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कर्म-योग और विज्ञान-2

कर्म-योग – 2

कण-कण में भगवान बसते हैं तो क्या अध्यात्म परमाणु यानि Atom के बारे में जानता था ? परमाणु से सारा ब्रह्माण्ड और हमारा शरीर भी इसी से बना है | और परमाणु कभी मरता नहीं है तो फिर हमारी मृत्यु कैसे हो जाती है ?

नमस्कार दोस्तों,

दोस्तों, कर्म-योग, कर्म-फल, अच्छा कर्म या बुरा कर्म इत्यादि से पहले कर्म की परिभाषा और कर्म के क्षेत्र में क्या-क्या आता है वह समझ में आना जरूरी है | और मुझे उम्मीद है कि आपको हमारा पिछला लेख पढ़ कर कर्म, कर्म की परिभाषा और कर्म में कौन से काम आते हैं, पूरी तरह से समझ आ गया होगा |

जो मित्र, पहली बार हमारी वेबसाइट पर आए हैं या लेख पढ़ रहे हैं तो उन से मैं यही प्रार्थना करूँगा कि इस लेख को पढ़ने से पहले इस श्रृंखला का पिछला लेख अवश्य पढ़ें |

खैर, आगे बढ़ते हैं | दोस्तों आज का आधुनिक विज्ञान कहता है कि यह पूरा ब्रह्मांड सिर्फ दो चीज से बना है – परमाणु  और Energy यानि उर्जा | विज्ञान के अनुसार इन्ही दो चीजों पर यह पूरा ब्रह्मांड चल रहा है | विज्ञान के अनुसार – An atom a fundamental piece of matter. (Matter is anything that can be touched physically.) Everything in the universe (except energy) is made of matter, and, so, everything in the universe is made of atoms और परमाणु तब भी था जब यह ब्रह्मांड नहीं था | आज भी है और जब यह ब्रह्मांड नहीं होगा तब भी परमाणु होगा | Energy यानि उर्जा  के बारे में भी विज्ञान परमाणु की तरह ही कहता है कि ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है बल्कि केवल एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है | अर्थात दोनों को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है | और दोनों बस अपना रूप बदल सकते हैं |

दोस्तों, अध्यात्म, गीता और योग भी तो कुछ ऐसा ही कहता है –

गीता 2.13 से 2.30 में आत्मा के बारे में बताया गया है | संक्षेप में आत्मा को अविनाशी बताया गया है | आत्मा को न कोई मार सकता है और न ही आत्मा मर सकती है | आत्मा अविनाशी, शाश्वत, अजन्मा और अपरिवर्तनीय है | अर्थात जब हम नहीं थे वह तब भी थी, आज भी है और जब हम नहीं होंगे तब भी होगी |

गीता के चौथे अध्याय में प्राण के बारे में बताया गया है कि कैसे उसे रोक कर ध्यानवस्था प्राप्त की जा सकती है | इसके इलावा भी कई जगह प्राण और प्राणशक्ति का जिक्र है | ऋषि पतंजलि के योग सूत्र में काफी जगह प्राण, प्राण शक्ति, प्राण के आयाम यानि साधना का जिक्र आता है जो बाद में प्राणायाम के नाम से प्रचिलित हुआ | यहाँ प्राण को ऊर्जा ही माना गया है | और ऋषि पतंजलि के योग सूत्र की व्याख्या करते हुए विवेकानंद ने भी इसे केवल साँस नहीं कहा है | शलोक 34 की व्याख्या करते हुए लिखा है कि यहाँ प्रयुक्त शब्द ‘प्राण’ श्वास नहीं है | यह उस ऊर्जा का नाम है जो ब्रह्मांड में है | ब्रह्मांड में जो कुछ भी चलता है या काम करता है, या जीवन है, वह इस प्राण की अभिव्यक्ति है | ब्रह्मांड में फैली कुल ऊर्जा का योग प्राण कहलाता है |

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हमारे पूर्वज परमाणु और उर्जा से भलीभाँति परिचित थे |

