हम धर्म ग्रन्थ की हर बात पर दुहाई देते हैं
बार-बार उसे दोहराते हैं
लेकिन
हम ने कभी ये समझने की कोशिश नहीं की है
कि लिखने वाला ब्रह्मज्ञानी और दिव्य दृष्टा था
और हम अज्ञानी और अन्धें
उस भाव तक कैसे पहुँच सकते हैं
हम क्यों नहीं समझते हैं कि लिखने वाले के भाव को
समझने के लिए हमें उस जैसा होना होगा
और जो भी आप समझते हैं
वह बात या विचार आपका हो जाता है
वह उस लिखने वाले से
हमेशा के लिए अलग हो जाता है
क्योंकि एक (अल्पविराम) कौमा
के कारण भी बहुत कुछ बदल जाता है
रोको, मत जाने दो
रोको मत, जाने दो