दोस्तों, पिछले साल से शुरू हुई महामारी अभी भी अपने पैर पसारे हुए है | ये बात जरूर है कि ज्यादात्तर राज्यों में अब इसका प्रकोप पहले जैसा नहीं है लेकिन इस वर्ष महामारी ने अपना जो रोद्र रूप दिखाया है | उसे अब सोच कर भी डर लगने लगता है | चिकित्सा विशषज्ञों का कहना है एक बार फिर से यह महामारी अपने पैर पसार सकती है | और उनका तो यह भी कहना है कि यह दूसरी लहर से ज्यादा भयावह हो सकती है |
दोस्तों, जो और जैसा भी हो, हो या न हो लेकिन आप लोग डॉक्टर्स जो भी सलाह दे रहे हैं | आप लोग प्लीज् उन सब का पालन अवश्य करें | हमें करोना को हराना है न कि उससे हार कर चपेट में आना है |
करोना से बचने के लगभग सब उपाय और तरीके आप पहले से ही जानते हैं | अतः मैं आपको करोना से बचने की कोई भी और सलाह या उपाय नहीं बताना चाहता हूँ |
मैं आपको वह सब बताना चाहता हूँ जो आप समझते-बूझते हुए भी समझ नहीं पा रहे हैं ?
जैसे कि करोना बिमारी के दौरान हमें किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा और ऐसा बुरा हाल क्यों हुआ ?
हमें क्या करना चाहिए था और हम क्या नहीं कर पाये जिस कारण आज वह सब लोग परेशान हैं जिनके अपने अब इस दुनिया में नहीं रहे ?
दोस्तों, हम ने पहले कभी ऐसे वक्त के बारे में न तो सोचा और न ही कभी कुछ किया | जैसे नदी में पत्ता धारा के साथ बहता चला जाता है वैसे ही हम वक्त के साथ चलते, चले जा रहे थे | जो, जो कर रहा था, वह बिना सोचे-समझे करता ही जा रहा था | हमने इसे ही जिन्दगी मान लिया था | और जब वक्त बदला तब हमें कुछ पल के लिए एहसास हुआ कि हमें वैसा नहीं करना चाहिए था जैसा हम करते चले आ रहे थे | लेकिन हम तो हम ही हैं | जैसे ही वक्त और हालात फिर से सामान्य होने लगे हैं वैसे ही हम एक बार फिर से पत्ते की तरह अपना सब कुछ छोड़ कर नदी के बहाव के साथ बहने की तैयारी में लग गये हैं |
दोस्तों, यह महामारी इतनी जल्दी नहीं जाने वाली है | एक बात और गौर करने की है कि हमारी आधुनिक मेडिकल साइंस की इतनी तरक्की होने के बावजूद हमें बहुत कुछ सहना और खोना पड़ा है | यह बात ही इस ओर इंगित करती है कि हमें किसी भी पद्धति पर जरूरत से ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए |
आज अगर हम पीछे मुड़ कर देखें तो ऐसा लगता है कि दूसरी लहर को हमने खुद ही इतनी भयावह होने के लिए आमन्त्रण दिया था | हमने आयुर्वेदिक पद्धति और योग पर अँधा विश्वास किया और वो भी बिना सोचे-समझे और जाने | हमने आज के आधुनिक विज्ञान को बिना सोचे-समझे और जाने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था | और फिर जो हुआ वह तो आप सब जानते ही हैं | जैसे ही हालात बद से बत्तर होने लगे तो हम मेडिकल साइंस की शरण में एक फिर से पहुँच गये | आप तो जानते ही हैं कि हर प्रोफेशन में अच्छे-बुरे लोग होते हैं | ऐसा ही कुछ मेडिकल साइंस से जुड़े लोगो ने भी किया | बहुत लोगों ने बीमार और असहाय लोगों का जम कर फायदा उठाया और बहुत से अच्छे लोग जो इस प्रोफेशन से जुड़े हुए थे उन्होंने सेवा करते हुए अपनी जान भी गंवा दी |