आपने एक कहावत अवश्य सुनी होगी, ‘कण-कण में भगवान बसते हैं’ |  आपने यह भी सुना होगा कि हर जड़ या चेतन में जीव बसता है | इससे भी जान पड़ता है कि हमारे पूर्वज परमाणु को भलीभांति जानते और पहचानते थे |

विज्ञान कहता है कि हमारे शरीर के एक cell में सौ खरब परमाणु होते हैं और जितने एक cell में atom होते हैं उतने ही हमारे शरीर में cell होते हैं | और विज्ञान के अनुसार एक से दो साल में शरीर के पूरे परमाणु बदल जाते हैं यानि पूराने की बजाय नए परमाणु आ जाते हैं | इसी तरह आठ से दस साल में पूरे शरीर के cell भी बदल जाते हैं | अब प्रश्न यह उठता है जब सब कुछ शरीर में बदल रहा है तो फिर हम बूढ़े क्यों हो जाते हैं | बूढ़े होने के बारे में विज्ञान जो दलील देता है वह तो समझ आती है लेकिन हम मर क्यों जाते हैं | इस बारे में विज्ञान जो दलील देता है वह समझ से बाहर है | यहाँ अध्यात्म की माने तो लगता है कि इस सब को चलाने वाली आत्मा जब शरीर से निकल जाती है तो फिर सब कुछ होते हुए भी शरीर निष्क्रिय हो जाता है |

साँस, पानी और भोजन के जरिये शरीर में उर्जा पहुँचती है जो शरीर को चलाती है | लेकिन इस सब के बावजूद भी मृत्यु हो जाती है | अर्थात शरीर में उर्जा और परमाणु होने के बावजूद कुछ और है जिसके निकल जाने के कारण यह सब होते हुए भी मृत्यु हो जाती है |

विज्ञान कहता है कि आत्मा नाम की कोई चीज नहीं होती है | अगर होती तो फिर X-Ray या ऐसे अन्य प्रकार के परीक्षणों में अवश्य दिख जाती | यहाँ अब यह प्रश्न उठता है कि वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारा शरीर 99% परमाणु से बना है तो फिर वह कहाँ दिख रहे हैं ? और जब वह नहीं दिख रहे हैं तो आत्मा तो उससे भी सूक्ष्म है | वह कैसे दिखेगी ?

अतः जैसे विज्ञान कहता है कि परमाणु है वैसे ही अध्यात्म कहता है कि आत्मा है | परमाणु के होने का एहसास होता है वैसे ही आत्मा के होने का भी एहसास होता है

दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि मैं भी कर्म या कर्म-योग की बात या व्याख्या को छोड़ कर और लोगों की तरह वही पुराना राग छेड़ कर बैठ गया हूँ कि हमारे पूर्वज ये थे वो थे और आज के विज्ञान से बहुत आगे थे |

यहाँ आप कुछ सही और कुछ गलत अंदाजा लगा रहे हैं | आपका सही अंदाजा यह कि मैं पूर्वजों की बात छेड़ रहा हूँ और अध्यात्म को सही और ठीक बता रहा हूँ | लेकिन यहाँ आप गलत सोच रहे हैं कि मैं आज के विज्ञान को पिछड़ा बताने की कोशिश कर रहा हूँ | आज के विज्ञान को हम गलत कैसे कह सकते हैं | आज के विज्ञान के कारण ही मैं आपके सामने न होते हुए भी अपने विचारों से अवगत करा पा रहा हूँ | आज के विज्ञान की हर खोज का फायदा उठाते हुए उसे कोसना गलत है | मैं यहाँ आज के विज्ञान को अध्यात्म से केवल इसलिए जोड़ रहा हूँ ताकि आप समझ सके कि हमारे पूर्वज आज के विज्ञान से काफी आगे तो थे लेकिन बीच के हजार दो हजार साल में सब कुछ पलट गया |

