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प्रेम, प्यार, सम्बन्ध – 1

प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसे अनंत बार कहा और सुना गया है लेकिन फिर भी वह हमें समझ नहीं आया | प्रेम की कोई परिभाषा नहीं है और असल में कहें तो प्रेम को शब्दों में पिरोया ही नहीं जा सकता | प्रेम, भावना का वह उच्च शिखर है जिसे हम भाव कहते हैं | भावना से नहीं, भाव से किए गए प्रेम की कोई भाषा, धर्म, देश या जात-पात नहीं होती है | वह राजा-रंक कुछ नहीं देखता है | ऐसे प्रेमी को अंधा बिना देखे, बहरा बिना सुने भी पहचान जाते हैं |

आज के समय में हम जिस प्रेम को देख रहे हैं वह केवल भावनात्मक प्रेम है और कोई विरला ही भाव तक पहुँच पाता है | क्योंकि आज का प्रेम, आकर्षण या मजबूरी या लोभ या अपेक्षा, आशा या उम्मीद जनित है इसीलिए आप को बहुत से लोग ये कहते मिल जाएंगे कि उन्हें प्रेम यानि प्यार में धोखा मिला है | दोस्तों, हमें कोई धोखा नहीं देता या दे सकता, हमें धोखा अपने आप से मिलता है | क्योंकि आकर्षण या डर या मजबूरी या वहम या उम्मीद या विश्वास के भरोसे शुरू हुआ प्रेम ज्यादा दिन चल ही नहीं सकता |

आकर्षण एक न एक दिन खत्म होना ही है | जहाँ डर या वहम या लोभ या उम्मीद है वहाँ प्रेम पनप ही नहीं सकता | रिश्तों की मजबूरी में पनपा प्रेम या  प्रेमी को बिना जाने-पहचाने उस पर भरोसा या विश्वास कर लेने वाला प्रेम भावनात्मक स्तर से ऊपर नहीं उठ पाता है | और भावनात्मक प्रेम में प्रेमी का आकर्षण, अपेक्षा, आशा, उम्मीद या विश्वास छोटे से झटके से भी टूट कर बिखर जाता है |

खैर, इस से भी बड़ी बात ये है कि प्यार में धोखा मिल कैसे सकता है | प्यार तो देना होता है | प्यार तो करना होता है | प्यार कोई व्यापार थोड़े ही है कि आप प्यार का लेनदेन करेंगे | प्यार किया नहीं जाता है | प्यार तो हो जाता है | और जो प्यार किया जाता है वो प्यार होता ही नहीं | ऐसे प्रेम में कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा होता है | और जहाँ स्वार्थ होगा वहाँ प्यार हो ही नहीं सकता |

प्रेम तो जानने पर होता है | प्रेम मानने भर से नहीं होता है | जब तक आप अपने प्रेमी को पूरी तरह से जान नहीं लोगे तब तक आपको प्रेम नहीं हो सकता है | जिसने भी एक बार अपने प्रेमी को जान लिया फिर कुछ भी हो जाए उसका प्रेम अपने प्रेमी से भटक नहीं सकता | और जिसने भी अपने प्रेमी पर विश्वास बिना जाने किया है उसका विश्वास हर हालत में टूटेगा | क्योंकि प्रेम बहुत अलग बात है|

एक प्रेमी अगर अपने प्रिय को प्रेम करता है तो वह सिर्फ उससे ही प्रेम नहीं कर सकता | क्योंकि अंतर्मन से किए गए प्रेम में फैलाव आता है | ऐसा प्रेमी हर किसी को प्रेम करेगा | वह हर किसी में अपनी प्रियेसी देखेगा | इसका ये मतलब नहीं है कि वह हर किसी को अपनी प्रियेसी बना लेगा | इसका मतलब है कि वह हर किसी को प्रेम भाव से देखेगा | प्रेम भावना है लेकिन जानने के बाद किया प्रेम भावना का मंथन हो भाव बन जाता है | भावना विचार से उपजती है और बहुत नीचे के स्तर की है | जबकि भाव बहुत ऊँचे स्तर का है | ऐसा प्रेमी प्रकृति से प्रेम करेगा | वह अपने घर-परिवार से प्रेम करेगा | वह अपने काम से प्रेम करेगा | यहाँ तक की वह अपने दुश्मनों तक से प्रेम करने लगेगा | ऐसा प्रेम ही भक्ति-योग की पहली सीढी बनता है |

