दोस्तों, आप रोजाना बिजली, इन्टरनेट और मोबाइल फ़ोन प्रयोग करते हैं | क्या आपने कभी सोचा कि यह कैसे और कहाँ बनते हैं और कैसे हम तक पहुँचते हैं ? क्या तकनीक इस्तेमाल होती है ? आपको कभी ऐसा सोचने-समझने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई | क्योंकि ये और ऐसी बहुत-सी भौतिक इस्तेमाल की तकनीक या वस्तु आपके जीवन का हिस्सा बन गई हैं | और अब तो हम उस युग में पहुँच चुके हैं जहाँ रोज एक नई वस्तु या तकनीक सामने आ जाती है और हम पुरानी को छोड़ नई की ओर बढ़ जाते हैं | ये सब कुछ इस्तेमाल करते हुए धीरे-धीरे हम इनके आदि होते जा रहे हैं | हम अब भौतिक रूप से सोचते-समझते और करते हैं | इसमें भी कोई शक नहीं कि खाली ये ही नहीं कई और भी कारण हैं कि हम अब भौतिकी से आगे बढ़ नहीं रहे हैं और सोच करीब-करीब रुक गई है |
आज हमारे रिश्तों का ये हाल होने में काफी भागेदारी भौतिक विज्ञान और सोच की है | हम प्रेमी और प्रेम को भौतिक वस्त्तु या तकनीक समझने लगे हैं | हम सब कुछ दिमाग से सोचने और करने लगे हैं जबकि रिश्ते और सम्बन्ध दिमाग से नहीं दिल से चलते हैं | यही कारण है कि रिशतों में टूटन बढ़ती ही जा रही है | हमारी सोच कुंठित होती जा रही है | हम क्या सही और क्या गलत है में फैसला ही नहीं कर पाते हैं | भौतिक वस्तु और तकनीक की वजह से हम अकेले होते जा रहे हैं | हमारे सम्बन्ध उस और बढ़ रहे हैं जहाँ सम्बन्ध ही नहीं रहेंगे | रहेंगे तो सिर्फ टाइम पास वाले सम्बन्ध|
खैर, आगे बढ़ते हैं | दोस्तों, बहुत से लोगों को अकेले बैठने पर अजीब-सा महसूस होता है | वह अचानक अपनी बीती जिन्दगी में चले जाते हैं | वह यह सोच कर रो पड़ते हैं या दुःखी हो उठते हैं कि उन्होंने जो कुछ किया या जो कुछ भी उनके साथ हुआ वह गलत था | ज्यादात्तर अपने आप को कोसते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों और कैसे कर दिया | यही सोच उन्हें भविष्य में भी ले जाती है | भविष्य के बारे में सोचते ही उनके आँसू टपकने लगते हैं | मन बोझिल हो जाता है | हो सकता है ऐसा या इसके जैसा कुछ आपके साथ भी हुआ हो या होता है |
बीती जिन्दगी जिस रफ्तार से चल रही है उससे आने वाली जिन्दगी का अंदाजा जब लगाया जाता है तब रोना आना स्वाभाविक है | हर किसी के कुछ सपने या लक्ष्य होते हैं | जब वह पूरे नहीं होते हैं या सपनों या लक्ष्य को किसी के लिए या परिवार के लिए कुर्बान करना पड़ जाता है या किसी को प्यार में धोखा मिलता है | किसी की कद्र घर-परिवार वाले नहीं करते हैं | किसी को बार-बार मेहनत करने के बावजूद भी सफलता नहीं मिलती है | कोई शरीर या बिमारी से परेशान है तो कोई बच्चों या गुजरते समय से | कुछ इसलिए परेशान हैं कि वह जो करना चाहते हैं परिस्थिति उसके बिलकुल विपरीत हैं और वह चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं | कुछ इसलिए परेशान हैं कि समाज की तो छोड़ो यहाँ तो अपने ही साथ नहीं दे रहे हैं |
इन सब बातों में एक बात common है कि आप भूतकाल या भविष्य से परेशान हो रहे हैं | और जो कुछ भी हो रहा है वह आपके मुताबिक नहीं हो रहा है | लेकिन आप इसमें एक काल तो भूल ही गये हैं | वर्तमान काल | जो कुछ भी आज अभी इस वक्त हो रहा है उसे ही देखिये और सोचिये | बीता वक्त वापिस नहीं आ सकता और आगे आने वाले समय के बारे में निश्चित रूप से कोई कुछ नहीं कह सकता है | इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज फैली बिमारी से ही ले सकते हैं | अचानक आई इस बिमारी ने सब कुछ जहाँ-तहाँ रोक दिया है | किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो सकता है | आप अभी जो साँस ले रहे हैं | वह साँस पूरी होने तक वर्तमान है और अगली साँस भविष्य है | और किसे पता है कि किसकी अगली साँस आएगी कि नहीं | इसी प्रकार हर अगला कदम भविष्य है | हम सोचते हैं कि आज का दिन या रात वर्तमान है | जबकि हमें अगली साँस तक का पता नहीं है | आप भविष्य के बारे में योजना बनाते हैं उस पर आज से कार्य शुरू करते हैं | यह एक positive step है | ऐसा किया जा सकता है और करना भी चाहिए | लेकिन वह पूरा होगा कि नहीं यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं | अतः कर्म करें फल की अपेक्षा भविष्य पर छोड़ दें | और आज को जितना हो सके ख़ुशी-ख़ुशी बिताएं | उसे भविष्य की चिंता कर कृपया खराब न करें |
दुखी होने का एक और कारण भी है और वह है ‘अहम’ | जब भी हमारे अहम को चोट लगती है तब हमारा अंतर्मन तड़फ उठता है | ऐसे में जब हम उचित जवाब नहीं दे पाते हैं तब मन अंदर ही अंदर बगावत कर देता है | ऐसे में हमारा मन हमें कई तरह के सुझाव या उपाय बताता है | ऐसे सुझाव या उपाय हमें बाहर से तो शांत कर देते हैं लेकिन अंदर ही अंदर हम मौके की तलाश में जुट जाते हैं | ऐसे में हमें रोना नहीं आता है बल्कि अपने पर गुस्सा आता है कि हमें मौका नहीं मिल रहा है | रोना केवल उसी दशा में आता है | जब हम जवाब नहीं दे पाते हैं और उम्मीद भी नहीं होती है कि कभी हम ऐसा कुछ कर पायेंगे | लेकिन बगावती मन हमें चैन नहीं लेने देता है | ऐसे में जब भी हम अकेले होते हैं | हमारा मन मौका देख कर हावी हो जाता है और हम सुबक उठते हैं |
दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि क्या हम में अहम होना ही नहीं चाहिए | आप बिलकुल ठीक सोच रहे हैं | हम में अहम बिलकुल भी नहीं होना चाहिए | असल ये अहम नहीं है | यह हमारे मन के द्वारा फैलाई एक भ्रान्ति है कि हमारी अपनी भी कोई इज्जत है | आपकी कोई इज्जत करता है तो ठीक, नहीं करता है तो ठीक | हमें अपने पर जब पूर्णतः विश्वास होता है | जब हम अपने आपको पूर्णतः जानते हैं कि हम जो कर रहे हैं वह बिलकुल ठीक है | तब हमें किसी के सर्टिफिकेट की क्या जरूरत है | हम ठीक हैं तो ठीक हैं | कोई माने या न माने | कोई इज्जत करे या न करे | लेकिन जब हम में आत्मविश्वास या confidence की कमी होती है तब हमें दूसरे का सहारा चाहिए होता है | तब हमें दूसरे के सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ती है | तब हमारा मन अहम पैदा करता है | और ऐसे में जैसे ही कोई हमारे अहम पर चोट करता है | हमारे काम या हमारी सोच को गलत बताता है | हम फूट पड़ते हैं |
दोस्तों, जब भी कोई नया अविष्कार हुआ या किसी ने नई खोज की तो क्या उसे दूसरों के सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ी | नहीं पड़ी | उस अविष्कारक या खोजी को पहले-पहल सबने दुत्कारा ही है | लेकिन उसके आत्मविश्वास को देख धीरे-धीरे सब को उसकी बात माननी ही पड़ी | माना कि रोजमर्रा की जिन्दगी नई खोज नहीं है लेकिन उससे कम भी नहीं है | क्योंकि आप रोज एक नई चुनौती का सामना करते हैं | और ऐसे में आपको अपने में विश्वास होना बहुत जरूरी है | आप अपने काम और अपने आप से खुश होना सीखिए | यहाँ कोई किसी को खुश नहीं कर सकता है | और आपको किसी और के सहारे की क्या जरूरत है | आपको अपने सहारे की जरूरत है | मन की सुनना छोड़िये और आत्मा की आवाज सुनिए | वही हमेशा आपके साथ थी और मरते दम तक साथ रहेगी |