पहले के ऋषि-मुनि जो आज के scientist ही थे वह भी एक दूसरे की रिसर्च को आगे बढ़ा रहे थे | लेकिन बीच के हजार दो हजार साल में पता नहीं क्या हुआ कि हम उन्हें पूजने लगे | हम पूजा-पाठ के आडम्बरों में ऐसे फंसे कि आज तक बाहर ही नहीं निकल पाए | धर्म और धर्म ग्रन्थों में जो भी लिखा है या जो कुछ भी net पर या समागमों में बताया जा रहा है उसे सही मान कर अंधी दौड़ में हिस्सेदार बन रहे हैं | आप कोई भी चीज खरीदने जाते हैं तो आसपास से पूछते हैं net पर सर्च करते हैं | उसकी गुणवत्ता की परख करते हैं | वह सही कीमत की है या नहीं, वह आपके लिए या आपके परिवार के लिए जरूरी है या नहीं, उसे तौलते, सोचते-समझते हैं और फिर उसे खरीदते हैं | लेकिन धर्म, अध्यात्म के मामले में आप अन्धविश्वासी बन जाते हैं, क्यों ?

क्या आप जानते हैं कि इस अन्धविश्वास का हम पर या हमारे समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है | आज हम अपनी उर्जा, प्रेम, आस्था और विश्वास – धर्म, धर्म स्थल और धर्म ग्रंथों को समर्पित कर रहे हैं और अपने आस-पास, परिवार, प्रेम सम्बन्ध, रिश्तों और समाज में कड़वाहट और अविश्वास फैला रहे हैं | आज रिश्तों में प्रेम नाम मात्र ही रह गया है | हम हर किसी को शक की नजर से देखते हैं | जरा-सा झटका लगा नहीं कि हम कोसने बैठ जाते हैं | नेगटिव सोच नेगटिविटी को आगे बढ़ाती है | और फिर हम कहते फिरते हैं कि देखो कैसा कलयुग आ गया है, चारों तरफ झूठ और फरेब फैला हुआ है |

दोस्तों, भारतवर्ष में ही लाखों लोग मैडिटेशन करते हैं | लाखों लोगों ने अपनी कुण्डलिनी शक्ति जागृत करवा ली है | हर गली नुक्कड़ पर एक या दो पूजा स्थल हैं | लगभग हर रोज कहीं न कहीं पर संत समागम हो रहे हैं | लेकिन कभी आपने सड़क, ऑफिस, रिश्तेदारी या समाज में इसका कोई प्रभाव देखा | कभी आपने सोचा कि आखिर इतना सब कुछ होने के बावजूद चारों तरफ negativity ही क्यों दिखती है | सोचिये ?

दोस्तों, मैं यहाँ विज्ञान से अध्यात्म की तुलना केवल इसलिए कर रहा हूँ ताकि आप समझें कि अध्यात्म भी आम जन सधारण के लिए था | अध्यात्म किसी एक धर्म या जाति के लिए नहीं था | जैसे आज विज्ञान का कोई मजहब या जात नहीं है इसीलिए इसे सब अपना लेते हैं और इसी कारण विज्ञान आज हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में रच-बस गया है | आज हम विज्ञान की हर खोज का फायदा उठाते हैं | ऐसे ही अध्यात्म भी था | लेकिन अध्यात्म के धर्म से जुड़ते ही हजारों आडम्बर घुस गये और कुछ लोग यह कहने लगे कि यह ईश्वरीय ज्ञान है इसे वही बता-समझा या करवा सकता है जिसे ईश्वर की प्राप्ति हो चुकी हो, जो ब्रह्म ज्ञानी हो, जो ब्रह्मचारी हो, जो सन्यासी हो, जो धर्म पर चलता हो, जो शाकाहारी हो, जो लोभ-मोह माया से दूर रहता हो | और शायद इसी कारण अध्यात्म हमारे इतने नजदीक होते हुए भी दूर अति दूर होता जा रहा है | यह सुन कर आप कह सकते हैं कि नहीं ऐसा नहीं है | धर्म और अध्यात्म भी हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में शामिल है | दोस्तों, आज हम धर्म या अध्यात्म के नाम पर जो कुछ भी कर रहे हैं वह सिर्फ आडंबर है |

