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व्यवहारिक आध्यात्म

दोस्तों, आज से हम व्यवहारिक अध्यात्म पर लेख की श्रृखला शुरू करने जा रहे हैं | मुझे उम्मीद है कि आपको अध्यात्म जैसा नीरस विषय भी रुचिकर लगेगा | जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि अध्यात्म दो शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ होता है ऐसा ज्ञान जो आत्मा और ब्रह्म का विवेचन करे या आत्मा और ब्रह्म के विषय में चिन्तन-मनन करना | सीधे और स्पष्ट रूप से कहें तो ऐसा ज्ञान जो हमें आत्मा से मिलाता है और फिर हम आगे बढ़ते हुए ईश्वर की प्राप्ति कर सकते है | इसे और भी सरल ढ़ंग से कहें तो अध्यात्म ऐसा ज्ञान या विज्ञान जो हमें आत्मा के जरिये ईश्वर को खोजना या पाना सिखाता है |

अब आप सोच रहे होंगे कि हम बात तो अध्यात्म की कर रहे हैं लेकिन हमारे लेख का शीर्षक व्यवहारिक अध्यात्म है | तो दोस्तों इस बारे में मैं आपको यह कहना चाहता हूँ कि अध्यात्म और अध्यात्मिक सोच के बारे में सदियों से बहुत कुछ कहा जा रहा है और अभी भी कहा जा रहा है | लेकिन इस विषय को आप लोग कितनी गंभीरता से लेते या स्वीकारते हैं | ये तो आप लोग ही जानते हैं | अध्यात्म जैसा गंभीर विषय कैसे खिसकते-खिसकते पूजा-पाठ में तब्दील हो गया है | ये शायद आप नहीं जानते हैं क्योंकि आप लोग अब ये मानने लगे हैं कि पूजा-पाठ ही अध्यात्म है | पूजा-पाठ से भी अध्यात्म की शुरुआत हो सकती है इसमें कोई शक नहीं लेकिन क्या आपका पूजा-पाठ आत्मा के धरातल पर होता है | नहीं, आप लोग पूजा-स्थल जाना या धूप-अगरबत्ती जलाना या भजन-कीर्तन करना ही अध्यात्म समझ बैठे हैं | दोस्तों, यह सब शरीरिक है और अध्यात्म शुरू जरूर शरीर से होता है लेकिन अंततः आत्मा के तल पर पहुँच जाता है लेकिन आपके द्वारा की गई क्रियाएँ सिर्फ और सिर्फ शरीर के धरातल तक ही रह जाती हैं | आत्मा तक पहुँच ही नहीं पाती हैं |

अगर ऐसा नहीं हो रहा होता तो हमारे पर सकड़ों साल मुग़ल या अंग्रेज राज नहीं कर पाते |

खैर, हम इसे बहस का विषय न बनाते हुए सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि अध्यात्म जैसा गंभीर और अनूठा विषय क्यों हमारी जिन्दगी से दूर रहा | क्योंकि हम ये समझ बैठे या हमें ये समझाया गया कि ये बहुत ही गहन विषय है और विरले ही इसमें आगे बढ़ सकते हैं | और पारिवारिक लोग तो इसे कर ही नहीं सकते या वह परिवार में रहते हुए गहराई में पहुँच ही नहीं सकते | अगर ऐसा होता तो हमारे सारे पूजनीय भगवान परिवार के साथ क्यों रहते थे |

दोस्तों, ऐसी सैकड़ों भ्रांतियों के चलते हम दिन-प्रतिदिन अध्यात्म से दूर होते चले गये | और हम उस रास्ते पर चल पड़े जिससे अध्यात्म तक पहुँचना मुश्किल ही नहीं नमुमकिन हो गया | इसमें एक कमी ये भी रही कि हम कथा-कीर्तन तो सुनते रहे लेकिन सुनाने वालों ने ये नहीं बताया कि अध्यात्म को हम कैसे अपनी आज की जिन्दगी में कैसे ढालें | कुछ-एक ने बताया लेकिन जो भी बताया वह भी हमारे सिर के ऊपर से निकल गया |