मैं यहाँ किसी एक पद्धति पर विश्वास और अविश्वास करने को नहीं कह रहा हूँ | बल्कि यह कहना चाहता हूँ कि आपने गहराई में तथ्यों को जानने की कोशिश नहीं की |
योग शरीर को बीमार होने ही नहीं देता | आज पूरा विश्व इस बात को मानने लगा है | और हम योग को छोड़ जिम में जाने लगे | शरीर को बाहर से सुंदर और आकर्षक बनाने में जुट गये | जो योग कर भी रहे थे या आज भी कर रहे हैं वह योग को शरीरिक व्यायाम की तरह ही कर रहे हैं | वह योग की गूढ़ पद्धति को समझते हुए शरीरिक व्यायाम से ऊपर उठकर शरीरिक रोगप्रतिरक्षण क्षमता को बढ़ाने के लिए नहीं कर रहे हैं | योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इस कद्र बढ़ा देता है कि इस धरती पर न तो कोई कीटाणु पैदा हुआ और न होगा जो शरीर को प्रभावित कर सके | इसके बारे में हम विस्तार से योग के लेख में बताएंगे |
योग की तरह ही हम ने आयुर्वेदिक उपाय के साथ भी किया |
ऐसा करते हुए हम भूल गये कि योग दो-तीन महीने में प्रतिरोधक क्षमता तो बना देता है लेकिन वह क्षमता महामारी से लड़ने के लिए काफी नहीं है | इसी प्रकार हम भूल गये कि सिर्फ काढ़ा या हल्दी या अन्य समग्री लेने से लाभ तो अवश्य होता है लेकिन यह लाभ महामारी के लिए अप्रयाप्त है | महामारी के लिए शरीरिक क्षमता बढ़ाने के साथ इस रोग से लड़ने के लिए यथोचित दवा लेने की आवश्यकता है और वो भी किसी अनुभवी आयुर्वेद के डॉक्टर से न कि आज के सोशल मिडिया में बैठे नीम-हकीम से |
इन सब के इलावा आज की आधुनिक साइंस पर भी विश्वास करते हुए सुझाये गये उपाय की भी आवश्यकता थी | लेकिन ऐसा नहीं हुआ ? परिणाम आपके सामने हैं |
दोस्तों, मैंने आपको जो कुछ भी बताया वह सोशल मिडिया पर कोई न कोई गाय-बगाय बताता ही रहता है | लेकिन मैं यहाँ उन बातों को बताना चाहता हूँ जिन्होंने करोना-काल में हुई गलतियों को जन्म दिया | और हमारे आने वाले लेख उन्हीं विषयों पर आधारित होंगे |
- हमने अपने शरीर से बाहर ख़ुशी और सुख की तलाश की |
- हमने अपनी आंतरिक प्रतिरोधक क्षमता पर विश्वास न कर दवाइयों पर ज्यादा विश्वास किया|
- हमने अपनी जीवन-शैली को इस तरह बना लिया है जहाँ चारो और भागमभाग है | ऐसी जीवन शैली न सिर्फ हमारे शरीर बल्कि हमें आंतरिक हानि पहुँचा रही है |
- हम मन के खिलोने बन चुके हैं |
- हम परिवार के लिए जो सबसे जरूरी बातें हैं वही उन से छुपा रहे हैं |
- हम सोशल मिडिया का प्रयोग तो कर रहे हैं लेकिन उसके लिए जरूरी सावधानी नहीं बरत रहे हैं |
- हम भागमभाग में अपने शरीर, परिवार और समाज की नहीं सुन रहे हैं |
- हम आधुनिक वस्तु या प्रयोग पर बिना सच्चाई जाने विश्वास कर रहे हैं |
ऐसे और भी बहुत विषय हैं जिन पर हम आपको आगे आने वाले लेखों में बताएँगे | धन्यवाद|