खैर, छोड़िये ये सब | आईये आगे बढ़ते हैं |

दोस्तों, हम ने अभी आपको बताया कि विज्ञान कहता है कि वह सब जिसे हम छू सकते हैं, वह Matter यानि पदार्थ है | और परमाणु और उर्जा दो ही चीज इस पूरे ब्रह्माण्ड में हैं | विज्ञान यह भी कहता है कि हमारा शरीर 99 प्रतिशत परमाणु से बना है और यह उर्जा पर काम करता है | उर्जा हमें ऑक्सीजन, पानी, सूर्य, भोजन आदि से प्राप्त होती है |

दोस्तों, विज्ञान की अभी तक की खोज में प्रकाश सबसे तेज चलने वाली उर्जा है | जबकि अध्यात्म कहता है कि आत्मिक शक्ति अर्थात आत्मा से पनपी उर्जा सबसे तेज है | और शायद इसी उर्जा का प्रयोग कर हमारे ऋषि-मुनि वह सब खोज पाए जो आज विज्ञान खोज रहा है |

गीता 11.8 में श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम मेरा विराट रूप इन आँखों से नहीं देख सकते | अतः मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि प्रदान करता हूँ |

अर्थात ईश्वर या इस ब्रह्मांड को देखने या जानने के लिये दिव्य ज्ञान ही काफी नहीं है उसके लिए दिव्य दृष्टि भी होनी जरूरी है | यह सब, ठीक वैसे ही है जैसे आपके पास आज के हिसाब से भौतिक शास्त्र का ज्ञान अर्थात जरूरी शिक्षा तो है और आप खगोल विज्ञान में शोध भी कर रहे हैं | लेकिन आपके पास यदि hubble या nasa जैसे टेलिस्कोप या सुविधा नहीं हैं तो आप इस ब्रह्मांड को सही से नहीं देख सकते | जैसा हमने अपने पिछले विडिओ में भी बताया था कि आज का विज्ञान भौतिक को महत्व देता है और अध्यात्म आत्मा और आत्मिक ज्ञान को महत्व देता था | अध्यात्म के लिए भौतिक टेलिस्कोप की जरूरत नहीं थी | वह योगी आत्मिक या आध्यात्मिक ज्ञान या दृष्टि यानि शक्ति से ही सब देख लेते थे |

दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि हम कर्म, कर्म फल की बजाय अध्यात्म और विज्ञान में ही फंस कर रह गये हैं | इससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं | नहीं दोस्तों ऐसा नहीं है | हम आपको यह सब और कुछ बातें बार-बार केवल इसलिए बता रहे हैं ताकि यह आपको पूरी तरह से समझ आ जाएँ | क्योंकि इन्ही बातों पर कर्म फल या यूँ कहें कि कर्म योग टिका है | यहाँ हम जो कुछ भी बता रहे हैं वह कर्म फल समझने के लिए बहुत जरूरी हैं और साथ ही साथ इन्हीं के जरिये आप अच्छा और बुरा कर्म क्या होता है वह ठीक से समझ पायेंगे |

दोस्तों, हमें कर्म, कर्म-फल, बुरा कर्म और अच्छा कर्म के बारे में जो कुछ भी बताया जाता है या बताया जा रहा है वह सब बहुत ही अव्यवहारिक है तभी तो हम इसे अपना नहीं पा रहे हैं | हमारी सोच बार-बार हमें कर्म-फल से दूर ले जाती है | ख़ास कर तब जब ये कहा जाता है कि यह सब जो कुछ भी हम इस जन्म में कर रहे हैं वह सब पिछले जन्मों का फल है | बुरे कर्म के बारे में तो और भी ज्यादा डराया जाता है | और सिर्फ इन्हीं कारणों से हम इस अनूठे और पूरी तरह से सच ‘कर्म-योग’ से दूर होते जा रहे हैं | इसी कारण मैं आपको ‘कर्म-योग’ को बहुत ही आसान भाषा, व्यवहारिक रूप और विज्ञान की कसौटी पर तौल कर समझा रहा हूँ | ताकि आप इसे समझ कर अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में लागू कर सकें | इसे अपनाने से आपका जीवन बहुत ही सुलभ और सुचारू रूप से चल पायेगा |