अगर हम आज के सन्दर्भ में बात करें तो आज प्रेम किसी को किसी से नहीं है | सब रिश्ते निभाह रहे हैं | सब को एक दूसरे की आवश्यकता है इसलिए प्रेम दिखा रहे हैं | पारिवारिक, सामाजिक, व्यवहारिक और प्रेम सम्बन्ध आज बोझ बनते जा रहे हैं | सब में टूटन आ रही है | कारण हम जानते हुए भी मानते नहीं हैं | क्योंकि मानने में हमें झंझट दिखता है | हम इन सब सम्बन्धों में प्रेम को कैद करना चाहते हैं या फिर प्रेम का व्यापार करना चाहते हैं | कैद या व्यापार कर हम अपने को सुरक्षित समझते हैं |

भाई, बहन या अन्य सामाजिक रिश्तों में हर समय एक प्रतिस्पर्धा रहती है | एक रिश्तेदार दूसरे पर आरोप लगाते मिल जाएगा कि तूने जैसे दूसरे के साथ किया मेरे साथ क्यों नहीं किया | तूने उसका पक्ष कैसे लिया | मैं तुम्हें उससे ज्यादा चाहता हूँ, फिर भी तू उसका दीवाना हुआ जा रहा है | वह तुझे धोखा दे रहा है तू समझता क्यों नहीं है आदि…आदि | ये सब बातें इस ओर इशारा करती हैं कि कहने वाला दूसरे को अपने प्रेम में कैद करना चाहता है | वह चाहता है कि दूसरा केवल उसे प्रेम करे | कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि प्रेम को या तो कैद किया जा रहा है या फिर उसका व्यापार किया जा रहा है | यानि प्रेम के बदले में प्रेम चाहिए | बदले में प्रेम नहीं तो फिर मेरी तरफ से भी प्रेम नहीं | ये अपेक्षा या उम्मीद व्यापार में की जाती है | ऐसा प्रेम में नहीं होता है |

प्रेम मार्ग, पागलों का मार्ग है | सामान्य बुद्धि वाले इस मार्ग पर चल ही नहीं सकते | प्रेम में सबसे पहले अपने आप को यानी अहम को खोना होता है | और कौन है यहाँ, जो अपने अहम को छोड़ना चाहता है | यहाँ सब अहम की बड़ी से बड़ी गठरी ढ़ोय चले जा रहे हैं | और गठरी को जरा-सा धक्का लगते ही मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं | और प्रेम मार्ग में तो अपनी गठरी खोल कर दूसरे को देनी होती है | कोई पागल ही ऐसा कर सकता है | सामान्य बुद्धि वाला नहीं कर सकता | इसीलिए तो प्रेम मार्ग को पागलों का मार्ग कहा जाता है |

मेवाड़ की रानी सड़क-सड़क गाती फिरती थी | वह किसी के घर रह लेती थी | हर किसी के साथ खाना खा लेती थी | ऐसी प्रेम की दीवानी थी मीरा | विष का प्याला भी प्रसाद समझ पी गई | कौन बनना चाहेगा मीरा | कौन छोड़ना चाहेगा अपना सब कुछ | बस यही सोच सब प्रेम का दिखावा भर करते हैं लेकिन प्रेम नहीं करते | जबकि प्रेम मार्ग से आप जीवन के हर सुख को पा सकते हो | यहाँ तक की ईश्वर को भी पा सकते हो | देना आपको सिर्फ और सिर्फ अपना अहम है | अहम देते ही आप को सब कुछ मिल जाता है | वह सब मिल जाता है जो एक सामान्य बुद्धि वाला दस जन्म में नहीं पा सकता है |

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