गेंद एक साथ धरती पर गिरेंगे |
आइये अब इसे अध्यात्मिक दृष्टि से देखें :
हमारे द्वारा किये कर्मों का फल वापिस नहीं आ सकता जब तक की धरती पर फैला वातावरण यानि की मोह-माया ही हमारी सोच और कर्म में घर्षण या दिवार बन कर सामने आता है | इसी मोह-माया के वशीभूत हो हम कर्म से ज्यादा फल की इच्छा रखते हैं | बुरे या अच्छे कर्मों का फल एक साथ ही मिले यदि मोह-माया का जंजाल न हो | हम यहाँ बुरा या अच्छा कर्म अभी के लिए वही मान कर चल रहे हैं जैसा आपको पता है | इसके बारे में विस्तार से आगे आने वाले विडियो में बतायेंगे | धरती पर पैदा होने के समय से लेकर इस धरती से जाने तक हमारे हर कार्य या कर्म में कहीं-न-कहीं मोह-माया शामिल रहती हैं क्योंकि हम लगभग हर कार्य या कर्म किसी न किसी उम्मीद से ही करते हैं | और उम्मीद या लगाव सबसे बड़ी मोह-माया है | शायद इसीलिए अध्यात्म कहता है कि इस मोह-माया के जंजाल से निकलो | अगर इस जंजाल से निकाल गए तो फिर आपके आस-पास ऐसा वातावरण होगा जिसमें कोई घर्षण नहीं होगा यानि vaccume यानि खाली स्थान यानि शून्य स्थान होगा | शून्यस्थान यानि vaccume होने पर घर्षण नहीं होता है और तब पंख और लोहे की बाल एक साथ धरती पर आयेंगी और आपके किये कर्मों का फल अनंत के सफर पर चल देगा | ऐसा एक प्रयोग US में किया भी गया है | आपको youtube या गूगल सर्च में मिल जाएगा |
दोस्तों, आपने क्रिकेट, बेडमिन्टन या फुटबाल का मैच देखा या खेला होगा | वहाँ हर खिलाड़ी की एक भूमिका होती है | खेल के कुछ नियम और कानून होते हैं | खेल के मैदान की सीमा होती है | सब खिलाड़ी उसी दायरे में खेलते हैं | लेकिन उन नियम या कानून या दायरे के इलावा वह हाथ-पैर कैसे चलाता है | कैसे खड़ा होता है | कान या मुँह में हाथ कब कहाँ डालता है यह न लिखा होता है और न बताया जाता है | खेल का फल जीत या हार होती है | जब इंसानों के बनाए खेल के नियम-कानून के बावजूद खिलाड़ी को कुछ फ्री-विल मिलती है तो फिर ईश्वर के बनाए इस जीवन में भी तो होगी | इसे क्यों नहीं समझते या मानते हैं |
आइये एक और उदहारण लेते हैं | आप windows या apple या android के operating system से तो वाकिफ होंगे या माइक्रोसॉफ्ट के वर्ड या एक्सेल पर तो अवश्य काम किया होगा | वहाँ पर सब कुछ आपके हाथ में होता है लेकिन जो कुछ भी programmed होता है आपको उसी दायरे या limit में ही काम करना होता है | अब यह आप पर है कि आप उस पर क्या काम करते हैं | आज इंसान की तरह के रोबोट बनाये जा रहे हैं उसमें भी एक दायरा या limit के साथ ही साथ थोड़ी बहुत freewill भी दी जाती है | लेकिन जब आपको यह बताया जाता है कि कुछ दायरा या limit के साथ ही साथ freewill ईश्वर ने भी दी हुई है तो आप बिफर उठते हैं | जब आप कर सकते हैं तो फिर ईश्वर पर प्रश्न क्यों ?
दोस्तों, यहाँ दायरा या limit ही किस्मत है जो पूर्व कर्म फल पर निर्धारित होती है | इसे अभी ऐसा ही समझिए | हम आगे आने वाले विडिओ में विस्तार से बताएंगे |
दोस्तों, उम्मीद है कि आपको सब आसानी से समझ आ गया होगा | अगले भाग में हम कर्म-फल, किस्मत, free-will और मोह-माया के साथ ही साथ अच्छे और बुरे कर्म को Einstein के general relativity और special relativity के सिद्धांत से समझेंगे | संक्षेप में तन्त्र-मन्त्र-यंत्र की ताकत, नजर लगना, बदुआ, पित्र-दोष के बारे में भी बात करेंगे | धन्यवाद |