दोस्तों, हमें यह बताया जाता है कि अपनी negativity खत्म करो | negativity हमारे लिए बहुत हानिकारक है, यह हमें बर्बादी की ओर ले जाती है | जबकि असल में आपको negativity खत्म करने की नहीं बल्कि अपनी पाजिटिविटी बढ़ाने की आवश्यकता होती है | पाजिटिविटी बढ़ने पर  negativity और negative सोच अपने आप ही कम होती चली जायेगी | ‘हाँ’ negativity खत्म नहीं होगी, खत्म हो ही नहीं सकती | negativity और positivity इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं | आप परमाणु में भी नेगटिव, पोसिटिव पाते हैं | परमाणु में negative charged इलेक्ट्रान चारों तरफ घूमता रहता है और पॉजिटिव charged प्रोटोन और बिना किसी चार्ज के न्यूट्रॉन यानि एक तरह से न्यूट्रल न्यूट्रॉन मध्य में रहता है | यही बात हमें बताती है सच हमेशा मध्य में रहता है और negativity इधर-उधर घूमती रहती है और ज्यादा आक्रामक और आकर्षक होती है | शायद इसीलिए हम negativity से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं | इसे हम एक और तरीके से भी समझ सकते हैं कि यदि आपके पास काले रंग से भरी एक पानी की बाल्टी है और आप उसमें साफ़ पानी भरना चाहते हैं तो या तो पानी की बाल्टी पूरी उड़ेल कर उसे साफ़ कर उसमें साफ़ पानी भर लें या फिर साफ़ पानी के नल के नीचे लगा कर तेज पानी की धार उसमें चला दें | कुछ समय बाद अपने आप ही उसमें साफ़ पानी दिखने लगेगा और काला रंग बाल्टी में कहीं कहीं ही लगा रह जाएगा | यही हम अपनी जिन्दगी में कर रहे हैं | हम negativity से भरी जीवन के कर्मों की बाल्टी उड़ेलने में उर्जा लगाये चले जा रहे हैं और negativity निकल ही नहीं पा रही है | और यदि हम अपनी उर्जा स्वच्छ पानी यानि पाजिटिविटी के नल के नीचे लगा कर छोड़ दें तो सबकुछ अपने आप ही ठीक हो जाएगा और उर्जा भी कम खर्च होगी |

दोस्तों, यहाँ एक ख़ास बात भी बताना चाहूँगा कि हमारे पूर्वजों को परमाणु का तो पता ही था | लेकिन इसके साथ ही साथ उन्हें इस बात का भी पता था कि इसमें तीन particle होते हैं | आप परमाणु के तीनो पार्टिकल्स की प्रॉपर्टीज और वर्किंग को ब्रह्मा, विष्णु और महेश से मिला कर देखिये | यही नहीं, आप गीता में दिए तीन गुण –सत्व, रजस और तमस को भी परमाणु के particle से मिलकर देखिये यह भी मिलते हैं | यहाँ तक कि शरीरिक योग के जन्मदाता ऋषि पतंजली भी इसे जानते थे | योग के बारे में भी हम एक लेख लिखेंगे तब आपको विस्तार से इस बारे में बताएँगे |

दोस्तों आपका, कर्म फल जानने के लिए कर्म को हर तरीके से समझना बहुत जरूरी था | और मुझे उम्मीद है कि आपको कर्म के बारे में सब कुछ समझ में आ गया होगा | अगले लेख में हम आपको कर्म फल के बारे में बताएँगे | कर्म फल समझना और समझाना थोड़ा मुश्किल है और उससे भी मुश्किल बुरा और अच्छा कर्म बताना है | कोशिश करेंगे कि आपको सब समझ में आ जाए | बस अभी के लिए इतना ही | जल्द मिलते हैं | नमस्कार |

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