दोस्तों, मुझ से पहले भी बहुत लोगों ने अध्यात्म को व्यवहारिकता देने की कोशिश की है और उनकी इस कोशिश से काफी लोगों को फायदा भी हुआ है | अतः मैं उसी कोशिश को एक बार फिर से शुरू करते हुए व्यवहारिक अध्यात्म को आपके सामने पेश कर रहा हूँ |

व्यवहारिक अध्यात्म का मतलब है कि वह कौन से तरीके या बातें हैं जिन पर चलते हुए हम अध्यात्म को अपनी निजी जिन्दगी में ढाल कर चरमराती जिन्दगी को सुखमय बना पायें |

दोस्तों, हम ऐसे ही कहते हैं कि कोई भी इस मॉडर्न युवा पीढ़ी को सिखा-समझा नहीं सकता | जबकि अध्यात्म जैसे नीरस विषय को भी यदि हम आज के हिसाब से ढाल कर पेश करें तो आज की युवा पीढ़ी हमसे भी ज्यादा श्रद्धा और विशवास के साथ स्वीकार कर लेगी | क्योंकि आज की युवा पीढ़ी कथा कहानियों में विश्वास नहीं रखती | वह व्यावहारिक रूप में स्वीकार करना चाहती है | युवा पीढ़ी चाहती है कि अगर सच है तो साबित करके दिखाओ | और हम उन्हें किस्से-कहानियाँ सुना कर पूजा-पाठ की ओर धकेलते जा रहे हैं | भगवान् पर विश्वास करो, सच बोलो, अच्छे कर्म करो आदि,आदि बोलते रहते हैं | जबकि वक्त-वक्त पर हमारा अपना विश्वास डोलने लगता है | सच हर जगह बोलने से डरते हैं और अच्छे कर्म की बात तो करते हैं लेकिन वक्त-बेवक्त बुरे की प्रशंसा करते हैं | कुछ इसका असर है और कुछ पश्चिमी सभ्यता का | हम अपने पर आँच आते ही पश्चिमी सभ्यता को कोसने लगते हैं |

हम साबित कैसे करें कि अध्यात्म से क्या हो सकता है और आखिर अध्यात्म होता क्या है ?

दोस्तों, हमारे पूर्वजों ने अपनी खोज में पाया कि शरीर नश्वर है और इस शरीर को अंततः खोने के इलावा और कोई उपाय नहीं है | लेकिन इस शरीर का एक अंग है जो अंग हो कर भी भले अंग न हो और वह है आत्मा | जब तक शरीर है तब तक आत्मा शरीर का अंग है और जैसे ही शरीर नष्ट हो जाता है | आत्मा एक बार फिर से उस अनंत का हिस्सा या अंग बन जाती है | इस बात का एहसास होते ही हमारे पूर्वजों ने आत्मा तक पहुँचने के लिए शोध आरम्भ कर दिया | क्योंकि अब उन्हें यह ज्ञात हो चुका था कि कुछ ऐसा है जो आत्मा से भी परे है | जैसे आज के विज्ञान ने एक ऐसा पार्टिकल खोजा है जिसे वह GOD PARTICLE कहते हैं | इस पार्टिकल को खोजने के बाद उन्हें एहसास हुआ है कि इस पार्टिकल से भी आगे एक ऐसा पार्टिकल है जिससे सब कुछ बनता है | और ऐसा ही कुछ हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले खोजा था जिसे उन्होंने ईश्वर नाम दिया था | हमारे पूर्वजों ने यह सब खोज अपने शरीर पर ही की थी | उन्होंने किसी बाहरी भौतिक वस्तु का सहारा नहीं लिया था |

अध्यात्म, गॉड पार्टिकल से भी परे उस पार्टिकल तक पहुँचने का विज्ञान है | इस अध्यात्म विज्ञान का रास्ता शरीर से होते हुए आत्मा तक पहुँचता है फिर शुरू होती है अनंत ईश्वर की खोज | जैसे आज के विज्ञान की बहुत शखाएं हैं उसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान की भी बहुत शाखाएं हैं | हर रास्ता या विज्ञान उस अनंत की ओर ले जाता है | जैसे तन्त्र-मन्त्र, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, ध्यान और योग इत्यादि | बहुत रास्ते हैं और सब के सब अध्यात्म विज्ञान के अंग हैं | कोई भी रास्ता गलत नहीं है लेकिन हर रास्ते की अपनी सीमा और लम्बाई-चौड़ाई है |

