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व्यवहारिक आध्यात्म – 3

दोस्तों, अध्यात्म में उतरने के बहुत रास्ते हैं | जैसे तंत्र-मन्त्र-यंत्र, पूजा-पाठ, योग इत्यादि | मैंने इन्हीं रास्तों का नाम इसलिए लिया है क्योंकि यही रास्ते आज सबसे ज्यादा प्रसिद्द हैं | बाकि रास्ते और भी लम्बे और कठिन हैं लेकिन उनके जरिये पहुँचना लगभग निश्चित होता है |

दोस्तों, एक रास्ता सबसे आसान है जिसे हम भूले बैठे हैं और वह है प्रेम का रास्ता | आप मानेगे नहीं लेकिन ये सच है कि अध्यात्म की धुरी प्रेम पर टिकी है | अध्यात्म की शुरुआत कहीं से भी करें लेकिन अंत प्रेम पर ही होता है |

आप ‘ध्यान’ से शुरू करें या फिर कुण्डलिनी जागरण से अंत प्रेम में डूब जाने पर ही होगा | आप शरीरिक योग से शुरू करें या फिर शुद्ध भोजन या आचरण से, उसका अंत भी प्रेम पर ही होगा | इन सब तरीकों से शुरू करने पर एक ऐसा अंत आता है जोकि अंत की शुरुआत है असल में तो अंत, अनंत में कहीं खो जाता है | ऐसे प्रेम को ही ईश्वरीय प्रेम कहते हैं | जिसकी शुरुआत तो है लेकिन अंत कोई नहीं पा सका | क्योंकि ईश्वर अनंत है वैसे ही उसका प्रेम भी अनंत है | यहाँ प्रेम का अर्थ मीरा के प्रेम से है न कि आज के प्रेम से है | आज के युग में फैला प्रेम, प्रेम नहीं है | ये प्रेम सिर्फ नाम के लिए है | असल में तो प्रेम के नाम पर व्यापार चल रहा है | मैंने किया तो उसे भी करना चाहिए | उसने नहीं किया तो मैं क्यों करूं | मैंने उसके लिए ऐसा किया तो उसने बदले में वैसा क्यों किया आदि…आदि | व्यापार में बदले में कुछ लेना होता है | प्रेम तो सिर्फ देने का नाम है |  और जहाँ बदले में कुछ चाहिए वहाँ प्रेम हो ही नहीं सकता |

दोस्तों, आज हमने बुद्धि को ही सब कुछ मान लिया है | हर बात तराजू पर तोली जाती है | जबकि अध्यात्म में बुद्धि सब कुछ नहीं है | हम सब आज बुद्धि पर भरोसा करते हैं इसीलिए भटक रहे हैं | मंजिल दूर, अति दूर लगती है | क्योंकि कुछ ऐसा है जो हमारी बुद्धि से, इस संसार से, विज्ञान से परे है | और वो कोई और नहीं, वो ईश्वर है | ईश्वर को पाने का प्रेम सबसे आसान तरीका है | प्रेम में बुद्धि या मन का कोई काम नहीं है | वह आत्मिक रास्ता है | लेकिन हम सब आसान तरीके को छोड़ बाकि सब रास्ते अपनाते हैं |

जब आप बीमार होते हैं तो आप डॉक्टर के पास जाते हैं | डॉक्टर आपका निरिक्षण करता है | निरिक्षण करके आप को दवा देता है और आपको एहतियात बरतने को कहता है कि ये खायें, ये न खायें, ये करें और ये न करें | वह एहतियात बरतने को इसलिए कहता है कि दवा का असर जल्दी होगा और आप स्वास्थ्य जल्दी हो जायेंगे | यदि आप एहतियात नहीं बरतेंगे तो समय और दवा ज्यादा लगेगी और आप स्वास्थ्य देर में होंगे | कुछ गंभीर बीमारियों में आपको एहतियात बरतनी ही होगी वरना दवा असर नहीं करेगी |

अब आप ही सोचिये और समझिये कि क्या आपको कोई गंभीर बिमारी है जो आपको अध्यात्मिक गुरु एहतियात बरतने को कहते हैं | वह कहते हैं कि अगर आपने एहतियात नहीं बरती तो ईश्वरीय प्रेम नहीं मिल सकता | जी नहीं ऐसा नहीं है | एहतियात बरतने से आप प्रेम मार्ग पर जल्दी पहुँच जायेंगे और न बरतने पर देरी लगेगी | और प्रेम मार्ग पर पहुँचने का मतलब ये नहीं है कि आपका प्रेम से साक्षत्कार हो ही गया | प्रेम मार्ग पर पहुँचने का मतलब है कि आपको प्रेम की मात्र एक झलक ही मिली है | मंजिल तो अभी बहुत दूर है |

ब्रह्म ज्ञान, ब्रह्म शक्ति और ब्रह्म दृष्टि के इच्छुक लोग आध्यात्म की ओर आकृष्ट होते हैं | कुछ लोग शांति और मोक्ष के लिए इस ओर आते हैं | लेकिन इन सब में से कोई विरला ही कुछ प्राप्त कर पाता है बाकि सब तो एहतियात बरतने और प्रेम जगाने में उलझ कर रह जाते हैं |