खैर, आइये इसे व्यवहारिक रूप में समझने की कोशिश करते हैं | हम सब को सुख-दुःख अच्छे बुरे के बारे में बताया और समझाया या दिखाया जाता है और फिर हम सारी ज़िन्दगी उसी के सहारे चलते हुए काट देते हैं | यह बात शिक्षा और ज्ञान पर लागू नहीं होती क्योंकि यह हमें दिमागी और आत्मिक ताकत से प्राप्त होता है | इसे इस तरीके से समझा जा सकता है | जैसे एक अध्यापक अपनी कक्षा में एक जैसा पढ़ाता है लेकिन फिर भी कुछ बच्चे बहुत अच्छे, कुछ अच्छे, और कुछ कम नम्बर लाते हैं | लेकिन कुछ बच्चे फेल भी हो जाते हैं | अध्यापक ने तो सबको एक सा पढ़ाया था फिर रिजल्ट अलग-अलग क्यों आया | वह इसलिए आया क्योंकि बाहर से हमें जो भी शिक्षा या ज्ञान दिया जाता है वह सिर्फ़ सुझाव मात्र ही होता है | हमारा दिमाग़ या मन उस दिए गये सुझाव के बाद उस पर मंथन करता है | उस मंथन के बाद वह सुझाव एक सोच बनता है | और वो सोच उस शिक्षा या ज्ञान को और बढ़ाता है और फिर वह सोच हमारी यादाश्त में अंकित हो जाती है |

अध्यापक सिर्फ़ पढ़ा सकता है | दिमागी ताकत का प्रयोग तो विद्यार्थी को करना होता है | जो करता है वह पास हो जाता है, जो नहीं करता वह फेल हो जाता है | यानी यहाँ यह साबित होता है कि शिक्षा बाहर से मिलती है लेकिन ज्ञान आपके अंदर है | वह दी गयी शिक्षा आपके ज्ञान को बढ़ाती है | ज्ञान आप अपने दिमाग़ और आत्मा से प्राप्त करते हैं क्योंकि वह पहले से ही होता है लेकिन वह सुप्त अवस्था में होता है | आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है | इसे आप ऐसे समझ सकते हैं | आज तक जो भी खोज हुयीं क्या वह पहले किसी किताब में लिखी थीं | अगर नहीं तो न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत सिर्फ़ एक सेब के सिर पर गिरने भर से कैसे बना दिया | क्या गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन के खोजने से पहले नहीं था ? वह तो हजारों सालों से था |

यदि आप, आज के सब वैज्ञानिकों की जीवनी पढ़ेगें तो आपको मालूम होगा कि ज्यादातर वैज्ञानिक पढ़ाई में अव्वल नहीं थे | लेकिन एक घटना ने उनके जीवन को पूरा बदल दिया | उस घटना पर जब उन्होंने अपना शरीर, दिमाग़ और आत्मा को केन्द्रित कर दिया तो एक अदृश्य ताकत ने उन्हें वह ज्ञान दिया जो खोज बन कर  विश्व के सामने आया |

श्री कृष्ण या फिर महात्मा बुद्ध, पैगम्बर मोहम्मद, जीजस और गुरु नानक द्वारा दिया गया ब्रह्मज्ञान उनसे पहले नहीं था तो वह ज्ञान आया कहाँ से | इसलिए मेरा कहना है कि आपको आपके शिक्षक जो भी शिक्षा दे रहे हैं वह सिर्फ़ एक सुझाव मात्र है और आपको उस सुझाव का विश्लेषण करना है | यह विश्लेषण ही आपकी यादाश्त पर अंकित होगा | अतः शिक्षा के अलावा दिमागी व्यायाम भी करें क्योंकि दिमागी विश्लेषण ही अव्वल बनाता है |

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