धरती के अंदर जल है तभी तो कुएं में से जल निकलता है | वहाँ कहीं जल का स्रोत पहले से मजूद है तभी तो हम जल निकाल पाने में सफल हो जाते हैं | अगर जल हो ही नहीं तो आप जितनी भी गहराई में उतर जाओ आपको जल नहीं मिलेगा | इसी प्रकार प्रेम का स्रोत भी हमारे अंदर बह रहा है और हम उसे बाहर खोज रहे हैं | हर व्यक्ति दूसरे से अपेक्षा कर रहा है | इसी कारण सब प्यासे घूम रहे हैं | मीठा और ठंडा जल पीकर ही प्यास बुझती है | इसी प्रकार अपने अंदर से जागे प्रेम से ही आप संतुष्ट होंगे | जब आप संतुष्ट होंगे तभी किसी दूसरे को संतुष्ट कर पायेंगे | ऐसे में आप बिना किसी अपेक्षा के दूसरे को जल पिलायेंगे | क्योंकि आपके पास प्रेम से ओत-प्रोत कुआँ है जिसमें से जितना जल रूपी प्रेम निकालो उतना ही फिर भर जाता है | राम, कृष्ण, बुध, जीजस, नानक के पास ऐसे ही जल का स्रोत था | उनके पास था तो आपके पास भी है | बस अपने अंदर ही खुदाई करने के आवश्यकता है |

आप ने कभी सोचा कि ईश्वर और प्रेम अनंत क्यों है ?

क्योंकि हमारा मन चंचल है | हम चाह कर भी मन को रोक नहीं पाते हैं | वह कुछ ही देर एक बात बात या घटना या काम पर रुकता है | और जैसे ही हम उसके आदि हो जाते हैं वैसे ही मन आगे की ओर बढ़ जाता है |

मन ऐसा क्यों करता है ?

मन ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसे रहस्यमय बातें ही पसंद हैं | ईश्वर अनंत है क्योंकि ईश्वर जानता था कि अगर वह अनंत नहीं होगा तो कुछ समय बाद हम ईश्वर को भी छोड़ आगे किसी और की तलाश में निकल पड़ेंगे | सिर्फ़ एक यही कारण है कि कभी कोई ईश्वर का छोर नहीं पा सका है | इसी तरह ही प्रेम यदि अंदरूनी है तो वह भी अनंत होगा | वह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होगा | ऐसा प्रेम रुकते ही मन से उतर जाएगा |

अगर आज आप अपने आस-पास देखें तो यही सब हो रहा है | हर कोई परेशान धूम रहा है | हर कोई ये कहते मिल जाएगा कि अब पहले वाला प्रेम नहीं रहा | किसी को उसका प्रेमी धोखा दे रहा है तो किसी को दोस्त, किसी को रिश्तेदार तो किसी को उसकी स्वयम की पत्नी धोखा दे रही है |

दोस्तों, आप समझ नहीं पा रहे हैं कि क्यों पहले वाला प्रेम नहीं रहा | क्योंकि जिसे आप प्रेम कह रहे हैं वह असल में प्रेम है ही नहीं | अगर असल में प्रेम होता तो वह अनंत होता | आपको उसका दूसरा छोर मिलता ही नहीं तो वह आपके मन से उतरता कैसे ? वह प्रेम जिसे आप प्रेम कह रहे हैं वह आपके मन से उतर रहा है यानी आपको उसका दूसरा छोर मिल गया है | और अगर मिल गया है तो समझ लीजिये वह प्रेम है ही नहीं |

अंग्रेजी में कहावत है कि हर किसी को खुली किताब होना चाहिए | असल जिन्दगी में ये कहावत गलत साबित होती है | आप जब कोई किताब पढ़ लेते हैं तो वह आपके मन से उतर जाती है | हर वह कहानी या उपन्यास या किताब मन में तब तक जगह बनाये रखती है जब तक उसमें रहस्य होता है कि आगे क्या होगा ? जब आप पढ़ लेते हैं तो सारा रहस्य खत्म हो जाता है | जब किसी कहानी या उपन्यास या किताब को अधूरा छोड़ दिया जाता है ये कह या न कह कर कि आगे क्या होगा…. | ऐसी कहानी या उपन्यास या किताब हमेशा के लिए लोकप्रिय हो जाती है |

असल जिन्दगी में भी यह लागू होता है | जैसे ही आप अपना सब कुछ दूसरे को बता देते हो वैसे ही आप दूसरे के मन से आप उतर जाते हो | क्योंकि अब आप में रहस्यमयी बात नहीं रही | आप की हर बात, हर चाल या काम दूसरा पहले से ही जान जाता है | रहस्य नहीं तो प्रेम नहीं | रहस्य नहीं तो ईश्वर नहीं | हमारी धरती, प्रकृति, ब्रह्माण्ड और पूरी सृष्टि सब रहस्य से परिपूर्ण है | इसीलिए हम इस ओर आकृष्ट होते हैं | सब रहस्य खुल जायें तो हमारा मन कहीं ओर…… निकल लेगा |

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